Yaarbaaz - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

यारबाज़ - 12

यारबाज़

विक्रम सिंह

(12)

वापस आते ही पापा मुझे समझाने लगे कि बेटा अब अच्छी तरह पढ़ना। ग्रेजुएशन में भी अच्छे नंबर आने चाहिए तभी कोई नौकरी होगी वरना कुछ नहीं होगा। अब सब कुछ भूल कर पढ़ाई लिखाई में ध्यान दे दो। सिर्फ पापा ही नहीं कुछ ऐसा ही मेरी प्रेमिका बबनी ने भी मुझसे कहा फिर प्रेमिका के बात का असर ज्यादा हुआ। मेरी दिनचर्या वैसे ही हो गई थी कॉलेज ट्यूशन से आकर घर में दिनभर किताब लेकर पढ़ना। सही मायने में श्याम के गांव से वापस आने के बाद मुझे यह लगने लगा था कि अब मुझे कुछ बनना है ऐसा लगा था कि मैं जिस श्याम को जानता था अब वह श्याम तो मर चुका है फिर ऐसा लगने लगा था कि मैं श्याम को अब धीरे-धीरे भूल रहा हूं। सच भी था कि मैंने श्याम को फोन करना बहुत कम कर दिया था हां ऐसा भी नहीं था कि मैं उसे फोन नहीं करता था पर वह फोन उस तरह का नहीं था जैसा कि एक लंगोटिया यार का होना चाहिए था। दूसरी बात घर की स्थिति पहले जैसी नहीं रही थी घर में भी एक बदलाव आ गया था क्योंकि मैं दो बहनों का भाई था तो बड़ी बहन ने एम.ए कर ली थी और पापा चाहते थे कि अब उसकी शादी हो जाए हर दिन अगुवा नए नए रिश्ते दिखाता और हर रिश्ते में वह लड़के की बात कम और पैसों की ज्यादा करता लड़के वाले सात लाख माग रहे हैं पिता को लगता है कुछ ज्यादा मांग रहे हैं फिर वही आखिरी बात जो सबसे भारी होती थी नौकरी वाले लड़कों का यही रेट चल रहा है। पापा यह जानते थे कि शादी में उनके सब जमा पूंजी निकल जाएगी और शायद फंड से जमा पैसे भी कुछ निकालने पड़ जाएंगे।

इसलिए भी मुझ पर पढ़ाई का जोर ज्यादा देने के लिए कह रहे थे क्योंकि जानते थे कि अगर तू पढ़ाई लिखाई में पीछे रह गया तो फिर मेरे पास इतने पैसे भी नहीं रहेंगे कि मैं तुम्हें छोटी सी दुकान भी खोल कर बैठा दूं। ऊपर से पापा की नौकरी भी थोड़ी रह गई थी थोड़ी का मतलब अभी भी करीब दस साल तो नौकरी थी। पर पापा को ऐसा लगता था कि 20 -22 साल तो बीत ही गए हैं और 10 साल को बीतने में आखिर कितना समय लगेगा। उन्हें लगता है कि समय बहुत तेजी से निकल रहा है इतनी तेजी से कि उसमें किसी का भी ब्रेक नहीं लग सकता। 10 सालों के अंदर उन्हें सब कुछ करना था दो बहनों का ब्याह, घर बनाना यहां तक कि चाहते थे कि उनकी नौकरी रहते ही मेरी नौकरी हो जाए। क्योंकि वह जानते थे कि मैं 10 साल तक अपने बेटे को तो संभाल सकता हूं रिटायरमेंट होने के बाद मैं कैसे घर को संभाल लूंगा। आखिर पेंशन भी कितनी मिलती हद मार के 6, 7, 8 हजार। इतने पेंशन से वह क्या-क्या संभाल लेंगे? बस इन्हीं सब बातों ने मेरे ऊपर इतना गहरा असर डाला था कि मुझे लगता था कि हां पढ़ाई के सिवा मेरे पास और कोई हथियार नहीं है जिससे मैं एक अच्छी नौकरी पा सकता हूं। यही कारण था कि मैं पढ़ाई में ज्यादा डुबकी लगा रहा था। किताबों के समुंदर में तैरता रहता था। तैरते हुए मैं समुंदर की गहराई में डूबता चला जा रहा था।

.......

गांव में वही राजनीति, शिक्षा से लेकर खेल और खेल से लेकर प्रेम तक की राजनीति अमरनाथ,रामलाल और दो लड़कों के साथ एक जगह बैठ गया था मोहन को वहां बुला लिया गया था । मोहन भी मस्त मौले अंदाज में उन लोगों के पास पहुंचा था उसे लगा था कि नेता अमरनाथ जी कुछ योजना बताएंगे और कुछ नया काम मुझे सौंपेगे उस दिन माजरा कुछ और था मोहन जैसे ही नेता अमरनाथ जी के पास पहुंचा और पूछा,"नेता जी बुलाए थे कोई नया प्लान है" अमरनाथ ने कहा था," मोहन प्यारे नया प्लान है "

"क्या नेता जी?"

"तुम्हारी धुनाई का।"

"क्या कह रहे है नेताजी"

"तुमको कोई और नहीं मिली अपनी ही बिरादरी अपने दोस्त की बहन मिली।"

"मगर शादी तो अपनी बिरादरी की लड़की से ही होगी ना ।"

"अभी कराते हैं तुम्हारी बिरादरी की लड़की से शादी ।"

फिर क्या था सभी कोई मिलकर लगे उसे पीटने जब तक कि उसके होठों और सिर से खून नहीं बह गया फिर भी उन्हें शांति नहीं मिली अमरनाथ के मुंह में कालिख पोत दिया उसे वहीं छोड़ चले गए और धमकी दे दिया कि आइंदा से अगर मेरी बहन के साथ देखा तो तुम्हारा इससे भी बुरा हाल होगा।

मोहन तुरंत लहूलुहान हो अपनी बाइक में सवार हो राकेश के पास पहुंच गया था। राकेश के घर के पास अपनी बाइक खड़ी कर उसका दरवाजा जोर -जोर से पीटने लगा। यूं जोर- जोर से दरवाजा पीटने की आवाज सुन राकेश को गुस्सा आ गया और उसका मन किया कि दरवाजा खोलकर उसे दरवाजा पीटने वाले को मुंह पर दो घूंसा लगा दूं।

मगर जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा सामने मोहन लहूलुहान खड़ा है और उसे तो मरहम पट्टी की जरूरत है। उसे देखते ही गुस्सा उतरा गया। फिर उसे पूछा,"किस बिरादरी के लोगों ने तुम्हारी यह हालत की है ।"

"अपने ही बिरादरी के लोगों ने किया है।" यह सुनते ही राकेश का मुंह पिचक गया। इसके पहले कि राकेश कुछ पूछता, मोहन कहने लगा राकेश भाई हमें माफ कर दीजिए।"

" क्या हुआ भाई?"

उस दिन जो हम और रामलाल, नेता से कहे थे हमें राजपूत बिरादरी के लोगों ने मारा है सब झूठ था सब अमरनाथ की चाल थी राहुल नेता को बदनाम करने की "

दरअसल हुआ यूं कि अमरनाथ राहुल की बहन नीता से प्रेम करता था। एक दिन दोनों जैसे ही रेस्टोरेंट से निकल अपनी बाइक में सवार होकर जैसे ही निकला कि उन दोनों पर नजर राहुल की पड़ गई।

उस रात जब राहुल घर पर आते ही अपनी बहन से कहा," कल से तुम्हारा कॉलेज जाना बंद।"

"पर क्यों भैया?"

"अमरनाथ से मिलना बंद कर दो या फिर कॉलेज बंद कर दो सोच लो तुम्हें दोनों में से किसे चुनना है और सबसे बड़ी बात इस रिश्ते का कुछ नहीं हो सकता।"

बस यही बात थी कि राहुल से बदला लेने की । अमरनाथ ने यह चाल चल दी कि उसे बदनाम कर दिया जाए ताकि वह कॉलेज चुनाव में कभी जीत ही ना पाए। मोहन की पूरी बात सुनने के बाद राकेश ने इतना ही कहा ,"कोई नहीं दोस्त राजनीति में सब जायज है । खैर शादी तेरी साक्षी से ही होगी,

दुनिया का बड़ा अजीब दस्तूर होता है हर एक इंसान दूसरे की बहन से तो प्यार करना चाहता है पर अपनी बहन को दूसरे से प्यार करता हुआ देखना नहीं चाहता"

.......

सब कुछ उलट-पुलट सा गया था। राहुल से लोग कॉलेज से लेकर गांव-शहर में नफरत करने गए थे । सबको लगने लगा था यह जातिवाद को बढ़ावा देने वाला लड़का है। इस तरह की तमाम बातें कॉलेज में खुसुर फुसुर होने लगी थी। सही बात जब राहुल की पार्टी के सभी लड़के यह सोचने लगे कि राहुल के खड़े होने से हम हार जाएंगे तो राकेश को एक दिन एक सुझाव सूझा उसे लगा कि जिस तरह से श्याम लाल ने क्रिकेट के मैदान में अपना नाम कमाया है और हर एक उसे जिस तरह चाहता है अगर वह चुनाव में खड़ा हो जाए तो जीतना पक्का है। पूरी टीम ने भी श्याम के नाम पर मोहर लगा दी मगर श्याम चुनाव में खड़ा होने के लिए एकदम भी राजी नहीं हुआ। मगर राकेश को श्याम की नस नस का पता था उसकी मजबूती उसकी कमजोरी हर चीज । सो एक दिन राकेश ने गांव के रास्ते जाते पुल की दीवार पर बैठकर श्याम को समझाना शुरू किया, जिस तरह तुमने क्रिकेट में अपनी प्रतिष्ठा बनाई थी कॉलेज से लेकर शहर, गांव तक के लड़के लड़कियां तुम्हें चाहते हैं उसका उपयोग कर उसे उपयोग में ला पलटन जैसे लोग तेरे पैरों में गिरेगा। मतलब तू अध्यक्ष पद के चुनाव में खड़ा हो जा चुनाव जीतकर मंत्रियों से सांठगांठ बना अपनी पावर को बढ़ा क्योंकि ना ही राहुल चुनाव जीत सकता है ,ना मैं ,तुम्हारे खड़े होते ही अमरनाथ अपने आप हट जाएगा। हर एक टीम चाहती है कि उसका अपना अध्यक्ष हो। एक पंथ दो काज होंगे।

श्याम कुछ पल के लिए गंभीर सोच में पड़ जाता है

"अगर गेंद खेलने का सलीका नहीं हो तो यह गेंद ना केवल आपको चोटिल कर सकती है, बल्कि जान भी ले सकती है।"

"घने सुनसान जंगल में बार-बार एक ही रास्ते से गुजरने पर एक पगडंडी उभर कर सामने आ जाती है"

श्याम राकेश को गौर से देखने लगा।

"परसों नामांकन के पर्चे दाखिल होंगे तैयार रहना।"

श्याम दिन भर सोचता रहा क्या वाकई उसे चुनाव में खड़ा हो जाना चाहिए क्या उसका सपना यही था कि मंत्री बने। रात को खाना खाते वक्त भी गहरी सोच में डूबा था कि उसकी मां अनीता देवी ने कहना शुरू किया, "बेटा तू एक काम कर पलटन को जमीन में द्वार निकालने दे । उसका जानने वाला पुलिस में है फालतू में किसी केस में फंसा देगा आज भी दो हवलदार बाइक में सवार हो गांव में घूम रहे थे।" श्याम को इस बात से राकेश की पावर वाली बात याद आने लगी उसने लगा कि कहीं राकेश सही सुझाव तो नहीं दे रहा है । अपना ही नहीं दूसरे का भी तो वही हित कर सकता है। उससे मां से इतना भर कहा देखता हूं।

अगले दिन नई सुबह हुई श्याम नेता बन गया। उसके शरीर में सफेद खादी कुर्ता पहना दिया गया। कॉलेज से लेकर क्रिकेट ग्राउंड तक लड़कों के पास जा कर उन्हें वोट देने की विनती करने लगा क्रिकेट ग्राउंड में जैसे क्रिकेट खेलते वक्त नारे लगते थे जीतेगा भाई जीतेगा श्याम भाई जीतेगा ठीक नेता गिरी में भी ऐसे ही क्रिकेट ग्राउंड से लेकर कॉलेज तक में नारे लगने लगे "जीतेगा भाई जीतेगा श्याम भाई जीतेगा।"

बहुत सारे बैनर पोस्टर छाप कर लगने लगे राकेश कुछ मित्रों के साथ दीवार पर पोस्टर लगाता रहा और उसकी प्रेमिका राधिका भी कुछ लड़कियों के साथ उसका पोस्टर लगाने लगी। गांव की दुकान में कन्हैया ने दुकान में श्याम का खूब प्रचार प्रसार शुरू कर दिया अब वह दुकान में शिव श्याम को जीतने जिताने की ही बात करता रहता। उसके गुणगान गाते रहता। खैर उन दिनों यूपी में यादव का वर्चस्व था श्याम लाल भी यादव था और सब को लगा कि अब तो यादव पार्टी ही जीतेगी।

रात को नई योजनाएं तैयार होती और दिन में उसे अमल किया जाता फंड में पैसे की सख्त जरूरत को पूरा करने के लिए चौराहे से हर कमांडर वाले से सहयोग मांगा जाने लगा सहयोग के साथ-साथ कमांडर में पर्चे भी छपने लगे सिर्फ श्याम का हीं नहीं विपरीत पार्टियों का भी और हर एक पार्टी कमांडर वालों से सहयोग राशि लेने लगी कमांडर वाले देते गए 100, 200, 550 जिसको जितना हुआ इतना ही नहीं कई कमांडर वालों को चुनाव के दिन भी सहयोग के लिए आने के लिए कहा गया हर एक पार्टी ने अपने- अपने हिसाब से अपना -अपना कमांडर चुन लिया था और कमांडर वालों को आना ही था। ना आने से क्या हर्ष होगा यह कमांडर वाले ,कमांडर वाले मालिक को भी पता था।

एक रात लंबी लिस्ट तैयार हुई विद्यार्थियों के पतो के साथ अगले दिन कमांडर पर सवार हो श्याम, राहुल, राकेश, राधिका सारे कोई गांव गांव निकल गए गांव में हर एक विद्यार्थी के घर जाकर उनके हाथ जोड़ना और श्याम को वोट देने की बात कहने लगे। पूरे इलाके के गांव -गांव घूमते रहे लगातार हर दिन सुबह से शाम तक और हर एक को श्याम को वोट देने के लिए कहने लगे।

जिस वक्त श्याम चुनाव की तैयारी में व्यस्त था उसी वक्त में अच्छे नंबर लाने के लिए पढ़ाई में व्यस्त था पापा ने तो साफ ही कह दिया था देखो बेटा मेरी कमाई का पी. फ,ग्रेजुती तो तेरे बहनों की शादी में ही चली जाएगी अगर तू कोई नौकरी नहीं ले पाया तो मेरे पास इतने पैसे भी नहीं कि मैं तेरे लिए बिजनेस खोल दूं।

क्योंकि पापा ने जहां बड़ी बहन की शादी पक्की की थी वहां शादी के लिए पूरे बारह लाख देने की बात हुई थी लड़का रेलवे में इंजीनियर था और बारह लाख में यह शादी तय हुई थी और एडवांस में पापा ने पांच लाख भी दे दिए थे।

.....

राकेश और राहुल ने श्याम को जिताने के लिए जी जान लगा दिया था वह हर रात रूम में बैठकर रणनीति बनाते । रणनीति बनाते समय लोगों ने यह सोचा कि चुनाव के दिन हमें करीब 5 कमांडर की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि प्रत्येक गांव से लड़के लड़कियों को लाने ले जाने के लिए। दरअसल बहुत से लड़के लड़कियां साधन ना हो पाने की वजह से वोट देने नहीं आ पाएंगे। दूसरी सबसे बड़ी बात कुछ विद्यार्थी टापर आने के लिए घर से निकलते भी नहीं है।

दूसरे दिन स्टैंड में कमांडर जीप के ड्राइवर के पास जाकर साफ कहा,"भाई साहब 28 तारीख को चुनाव के दिन आपका पूरा सहयोग चाहिए"

ड्राइवर ने कहा,"अब तो आप ही लोग हम लोगों के माई बाप हैं आने वाले समय के एम.एल.ए सांसद हम एकदम तैयार रहेंगे।"

सही मायने में कमांडर के ड्राइवर से लेकर मालिक तक भी विद्यार्थियों से बहुत डरते थे और जानते थे कि यह नेतागिरी वाले विद्यार्थी हुड़दंग करने में एक मिनट भी नहीं लगाते हैं सो पांच क्या वह पंद्रह कमांडर भी चाहते तो भी वह कमांडर उनके लिए तैयार हो जाता सिर्फ और सिर्फ एक ही नेता के लिए नहीं और भी जो भी चुनाव में खड़े थे उन लोगों ने भी अपने अपने हिसाब से कमांडरों को बोल दिया था।

......

ऐसे ही वक्त जब श्याम पूरी जोर-शोर से चुनाव जीतने की तैयारी कर रहा था अनीता देवी श्याम के इस व्यवहार से बहुत परेशान थी वह तो इतना ही चाहती थी कि श्याम पढ़ लिख कर कोई छोटी सी नौकरी पकड़ ले और अपना जीवन अच्छी तरह बिता ले ठीक वैसे ही जैसे उसके पिताजी बिता रहे हैं पर श्याम के रवैया इतना बदल गया था वह बहुत महत्वाकांक्षी हो गया था खासकर वोट में चुनाव जीतने के लिए। कदाचित नहीं चाहता था कि वह यह चुनाव हार जाए हर रोज मिथिलेश्वर चाचा अर्थात श्याम के पापा को फोन लगाकर उसकी सुला देती रहती, "श्याम एकदा भी पढ़ नहीं रहा है बस राकेश के साथ दिन भर घूमता रहता है और चुनाव लड़ रहा है"

मगर मिथिलेश्वर चाचा को ना जाने क्यों लगता था कि श्याम जो भी करेगा वह सही करेगा और वह उसके समर्थन में यह कह देते थे नदी जिधर वह रही है बहने दो अपने आप अपनी जगह पहुंच जाएगी। चाची अर्थात श्याम की मां कहती ऐसा ना हो कि सागर की जगह गंदे तालाब में मिल जाए इस तरह दोनों में करीब हर दूसरे तीसरे दिन नोंक झोंक होती रहती थी। चाची को हमेशा लगता है कि मिथिलेश्वर चाचा ने बहुत ही ढील छोड़ दी है उन्हें यह ढिलाई एकदम भी पसंद नहीं आ रही थी। चाचा को लगता था कि नंदलाल तो ट्रकों के व्यवसाय में कामयाब हो गया है। मगर सच तो यह था नंदलाल भी कोई ईमानदारी से ट्रकों से नहीं कमा रहा था। वह भी अपने ट्रकों को कामयाब करने के लिए दो नंबर कोयला के सप्लाई में लगा दिया था। ट्रकों के तमाम हार के बाद उसे लगने लगा था कि सीधी उंगली से घी नहीं निकलता और सीधे साधे बिजनेस से पैसा भी नहीं आता जब तक दो नंबर न किया जाए ,बड़े से बड़े व्यापारी हो या छोटे से छोटा दुकानदार हर कोई तो दो नंबरी करता है सो उसने भी ट्रक के कोयले के दो नंबर में घुसा दिया फिर वह बाहर निकलने का नाम नहीं लिया। चाचा को लगता था कि जब मेरा नालायक बेटा कामयाब हो सकता है तो फिर श्याम तो मेरा होनहार बच्चा है। कुछ तो वह भी अपना मार्ग जरूर चुनेगा इसलिए चाची की बात को हमेशा नजरअंदाज कर देते थे। एक बात यह भी लगता था कि जिस तरह गांव के लोग उसके खिलाफ हो गए थे और हर एक कोई उसकी जमीन को हड़पने में लगा था यहां तक की उसके भाई भी उसे फोन पर कभी बात नहीं करते थे उसे लगता था कि एक बेटे को नेतागिरी में थोड़ा-बहुत जाना ही अच्छा है सो उन्होंने ढील उसे पूरी दे रखी थी।

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