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उम्मीद.

उम्मीद

क्या सबके साथ ही ऐसा होता है ? जब धडकनों के स्पंदन चुगली करने लगते हों, आँखें हर पल बेचैन सी कुछ खोजती हों, लबों पर आकर हर बात दम तोड़ देती हो और नींद तो जैसे जन्मों की दुश्मनी निकालती हो................दिन के हर पल में सिर्फ एक ही मूरत का दीदार होता हो...........तो क्या कहते हैं इसे.............कैसे ख़त्म होगी ये बेचैनी? मेरे साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है ? अब किसी से कहूँगा तो मुझे बीमार समझेंगे या मेरी हँसी उड़ायेंगे ? अब क्या करूँ? ऐसा सोचते -सोचते रोहित बेचैन हो गया.

जब से वो पूजा से मिला था तब से ही उसका ये हाल था. यूँ तो पूजा को वो पिछले ४-५ महीने से मिल रहा था क्योंकि पूजा उसके घर के पास ही रहने आई थी तो दीदार तो रोज हो ही जाता था मगर पिछले कुछ समय से उसकी पूजा से बातचीत भी शुरू हो गयी थी और जितना उसने पूजा को जाना उतना ही पूजा का व्यक्तित्व उस पर हावी होता गया. वो खुद को पूजा के आकर्षण में घिरा पा रहा था और जितनी निकलने की कोशिश करता उतना ही उस चक्रव्यूह में फंसता जा रहा था और अब उसे भी लगने लगा था कि ये सब गलत है मगर दिल था कि मानता ही नहीं था. बार- बार उसे खींच कर उसी ओर ले जाता था और आँखें खुद को रोक ही नहीं पाती थीं उसे निहारने से..........ना जाने कैसे वो पूजा के मोहपाश में बंधता जा रहा था............

यूँ तो पूजा एक विवाहित महिला थी जिसकी अपनी गृहस्थी थी. पति , बच्चे, घर परिवार सब था. मगर उसकी हंसमुख और मिलनसार प्रवृत्ति उसे सबके आकर्षण का केंद्र बना देती थी. जो भी मिलता उसका कायल हुये बिना नहीं रहता. फिर चाहे हमउम्र हो या बड़ा या बच्चा । वो तो सबसे ऐसे बात करती कि किसी को लगता ही नहीं कि उसकी उम्र क्या है या वो उनकी हमउम्र नहीं. सिर्फ थोड़े से समय में ही उसने सारे मोहल्ले के लोगो को अपने स्वभाव से अपना बना लिया था और कोई भी किसी भी समय उसके पास बेझिझक पहुँच जाता था.ऐसे ही एक बार रोहित अपनी माँ के कहने पर किसी काम से पूजा के पास गया. पूजा ने तो उससे उसके बारे में सारी जानकारी ले ली और फिर रोहित से अपने स्वभावानुसार ऐसे बात करने लगी जैसे वो उसकी कितनी पुरानी फ्रेंड हो. शुरू में तो रोहित संकोचवश थोड़ी बहुत बात करके आ गया. मगर बाद में कभी रास्ते में, कभी किसी काम से पूजा से सामना होता ही रहता था और वो उससे ऐसे बात करती कि रोहित को उससे बात करनाअच्छा लगने लगा. पूजा अपने कॉलेज के दिनों की अपनी मस्तियों के किस्से सुनाती और रोहित भी ऐसे सुनता जैसे सब कुछ जानता हो पूजा के बारे में.

रोहित को पूजा की बातें इतना आकर्षित करने लगीं कि जब तक पूजा से किसी भी बहाने से बात ना हो जाए उसे चैन ही ना पड़ता. उसका तो दिन ही तभी होता जब पूजा की मधुर आवाज़ उसकी हँसी की खनक उसके कानों तक ना पहुँच जाती. हालाँकि रोहित जानता था कि उसका और पूजा का कोई मेल नहीं मगर फिर भी वो पूजा के व्यक्तित्व से इतना आकर्षित हो गया कि कोई भी काम होता पूजा से सलाह किये बिना नहीं करता. यहाँ तक कि दोनों के घर वाले भी अब तो हँसी उड़ाने लगे थे कि कैसे थोड़े दिन में ही पूजा से घुलमिल गया जैसे बरसों से जानता हो मगर सब इस रिश्ते को एक देवर - भाभी के रिश्ते की तरह ही समझते थे.

और इधर रोहित जब से पूजा से मिला उसमे परिवर्तन आना चालू हो गया. अब उसमे पहले से ज्यादा गंभीरता आने लगी.उसके मन में भावों का सागर अँगडाइयाँ लेने लगता मगर कहे किससे? कौन समझेगा?

इश्क का वेग जब असहनीय हो जाता है तो वो एक मार्ग खोजने लगता है अपने ह्रदय के बहते ख्यालातों, भावों को उजागर करने को और तब जन्मता है उसमें से उसका दूसरा रूप जिससे वो अनभिज्ञ होता है कुछ ऐसा ही रोहित के साथ हुआ जब

इसी उहापोह में धीरे - धीरे रोहित ने अपने मन की बातें अपनी डायरी में लिखनी शुरू कर दीं कविताओं के रूप में. ना जाने क्या - क्या लिखता रहता और कई बार पूजा को भी सुनाता तो वो बहुत खुश होती और रोहित को लिखने को प्रेरित करती रहती उसे क्या पता था कि रोहित के मन में क्या चल रहा है या वो ये सब उसके लिए लिख रहा है. तो वो जैसे सबसे वैसे ही रोहित से भी व्यवहार करती............

समय अपनी रफ़्तार से गुजरता रहा और इस बीच रोहित की भी गृहस्थी बस गयी और वो दो प्यारे- प्यारे बच्चों की सौगात से लबरेज़ हो चुका था मगर रोहित ने कभी भी अपने ह्रदय के बंद दरवाज़े किसी के आगे नहीं खोले थे. ये तो उसका निजी प्रेम था, अपनी पीड़ा थी, अपनी चाहत थी जो उसे प्रेरित करती थी और उसने पूजा की प्रतिमा को अपने ह्रदय के मंदिर में विराजमान कर लिया था. उससे प्रेरित होकर ही अपने भावों को संगृहीत करता रहता था.

अपनी गृहस्थी से, अपनी जिम्मेदारियों से कभी मुँह नहीं मोड़ा. हमेशा हर जगह तत्पर रहता मगर अपने दिल के अन्दर किसी को भी झाँकने की इजाज़त नहीं देता यहाँ तक कि अपनी पत्नी निशा को भी नहीं मगर उसे उसके अधिकार और प्यार दोनों से कभी वंचित भी नहीं किया........उसे जो प्यार, सम्मान देना चाहिए,जो उसका हक है, जो हर स्त्री की चाह होती है उसमे कभी कोई कमी नहीं आने दी तो ज़िन्दगी पटरी पर चलती रही बिना किसी अवरोध के ।

रोहित ने प्रेम को, अपनी प्रेरणा को हमेशा जीवंत रखा अपने अहसासों में, अपनी कविताओं में, जहाँ वो अपने प्रेम के साथ एक ज़िन्दगी जी लेता था. एक दिन किसी काम से पूजा उनके घर आई और रोहित के कमरे में ही बैठी थी और जब निशा घर उसके लिए चाय नाश्ता बनाने गयी तो पूजा मेज पर रखी चीजें देखने लगी और तभी उसके हाथ रोहित की डायरी लगी और वो उसे पढने लगी. पढ़ते - पढ़ते पूजा ये तक भूल गयी कि कितना वक्त हो गया और वो कब से बैठी है. उस डायरी में यूँ तो कवितायेँ ही थीं. उनसे से कुछ उसने सुनी भी थीं मगर तब कभी ध्यान नहीं दिया क्यूँकि सुनने और पढने में फर्क होता है मगर उस दिन जब वो पढ़ रही थी तो एक बात ने उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया कि जितनी भी कवितायें थी उसमे एक चीज़ खास थी...........वो था एक नाम ---------पूजा. और इस बात ने उसे अन्दर तक हिलाकर रख दिया. जब उसने देखा हर कविता में पूजा शब्द किसी ना किसी बहाने प्रयोग किया गया है तो वो सन्न रह गयी. अब पूजा इतनी नादान तो थी नहीं जो समझ ना पाती इसका अर्थ. आखिर शादीशुदा औरत थी भरपूर गृहस्थी की मलिका और वैसे भी औरत की छठी इन्द्रिय बहुत तेज़ होती है जो उसे पहले ही आगाह कर देती है. ऐसा ही अब हुआ जो उसने ख्बाबों ख्याल में भी न सोचा था वो एक कडवा सच उसके सामने था जिसकी अब अनदेखी भी नहीं की जा सकती थी और न ही सामने लाया जा सकता था तो अब कोई उपाय खोजना होगा ताकि इससे मुक्ति मिले ।

पूजा को समझ आने लगा था कि माज़रा कुछ और भी है मगर वो इसे किसी पर ज़ाहिर नहीं होने देना चाहती थी, पहले अपनी तरफ से इत्मिनान करना चाहती थी. अभी वो इन सब ख्यालों में डूबी हुई ही थी कि उसे पता भी ना चला कि कब से रोहित आकर उसके पीछे खड़ा है. वो तो रोहित ने जब कहा, "पूजा जी, आज आपके कदम इस गरीब की दहलीज तक कैसे आ गए ? और ये हमारी अमानत पर दिन -दहाड़े डाका कैसे डाल रही हैं ?" तब पूजा चौंकी और खुद को संयत करते हुए बोली,"रोहित, तुम क्या समझते हो, तुम्हारी चोरी कोई पकड़ नहीं सकता. पूजा नाम है मेरा, बड़े बड़ों को पानी पिला देती हूँ."

इतना सुनते ही रोहित का चेहरा सफ़ेद पड़ गया उसने सोचा ना जाने पूजा को क्या पता चल गया, और जब मन में कुछ छुपा हो तब तो ऐसा होना स्वाभाविक है. क्या वाकई पूजा उसके दिल का हाल जान गयी? अभी रोहित ये सोच ही रहा था कि पूजा बोल पड़ी, " अरे रोहित क्या हुआ? चोरी पकडे जाने से डर गए, देखो तो कैसे पसीने छूट रहे हैं ?" मगर जब पूजा को लगा कि कहीं रोहित को शक ना हो जाए एकदम बात पलटकर बोली, "क्यूँ बच्चू, इतनी सारी कवितायेँ लिख लीं और मुझे सुनाई भी नहीं, पहले तो बड़ी जल्दी- जल्दी सुनाते थे मगर अब तो इतने दिन हो गए क्या हुआ?" तब रोहित की सांस में सांस आई. थोड़ी देर हँसी - मजाक करके पूजा तो चली गयी मगर रोहित सोचने लगा कि आज तो बात आई - गयी हो गयी मगर पूजा कितनी होशियार है ये वो जानता था.कहीं वो उसके भीतर के प्रेम के दर्शन ना कर ले इसलिए थोडा संभलकर रहना होगा. उसका प्रेम उसके लिए पूजा थी और अपनी आराधना में वो पूजा का भी खलल नहीं चाहता था..........उसे प्रेम का प्रतिकार नहीं चाहिए था सिर्फ पूजा का अधिकार ही चाहिए था और वो उसके पास था ही मगर अपने प्रेम को सार्वजानिक नहीं करना चाहता था............प्रेम ने कब प्रेम के बदले प्रेम चाहा है वो तो प्रेमी की ख़ुशी में ही खुश रहता है..........उसके अधरों की एक मुस्कान के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार रहता है जैसा कि पूजा की सोच थी उसे रोहित ने अपना जीवन बना लिया था क्योंकि पूजा के लिए प्रेम प्रदर्शन की वस्तु नहीं होता बल्कि प्रेम में तो सिर्फ़ प्रेमी की चाहत के लिए जीया जाता है जैसा कि उस दिन पूजा ने कहा था तो उसी दिन से उसने पूजा की चाहत को मान सम्मान देते हुए अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था और एक वादा खुद से किया था कि आज के दौर में मैं ये करके दिखाऊँगा तब शायद पूजा समझे कि सभी एक जैसे नहीं होते सोचते - सोचते रोहित को याद आ गया वो दिन जब एक दिन वो पूजा के पास किसी काम से गया था तो पूजा को अखबार पकडे गुम सुम बैठे देखा । हर पल चहकने वाली पूजा आज साक्षात उदासी और चिंता की प्रतिमूर्ति बनी बैठी थी ।

अपनी शोखी में रोहित बोला, “अरे आज ये हमेशा खिलता महकता गुलाब मुरझाया क्यों है ? क्या भैया से लडाई हो गयी है ?”

इस तरह की बातों पर हमेशा पूजा उसे डाँट दिया करती थी,देखो तुम ये दिलफ़ेंक आशिकों की तरह मुझसे बात मत किया करो मुझे पसन्द नहीं है मगर आज हैरानी की बारी रोहित की थी क्योंकि पूजा ने वैसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि बोली,

“रोहित ये क्या होता जा रहा है आज की जैनरेशन को ? आज की जैनरेशन शायद जानती ही नहीं प्यार कितना पवित्र होता है, उसने तो आज सिर्फ़ प्यार का नाम सुन भर लिया है मगर उसमें वो जीना नहीं जानता.”

“अरे भाई, हुआ क्या है, मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा, जरा बताइये तो सही” मामले की गंभीरता को समझ रोहित ने पूछा.

“देखो तो सही पेपर, जगह जगह यही हो रहा है कोई प्यार में नाकामी की वजह से आत्महत्या कर रहा है तो कोई प्रेमिका के इंकार पर उसे ही तेजाब से जला रहा है, एकतरफ़ा प्रेम की ये कैसी परिणति है रोहित कुछ समझ नहीं आ रहा । मुझे लगता है हमारी पीढी कहीं न कहीं चूक गयी प्यार के अर्थ समझने में ।“

“अरे आप क्यों परेशान हो रही हैं, छोडिये ये तो पेपर में रोज भरा होता है आज कौन सा नया है, आप के या मेरे कुछ कहने से लोगों की मानसिकता तो नहीं बदलेगी न और फिर हम यहाँ डिस्कस कर लेंगे और छुट्टी और जिन्होने जो करना है वो करता ही रहेगा तो बेकार परेशान होने से क्या फ़ायदा ?”

“रोहित मैं इतनी गंभीर हूँ और तुम्हें ये हल्की बात लग रही है” आश्चर्य से देखते हुए पूजा ने कहा, “रोहित आज जरूरत है इस बात को समझने की कि प्रेम किसी से जबरदस्ती नहीं करवाया जा सकता, प्रेम तो एक ऐसा अहसास है जिसमें इंसान इतना ऊँचा हो जाता है कि फिर उसके लिए प्रेमी की चाहत ही उसकी चाहत बन जाती है अपनी चाहत का कोई मोल नहीं रहता उसके लिए लेकिन आज तो लगता है प्रेम व्रेम कुछ नहीं है, है तो सिर्फ़ वासना, एक शरीर की चाहत तभी तो ये कुंठित लोग ऐसा कदम उठाते हैं क्योंकि उन्होने सिर्फ़ शरीर को चाहा होता है।“

“देखिये पूजा जी आपका कहना सही है मगर ये आज का सच है कि आज इंसान जिसे चाहता है उसे पाना भी चाहता है शायद इसीलिए वो नहीं समझ पाता कि प्रेम का असली अर्थ क्या है ।“

“यही तो गलत है रोहित, क्या प्रेम इतना सस्ता होता है जो सिर्फ़ शरीर पर ही सिमट जाए ? और फिर ये कैसा प्रेम हुआ कि यदि प्रेमिका नहीं मिली तो आत्महत्या कर लो या उसे ही मार दो या उसे ही तेजाब से फ़ूँक दो ? क्या इसे प्रेम कहेंगे ? क्या ये महज कोरी वासना को नहीं दर्शाता ? अरे रोहित ये एकतरफ़ा प्रेम कभी मुकम्मल नहीं हो सकते ये उन्हें समझना जरूरी है क्योंकि यदि सामने वाले के दिल में तुम्हारे लिए कोई जगह है ही नहीं तो क्यों जबरदस्ती कर उसका भी सुख चैन छीनने की कोशिश करना और फिर उसे अपनी हताशा और अपमान मान बदला लेने की कोशिश करना, मेरा तो खून खौल उठता है ये देख । अरे भई तुम्हें प्रेम है तो तुम जीयो अपने प्रेम में न, दूसरे से जबरदस्ती क्यों ?”

“पूजा जी शायद आपका कहना सही है मगर आज कौन मीरा सा प्रेम करता है वो युग बीत चुके आज तो इस हाथ दे और इस हाथ ले वाली चाहत है बस, लेन देन का खेल भर बन कर रह गया है उनके लिए ये जज़्बा तो ऐसे में आप या मैं या कोई और क्या कर सकता है ।“

“रोहित तुम सही कह रहे हो और ये बात मैं भी समझती हूँ लेकिन सोच सोच कर परेशान हुए जा रही हूँ आज की पीढी की इस कुंठित सोच को, क्या ऐसी पीढी आने वाली पीढी के लिए कोई आदर्श छोड पायेगी ? क्या उनकी देखा देखी ऐसी परिपाटियाँ और नहीं बढेंगी ? क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? हम इतने बेबस क्यों हैं रोहित ?”

“पूजा जी आप बहुत संवेदनशील हैं इसलिए आप इतनी परेशान हो रही हैं क्या करें जिस समाज में हम रह रहे हैं वहाँ आज बहुत तेजी से बदलाव आये हैं जिन्होने समाज की जड को ही उखाड दिया है और उसे दोबारा जड पकडने में वक्त तो लगेगा ही तब तक तो इंतज़ार ही करना पडेगा ।“

“रोहित सही कह रहे हो शायद लेकिन मैं चाहती हूँ कि लोगों को प्रेम के सही मायने पता होने चाहिए ताकि वो सिर्फ़ अपनी चाह में अपना और दूसरों का जीवन न बर्बाद करें ।“

अब रोहित का प्रेम इस ऊँचाई पर पहुँच गया तो वो नहीं चाहता था कि उसके प्रेम पर कोई ऊंगली उठाये ये सोचते सोचते रोहित ने एक निर्णय लिया ।

धीरे -धीरे रोहित ने पूजा से थोड़ी दूरी बनानी शुरू कर दी बेशक आज भी पूजा ही उसकी प्रेरणा थी मगर फिर भी वो इस तरह रहने लगा जिसमे किसी को आभास ना हो यहाँ तक कि पूजा भी ये ना सोचे बल्कि यही समझे घर गृहस्थी में व्यस्त है वो. शायद समय की यही मांग थी. कुछ प्रेम आधार नहीं चाहते सिर्फ अपने होने में ही संतुष्टि पाते हैं..........ऐसा ही हाल रोहित के प्रेम का था. अब रोहित ने चाहे अपनी तरफ से दूरियां बढ़ा ली थीं मगर जिस चेहरे को दिन में एक बार देखे बिना उसकी सुबह नहीं होती थी अब कई - कई दिन बीत जाते थे तो ये दंश रोहित को अन्दर ही अन्दर काटने लगा. अपने बनाये मकडजाल में ही रोहित फंसने लगा. अपनी बनाई सीमा को ना तो लांघना चाहता था और ना ही इस पार रह पा रहा था...........अब वो अन्दर ही अन्दर घुटता था, तड़पता था मगर कभी नहीं चाहता था कि उसकी प्रेरणा पर, उसके पवित्र प्रेम पर कभी कोई लांछन लगे इसलिए इस पीड़ा को सहन करते - करते कब रोहित अन्दर से खोखला होता गया,पता ही ना चला...........उसके जीने की वजह बन चुकी थी पूजा और उसने खुद को ही इस अग्निपरीक्षा में होम किया था............और जब जंग अपने आप से हो तो इंसान के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल होती है..........संसार से लड़ा जा सकता है मगर अपने आप से लड़ना और जीतना शायद इंसान के लिए बहुत मुश्किल होता है और यही हाल रोहित का था..........सिर्फ अन्दर से ही नहीं खोखला हो रहा था रोहित बल्कि अब उसका असर शरीर पर भी दिखने लगा था. धीरे - धीरे रोहित का शरीर थकने लगा. एक उदासी ने उसके मन में डेरा लगा लिया था बेशक आज भी पूजा रुपी प्रेरणा से वो उसी उत्साह और उमंग से लिखता था मगर फिर भी शरीर ने साथ देना छोड़ दिया था............मन की निराशा का असर शरीर पर गहराने लगा और धीरे- धीरे उसने बिस्तर पकड़ लिया मगर किसी से कुछ नहीं कहा और ना ही महसूस होने दिया.

सभी डाक्टरों को दिखा लिया, अच्छे से अच्छा इलाज करा लिया मगर किसी भी इलाज का कोई असर ना होता रोहित पर. निशा पूछ पूछ कर हार गयी “आखिर क्या बात है ? कौन सा गम है जो खाए जा रहा है ?” मगर रोहित ने कभी अपनी जुबाँ नहीं खोली और हमेशा निशा को ढाँढस बंधाता रहा, “अरे निशा क्यों फ़िक्र करती हो, कभी हो जाता है ऐसा जब शरीर में रोग का पता नहीं चलता, अब डॉक्टर भगवान थोडे हैं जो हर बात जान लें, देखना कोई गंभीर रोग नहीं निकलेगा, बस वैसे ही शरीर थकान का अनुभव करने लगा है इसलिए रोग पकड में नहीं आ रहा और तुम बेकार में इतनी परेशान हो रही हो.”

“लेकिन शरीर में थकान अभी से ? अरे अभी तुम्हारी उम्र ही कितनी है क्या महज 37-38 वर्ष में कोई थकान अनुभव करता है और वो भी इस हद तक कि आप रोजमर्रा के काम भी मुश्किल से कर पायें ।“

“एक बात सच सच बताओगे रोहित ?”

“हाँ कहो निशा, क्या मैने तुमसे कभी कुछ छुपाया है जो इस तरह कह रही हो ?”

“तो कहीं इस सबका कारण (सकुचती सहमती सी निशा ने हिम्मत करके कहा ) कोई लडकी तो नहीं है जिससे तुम्हें इश्क विश्क हो गया हो और अब मेरे और बच्चों के कारण खुद को खोखला कर रहे हों”

फ़क पड गया रोहित का चेहरा लेकिन सिर्फ़ क्षण भर में ही भाव बदलते हुए जोर से हँस पडा

“हा हा हा निशा क्या बात कही है यार तुम बीवियाँ भी न कहाँ से कहाँ पहुँच जाती हो, सच निशा आज तुम्हारी इस मासूमियत पर बहुत प्यार आ रहा है” कहते कहते रोहित ने निशा के माथे पर एक चुम्बन अंकित कर दिया.

“देखो मुझे टरकाओ मत बातों में कवि महाराज क्योंकि सुना हैं कवियों की ज़िन्दगी में जाने कौन किस रूप में आ जाती है” अब खुद को हल्का महसूसते निशा ने अल्हडता से कहा तो रोहित ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और निशा को जब उसकी बाँहों में वो ही सहजता अपनत्व मिला तो अपने शक के कीडे को तत्काल दिमाग से बाहर निकाल फ़ेंका ।

और फिर एक दिन पूजा जब उसे देखने आई तो उसका हाल देखकर घबरा गयी. काफी जानने की कोशिश की मगर कुछ ना जान पाई बस सिर्फ रोहित की आँखें ही कुछ बोल रही थीं जिन्हें पूजा समझ तो गयी थी मगर उसके आगे जानकर भी अनजान बनी हुई थी. वो किसी भी प्रकार का कोई बढ़ावा नहीं देना चाहती थी जिससे कोई उम्मीद रोहित के दिल में जगे...........आखिर समझदार औरत थी. (दूसरी तरफ़ रोहित का हाल भी समझ रही थी) कहीं न कहीं उसके इस हाल का कारण मैं ही हूँ और अब मुझे ही रोहित को इस भ्रमजाल से मुक्त करना होगा वरना एक बसी बसायी गृहस्थी के बर्बाद होने का बेवजह ही कारण बन जाऊँगी और फिर खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकूँगी और रोहित से इस बारे में बात भी नहीं कर सकती क्योंकि यदि बात की तो ये उसके प्यार को बढावा देना होगा और फिर वो अपेक्षाओं का शिकार हो जाएगा और यदि कोई उसकी बात यदि नहीं मानी तो हर बार इसी तरह की हरकत करेगा जो एक तरह से उसे पूरी तरह बर्बाद ही कर देगा इसलिए मुझे कोई ऐसा उपाय आजमाना होगा जिससे बिना इज़हार-ए-मोहब्बत के रोहित ज़िन्दगी की तरफ़ वापस मुड जाए क्योंकि प्रेम करने वाले बेहद संवेदनशील होते हैं और उनके साथ की जबरदस्ती उन्हें बर्बादी या मृत्यु की तरफ़ धकेल देती है ये मैं अच्छे से जानती हूँ ।

अभी बैठे बैठे पूजा ये सब सोच ही रही थी कि

रोहित ने पूजा से कहा, " मेरे जाने के बाद मेरी एक अमानत मैं आपको देना चाहता हूँ क्योंकि उसकी क़द्र सिर्फ आप ही कर सकती हैं "इतना सुनते ही पूजा तमककर बोली,"रोहित क्या है ये सब, कैसी बातें कर रहे हो ? कहाँ जा रहे हो और कौन तुम्हें जाने देगा ?अरे मैं तो सोच रही थी तुम अपनी गृहस्थी में बिजी हो मगर वो तो मिसेज शर्मा से पता चला कि तुम इतने बीमार हो. मुझे तो लगता है बीमारी तो बहाना है आराम करने का. है ना !" इतना सुनते ही रोहित फीकी सी हँसी हँस दिया.

तब पूजा बोली," क्या बात है रोहित, क्या कोई परेशानी है? तुम तो हमेशा से हंसमुख इन्सान रहे हो मगर अब ऐसा क्या हो गया जो तुम्हारी ये हालत हो गयी है. निशा बता रही थी कि तुम्हें कोई रोग भी नहीं है इसका मतलब कोई दिल का रोग है तभी ऐसा होता है..........क्यूँ सही कह रही हूँ ना. "

"पूजा जी, ऐसी कोई बात नहीं है, आपको वहम हो रहा है. सिर्फ काम का बोझ है बाकी इतना तो ज़िदगी में लगा ही रहता है आप बेकार में चिंता कर रही हैं."

मगर पूजा कौन सी कम थी आज तो ठान कर आई थी कि रोहित को ठीक करके ही आएगी. एक दम बोली, " तुम मुझे क्या समझते हो ? तुम जो कह दोगे मान लूँगी. पहले तो छोटी- छोटी बात के लिए भी मेरे से पूछने आते थे. माना कि अब तुम सयाने हो गए हो मगर इसका मतलब ये नहीं कि मुझसे ज्यादा अक्ल आ गयी है. अब बताओ, कौन सी ऐसी बात है जिसने तुम्हारा ये हाल बना रखा है. "

मगर रोहित भी कम न था, वो बार -बार बात को टालता रहा तब पूजा बोली,"रोहित देखो मुझे लगता है कि तुम अपने और अपने परिवार के साथ ज्यादती कर रहे हो. आखिर तुम्हारे परिवार का क्या दोष? उन्हें किस बात की सजा दे रहे हो? क्या उनकी देखभाल करना तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं? उनके प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना क्या तुम्हारा दायित्व नहीं और ऐसे अन्दर ही अन्दर घुटकर तो तुम उनके साथ भी अन्याय कर रहे हो. देखो तो ज़रा निशा और बच्चों की तरफ-------क्या हाल हो गया है उनका. निशा तुम्हारा ये हाल देख देख किस हाल में पहुंच गयी है देखा तुमने, उसके चेहरे की सारी चमक गायब हो गयी है, अपनी संभाल करना भी भूल गयी है सिर्फ़ तुम्हारे लिए क्या तुम्हें उनका ज़रा भी ख्याल नहीं?”

“अरे पूजा जी,ऐसी कोई बात नहीं है आप सब लोग बेकार परेशान हो रहे हो”

“देखो, तुम बेशक कुछ न बताना चाहो, मैं तुम पर दबाव नहीं डालूंगी मगर फिर भी तुमसे ये उम्मीद जरूर करुँगी कि आज के बाद तुम्हारा ज़िन्दगी के प्रति दृष्टिकोण बदलेगा. ज़िन्दगी सिर्फ ओसारे की छाँव ही नहीं है. ना जाने किन - किन मोड़ों से इन्सान को गुजरना पड़ता है. सिर्फ अपने लिए जीना ही जीना नहीं होता, कभी - कभी दूसरों के लिए भी जीना पड़ता है. तुम्हारी जो भी समस्या है उसे अगर तुम नहीं बताना चाहते तो मत बताओ मगर उसे स्वयं पर, अपने व्यक्तित्व पर हावी मत होने दो. मनचाहा हर किसी को नहीं मिलता. बच्चा भी चाँद पकड़ने की ख्वाहिश करता है मगर क्या कभी छू सकता है उसे? अपनी इच्छाओं को, आकांक्षाओं को, अपनी चाह्त को इतनी उड़ान मत भरने दो कि जीवन ही बेमानी होने लगे.अगर तुम खुद को बदल सको और मेरे कहे पर ध्यान दे सकोगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा. ऐसा लगेगा कि तुमने मेरा मान रखा. इतने सालों के साथ को इज्ज़त दी है. आज तक तुमसे कुछ नहीं चाहा मगर आज चाहती हूँ कि तुम मुझसे ये वादा करो कि तुम अपनी ज़िन्दगी घुट- घुट कर बर्बाद नहीं करोगे बल्कि भरपूर और खुशहाल ज़िन्दगी जियोगे अगर तुम्हारी नज़र में मेरा ज़रा भी सम्मान है तो” कहते कहते जब पूजा की आँख से आँसू ढलक पडे तो वो पल रोहित को इतना भारी पडा कि उसकी निगाहें नीची तो हुईं ही साथ में उसका दिल चीत्कार कर उठा :

‘क्या यही है तुम्हारा प्रेम जिसकी पूजा करते हो उसी को रुला दिया?ये कैसी प्रेम की परिभाषा है रोहित?’

“क्या मुझ से इतना वादा कर सकते हो रोहित ? क्या जो मैं चाहती हूँ वो मुझे दे सकते हो? बोलो रोहित ।“

इतना कह कर पूजा तो चुप हो गयी क्योकि वो समझ तो गयी थी कि मानव मन बेहद भावुक होता है और ज़रा सी भी आशा की किरण कहीं दिखाई देने लगती है तो वहीँ आसरा बनाने लगता है, ख्वाब संजोने लगता है इसलिए सब कुछ समझते हुए भी जान कर भी अंजान बनते हुए पूजा ने बातें इस तरह कीं कि जिसके बाद रोहित के लिए कुछ कहने को न बचे और वो यही समझे कि पूजा एक हितैषी की तरह उसे समझा रही है न कि वो उसके बारे में, उसके दिल के बारे में सब जान गयी है, ये पता चले, इसलिए पूजा ने रोहित से ऐसा वादा लिया ताकि इसे पूजा की ख्वाहिश समझे रोहित और यही ख्वाहिश उसके जीवन का संबल बन जाए आखिर उसके लिए तो पूजा की ख्वाहिश ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश थी न.सच्चे प्रे्मी तो अपने प्रेमी के लिए खुद को कुर्बान कर देते हैं और लगता है आज ये उसके प्रेम का इम्तिहान है जहाँ इज़हार नहीं, इकरार नहीं फिर भी प्रेम ने आज प्रेम से कुछ माँगा है तो कैसे प्रेम के दरवेश की झोली खाली ही रह जाए, उसकी प्रेरणा ने आज उससे कुछ माँगा था और वो मना कैसे कर सकता था ---------शायद ये बात पूजा अच्छी तरह से जानती थी क्योंकि यही ‘उम्मीद की एक किरण’ उसे नज़र आई थी रोहित को जीवन से जोड़ने के लिए..............

आज बिना इज़हार के भी प्रेम अपनी बुलंदियों पर पहुँच गया था.

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