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महामाया - 28

महामाया

सुनील चतुर्वेदी

अध्याय – अट्ठाईस

पिछले एक महिने में अखिल पत्रिका के कामकाज और आश्रम की दिनचर्या में ऐसा रमा कि उसे समय का भान ही रहा। उसने इन दिनों बहुत कुछ जाना समझा था। बहुत सी जिज्ञासाएँ अभी भी शेष थी। दीक्षा के बारे में वो दो-तीन बार वह कह चुका है लेकिन वह हर बार यह कहकर टाल जाते हैं कि सही समय आने पर दीक्षा होगी। आज बाबाजी से दीक्षा की फायनल बात करना है।

सोचते-सोचते अखिल बाबाजी के कमरे में पहुंचा। बाबाजी के कमरे में अनुराधा, दोनों माताएँ, काशा, राम और स्काॅट बैठे थे। वानखेड़े जी हमेशा की तरह बाबाजी के दांई ओर खड़े माला फिरा रहे थे। अखिल बाबाजी को प्रणाम कर काशा के पास बैठ गया।

‘‘अच्छा हुआ बेटे आप आ गये। अभी हम आपको याद ही कर रहे थे। कल सुबह साढ़े चार बजे आपकी दीक्षा होगी।’’ बाबाजी ने अखिल की ओर देखते हुए कहा।

अखिल को आश्यर्च हुआ। उसके बिना कुछ कहे ही बाबाजी ने दीक्षा का समय तय कर दिया। बाबाजी ने उसके मन की बात कैसे जान ली?

‘‘सुबह चार बजे स्नान करके पहुंच जाइयेगा। ऐसा न हो कि आप सोते रह जायें और दीक्षा का समय निकल जाये।’’ अंतिम बात कहते-कहते निर्मला माई मुस्कुरा दी।

‘‘हाँऽआंऽऽ पर दीक्षा का कोई भी सामान मेरे पास नहीं है।’’ अखिल ने सामान्य होने का प्रयास किया।

‘‘सामान की चिंता मत करो। सब व्यवस्था हो जायेगी’’ फिर बाबाजी ने निर्मला माई की ओर देखते हुए कहा ‘‘माई आप स्टोर से थाली, लोटा और एक वस्त्र निकाल लाइये। सूर्यगिरी को दीक्षा के लिये पूजा की थाली तैयार करने को कह दो।’’

‘‘एक नई शाॅल मेरे पास है।’’ अनुराधा ने उत्साहित होकर कहा।

‘‘बाबाजी आपने एक बार हमें कामख्या देवी का कुंकुम लाकर दिया था। अखिल की दीक्षा के लिये हम वो कुंकुम निकाल देते हैं।’’ कहते हुए राधामाई अपने कमरे में गई। लौटकर उन्होंने एक छोटी सी पुड़िया बाबाजी को दी।

निर्मला माई स्टोर में जाने के लिये दरवाजे तक जाकर वापस लौट आयी।

‘‘स्टोर में अंधेरा होगा। बाबाजी आप कहें तो जग्गा को साथ ले जाऊँ’’

‘‘हाँ ले जाओ’’ फिर बाबाजी काशा को अपने पास बुलाकर पूछने लगे -

‘‘बेटे, ध्यान की अवस्था में आप जिस साधु को देखती हैं। वह कैसा दिखता है....आय मीन उसका लुक कैसा है?’’

‘‘टाॅल एण्ड हेण्डसम, डार्क काॅम्पलेक्स, लंबी जटाएँ, हाथ में कमण्डल.....’’

‘‘जिन्हें तुम ध्यान में देखती हो वो महाअवतार बाबा ही हैं। बस फर्क इतना सा है कि महाअवतार बाबा का काॅम्पलेक्स फेयर है।’’

‘‘बट आइ एम हंड्रेड परसेन्ट श्योर कि जो मुझे दिखायी देते हैं उनका काॅम्पलेक्स डार्क है। फिर वो महाअवतार बाबा कैसे हो सकते हैं?’’

‘‘बाबाजी ने एक हाथ काशा की ठोड़ी के नीचे लगाकर उसका चेहरा थोड़ा सा ऊपर उठाया और उसकी आँखों में झांकते हुए कहा - ‘‘किसी भी फिल्म के नेगेटिव और पाॅजिटिव में जो अंतर होता है वो यहाँ भी है। तुम्हे ध्यान की अवस्था में दिखाई देने वाला महाअवतार बाबा का स्वरूप नेगेटिव फाॅर्मेट में है। इसलिये तुम भ्रमित हो’’

‘‘मेरी महाअवतार बाबा से मुलाकात कब होगी। आई एम ईगर टू मीट हीम। मैंने अपनी सारी प्रापर्टी डिस्पोज आॅफ कर दी है और वो सब महाअवतार बाबा को भेंट करना चाहती हूँ।’’ कहते हुए काशा ने धीरे से अपनी ठोड़ी के नीचे से बाबाजी का हाथ हटाया।

बाबाजी अपने दोनो हाथ पीछे ले जाकर मसनद के सहारे टिककर बैठ गये ‘‘तुम अभी ध्यान की उच्च अवस्था में नहीं पहुंच सकी हो। इसलिये सूक्ष्म रूप में विचरने वाला योगी अपने स्थूल रूप में तुम्हारे सामने प्रकट नहीं हो सकता है। पर उसके लिये तुम प्रयास कर रही हो यही बड़ी बात है। आपके लिये हमें महाअवतार बाबा से बात करनी होगी बेटे।’’ बोलते-बोलते बाबाजी चुप हो गये। काशा भी जमीन में नजरें गड़ाये कुछ सोचने लगी।

निर्मला माई ने बाबाजी के कमरे से निकलकर जग्गा को खोजा। जग्गा रसोईघर के पीछे बनी गौशाला के बाहर मोबाइल पर गाने सुन रहा था। निर्मला माई जग्गा को साथ लेकर ऊपर की ओर चल दी।

शेषशायी विष्णु की बड़ी सी प्रतिभा के पीछे एक दरवाजा था। निर्मला माई ने टाॅर्च जलाकर उजाला किया। जग्गा ने चाबियों के गुच्छे में से एक चाबी निकालकर दरवाजे पर लटका ताला खोला। दरवाजे के अंदर से सीढ़ियाँ नीचे की ओर जा रही थी। दस-बारह सीढ़ियाँ उतरने के बाद एक बड़ा सा हॉल था। हॉल के दूसरे छोर वाली दीवार पर एक आदमकद आईना लगा था। निर्मला माई ने आईने को जोर से पीछे की ओर धकेला। आईना दरवाजे की तरह खुल गया। आईने के पीछे सात-आठ सीढ़ियाँ थी। सीढ़ियों के बाद बड़ा सा तहखाना। तहखाने में पहुंचते ही जग्गा ने निर्मला माई को अपनी बाहों में ले लिया और उनके होठों पर एक चुबन जड़ दिया। निर्मला माई ने प्रतिरोध करने के बजाय अपना सिर जग्गा के सीने पर टिकाते हुए धीरे से कहा।

‘‘क्या कर रहे हो जग्गा। अभी कोई आ जायेगा।’’

‘‘यहाँ कोई नहीं आयेगा।’’ कहते हुए जग्गा निर्मला माई के शरीर के उभारों को छूने लगा।

‘‘प्लीज अभी नहीं जग्गा.....मुझसे कंट्रोल नहीं होगा’’ निर्मला माई का स्वर भारी हो गया था।

‘‘कंट्रोल मुझसे भी नहीं होता.....’’ जग्गा ने निर्मला माई को बाहों में और अधिक कसते हुए कहा।

‘‘पर कंट्रोल तो करना ही पड़ेगा न! कौशिक कभी भी आ सकता है। बाबाजी का जासूस है। ये तुम्हे पता नहीं है क्या?’’ निर्मला माई ने अपने आपको जग्गा की बाहों की गिरफ्त से छुड़ाते हुए कहा।

‘‘ये बेहन......कौशिक । इसका तो कुछ न कुछ इलाज करना ही पडे़गा।’’ जग्गा ने दाहिने हाथ की मुट्ठी बनाकर उसे बांये हाथ की हथेली पर ढोंकते हुए गुस्से से कहा।

‘‘ठंड कर ठंड। पानी में रहकर मगर से बैर ठीक नहीं। मैं सब संभाल लूंगी।’’ निर्मला माई ने जग्गा का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे थपथपाया।

’’नहीं मैं और शांति नहीं रख सकता। चल हम अभी यहाँ से भाग चलते हैं।’’ जग्गा ने निर्मला माई का हाथ पकड़कर दो कदम आगे बढ़ाते हुए कहा। निर्मला माई ने झटके से जग्गा के हाथ से अपना हाथ छुड़ाया।

‘‘तू क्या सोचता है। तू मुझे लेकर भाग पायेगा यहाँ से। चल, थोड़ी देर के लिये मान लें कि तू मुझे लेकर यहाँ से सही सलामत निकल भी गया तो मुझे क्या सुख दे पायेगा।’’ निर्मला माई ने अपना हाथ जग्गा के सामने लहराया। ‘‘ये देख एक लाख की घड़ी है। बाबाजी जापान से लाये थे। ये कपड़े.....ये भले ही कहने को भगवा हों। लेकिन दिल्ली के सबसे मंहगे बुटिक में डिजाइन होते हैं। हर महिने मंहगे से मंहगे काॅस्मेटिक विदेश से आते हैं। जो गाड़ी पसंद आ जाती है उसी दिन खरीद ली जाती है। इस सबसे ऊपर हमें किसी के हाथ नहीं जोड़ने पड़ते। हजारों लोग सुबह-शाम हमें प्रणाम करते हैं। इतने सालों में आदत हो गई है इन सब चीजों की। तू यह सब सुविधाएँ कहाँ से लायेगा?’’ निर्मला माई ने जग्गा के कंधे पर हाथ रखा ‘‘जरा ठंडे दिमाग से सोच.....। अरे मैंने न चाहते हुए भी अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया बाबाजी पर। मैंने कितना कुछ सहा है शरीर और मन के स्तर पर। इसका तुझे क्या पता.....। और आज.....। आज जब इस सबके बदले में कुछ पाने का समय है तो मैं यह सब छोड़कर भाग जाऊँ। मैं इतनी मूर्ख नहीं हूँ जग्गा।’’ कुछ देर चुप्पी छायी रही फिर निर्मला माई ने बोलना शुरू किया ‘‘अब और कितने दिन रहेंगे बाबाजी.....। अरे जब इतने सालों सब कुछ सहा तो अब कुछ साल और सही। फिर तो ये सब मेरा ही होगा न!

और तू मेरी होगी कि नहीं? जग्गा की आँखों में शंका थी।

‘‘फिर तेरे अलावा मेरा और कौन होगा जग्गा’’ निर्मला माई ने भावुक होते हुए कहा।

‘‘सही में निर्मला, तेरे में गजब का दिमाग है। मैं तो इतनी दूर की सोच ही नहीं पाता हूँ’’ जग्गा ने निर्मला माई को प्रशंसा भरी निगाहों से देखते हुए कहा।

‘‘चल अब ज्यादा मक्खनबाजी मत कर। रात को राधा कमरे में नहीं सोयेगी। गलियारे वाला दरवाजा खुला रहेगा......’’ जग्गा ने खुश होकर फिर से निर्मला माई को अपनी बाहों में भींच लिया। निर्मला माई ने खुद को छुड़ाते हुए कहा ‘‘चल अब जल्दी-जल्दी सामान समेट.....वहाँ राधा के पेट में छाले फूट रहे होंगे।’’

तहखाने में बहुत सारी बड़ी-बड़ी चद्दर की पेटियाँ थी। बहुत सारे बर्तन बाहर बिखरे पड़े थे। निर्मला माई ने बर्तनों के ढेर में से दो थाली, लोटा निकालकर जग्गा को पकड़ाये। फिर पेटी खोलकर शाॅल निकाली। पेटी बंद कर दोनों बाबाजी के कमरे में लौट आये।

‘‘आपको बरतन लाने में बड़ी देर हो गई माई’’ राधामाई ने व्यंग्यात्मक स्वर में पूछा।

‘‘आप जाती तो आपको भी इतनी ही देर लगती। किसी ने शाॅल वाली पेटी में बहुत सारे बर्तन जमा दिये थे। इसलिये शाॅल ढूंढने में देर लग गई।’’ निर्मला माई ने सहजता से जवाब दिया।

‘‘चलिये सब तैयारी हो गई। अब सब लोग आराम करें।’’ बाबाजी ने सभी को उठने का संकेत दिया। निर्मला माई उठकर पीछे अपने कमरे में चली गई। अखिल, अनुराधा भी अपने-अपने कमरे में चले गये। राम, स्काॅट और काशा भी जाने के लिये उठ गये। राधामाई वहीं बाबाजी के पास बैठी रही।

क्रमश..