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बना रहे यह अहसास - 9

बना रहे यह अहसास

सुषमा मुनीन्द्र

9

चार दिन आई0सी0सी0यू0 में बीते।

अब रूम में शिफ्ट होंगी।

टेलीफोन पर रिंग आई -

हेड सर्जन से उनके चैम्बर में मिल लें। पंचानन सर्वेसर्वा। सनातन ने उसे भेजा। हेड सर्जन बोले -

‘‘मिसेस वेद पूरी तरह ठीक है। केस डिफिक्रल्ट था। ओल्ड एज और डाइबिटीज। मिड सेवेनटीज के मरीज सर्जरी कराने की हिम्मत नहीं करते हैं लेकिन मिसेस वेद ने बहुत हिम्मत दिखाई। हम डाँक्टर्स को उनसे हौसला मिला कि हम लोग इस उम्र के मरीजों को इलाज के लिये किस प्रकार प्रेरित करें। आपकी मदर अच्छा कोआपरेट करती हैं। पेशेन्ट के एफर्ट़स अच्छे हों तो इलाज करने में आसानी होती है।’’

सर्जन के प्रभा मण्डल के सम्मुख चकमा खाया सा बैठा पंचानन। अम्मा के प्राण पेन्सन में अटक गये होंगे, इसलिये बच गईं। उनके एफर्ट़स को साहस का नाम न दें।

‘‘जी।’’

‘‘हार्ट पेशेन्ट को संक्रमण से बहुत बचाना पड़ता है। संक्रमण से दिक्कत हो सकती है। छः महीने बल्कि साल भर मिसेस वेद की केयर छोटे बच्चे की तरह करनी होगी।’’

- कैसे करेंगे ? बच्चे को गोंद में लेने की स्वाभाविक इच्छा होती है। अम्मा को उठाने - बैठाने में हम लोग हाँफते हैं।

‘‘जी।’’

‘‘डाइट, मेडीसिन, रूम टैम्प्रेचर का ध्यान रखें और टेंशन फ्री रखें।’’

-हम लोग अम्मा को टेन्शन फ्री रखने लायक बचे कब हैं ?

‘‘जी।’’

‘‘एक जरूरी बात। यह बात कहने के लिये मैंने आपको बुलाया है। प्रिकाशन तो अन्य डाँक्टर बता सकते थे। बेहोशी में मिसेस वेद पैसे का जिक्र कर रही थीं।’’

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- बेहोशी में भी अम्मा के मगज में पैसा था ?

‘‘जी ?’’

‘‘उनके ट्रीटमेंट में आप लोगों ने जो पैसा लगाया है उसे वे पेंशन से चुकाने की कोशिश करेंगी। बहुत साफ नहीं बोल रही थीं लेकिन अर्थ यही था। झे लगता है आप लोगों को पैसे की कुछ प्राब्लम है। फिर भी आप लोगों ने उनका इलाज कराया। बुजुर्ग माता-पिता को बोझ मान कर लोग अक्सर लाचार छोड़ देते है। आप लोगों ने अपनी मदर का इतना ध्यान रखा इसलिये मुझे लगा परसनली मिल कर आपको एप्रीशियेशन दूँ। बाइ दवे कुछ केस में सीनियर सिटीजन के ट्रीटमेंट में टेन परसेन्ट की छूट दी जाती है, आप कहें तो मैं बीस परसेन्ट कम करा दॅूगा ...................

पंचानन सर्जन को निर्मिमेष देखता रहा। किसी चिकित्सक को पूरी तरह मानवीय होकर आत्मीयता से बात करते पहली बार देख रहा है। मूर्च्‍छा में अम्मा ने ऐसा कुछ तो नहीं कह दिया कि चिकित्सक को हम लोगों की मक्कारी का आभास हो गया है ? ये दुत्कारते हुये नहीं बल्कि धनात्मक तरीके से सराहना कर मुझे कर्तव्य की याद दिला रहे हैं ? यदि मक्कारी का आभास हो गया है तो मेरे बारे में क्या राय बना रहे होंगे ? पंचानन का मुख मुरझा गया। गलती करने वाले गलती करते हैं लेकिन नहीं चाहते कोई उन्हें गलत कहे। पूरी तरह बेखबर रहते हुये अनायास उसके मुँह से निकल गया -

‘‘सर डिसकाउण्ट हो जाये तो अच्छा है, वैसे मेरे पास पर्याप्त पैसा है।’’

पंचानन चिकित्सक के कक्ष से बाहर आ गया। चिकित्सक का स्वर पीछा करते हुये उसके कानों में प्रतिध्वनित हो रहा है - ‘‘............. आपकी मदर अच्छा कोआॅंपरेट करती हैं। पेशेन्ट के एफर्ट़स अच्छे हों तो इलाज करने में आसानी होती है ...................

अचरज है पर पंचानन सहसा इस तरह सोचने लगा जिस तरह अब तक नहीं सोचा था - अम्मा जिंदगी भर सामन्जस्य ही बैठाती रही हैं। मोहताज होकर रही है। कभी कोई फैसला नहीं कर पाई। सर्जरी कराने के लिये कभी हम लोगों की आड़ ले रही थीं कभी चिकित्सक की। जैसे सर्जरी करा कर अपराध कर रही थीं। सर्जरी कराना चाहती है सुन कर हम लोगों ने उन्हें हताश किया। खिल्ली उड़ाई। अंतिम समय वाली घबराहट और पीड़ा से गुजर रही होंगी लेकिन हम लोगों ने नरम होकर ढाढ़स नहीं दिया। कोई दिन नहीं हुआ जब उनका मनोबल न तोड़ा हो। चिल आउट करने के लिये उनका ध्यान बॅटाने के लिये स्फूर्त माहौल न बनाया। ख्याल तक न आया मौत के करीब जाने के भय से उन्हें बाहर निकालें। अकेले संघर्ष करती रहीं। हिम्मत दिखाती रहीं। माइण्ड को मेक अप करती रहीं।

‘‘............... उनके ट्रीटमेन्ट में आप लोगों ने जो पैसा लगाया उसे वे पेंशन से चुकाने की कोशिश करेंगी ..................

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अर्थात् अम्मा के अवचेतन में यह दबाव निरंतर बना रहा कि अपने ऊपर खर्च कर अपराध कर रहीं हैं। सर्जरी में हुये व्यय को पेंशन से जोड़ने का प्रयास करेंगी। उफ्। पैसा अम्मा के नहीं हमारे मगज में भरा है। छटपटा रहे हैं अम्मा मरें तो घर दुआर बिल्डर को बेंच कर लाखों हथिया लें। पैसा उन्हीं का लगा है फिर भी वे पेंशन से चुकाने का दबाव झेल रही हैं। विदड्रावल फार्म पर दस्तखत करते हुये वे दबाव से गुजरी होंगी। सनातन लगाता कि न लगाता मैं उनके इलाज में पैसा लगा देता तो उन्हें तसल्ली रहती उनकी सर्जरी में हम लोगों की सहमति है। बाकी वे थाती बाँध कर नहीं ले जायेंगी। उनका पैसा मुझे और सनातन को ही मिलना है।

‘‘................ बुजुर्ग माता-पिता को बोझ मानकर लोग अक्सर लाचार छोड़ देते हैं। आप लोगों ने अपनी मदर का इतना ध्यान रखा इसलिये लगा परसनली मिल कर आपको एप्रीशियशन दूँ ...........

नेक चिकित्सक कभी नहीं समझ पायेंगे हम लोगों को अम्मा का नहीं, पैसे का ध्यान रहा है। विदड्रावल फार्म पर अम्मा के साइन ले लो जैसी सलाह देते हुये सरस को शर्म न आई। हस्ताक्षर कराते हुये मुझे शर्म नहीं आई। मैं सरस को गाइड बनाये रहा। यह भटकाती रही। पर सरस से पहले मैं दोषी हूँ। अम्मा मेरी माँ हैं, सरस की नहीं। मैं उनका मान रखता, यह भी रखने को बाध्य होती। मैं उनका आदर करता, यह भी लिहाज करती। अम्मा ने मुझे जन्म दिया। बड़ा किया। लिपि और लालित्य को पाला। लालित्य के साथ नर्सरी में जाकर बैठती थीं वरना वह स्कूल जाने के नाम पर रोने लगता था। वे बच्चों को न पालतीं तो सरस की अध्यापिकी न चल पाती। अम्मा ने मुझे बनाने में जीवन लगा दिया। उनके लिये बीस दिन लगाते हुये मैं कुपित होता रहा। ऐसा क्या बिगड़ गया पन्द्रह-बीस दिन में ? ................. मुझे शर्म क्यों नहीं आती ? ............. इतना स्वार्थी और आत्मा केन्द्रित क्यों हूँ ? ............