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कातिल कौन ?

कातिल कौन ?

“क्योंकि

औरत होना पहला गुनाह है”

“उसका दूसरा गुनाह है बाप दादा भाइयों की मिलकियत बन ज़िन्दगी गुजारना और अपने बारे में कभी न सोचना”

“उसका तीसरा गुनाह है गूंगी गाय सी हंक जाना जहाँ चाहे वो हाँक दें लेकिन उफ़ भी न करना”

“उसका चौथा गुनाह है मिल्कियत और चेहरों के बदलने पर भी चुप रहना उसे उसका अधिकार चुपचाप देना और खुद पीड़ा सहना फिर वो शारीरिक हो या मानसिक, आर्थिक पीड़ा तो किसी पीड़ा के क्षेत्र में आती ही नहीं”

“उसका पांचवां गुनाह है उसकी चाहत के अनुसार बच्चे पैदा कर देना, न लिंग निर्धारण में अपना रुख स्पष्ट करना और न ही उनके जीवन से सम्बंधित कोई निर्णय ले सकना फिर चाहे उनके स्कूल से सम्बंधित हो या नाम से......एकाधिकार है उसका”

“उसका छठा गुनाह है उसके दिए रिश्तों की अच्छे से साज संभाल करना लेकिन खुद पर ही न ध्यान देना “

“उसका सातवाँ गुनाह है बच्चों का ब्याह हो या पढाई, उसी के निर्णय को सम्मान देना और खुद को उसी की इच्छा पर बलिदान कर देना”

“उसका आठवां गुनाह है मायके और ससुराल की इज्जत बनाए रखने को खुद को ज़िन्दगी के चूल्हे में झोंक देना लेकिन कभी खुद पर हुए ज़ुल्मों का मायके में न इल्म होने देना........उसे खुद पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार करने का लाइसेंस देना लेकिन कभी प्रतिरोध करने की हिम्मत न करना”

“उसका नौवां गुनाह है गलती से मायके में बता भी दे ज़ुल्मों की इन्तेहा तो वहां से भी दुत्कारी जाना, वहां भी न उसका कोई हक़ होने का उलाहना सहना फिर प्रतिरोध करे भी तो किस दम पर”

“उसका दसवां गुनाह है जिनके लिए जीवन होम किया उन्हीं बच्चों द्वारा दुत्कारा जाना मगर दो वक्त की रोटी और उनके प्यार सम्मान से वंचित रहना”

“उसका सबसे बड़ा गुनाह ग्यारहवां गुनाह है गलती से अपने हक़ के लिए बोल देना तो दुनिया की सबसे ख़राब औरत का तमगा पाना”

“उसका बारहवां गुनाह है सब तकलीफों से आजिज़ आने पर आत्महत्या को अग्रसित होना”

“और उसका तेरहवां और अंतिम गुनाह भी उसका औरत होना ही है”

इस तरह हो जाती है एक औरत की तेरहवीं... जहाँ उसका वजूद एक प्रश्नचिन्ह बना खड़ा होता है.

“योर ओनर ये है एक औरत के जीवन और मृत्यु पर्यंत की ऐसी कहानी है जिसमे वो कहीं नहीं होती. उसका ‘होना’ ही उसका गुनाह हो जाता है जहाँ तो वो कहाँ और किससे इन्साफ मांगे और किस बिनाह पर ? आज जो केस आपकी अदालत में चल रहा है कोई ख़ास थोड़े हैं. ऐसे केस रोज आपकी अदालत में आते होंगे और आप रोज न्याय भी करते होंगे. लेकिन मैं पूछना चाहती हूँ क्या आप न्याय करके खुद को संतुष्ट महसूस करते हैं ? क्या आपने जो निर्णय दिया इतने भर तक ही है एक औरत के साथ न्याय का पक्ष ? क्या आपके न्याय से दुनिया की तमाम औरतों का जीवन बदल गया है ?”

“नहीं योर ओनर, अगर इतने से दुनिया बदल गयी होती तो आज हम सब यहाँ नहीं होते. अदालतों की जरूरत ही नहीं रहती. शालिनी शर्मा मरी है या मारी गयी या मरने को मजबूर कर दी गयी इसे जानने के लिए आपको उसके जीवन का इतिहास खंगालना होगा शायद तब समझ सकें आप कहाँ है जड़ गुनाह की.”

“बासंती हवा सी मखमली नूर था उसके चेहरे पर. बचपन और जवानी दोनों का एकसाथ मानो पदार्पण हुआ हो लेकिन बचपन जवानी पर हावी हो गया हो. इतनी लुनाई थी उसके चेहरे पर कि गुलाब भी शरमा उठे. सुबह की पहली किरण सी मासूम मुस्कराहट से सबको अपना बना लेने वाली लड़की थी शालिनी शर्मा. अल्हड़ता ने तो मानो उसके रोम रोम पर निवास किया हो. बड़ी तो वो कभी हुई ही नहीं. क्या बच्चे और क्या बड़े सबको अपना बना लेना उसके बाएं हाथ का खेल था. हर धर्म में गहरी आस्था रखने वाली पढाई लिखाई में भी बहुत तेज थी. साथ ही नृत्य और गायन कला उसकी खूबी थीं.

अभी उम्र उसकी बमुश्किल २० ही हुई थी कि उस की किस्मत ने एक पलटा खाया. क्योंकि एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की थी तो अभावों को भी देखा था न केवल उसने बल्कि उसके घरवालों ने भी. ऐसे में एक बड़े बिजनेसमैन का रिश्ता जब उसके लिए आया तो सबकी आँखें खुली की खुली रह गयीं. बड़ा घर, फार्म हाउसेस, और बेशुमार दौलत ने अपनी चकाचौंध में सारे परिवार को इस तरह गिरफ्त में लिया कि किसी ने भी कोई ज्यादा इन्क्वारी करने की कोशिश ही नहीं की. यूं तीन भाइयों की इकलौती बहन थी, सबसे छोटी और लाडली भी थी लेकिन उस वक्त तो जाने आँखों पर कौन सा पर्दा पड़ा कि छोटी सी उम्र में ही ब्याह दी गयी जबकि अभी तो उसके बचपन ने भी उसके जीवन से बाहर जाने का प्रयत्न भी नहीं किया था. नहीं जानती थी जो अभी विवाह के मायने सही मायनों में.

उसका पति सोमेश एक सांवले रंग, दरमियाने कद का एक आम चेहरा भर था जिसमे यदि खूबी ढूँढने बैठो तो एक न मिले. वहीँ शालिनी तो ऐसी की हाथ लगाओ तो मैली हो जाए. शुरू शुरू में तो सब ठीक ठाक ही रहा और इस बीच उसने पहली लड़की को जन्म दिया तो सास का मुँह बन गया. फिर भी अपनी तरफ से वो हर संभव प्रयत्न करती सभी को खुश रखने की. अब क्योंकि सास की इच्छा थी उसे एक बेटा जरूर होना चाहिए क्योंकि वो ही वारिस होता है तो एक बार फिर उसे प्रसव की वेदी पर होम होना पड़ा लेकिन नतीजा फिर वही आया. इस तरह तीन लड़कियों का जन्म हो गया और सास अक्सर धिक्कारने लगी, सोमेश भी मुंह फेरने लगा और वो अपना दोष ढूँढती रही. इसी बीच उसे चौथी बार फिर प्रसव पीड़ा झेलनी पड़ी जिसमे पूरे नौ महीनों के दौरान उसका खड़ा होना, चलना फिरना तक दूभर रहा मगर सबकी ख़ुशी के लिए उसने ये सब भी सहा और शायद इस बार ईश्वर को उस पर दया आ गयी थी.

यूँ चार बच्चों को जन्म देने के बाद भी न तो उसे उनके नाम रखने का अधिकार था और न ही उनके भविष्य से सम्बंधित कोई निर्णय लेने का. फिर चाहे बच्चों के स्कूल पेरेंट्स मीटिंग में वो अकेली ही जाती थी लेकिन कौन से स्कूल में बच्चे पढ़ें या क्या सब्जेक्ट लें सबका निर्णय वो पितृ सत्ता का सूचक सोमेश ही लिया करता. कभी वो अपने मन से कोई निर्णय लेती तो उस पर हाथ उठा देता. बुरी तरह मारता. कर लिया था उसने समझौता अपनी ज़िन्दगी से अपने बच्चों के भविष्य हेतु. मगर हर समझौते की एक सीमा होती है.

शालिनी के साथ भी ऐसा ही हुआ. सोमेश बुरी आदतों का शिकार तो शुरू से ही था. एक नंबर का ऐय्याश किस्म का औरतबाज इंसान था जिसे सिर्फ औरत चाहिए होती थी फिर उससे उसका कोई भी रिश्ता क्यों न हो. अपनी बीवी तो उसके लिए महज एक कामवाली बाई से ज्यादा नहीं थी. रोज शराब पीना और दूसरी औरतों के साथ रात गुजारना उसका नियम बन गया. अपनी पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध कब बनाए थे शायद उसे याद भी न हो.

इसी बीच उसके पिता का देहांत हो गया तो खुद को घर का मुखिया मान और ज्यादा मनमानी करने लगा. जब तक पिता थे तो फिर भी घर संभला हुआ था अब उस पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं था. अब उसके अन्दर का पुरुष अपना वर्चस्व स्थापित करने को हर वक्त लालायित रहता. कोई काम हो, कहीं आना जाना हो, कोई लेन देन हो सब उससे पूछ कर हो क्योंकि घर का बड़ा अब वो है. अहंकार का नाग अब हर वक्त फन उठाये घूमा करता. सास तो वैसे ही अपने बेटे को बहू को प्रताड़ित करने हेतु प्रोत्साहित करती थी और बहू शालिनी से उसे लड़वाने के बहाने खोजा करती थी. धीरे धीरे सोमेश की ऐयाशी की वजह से काम धंधे पर असर पड़ने लगा और काम ठप्प होने लगा. जो बिजनेस पिता ने मेहनत करके ऊंचाइयों पर पहुंचाया था उसी को सोमेश बर्बादी के कगार पर ले आया. यहाँ तक कि अब जो भी नया काम करता उसी में घाटा उठाता. घर में पैसे की तंगी भी शुरू हो गई तो उसका दोष भी शालिनी के सिर मढ़ा जाता जबकि बच्चों पर वो एक पैसा भी खर्च करने की अधिकारी नहीं थी. बच्चों को एक आइसक्रीम तक दिलाने का उसे हक़ न था.कुछ भी लेना होता या लाना होता सब के लिए सास के आगे हाथ पसारने पड़ते क्योंकि सोमेश को पसंद नहीं था कि उसकी बीवी उस पर राज करे और जब पैसे मांगे वो देता रहे. इस बात पर कई बार दोनों की कहासुनी भी हुई.”

“सोमेश मुझे अपनी कुछ निजी चीजें भी लेनी होती हैं कम से कम उनके लिए तो तुम कुछ पैसे अलग से मुझे दे दिया करो. क्या अच्छा लगता है माताजी को एक एक पैसे का हिसाब देना और उनसे उन चीजों के लिए पैसे माँगना ?”

“क्यों मेरी माँ ही तो है. मैं नहीं मांगता उनसे पैसे जो तुम्हें मांगने में शर्म आती है. देखो शालिनी में उन मर्दों में से नहीं हूँ जो बीवियों के पेटीकोट में छुपे रहते हैं. तुम इतना जान लो तुम्हारा अधिकार यहाँ सिर्फ इतना है कि तुम इस घर की बहू हो. इससे अधिक तुम्हारी इस घर में कोई हैसियत नहीं और न ही अधिकार. आई बात समझ में.”

“मैंने कब अपने किसी अधिकार को तुमसे माँगा है सोमेश ? न ही अब मांग रही हूँ. मैं तो सिर्फ इतना चाहती हूँ मेरी निजी जरूरतों के लिए तो कम से कम तुम ध्यान दे लो और सिर्फ उतने भर ही पैसे दे दो. उससे ज्यादा तो मैं तुमसे कुछ मांग भी नहीं रही.”

“साली जबान लड़ाती है. एक बार की कही बात तुझे समझ नहीं आती. बहुत मोटी हो गयी है तेरी खाल. बहुत दिन हुए मरम्मत नहीं की न तभी कैंची सी चल रही है तेरी जुबान” कहते कहते सोमेश ने एक झन्नाटेदार तमाचा शालिनी के मुंह पर जड़ा तो वो पलंग के कोने से जा टकराई और खुद को बचाने लगी लेकिन सोमेश पर तो जैसे गुस्से का भूत सवार हो गया और उसने उसे बुरी तरह पटक पटक कर पीटा ये कहते हुए “मैं जोरू का गुलाम नहीं हूँ. और होते होंगे जो बीवियों के इशारों पर नाचते होंगे. तेरे बाप भाई ऐसा करते होंगे तभी तेरी इतनी जबान चलती है. आइन्दा मेरे रास्ते में आई तो जान से मार डालूँगा तुझे भी और तेरे पिल्लों को भी “ कहकर बडबडाता हुआ वहां से निकल गया. “शालिनी अधधुनी रुई सी खुद को समेटने लगी और बच्चों के स्कूल से घर आने से पहले तक खुद को सही करने लगी. वो नहीं चाहती थी उसके बच्चों पर माँ बाप के रिश्ते का गलत असर पड़े लेकिन सोमेश अपनी हरकतों से कहाँ बाज आता था. एक तरफ तो काम धंधा ख़त्म हो रहा था तो दूसरी तरफ उसकी अपनी ऐय्याशियाँ बढ़ रही थीं और इन सबके बीच शालिनी पिस रही थी.”

“एक दिन तो हद ही हो गयी जब बड़ी बेटी के कम नंबर आने पर उसे चोर की मार मारी और जब उसे बचाने शालिनी आगे आई तो अपनी सारी भड़ास शालिनी पर निकाल दी. बाल खींच खींच कर उसे मारा, दीवार में उसका सिर पटका, मुंह नाक होंठ सब फट गए. खून की धाराएं बहने लगीं सारा बदन नीला कांच हो गया और इस पर भी जब उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उसका गला दबाने लगा तभी शालिनी की किस्मत कहो या बच्चों की किस्मत से वो बच गयी क्योंकि डोरबेल बजी और दरवाज़े पर उसके एरिया के बहुत ही रसूखदार समाजसेवी खड़े थे तो उन्हें देख एक बार तो वो सकपका गया फिर उन्हें अन्दर बैठाया और बोला,”आप बैठिये गुप्ता जी, मैं बस अभी आया “ कह अन्दर गया और शालिनी और बच्चों से गुर्राते हुए बोला, “खबरदार जो तुम में से कोई भी बाहर आया. वहीँ काट के फेंक दूँगा. जो देना होगा माँ दे देगी. आवाज़ तक नहीं निकलनी चाहिए किसी की भी” धमकी देकर वो बाहर चला गया और गुप्ता जी से बतियाने लगा. बच्चे और बीवी घर में न होने का बहाना बना दिया.”

“बात यहाँ तक होती तो भी सही रहता लेकिन उस दिन शालिनी अपनी माँ से फ़ोन पर बात कर रही थी और बच्चों की पढ़ाई आदि के बारे में बता रही थी तभी सास ने उसे बात करते देख सोमेश के आते ही जाने उसके कान में क्या कहा कि वो तो छुट्टे सांड सा बिना आव ताव देखे शालिनी के हाथ से मोबाइल छीन उसे मारने लगा. शालिनी एकदम सकपका उठी आखिर उसका दोष क्या है. खुद को बचाती जा रही और सोमेश से पूछती जा रही, “सोमेश क्या हुआ है ? क्यों मुझे मार रहे हो ? मेरा आखिर दोष क्या है ? अब मैंने क्या किया है ?”

“मुझसे पूछती है क्या हुआ ? कुलच्छनी सारी राम गाथा अपनी माँ को सुना रही है. हमारी बुराइयां पीट रही है. मेरी माँ के बारे में बुरा भला कह रही है और पूछ रही है गुनाह क्या है. आज तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा. जब से आई है जीना हराम किया हुआ है. एक काम नहीं आता” कहता जा रहा और लात घूंसों की बरसात बिना देखे करे जा रहा फिर वो चाहे मुंह पर लग रहे थे ये पेट पर या छाती पर. वो चिल्लाए जा रही, “माँ मुझे बचा लो, पापा मुझे बचा लो, ये मुझे मार देंगे. नीरज भैया बचा लो, सुमित भैया बचा लो. हाय, मैं मर जाऊंगी, तुम्हें तुम्हारी राखी की सौगंध, अरे कोई तो बचा लो” कहते कहते वो बेहोश हो गयी और इधर ये सारा घटनाक्रम शालिनी की माँ के साथ उसके भाइयों ने भी फोंर पर सुना क्योंकि फ़ोन तो कटा नहीं था, तो बोल उठे, “ मम्मी ये सब तुम्हारे कारण हुआ है. क्यों उससे बात की. क्या जरूरत है उसकी गृहस्थी में आग लगाने की. “अरे बेटा ऐसा क्यों कह रहे हो. अरे जाओ उसे बचा लो, तुम्हारी सगी बहन है और सबसे लाडली. उसे बचा लो उस दरिन्दे से. मार डालेगा वो मेरी बेटी को. मैं नीरज तेरे पाँव पड़ती हूँ बेटा. मेरे दूध की लाज रख लो” रोते रोते माँ चिरौरी करती रही लेकिन पत्थरदिल भाइयों का दिल नहीं पसीजा और “अब जैसा करोगी वैसा ही भरोगी फिर तुम भरो या तुम्हारी बेटी” कह वहां से अपने अपने कमरों में चले गए.

शालिनी ने तो अपने घर जाकर अपने पिता और भाइयों तक से अपने ऊपर होते अत्याचारों की दास्ताँ उन्हें कही लेकिन उनके कान पर जूँ तक नहीं रेंगी. पिता ने ये कहकर पल्ला झाड लिया कि ये तेरी किस्मत है हमने तो सब देख भाल कर शादी की थी अब तू खुद भुगत मगर हमें मत कह. और भाई चूँकि ब्याहे जा चुके थे तो उनके तेवर और सुर भी अपने पिता के रंग में रंगे हुए थे. वो बात बात पर यही कहते, “तू ऐसा करती ही क्यूँ है जो सोमेश को गुस्सा आये. गलती तेरी ही होगी. वो तो अच्छा भला इंसान है. बेचारा काम धंधा भी करे और फिर तेरी चिक चिक सुने तो कौन मर्द होगा जो रोज रोज की किट किट से परेशान नहीं होगा. अब जैसा तू करेगी वैसा ही तो भरेगी “ कह अपना पल्ला झाड लेते. ये वो भाई थे जो पढ़े लिखे ऊंचे ओहदों पर थे. एक चार्टर्ड अकाउंटेंट तो एक इंजिनियर तो तीसरा भाई जनरल मेनेजर. बाप तो खुद भारत सरकार में उच्चाधिकारी रह चुका था तो आप समझ सकते हैं ऐसी सोच एक पढ़े लिखे तबके की थी. यदि ये सोच एक अनपढ़ या छोटे तबके की होती तो भी शायद हम इस तरफ ध्यान नहीं देते लेकिन जब आज का पढ़ा लिखा अनपढ़ों और जाहिलों की तरह व्यवहार करे, जिनके लिए रिश्ते महज हाथ पोंछने का रुमाल भर हों, क्या वहां एक स्त्री, बहन या बेटी को न्याय मिल सकता है ? इतना संवेदनहीन होना यही सिद्ध करता है आज रिश्तों की गरिमा मिट चुकी है ऐसे में एक स्त्री किसे पुकारे और कहाँ, जबकि उसके बोलने ही नहीं सोचने तक पर पहरे बिठा दिए गए हों.

एक माँ थी तो वो तो खुद एक गृहणी थी, उसने तो खुद सारा जीवन पहले बाप, फिर पति और अब बेटों और पति के ऊपर निर्भरता में गुजारा तो वो तो सिर्फ बेटी के दर्द में दुखी होने के सिवा कुछ कर ही नहीं सकती थी. वो बेशक दिलासा देती और सब ठीक हो जाएगा का आश्वासन देती लेकिन इससे ज्यादा उसे इस घर से कुछ न मिलता. कोई ठीया नहीं, कोई ठिकाना नहीं. न ससुराल अपना न पीहर. न ये घर न वो घर. और शायद घर तो उसका कोई था ही नहीं.”

“इन हालातों में वो जी रही थी योर ओनर. फिर भी सिर्फ अपने बच्चों का मुंह देख दो निवाले हलक से नीचे उतारती ये सोच कि अब इनके लिए उसे जिंदा रहना है. उसकी हर ज्यादती सहती रही ये सोच चलो मेरे बच्चों के तो कम से कम सिर पर साया है. उनके लिए जी रही थी, ये बात आप उसकी डायरी से जान सकते हैं कि वो जब भी इतना अत्याचार सहती उसमे दर्ज कर देती, शायद खुद से अपना दर्द कहने के सिवा उसके पास कोई विकल्प ही नहीं बचा था. इसी डायरी में अंतिम पृष्ट पर आप उसकी अंतिम दास्ताँ पढ़ सकते हैं. क्या उसके बाद भी आप सोमेश और उसकी माँ को निर्दोष मानते हैं ?”

उस दिन बच्चों के स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग थी लेकिन इस बार क्योंकि बड़ी बेटी सुरभि की दसवीं कक्षा थी तो टीचर ने माता पिता दोनों का साथ आना कंपल्सरी किया था. शालिनी ने वो लिखा सोमेश को दिखाया तो वो बोला, “मेरे पास इन फालतू चोंचलों के लिए वक्त नहीं है. तुम चली जाना और सुन लेना क्या कहती है टीचर. वैसे मैं जानता हूँ क्या कहेगी. अरे तुझसे बच्चे पढाये जाते नहीं, उनकी ढंग से परवरिश की जाती नहीं लेकिन पैदा करने का खूब शौक चर्राया था. अब पैदा किये हैं तो खुद ही भुगत. मुझे इसमें शामिल मत कर.”

सुनकर शालिनी का मन चीत्कार कर उठा और वो बोल पड़ी, “क्या कह रहे हो सोमेश. क्या मैं चाहती थी चार बच्चे ? अरे मैंने तो कहा भी था तुम्हें कि हमारी दो ही लड़कियां हमारे बेटों के बराबर हैं तो तुमने मुझे कहा ये निर्णय लेने का तुम्हारा अधिकार नहीं है. मैं और मेरी माँ जैसा चाहेंगे वो ही तुझे करना होगा. फिर अब कैसे ये इलज़ाम मुझ पर लगा रहे हो. तुम्हें नहीं जाना मत जाओ मैं अकेली ही चली जाऊंगी मगर कम से कम झूठ तो मत बोलो” इतना कहना था कि सोमेश ने शालिनी पर एक बार फिर अपनी दरिंदगी की इन्तहा दिखा दी.

उसे इस बुरी तरह मारा पीटा गया कि ज़ख्मों से उसका रोम रोम भर गया और इस पर भी उसने बस नहीं किया बल्कि उसका गला भी दबा दिया और जब वो पस्त हो गयी तो उसे जमीन पर गुस्से में पैर पटकता हुआ बाहर चला गया.

जाने कौन सी सांस कहाँ अटकी पड़ी थी जो शालिनी को उसने जिलाए रखा और उसने ये आखिरी हादसा देखिये कैसी टेढ़ी मेढ़ी लाइनों में अंकित कर दिया. शायद वो नहीं चाहती थी उसके बच्चों पर इस अत्याचारी बाप का साया रहे और वो भी इसी तरह घुटन भर जिंदगी जीते हुए किसी गलत राह पर चल निकलें. आप डायरी में उसके खून के निशान भी देख सकते हैं और उसकी लिखावट की थरथराहट भी जो सिद्ध करती है उसने ये सब लिखने में कितनी जद्दोजहद की होगी.कितनी ईश्वर से साँसें उधार माँगी होंगी तब जाकर लिख पायी होगी और शायद वो समझ गयी थी अब उसका अंत निकट है तभी उसने मरते मरते भी अपना अंतिम बयान इस तरह दर्ज कर दिया. शायद वो जानती थी ये सच जब खोजबीन शुरू होगी तो किसी के हाथ ये डायरी एक सबूत के तौर पर यदि लग गयी तो जरूर इन्साफ होगा.

एक घंटे बाद जब सोमेश वापस आया तो उसने देखा ये तो वैसी ही पड़ी है.कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रही तो अपनी माँ को बुलाया और जब उसकी नब्ज़ टटोली, नाक पर उसकी साँसों का स्पर्श महसूस नहीं किया तब उन्हें लगा ये मर चुकी है तो उठाकर पंखे पर रस्सी बाँध वहाँ टांग दिया.

जबकि विपक्ष का कहना है वो तो रास्ते में कुछ गुंडों ने उस पर हमला कर दिया था इसलिए उसे चोट के निशान आये. बाकी उसने क्यों आत्महत्या की ये समझ नहीं आया जबकि उसे सब ऐशो आराम के साधन मुहैया कराये गए थे. शायद गुंडों ने उसकी इज्जत पर हाथ डाला हो और उसने आत्महत्या ही अंतिम विकल्प चुना हो. ये थी उनकी थ्योरी जो पोस्टमार्टम से झूठी साबित हो चुकी है. उसके साथ कोई बलात्कार नहीं हुआ. बल्कि यहाँ तक पता चला कि उसके साथ तो पिछले कई महीनो से सम्भोग हुआ ही नहीं है तो कैसे उनकी बात पर यकीन किया जाए.”

“मैं पूछती हूँ यदि वो सही था तो क्यों नहीं पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गयी कि गुंडों ने हमला किया. खुद को सही साबित करने के लिए झूठी मनगढ़ंत कहानी गढ़ी गयी है योर ओनर. सब साक्ष्य आपके सामने मैं रख चुकी हूँ और गवाही भी हो चुकी हैं. और इन सबसे बढ़कर क्या शालिनी की डायरी चीख चीख कर सारे सबूत खुद नहीं दे रही. शालिनी की सबसे अच्छी सहेली निशा ने तो खुद जिरह के वक्त सारी हकीकत बयां की यहाँ तक कि शालिनी पर हुए अत्याचार का सबसे पुख्ता सबूत उसकी तस्वीर भी पेश कर दी जिसे उसने इससे पहली बार जब सोमेश ने उसे मारा था अपनी सहेली को भेज दिया था ये लिखकर, “निशा देख मेरा हाल, लेकिन क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ? कहीं कोई भी तो अपना नहीं. अब सहा नहीं जाता लेकिन बच्चों की खातिर सब सहना पड़ रहा है.”

आप सोच रहे होंगे कि शालिनी के पिता और भाइयों से क्यों नहीं गवाही ली जा रही. तो योर ओनर जिस पिता ने बेटी को बोझ समझ उससे सारे रिश्ते तोड़ दिए हों और अब मगरमच्छी आंसू बहा रहा हो उससे क्या आप उम्मीद करते हैं वो सच कहेगा या उन भाइयों से क्या उम्मीद करूँ जब बहन चिंघाड़ चिंघाड़ कर अपने पर हुए जुल्म बयां कर रही थी, अपने ज़ख्म उन्हें दिखा रही थी, उन्हें वो नज़र नहीं आ रहे थे , नज़र आ रहा था तो सिर्फ बहन में ही दोष, क्या उनसे उम्मीद की जा सकती है वो अब सच बोलेंगे?”

“योर ओनर, शालिनी की माँ की पुकार आप सुन ही चुके हैं. एक बेबस माँ ने एक एक लफ्ज़ सच कहा है इसका सबूत शालिनी की डायरी है.

योर ओनर यहाँ बैठा हर शख्स गुनहगार है न केवल क़ानून की नज़र में बल्कि अपनी आत्मा के आईने में भी जो आज के बदलते दौर में भी बेटा और बेटी में फर्क करता है. क्या ये बाप कातिल नहीं है शालिनी का जिसने यूं मुंह फेर लिया मानो वो उसकी लड़की ही न हो या उसने पाली पोसी न हो. क्या ये भाई भाभी कातिल नहीं शालिनी के जिन्होंने सिर्फ अपने लिए ही जीना सीखा. जिस बहन ने हाथ पर राखी बाँधी और जिसकी रक्षा का इन्होने वचन दिया था, कैसे की इन्होने उसकी रक्षा ? क्या ये सब कातिल नहीं उसके ?”

“योर ओनर, आप ही की अदालत में एक केस और चल रहा है जिसमे भी सिर्फ डायरी ही सबूत बनी है क्योंकि अभी तक ये पता नहीं चला कि उसने आत्महत्या की या उसे मारकर लटकाया गया. मिताली गर्ग का. वहां उसके माता पिता तो संपन्न थे. मनचाहा और मुंहमांगा दिया करते थे. अभी मिताली के लड़की होने पर भी १५ लाख का छूछक दिया उन्होंने लेकिन तब भी उनकी भूख शांत नहीं हुई. सास और देवर खुद तो कुछ कहते नहीं थे. जो चाहिए होता उसके पति से कहलवाते और वो मातृभक्त जैसा उसकी माँ चाहती वैसा ही कहता. इस बार भी उसके पीछे पड़ गया इतना देने पर भी कि मेरे भाई के लिए आई फ़ोन लाकर दे और मेरे लिए मर्सिडीस बेंज कार नहीं तो घर में आने की जरूरत नहीं है. एक तो बेटी जनी है उस पर क्या छंटाक भर कूड़ा दे गए. जबकि खुद के घर में खाने को नहीं. लड़का कोई काम करता नहीं तब भी उसके ऐसे तेवर थे. वो भी अपने घर वालों को बताती रही लेकिन वो पैसे वाले थे हर डिमांड पूरी करते रहे. जब इतनी बड़ी डिमांड उन्होंने रख दी तो क्या हुआ आपके सामने ही है. अब वो मरी या उसे आत्महत्या के लिए उकसाया गया, कोई नहीं जानता लेकिन सबूत उसकी डायरी ही है. कब तक हम अपनी बेटियों को ही दोषी मानते रहेंगे. कब तक हम उनकी पुकार को अनसुनी करते रहेंगे ये आज विचारा जाना बहुत जरूरी है वर्ना ऐसे केसेस से अदालतें भरी रहेंगी. आप और हम इसी तरह दोषारोपण करते रहेंगे. मैं पूछती हूँ योर ओनर,क्या हमारा समाज कातिल नहीं जहाँ आज भी बेटी को दोयम दर्जा दिया जाता है ? जहाँ आज भी उसकी कहीं कोई सिक्यूरिटी नहीं ? योर ओनर अब ये निर्णय का विषय रहा ही नहीं कि कातिल आखिर है कौन ? यहाँ बैठा हर शख्स शालिनी जैसी अबलाओं का कातिल है. उसका कातिल सिर्फ सोमेश या उसकी माँ ही नहीं बल्कि हम, आप और ये समाज है जिसकी कुंठित सोच का शिकार शालिनी हुई है. अब उसे आत्महत्या कहो या हत्या, कोई फर्क नहीं पड़ेगा, शालिनी मरती रही हैं और मरती ही रहेंगी तब तक जब तक इस संसार की आखिरी औरत तक को उसकी खुद की पहचान नहीं मिलेगी. उसके अस्तित्व को सहर्ष नहीं स्वीकारा जाएगा आपका और हमारा ये संघर्ष चलता ही रहेगा. और क़ानून अपनी आँख पर पट्टी बाँधे ‘कातिल कौन’ के पलड़े में एक तरफ औरत और एक तरफ मर्द को रखता रहेगा. दैट्स ऑल योर ओनर....

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