Yaarbaaz - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

यारबाज़ - 13

यारबाज़

विक्रम सिंह

(13)

अब तो क्या गांव पूरे इलाकों में बस पोस्टर और बैनर ही बैनर दिख रहे थे। हर तरफ चुनाव की बात चल रही थी, इस बार का छात्र चुनाव कौन जीत पाएगा। आखिर वह तारीख भी आ गई। 26 तारीख का दिन सुबह -सुबह सूरज अपने नई उमंग और जोश के साथ निकला था। कालेज में वोट के लिए बूथ बन चुके थे और हर एक कोई अपने हिसाब से कमांडरों को गांव गांव से लेकर गली गली में आ जा रहा था। दो तीन कामंडर जीप श्याम के भी घूम रहे थे। एक कमांडर जीप में मोहन और राधिका भी ज्यादा से ज्यादा लड़के लड़कियों को उठा- उठा कर ला रहे थे। कमांडर जीप में इस तरह से लड़के लड़कियों को अंदर से लेकर बाहर तक ठूस दिया गया था कि कमांडर जीप आधी दिख ही नहीं रही थी। हर एक कोई अपनी गाड़ी में विद्यार्थी ले जाना चाहते थे।

आखिरकार सब कुछ खत्म होने के बाद वोट भी खत्म हुआ और दोपहर दो बजे श्याम और श्याम के साथी क्लास रूम में बैठकर वोट के परिणाम का इंतजार करने लगे। दूसरी तरफ अमरनाथ भी अपने कुछ मित्रों के साथ वोट के परिणाम का इंतजार करने लगा। इसी तरह चुनाव में खड़े हुए प्रत्याशी भी इंतजार करने लगे। अचानक से सबको माईक की आवाज सुनाई दी सभी अपने क्लास से निकल बाहर की ओर भागे। माइक में जोरों से बोलना शुरू होता है,आज के चुनाव के नतीजे इस प्रकार है अध्यक्ष पद का नतीजा श्याम लाल यादव समाजवादी छात्र सभा 1077, अमरनाथ यादव एबीवीपी 575, सोनाली त्रिपाठी एनएसयूआई 313 , जसबीर कौर निर्दलीय 313 घोसना अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक से ढोल नगाड़े बजना शुरू हो गया। सभी ने श्याम को घेर लिया। राधिका लड्डू का डिब्बा ले श्याम के मुंह में लड्डू ठूस दिया उसके सभी मित्र उसे आकर मिठाई खिलाने लगे थे पीछे से बाकी प्रत्याशी के चुनाव के नतीजे की भी घोषणा जारी थी। उपाध्यक्ष पद के लिए रूपेश एबी वीपी 687, रविकांत एनएसयूआई 158 । श्याम के पास उसी समय का अखबार का पत्रकार आकर श्याम से सवाल करने लगा और श्याम ने बड़े ही सुंदर तरीके से उसका जवाब भी दिया श्याम को पूछा गया,"आप अध्यक्ष पद का चुनाव भारी मतो से जीत गए हैं। आगे आपकी क्या योजना है ?"

मैं कॉलेज में छात्रों के लिए काम करूंगा। मैं छात्रों के हित के लिए काम करूंगा। चाहे हॉस्टल की सुविधाओं का मुद्दा हो या फिर कैंटीन की सुविधाओं का या फिर छात्र हित से जुड़ा कोई भी मुद्दा हो । क्योंकि मैं हमेशा खेलकूद से जुड़ा रहा समय-समय पर खेल के आयोजन किए जाएंगे। पत्रकार महोदय अभी श्याम से कुछ और सवाल करने जा रहे थे कि तब तक एक टाटा सूमो गाड़ी कॉलेज के बाहर आकर रुकी । श्याम के पास कुछ लड़के आते हैं,पार्टी के जिला अध्यक्ष जी आए है" श्याम पत्रकार को छोड़ जिला अध्यक्ष की तरफ चला आया श्याम ने अध्यक्ष को प्रणाम किया। अध्यक्ष जी ने उसे गले लगा लिया । बधाई दी।

पूरे गांव और जिले तक में हल्ला हुआ कि श्याम अध्यक्ष पद का चुनाव जीत गया है उस दिन राकेश और मोहन और राहुल ने श्याम को कंधे में उठा कर खूब ढोल बाजे के साथ गांव लेकर आए थे गांव के लोग घर से निकलकर श्याम को देखते रह गए थे। कितनों को पता ही नहीं चल पा रहा था कि हुआ क्या है?

अगले दिन की सुबह क्या चाय दुकान और क्या खेत हर जगह अखबार में श्याम की चर्चा थी। कन्हैया के दुकान में खासकर खूब चर्चा थी। निया ने लोगों को लड्डू भी खिलाया था। श्याम की अखबार में फोटो छप चुकी थी सबसे बड़ी बात थी कि मुख्यमंत्री ने भी श्याम को बधाई दी थी उसी दिन जब श्याम सुबह अपने गाय को चारा डाल रहा था तो राकेश अखबार ले दौड़ता हुआ आया और जोर-जोर से चिल्ला के कहने लगा श्याम भाई मुख्यमंत्री ने भी तुम्हें बधाई दी है। अचानक से अनीता देवी बाहर निकल कर पूछी किसने बधाई दी है राकेश खूब जोर से कहता है माननीय मुख्यमंत्री जी ने "

अनीता देवी देखूं तो अखबार में श्याम की फोटो देखी जिसमें राधिका उसे मिठाई खिला रही थी बगल में मुख्यमंत्री की फोटो छपी थी खुश होती है और उसे लगता है सही में नदी जहा बहती है उसे बहने देना चाहिए क्योंकि वह अपना रास्ता खुद ही बना लेती है।

......

चुनाव जीतते ही श्याम की तूती गांव में बोलने लग गई लोगों उसे सलाम ठोकने लगे गांव में इज्जत बढ़ गई। लगे हाथ राकेश का भी कुछ कुछ वैसा ही हो गया था। अब चाची भी राकेश को अब सही समझने लग गई थी। अब गांव में सारे उसे दुआ सलाम करने लगे थे तो राकेश और श्याम को लगा कि जो हमारे विरोधी है पहले उसे परास्त किया जाए। राकेश एक दिन अपनी बाइक लेकर आ गया। दोनों सवार होकर जिला अध्यक्ष के पास पहुंच गए। क्योंकि अब वक्त आ गया था कि जिन्होंने उन्हें परेशान किया था अब वह उन्हें परेशान कर दे या फिर सुधार दें ताकि दोबारा वह ऐसी गलती करने का साहस ना कर पाए। वह समझ गए थे कि पहले छोटे छोटे कीड़ों को खत्म करना पड़ेगा तभी वह चैन की जिंदगी गांव में बसर कर पाएंगे। राकेश और श्याम अध्यक्ष जी के पास पहुंच गए। सही मायने में तो अध्यक्ष दोनों को देखकर बड़े खुश हुए कि मेरे बुलाने के पहले ही दोनों मेरे पास आ गए। औपचारिक बातचीत के बाद वह मुद्दे की बात पर आए और जिला अध्यक्ष से अपनी परेशानी बताई। परेशानी बताने की देर थी कि जिला अध्यक्ष ने तुरंत अपने सहयोगी से कहा," जरा एसपी साहब को फोन लगाइएगा तो। तुरंत एस.पी साहब को फोन लगाकर फोन जिला अध्यक्ष को थमा दिया" सीधा अध्यक्ष जी ने एस.पी साहब से कहा, यहां सबसे बीहड़ वाला जगह कहां पड़ता है विकास इंस्पेक्टर को वहीं ट्रांसफर करा दीजिएगा।" इतना कह कर उन्होंने चोंगा रख दिया और श्याम से कहा," तुम जमीन के पास छोटी सी दीवार लगा दो बाकी इसका काम हो जाएगा। चुनाव भी नजदीक है लड़कों से प्रचार कराओ ऐसी छोटी मोटी चीजों के लिए परेशान मत हो इसके लिए हम हैं बाकी जितना ज्यादा से ज्यादा हो पार्टी के काम में खूब ध्यान लगाकर काम करो।"

राकेश और श्याम ने एक सुर में कहा,जी तेजी से एकदम मन लगाकर कर काम करेंगे एक भी शिकायत का मौका नहीं देंगे" कहकर वहां से निकल गए जब वहां से आए तो खूब जोश से भरे पड़े थे ऐसा लगा था कि उनके पास तो अलाउद्दीन का चिराग हाथ लग गया है। आप तुरंत कोई भी काम हो जाएगा।

.....

अगले दिन ही गांव में हड़कंप मच गया जो पुलिस इंस्पेक्टर हमेशा श्याम के घर आता था इस बार वह सीधे पलटन के घर गया। उसे हड़का रहा था या समझाने लगा पता नहीं पर उसे कहने लगा," देख लीजिए दूसरों के जमीन हड़पने के चक्कर में मेरा ट्रांसफर होने जा रहा है। "भाई साहब गांव में बहुते लोगों की आप जमीन हड़पते रहे हैं।"

"उसका फल तो तुम्हे भी देता रहा हूं।"

"मगर श्याम से दूर ही रहो। रातो रात मेरा ट्रांसफर करा दिया ।" यह कहते कहते उसने फट से पलटन के हाथ में हथकड़ी लगा दी अभी उसके हाथ में हथकड़ी लगी थी कि पलटन का दिमाग घूम गया "यह क्या?" "मुझे यह भी कहा गया है अगर पलटन को दो दिन हवालात में बंद कर दो तो ट्रांसफर रुक जाएगा।"

" हम तुम्हारे रिश्ते दार है"

" हम भी तो आपके रिश्तेदार हैं हमारे लिए दो दिन रह जाएंगे तो क्या दिक्कत है।"

उस दिन के बाद से श्याम का बल्ला जैसे चल निकला। गांव के लोग खुश हो गए। खास कर जो पलटन से पहले ही परेशान थे। ऎसा नहीं था कि श्याम सिर्फ अपना ही फायदा निकालने लगा था वह विरोधियों को परास्त करने के साथ-साथ, कॉलेज कॉलेज की सुविधाओं पर भी ध्यान दिया और कॉलेज की व्यवस्थाओं को सुधारा जैसे की कॉलेज की साफ सफाई पर उसने युवाओं को प्रोत्साहित किया। इतना ही नहीं कैंटीन के खाने और सफाई पर भी खुद ध्यान दिया और यहां तक कि कॉलेज में एक छोटा सा क्लब खोला जहां स्पोर्ट्स के सामान को भरवा दिया और साथ ही साथ वह कई खेल का आयोजन करता रहा इससे कॉलेज के सभी विद्यार्थी खुश हो गए। चूंकि राजनीति में था तो पार्टी के मंत्री उससे बहुत कुछ अपेक्षा रखते थे वह पार्टी के रैलियों और प्रचार में खूब जोर शोर से लग गया मगर इन सब के साथ ही श्याम पढ़ाई में पीछे होते चला गया । वो पढ़ाई-लिखाई में समय कम दे पाता, कुछ तो खेतों में समय गवा देता और कुछ राजनीति रैलियों में गुजार देता। मेरी दिनचर्या में सिर्फ और सिर्फ पढ़ना ही पढ़ना था मैं दिन-रात किताबों में डूबा रहता था मैं भूल गया था कि किताबो के बाहर भी कोई दुनिया है इस बीच ना श्याम ने कभी मुझे फोन करने की जरूरत समझी और ना मैंने भी श्याम को कभी फोन किया। और कब देखते ही देखते साल बीत गया पता भी नहीं चला और एक दिन हम सब का एग्जाम का रिजल्ट भी आ गया मैं फर्स्ट डिवीजन पास हो गया था इस बार गणित कुछ उल्टा हो गया था जहां मैं फर्स्ट क्लास पास हुआ था श्याम थर्ड डिवीजन में पास हुआ था और राकेश कंपार्टमेंटल आ चुका था और उसने अपना मुंह लटका लिया था फिर भी वह श्याम को बधाई देने जरूर गया था। फर्स्ट डिविजन से पास होने के बाद मुझे लगा था कि मैंने जग जीत लिया है अब मेरे पास सारा कुछ आ जाएगा मुझे ऐसा लगा था कि मेरे हाथ में एक ऐसा अलाउद्दीन का चिराग या हथियार आ चुका है कि इससे मैं जो चाहूं वह कर सकता हूं। मैंने अपने हथियार को और तेज करने के लिए एम.ए में दाखिला ले लिया और एक दिन मेरा मन हुआ कि मैं अपनी इस उपलब्धि की खुशी श्याम से साजा करूं और उसी पीसीओ से फोन लगाया था। मैंने जहां बड़े उत्साह और खुशी से अपनी खुशी जाहिर की कि मैं फर्स्ट डिविजन पास हो गया हूं और एम.ए में दाखिला ले लिया है और जैसे ही मैंने श्याम को पूछा है कि तुम्हारा आगे का क्या प्लान है ? तो उसने मुझे झट से इतना ही कहा था," आगे का प्लान यह है कि अब मैं आगे नहीं पढूंगा। यह सुनते ही मैं बड़ा हैरान और परेशान हो गया कि यह आखिर क्या बात है? और मुझे एक बार फिर लगा कि मैंने जो श्याम के बारे सोचा था कि यह अब आगे कुछ नहीं कर पाएगा कही मेरी सोच सही में तब्दील तो नहीं हो रही। कुछ पल के लिए तो मुझे लगा कि मैं श्याम को समझाऊं कि नहीं तुम पढ़ाई करो पर पता नहीं क्या सोच कर उसे कुछ बोल नहीं पाया और मैंने कुछ औपचारिक बात करके उस दिन रिसीवर रख दिया। सही मायने में श्याम आगे नहीं पढ़ेगा यह बात से मैं बहुत चिंतित हो गया था। आखिर वह आगे करेगा क्या? बिना ऊंची शिक्षा के तो आगे कुछ हो ही नहीं पाएगा। इसी बेचैनी से मैं रात भर सो नहीं पाया। अगले दिन सुबह जब मैं पापा के पास साथ बैठा था। उस वक़्त पापा भी मुझसे खुश थे कि मैंने फर्स्ट डिवीजन पास किया है। अखबार पढ़ रहे थे और मैंने चाय की चुस्की लेते अचानक ही कहा," पापा श्याम आगे पढ़ाई नहीं करेगा। पापा ने झट से उत्तर दिया उसकी खेती-बाड़ी है नहीं पढ़ेगा तो खेती करके खा लेगा अब हम लोग को नौकरी का ही भरोसा है बिना नौकरी के हम लोगों का तो गुजारा नहीं है।उल्टा पापा ने मुझे और एक जिम्मेदारी सौंप दी। "अब एक काम करो तुम भी नौकरी का फॉर्म भरना शुरु करो तैयारी के लिए । प्रतियोगिता दर्पण , इंडिया टुडे तो पढ़ना शुरू करो।

बस फिर से मुझे वही पाठ पढ़ाया गया जो मुझे हमेशा पढ़ाया जाता था। तब मुझे महसूस होता था कि मुल्ला की दौड़ तो बस मस्जिद तक की होती है।

बात तो सिर्फ पापा की हो तो बात अलग थी उसी समय प्रेमिका ने भी एक पत्र मुझे दिया पत्र में साफ-साफ लिखा था" मैं तुम्हें पहले ही बता चुकी हूं पापा ने मुझे आगे पढ़ने से मना कर दिया है वह शादी के लिए सरकारी नौकरी वाला लड़का ढूंढ रहे हैं और तुम भी नौकरी ढूंढ लो और मुझे ले चलो। क्योंकि बेरोजगार लड़के से प्रेम करना आसान है। ब्याह करना बहुत मुश्किल। प्रेम करते वक़्त हम किसी पार्क में बिना खाय पिए कुछ पल बिता सकते है। पर ब्याह के बाद ता उम्र नहीं। ब्याह के बाद वंश बड़ता है। वंश बढ़ाने के लिए भी आर्थिक मजबूती होनी चाहिए। सबसे बड़ी बात जब लड़की मां बाप के खिलाफ विवाह करती है तो उस समय लड़के का पैरों में खड़ा होना भी और जरूरी हो जाता है। ताकि बाद में कभी लड़की के पिता को यह न कहना पड़े कि हमने तो पहले ही समझाया था। फिर गैर बिरादरी की लड़की से शादी करने के बाद तुम अपने पिता पर भी आश्रित नहीं रह सकते। मुझे विश्वास है तुम नौकरी लेने में कामयाब होगे।"

श्याम और पापा ने दोनों बाते अलग अलग बताई थी पर बबनी ने तो दोनों चीजें एक साथ ही दे दी । अपनी पढ़ाई छोड़ने की भी और मुझे नौकरी पर जल्द से जल्द लग जाने के लिए भी।

मैंने तुरंत जवाब लिखा था।

"मैं बुरी तरह से डर गया हूं। कहीं में तुम्हे खो ना दू। मेरे पास सब कुछ है पर नौकरी नहीं। खैर मुझे ईश्वर पर विश्वास है वह कोई न कोई रास्ता निकालेगा। एक दिन तुम भी गर्व से अपने पापा को मुझसे शादी करने कि बात कर पाओगी।"

.......

अब हम दोनों अपनी अपनी पटरी में सवार होकर तेजी से भागने लगे थे मैंने अपने आप को पढ़ाई में फिर से झोंक दिया था और घर में कई तरह की पत्रिकाएं भी आने लगी थी घर में दो अखबार आने लगे थे अंग्रेजी से लेकर हिंदी तक के और उन सब को भी मैं पढ़ता रहता हर दिन सुबह मैं हलदार ( हालदार दुकानदार का नाम है) की दुकान जो हमारे शहर के स्टेशन के पास थी और जहां नौकरी के फॉर्म मिला करते थे वह गत्ते पर नौकरी के पूरे विवरण को लगा कर चिपका दिया करता था मैं ऐसे नौकरी के फॉर्म खरीद करके के ले आया करता था जो मेरी पढ़ाई शिक्षा के अनुकूल होते थी। उन्हें भरकर पोस्ट कर दिया करता था दरअसल में पढ़ाई या नौकरी में इसलिए नहीं खोजने लगा कि मुझे पापा की बात का असर हुआ था मुझे मेरी प्रेमिका की बात का बहुत ही असर हुआ था कि मुझे अब किसी भी तरह नौकरी लेनी है। जब मैं नौकरी और पढ़ाई के बीच फसा हुआ था। तो श्याम के गांव में एक घटना घटी गांव से करीब बीस किलो मीटर दूर स्वदेशी कॉटन मिल से कुछ कर्मचारियों को निकाल दिया गया जिसमें से श्याम के गांव के भी कई कर्मचारी थे और सबसे बड़ी बात थी कि राकेश के पिता भी उसी मिल में काम करके अपना गुजारा किया करते थे। पूरा गांव रोने लगा था। कुछ घर में पत्नी बच्चों के साथ आंसू बहा रहे थे कुछ मर्द मन ही मन उदास बैठे थे। ऐसे ही वक्त श्याम सब कुछ भूल कर मजदूरों के हक के लिए मजदूरों के साथ अनशन पर बैठ गया दरअसल कॉटन मिल पुराने कर्मचारियों की छटाई कर नई बहाली करने लगी थी क्योंकि आगे चलकर कर्मचारी परमानेंट होने की माग ना कर दे। अनशन क्या शुरू हुआ इस सप्ताह भर में वह चर्चा का विषय बन गया श्याम की खबर फोटो में अखबारों में छपने लगी। कॉलेज के पुराने साथी भी उसका साथ देने आ गए। लगे हाथ तो सब भी उनके साथ अनशन में बैठ गए देखते देखते गांव के कुछ अच्छे पद में काम करने वाले लोग भी उनके साथ बैठ गए। इस सप्ताह भर में कई चितपुजिया पार्टी के कार्यकर्ता भी आ कर बैठा गए। उनका मकसद सिर्फ भीड़ में बैठ कर अखबारों में फोटो छपवाने और वोट बैंक के लिए था। कुछ दिनों बाद ही कुछ डॉक्टर भी उसे चेकअप के लिए आ गए यह सभी बातें अखबार में छपने लगे। कुछ लोकल मंत्री भी श्याम से मिलकर चले जाते। पर कुछ ऐसे भी थे जो चाय और पान की दुकान पर बैठ कर बात किया करते श्याम खामखाह मर जाएगा कंपनी का मालिक तो पैसा देकर प्रशासन को खरीद लेगा। मगर धीरे-धीरे इसका असर भी उग्र रूप लेने लगा। मैनेजमेंट के लोगो के पुतले फूंके जाने लगे। पत्रकार श्याम की बाते अखबारों में छपने लगे। राहुल राकेश कॉलेज के कुछ अन्य साथी पत्रकार से सीधा कहते, अगर मजदूरों को वापस काम नहीं लिया और हमारे श्याम को कुछ हो गया तो हम सब भी अपनी जान दे देंगे अगले दिन यह खबर भी अखबार में छपी बाद दूर तक पहुंचने लगी लोकल न्यूज़ से डिस्ट्रिक्ट न्यूज़ होते हुए राज्य के न्यूज़ में आने लगा।