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पर उपदेश कुशल बहुतेरे

मीना ने आज अपने घर पर सत्यनारायण की छोटी सी पूजा रखी हुई थी। वह अभी तैयारी कर ही रही थी कि उसकी ननंद आ गई।
उन्हें देखते ही वह खुश होते हुए बोली "अरे वाह दीदी, कितने सही समय पर आए हो आप। "
"तूने तो मुझे बुलाया नहीं लेकिन देख ले भगवान की माया मुझे अपना प्रसाद चखने के लिए बुला ही लिया।"
"ऐसी बात नहीं दीदी। मैं तो चाहती थी कि अच्छे से बड़ी पूजा रखूं और सभी रिश्तेदारों को बुलाऊं लेकिन क्या करूं आपके भतीजे की तबीयत खराब हो गई थी और उस बीच मैं कुछ तैयारी कर ही ना पाई इसलिए किसी को भी नहीं बुलाया।बस हम घर के ही लोग हैं। वह तो पहले से ही पूजा के लिए सोचा हुआ था, टालना सहीं ना लगा। इसलिेए छोटी सी पूजा रख ली। वरना आप ही बताओ, घर में छोटे से छोटा काम में भी हमेशा आपको आगे रखा है।"
"बस तुम पढ़ी लिखी लड़कियों की यही तो बात है कि अपनी गलती मानने की बजाय बात को गोल गोल घुमा कर सही ठहराने की कोशिश करती हो। सीधा सीधा यह क्यों नहीं कहती कि खर्चे से डर गई। भई ननद को बुलाती तो कुछ देना ही पड़ता है। वैसे भी मैं तो घरवालों की नहीं बाहर वालों की गिनती में आती हूं।""
कैसी छोटी बात कर रही हो आप दीदी। इतने सालों में आपने मुझे इतना हीं पहचाना। मैंने कब लेने देने में कंजूसी की है। मां पिताजी के जाने के बाद हमेशा ध्यान रखा है कि आपको उनकी कमी कभी महसूस ना हो। फिर भी आप ऐसी बातें कर रहे हो।"बात बढ़ती देख, मीना के पति ने उसे चुप रहने का इशारा करते हुए कहा "
अरे दीदी आप किस बहस में पड़ गई। चाय पानी पी कर, पूजा की तैयारी करवाओ। पंडित जी आते होंगे। अब आप आ गए हो तो आप ही संभालो सारी जिम्मेदारी ।"

मीना को बुरा तो बहुत लगा लेकिन वह बात को बढा आज के शुभ दिन, अपने मन को ऐसी बेकार की बातों से दुखी नहीं करना चाहती थी ‌।वैसे भी वह अपनी ननंद के व्यवहार को इतने सालों में अच्छे से जान गई थी। उनको चाहे कितना भी दे लो। बड़ाई तो उन्होंने कभी करनी नहीं लेकिन थोड़ी सी भी कमी रह गई तो फिर वह सुनाने से चूकती नहीं।खैर पूजा संपन्न होने के बाद , शाम को जब वह जाने लगी तो मीना ने उसे अच्छे से कपड़े पैसे देकर विदा किया। उन्हें लेते ही उसकी ननद का दिन भर का चढ़ा पारा उतर गया और वह खुश होते हुए चली गई।
कुछ दिनों बाद उसकी ननद का फोन यह खुशखबरी देने के लिए आया कि पोता हुआ है और वह दादी बन गई है।यह सुन मीरा ने खुश होते हैं उन्हें बधाई दी और बोली "दीदी अब तो पार्टी बनती है। कुआं पूजन की डेट फिक्स कर जल्दी से बता देना।"मीना की बात सुन उसकी ननद मरी सी आवाज में बोली "पार्टी की तो नहीं कह सकती। अगर बड़ा फंक्शन किया तो तुम्हें बुलाएंगे और अगर छोटा किया तो कह नहीं सकती। फिर तो शायद हम घर के लोग ही हो।" कह उन्होंने फोन रख दिया।
उनका जवाब सुन मीना स्तब्ध रह गई। 15-20 दिन पहले ही तो जब उसने यह सब कहा तो उसे कितना कुछ सुनाया था उसकी ननद ने और आज जब अपनी बारी आई तो वहीं बातें उन्हें सही लग रही है। वह तो एक छोटी सी पूजा ही कर रही थी। अब यहां तो पोता होने की खुशी में कुआं पूजन है फिर भी। उनके घर खुशखबरी हो तो हम बाहर वाले और हम कुछ छोटा सा भी करें तो वह सर्वोसर्वा।
वाह री दुनिया तेरी रीत निराली।किसी ने सही ही कहा है
-पर उपदेश कुशल बहुतेरे!
मन ही मन हंसते हुए मीना अपने काम में लग गई।
सरोज ✍️