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गूगल बॉय - 11

गूगल बॉय

(रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास)

मधुकांत

खण्ड - 11

मशीन आने के कारण अब दुकान का काम बढ़ गया और जल्दी भी होने लगा है। माँ का अधिक समय दुकान पर ही व्यतीत होने लगा है। दुकान की आमदनी बढ़ रही थी तो घर में सुख-सुविधाएँ भी बढ़ने लगीं।

दोपहर में भोजन करने के लिये आया तो गूगल ने माँ से कहा - ‘माँ, रक्तदान सेवा का तो तुरन्त फल मिलता है।’

‘बेटे, रक्तदान पूर्णतया स्वार्थ रहित प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें रक्तदाता को यह भी पता नहीं लगता कि यह किसके काम आयेगा। दूसरी ओर रक्त लेने वाले को भी यह पता नहीं लगता कि यह किस व्यक्ति ने दान में दिया है। इसीलिये तो इसको महादान कहते हैं।’

‘परन्तु माँ, खून तो हमारी साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक है। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई...सबके खून का रंग लाल होता है। किस धर्म-जाति का खून किसके काम आता है, यह तो बाँके बिहारी जी ही जानते हैं।’

‘गूगल, कुछ देर पहले तू कह रहा था कि रक्तदान का फल तुरन्त मिलता है, यह तो बता, आज तुझे कौन-सा फल मिला है?’

‘माँ, आज मैं तहसील कार्यालय में गया था। तहसीलदार ने मुझे बताया कि हमारे सामने वाली सड़क अब प्रमुख सड़क बनने वाली है। इसके दोनों ओर बने सारे अनधिकृत मकान टूटने के नोटिस तैयार हो गये हैं और अपना घर अब प्रमुख सड़क पर आ जायेगा। है ना कितनी ख़ुशी का समाचार, एकदम कई गुना क़ीमत बढ़ जायेगी।’

‘बेटे, यह बात हमारे लिये तो बहुत अच्छी है, परन्तु जिनके मकान टूट जायेंगे, जो बेघर हो जायेंगे, उनका क्या..? अपने छोटे सुख के लिये दूसरे के बड़े दु:ख में आनन्द नहीं लेना चाहिए।’

‘परन्तु माँ, उन्होंने सड़क के किनारे गैरकानूनी ढंग से मकान बना लिये, यह भी तो ग़लत है।’

‘इंसान तो बेटे लालची होता है। अपना लाभ होता है तो अच्छा लगता है। बाकी क्या ठीक है, क्या ग़लत, यह तो ईश्वर ही जानता है’, कहते हुए माँ रसोई का काम समेटने लगी।

जैसे कुछ याद आया हो, गूगल माँ के पीछे-पीछे रसोई में आ गया।

‘माँ, दिन में आज ज़िला रेडक्रास सोसायटी से फ़ोन आया था। पूछ रहे थे कि रक्तदान शिविर में हेलमेट का खर्च किसने किया? मैंने उनको बताया कि बाँके बिहारी जी ने। उन्होंने भी पाँच सौ यूनिट का बड़ा कैम्प शहर में लगाना है, सो उन्होंने कहा कि अपने बाँके बिहारी जी से पूछ लूँ कि वे हमारे कैम्प में भी सभी रक्तदाताओं को उपहार में हेलमेट दे देंगे क्या, क्योंकि इससे सड़क सुरक्षा का संदेश भी चला जायेगा और रक्तदाताओं को उपहार भी मिल जायेगा।’

‘तुमने क्या जवाब दिया?’

‘मैंने कहा कि मैं बाँके बिहारी जी से बात करूँगा।’

‘तो कर लो बिहारी जी से बात..।’

‘माँ, मेरे बिहारी जी तो आप हैं। आप कहेंगी तो मैं हाँ कर दूँगा।’

‘बेटे, रक्तदान सेवा तो सबसे बड़ी सेवा है। इसमें तो तन-मन-धन से जो भी सेवा हो जाये, कम है।’

‘वाह माँ, यू आर ग्रेट’, उत्साह में गूगल ने माँ का हाथ चूम लिया।

‘इसमें कितना खर्च आयेगा बेटे?’

‘लगभग एक लाख रुपये का माँ।’

‘तो तीन गिन्नियाँ बिहारी जी से माँग लेना।’

‘माँ, एक बात और भी नयी हुई। हमारे देश में अधिकांश लोग धार्मिक हैं, धर्म-कर्म में आस्था रखते हैं। जब उनको यह पता लगेगा कि यह हेलमेट का प्रसाद बिहारी जी ने भेजा है तो और भी उत्साह से भाग लेंगे। इससे भी रक्तदान के काम का बहुत विस्तार होगा।’

‘बहुत अच्छी बात है बेटे गूगल। तुम्हारा उद्देश्य यह होना चाहिए कि प्रत्येक ज़रूरतमंद इंसान को खून मिल जाय। ब्लड-बैंक में रोगी को प्रतीक्षा न करनी पड़े।’

‘ठीक है माँ। मैं सेक्रेटरी साहब को फ़ोन कर दूँगा और हेलमेट की व्यवस्था भी कर दूँगा।’

‘बेटे, यह सावधानी अवश्य रखना और अपने दोस्त को भी बता देना कि रक्तदान सेवा का यह धन कहाँ से और कैसे आ रहा है, किसी को पता नहीं लगना चाहिए।’ माँ ने गूगल को सचेत किया।

‘ठीक है माँ’, कहता हुआ गूगल उत्साहित होकर रसोई से बाहर आ गया। दुकान में आकर गूगल ने सचिव को फ़ोन लगाया - ‘सर, बाँके बिहारी जी से आपके कैम्प के लिये पाँच सौ हेलमेट की स्वीकृति मिल गयी है। आप बता दो, हेलमेट कब और कहाँ भिजवाने हैं?’

‘कैम्प अगले सप्ताह लगेगा, इसलिये अभी तो आप हेलमेट मेरे कार्यालय में ही भिजवा देना।’

‘जी ठीक है, कल भिजवा दूँगा।’

‘वाह-वाह, बहुत-बहुत धन्यवाद और अपने बाँके बिहारी को भी धन्यवाद कहना’, सचिव महोदय तो इस समाचार को सुनकर उत्साह से भर उछल पड़ा। ‘वाह बाँके बिहारी, तुम्हारी माया भी अपरम्पार है।’

तभी सचिव महोदय का फिर फ़ोन आ गया।

गूगल - ‘जय रक्तदाता मान्यवर।’

‘जय रक्तदाता गूगल, एक ख़ुशी का समाचार मुझे भी आपको सुनाना है।’

‘क्या?’ गूगल ने ख़ुशी से भरकर पूछा।

‘आज उपायुक्त महोदय ने गणतंत्र दिवस पर सम्मानित होने वाले सज्जनों की लिस्ट पर हस्ताक्षर किये हैं और ख़ुशी की बात यह है कि उस लिस्ट में आपका नाम भी है। इसलिये 26 जनवरी को सुबह नौ बजे आपको परेड ग्राउंड में सम्मानित किया जायेगा।’

‘धन्यवाद सर। मैंने तो कुछ विशेष किया नहीं, यह सब बाँके बिहारी जी की अनुकम्पा है।’

‘इस सम्मान के लिये आपको अग्रिम बधाई।’

‘धन्यवाद सर’, फ़ोन काटकर गूगल ख़ुशी से उछल पड़ा। ईश्वर जब ख़ुशियाँ देता है तो छप्पर फाड़ के देता है। निश्चित रूप में यह रक्तदान सेवा का फल है। धन्यवाद करने के लिये वह अपने बाँके बिहारी जी के मन्दिर में आ गया। एक बार उसने बाँके बिहारी जी की हुंडी से गिन्नियों से भरी थैली को निकाला और निश्चिंत होकर पुनः वहीं रख दिया।

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