naina ashk na ho - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

नैना अश्क ना हो... - भाग - 11

दिल्ली से घर आकर सब रिलैक्स हो गए थे। दूसरे दिन
नवल जी कुछ जरूरी काम आ जाने से शांतनु जी से किया गया वादा (दूसरे दिन आने का)नहीं पूरा कर सके।

वापस आने के कुछ दिन बाद दिल्ली हेड ऑफिस से नव्या के पास फोन आया कि आप एक महीने बाद अपने डाक्यूमेंट्स
के साथ रिपोर्ट करे । आपके लिए एक सम्मानित पद का आपके योग्यता के अनुरूप सृजन किया जाएगा। नव्या ने
हां कर दिया की बताए गए डेट को वो अपने डाक्यूमेंट्स
लेकर पहुंच जाएगी।
बात खत्म होने पर वो शांतनु जी के पास गई और शांतनु जी के पास जा कर बोली,
"पापा मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"
न्यूज़ पेपर पढ़ते शांतनु जी ने न्यूज पेपर बगल मै रख दिया,
और बोले,
"हा ! हां! बेटा आओ बैठो बोलो क्या बात है।"
नव्या मां और पापा के पास बैठ गई और बोली, "पापा आज दिल्ली से कॉल आई थी वो मुझे एक महीने बाद दिल्ली बुला रहे हैं, जॉब के लिए।"

शांतनु जी ने कहा,"बेटा तुम्हारा तो सेलैक्शन हो चुका है
तुमने उन्हे बताया नहीं?"

"पर पापा मै आर्मी ही ज्वाइन करना चाहती हूं।" नव्या ने कहा।

"नव्या बेटा क्या जरूरत है आर्मी में जाने की ? इतनी अच्छी तो तुम्हारी जॉब लग गई है। तुम हमारे पास रहोगी
और ये जॉब बहुत अच्छी है। तुम बहुत आराम से हमारी देख - भाल भी के सकती हो और अपनी जॉब भी कर सकती हो।" मां ने कहा।

शांतनु जी ने भी पत्नी की हां में हां मिलाई। बोले, "हां
नव्या बेटा तुम्हारी मां ठीक कह रही है।"

नव्या ने असहमति जाहिर करते हुए कहा, "मां मै शाश्वत
के अधूरे छूट गए काम को पूरा करना चाहती हूं। वो देश
के नाम अपना जीवन , अपनी खुशियां कर चुका था । मै
भी यही करना चाहती हूं।"

पुनः बोली, "आप सब की और साक्षी की जिम्मेदारी मेरी
है । वो मै चाहे जहां रहूं पूरी करूंगी । मै कही भी रहूं आप सब मेरे साथ ही रहेगें।"
शांतनु जी, नाराज़ होते हुए बोले, "मै इजाजत नहीं दे सकता बाकी आगे तुम्हारी मर्जी ।" इतना कह कर वह
वहां से उठ कर चले गए।
जब नव्या ने मां का सपोर्ट चाहा तो वो भर्राई आवाज में
बोली, "बेटा इन बूढ़ी हड्डियों में अब इतनी शक्ति नहीं है कि
बेटा के बाद बेटी को भी खो सके। तुम ही हमारी उम्मीद हो,
तुम ही हमारी ताकत हो,तुम्हे देख कर हीं तो हम दोनों जीते
है। अब तुम हमसे जीने का सहारा मत छिनो।" कह कर
वो भी उठ कर खड़ी हो गई जाने के लिए।
नव्या, "मां सुनिए तो ! मां सुनिए तो" कहती रह गई और
मां उठ कर चली गई।

अब घर में एक तनाव सा चलने लगा । ना नव्या अपना
फैसला बदलने को तैयार थी, और ना ही शांतनु जी
अपना फैसला बदलने की तैयार थे।

नव्या ही हर कोशिश बेकार जा रही थी। शांतनु जी सोच
रहे थे वो कुछ दिन नाराज़ रहेगें तो नव्या दबाव में आकर
अपना फैसला बदल देगी। उसकी हर बात में बस हूं , हां
में जवाब देकर अपनी नाराज़गी जाहिर करना चाहते।

जब शांतनु जी ने देखा कि नव्या उन्हे रेस्पेक्ट तो बराबर
दे रही पर उसे देख कर नहीं आभास हो था था कि वो
अपना फैसला बदलेगी।
परेशान शांतनु जी को जब कोई राह नहीं दिखी तो उन्होंने
सोचा मेरे समझाने का कोई असर नहीं हो रहा है। नवल जी
और गायत्री जी माता - पिता है नव्या उनकी बात जरूर सुनेगी। यही सोच कर शांतनु जी बिना किसी को बताए चुप - चाप सुबह नाश्ता कर सबसे कहा बाज़ार में कुछ
काम है। कह कर नवल जी के घर चले गए।
नवल जी के घर पहुंच कर जैसे ही उन्होंने बेल बजाई
गायत्री ने दरवाजा खोला उन्हें इस तरह अचानक देख
कर घबरा गई। पर अपनी घबराहट छुपाते हुए,"अरे!!!
भाई साहब आप बड़ा अच्छा सरप्राराईज दिया। आइए
आइए अंदर आइए" कहते हुए उन्हे ससम्मान अंदर ले
आईं ।
आराम करते नवल जी को आवाज देकर बुलाया, "ज़रा
देखिए तो कौन आया है। आज तो सन्डे खास बन गया।"

पत्नी की आवाज सुनकर नवल जी जल्दी से उठ कर
बाहर आए ।
सामने शांतनु जी को देख कर आंनद से गले लगा लिया।
"धन्य भाग मेरे जो आप इस घर को पवित्र करने आए ।" नवल जी बोले।

गायत्री को जल्दी से कुछ बना कर लाने को बोला, फिर
वो शांतनु जी से बात कर घर में सभी के बारे में पूछने
लगे ।
शांतनु जी पशो- पेश में थे कि बात कैसे करें ? कही नवल
जी ये ना समझ बैठे की मै उनकी बेटी की शिकायत करने
आया हूं। बात बहुत संभाल कर करनी थीं। इसलिए उन्होंने
गायत्री के भी आने का इंतजार किया। तब तक अपने अपने
काम और बाकी चर्चाएं होती रही।

गायत्री गाजर का हलवा और पानी रख गई। शांतनु जी ने
आग्रह किया कि परेशान ना होइए समधन जी आप भी बैठिए। मै खा - पी कर घर से आया हूं।

"बस ज्यादा कुछ नहीं कर रही , बस चाय लेकर अभी
आती आती हूं।" कह कर गायत्री अंदर रसोई में चली
गई।

शीघ्र ही गायत्री गरमा - गरम पकौड़ों और चाय के साथ
आ गई । उन्हे नव्या ने बताया था कि पापाजी पकौड़ों के
शौकीन है। वो भी तीखी वाले उनकी कमजोरी है।
इसलिए आज मौका मिला तो गायत्री ने शांतनु जी की पसंद के तीखे पकौड़े फटाफट तैयार कर दिए।

गायत्री ने पकौड़े की प्लेट शांतनु जी के आगे की और बोलीं,
"भाई - साहब खा के बताइए तो जरा पकौड़े कैसे बने है।
आपके मन का स्वाद है या नहीं।"
शांतनु जी ने पकौड़े टेस्ट किए और बोले, "वाकई गायत्री
जी बहुत स्वादिष्ट है ये" और बात करते - करते पूरी प्लेट
खाली कर दी।
जब गायत्री ने पूछा, "भाभी जी को साथ क्यों नहीं लाए
उन्हे ले आते तो और अच्छा लगता।"

शांतनु जी थोड़ा गंभीर हो गए और बोले,"दरअसल मै
आप लोगो से कुछ आवश्यक बात करने आया हूं, और
घर पर भी किसी को नहीं पता कि मै यहां आया हूं।
अगर बता कर आता तो जरूर सब को साथ में ले कर आता।"
नवल जी बोले, "हां - हां बताइए ना शांतनु जी क्या बात
है ?"
शांतनु जी बोले, "मै आप सब से सहयोग मांगने आया हूं।
आप लोग नव्या को कृप्या समझाइए वो अलग ही जिद्द
पकड़ कर बैठी है कि उसे आर्मी ज्वाइन करना है । उस
पर मेरा और उसकी मां की बातो का कोई असर नहीं हो
रहा। वास्तव में दिल्ली में उसे बिग्रेडियर जनरल साहब ने
आर्मी ज्वाइन करने का प्रस्ताव दिया था जिसे नव्या ने
वही स्वीकार कर लिया था। मैंने सोचा घर आकर समझा
दूंगा तो मान जाएगी। पर वो ग्राम विकास अधिकारी की
पोस्ट छोड़ कर आर्मी में ही जाने की ठान कर बैठी है।
कहती है शाश्वत की तरह वो भी देश की सेवा करेगी।"
कुछ देर रुक कर पुनः बोले, "नवल जी मैंने और आप सब ने अभी ही इतना बड़ा सदमा झेला है। अब और गम झेल
सके इतनी हिम्मत नहीं बची है हमारे अंदर। मै चाहता हूं,
आप दोनों कल मिलने के बहाने आए और जब जिक्र शुरू
ही तो आप दोनों नव्या को समझाए कि ऐसी नादानी ना
करे।"
गायत्री भी नव्या की नादानी भरे जिद्द से दुखी हो गईं
बोली, "हां ! भाई साहब आप परेशान ना हो हम दोनों
कल ही आयेगे और नव्या को समझाएंगे वो जरूर मान
जाएगी।"
इसके बाद शांतनु जी चलने को उठ खड़े हुए, बोले,"मै
बाज़ार में कुछ कम होने की बात कह कर निकला हूं।
काफी देर हो गई। अब खाली हाथ कैसे जाऊंगा कुछ
तो मार्केट से लेकर जाना होगा। अब मै चलता हूं।
कल आप दोनों आइए पर मेरे यहां आने की चर्चा मत करिएगा।"
नवल और गायत्री ने वादा किया कि किसी को नहीं बताएंगे की आप आज यहां आए थे। इसके बाद शांतनु
जी आश्वासन पाकर थोड़ी तसल्ली के साथ वापस घर
के लिए चल दिए।

क्या हुआ जब नव्या को समझाने नवल जी और गायत्री आए
क्या नव्या ने उनकी बात मान ली और आर्मी में जाने का फैसला बदल दिया?पढ़िए अगले भाग में।


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