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तू मेरी परछाई मत बनना

मुझे ही सारा काम करना था तो तुम्हें किस लिए लेकर आया था? बहुत हो गया! आज तुम्हारे पापा को फोन करता हूं या तो आकर तुम्हें समझाएं या अपने साथ वापस ले जाएं। इस तरह एक साथ हमारा गुजारा संभव नहीं।"

शैलेश की बात सुन गीता को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह स्कूल चली गई क्योंकि उसे पता था, घर में रहेगी तो क्लेश और ही बढ़ेगा और वैसे भी यह उसकी हर तीसरे दिन की कहानी थी।
उस दिन स्कूल में भी उसका मन नहीं लग रहा था। बार-बार उसे पहले की घटना ही याद आ रही थी। पढ़ने में तेज और शांत स्वभाव, उसकी पहचान था। अपनी प्रतिभा के दम पर शादी से पहले ही उसकी नौकरी लग गई थी। नौकरी लगते ही उसके लिए रिश्ते आने लगे थे। शैलेश ‌को उसके पापा ने ही शादी के लिए पसंद किया था। मम्मी और उससे तो पूछा ना दिखाया। मम्मी के लाख कहने के बाद भी वह यही कहते रहे कि घर परिवार सब तरह से सही है तो तुम लोगों को देखने की क्या जरूरत है| उसकी तो वैसे भी कभी हिम्मत नहीं हुई पापा के सामने बोलने की।

रिश्ता होने के दो महीने बाद ही उसकी शादी हो गई। शादी के अगले दिन शैलेश ने अपने दकियानूसी विचारों से उसे अवगत करा दिया था कि उसे ज्यादा घूमना फिरना पसंद नहीं और ना ही ऊंची आवाज में बोलना।
हां, खुद उसने शायद ही कभी प्यार से बात की हो। शुरू शुरू में कई महीने तक गीता उसकी बातों को सहन करती रहीं| वह घर परिवार की जिम्मेदारी बहुत अच्छी तरह निभा रही थी। आगे से आगे बिना कहे शैलेश का हर काम करती और कभी पलट कर जवाब नहीं दिया लेकिन शैलेश उसकी चुप्पी का गलत फायदा उठाने लगे। हर बात में टोका टाकी,एक एक पैसे का हिसाब उससे लिया जाने लगा। गीता अंदर ही अंदर घुट रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। पापा से कहने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि वह अपने पापा की पुरुषवादी सोच से अच्छी तरह से अवगत थी और मां को वह परेशान नहीं करना चाहती थी।

हां, उसे अपनी मां की एक बात रह रह कर याद आ रही थी
, जो उन्होंने उसे विदाई के वक्त कही थी , "बेटा कहते हैं बेटियां मां की परछाई होती है लेकिन मैं तुम्हें कहती हूं कि तुम मेरी परछाई मत बनना। मेरे पद्चिन्हों पर मत चलना। उतना ही झुकना जितना जरूरी हो। जरूरत से ज्यादा झुकोगी तो लोग फिर तुम्हें कभी उठने नहीं देंगे। अपना आत्मसम्मान हमेशा बनाए रखना। "

यही बात गांठ बांधकर अब वह शैलेश की गलत बातों का विरोध करने लगी| एक दिन शैलेश जब गुस्से में चिल्लाने
लगा तो उससे चुप नहीं रहा गया और वह बोली
"शैलेश ये जो तुम हर बात पर मुझ पर चिल्लाते हो और कामचोरी का आरोप लगाते हो तो एक बात कान खोल कर तुम भी सुन लो चिल्लाना मुझे भी आता है लेकिन मुझे ऐसे संस्कार नहीं मिले। तुम मुझे कामचोर कहते हो तो सुन लो अगर ‌‌‌‌‌तुम में अकेले घर चलाने की हिम्मत है तो मैं नौकरी छोड़ देती हूं। आगे आप समझदार हो ही!"
उस दिन के बाद शैलेश थोड़ा शांत हो गया था क्योंकि अकेले अपने दम पर इतनी ऐश वह नहीं कर सकता था। यह बात वह अच्छी तरह जानता था। हां लेकिन सुधरा फिर भी नहीं था और आज उसने उसके पापा को बुलाने की धमकी दे डाली थी। जिसे सुन गीता परेशान हो गई थी क्योंकि उसे पता था| उसके पापा के आने से कुछ हल नहीं निकलेगा। पापा कहां शैलेश से अलग है। शैलेश का ही तो दूसरा रूप हैं वो। मां को कभी उन्होंने अपने सामने बोलने नहीं दिया। घर के किसी फैसले में शामिल नहीं किया, आज तक। सबके सामने उनका तिरस्कार करने में देर नहीं लगती थी उन्हें! वह बिचारी फिर भी आंखों की पीड़ा छुपा, अपनी गृहस्ती को बचाती हुई सबके सामने मुस्कुराने व खुश रहने का ढोंग करती रही है आज तक। क्या वह भी मां !!!!नहीं वह नहीं!!! इसी ऊह पोह में शाम हो गई और जिसका अंदेशा था वही हुआ। शैलेश के ऑफिस से आने के बाद उसके पापा भी आ गए।
उसकी सास व शैलेश ने उसकी शिकायतों का चिट्ठा उनके सामने लेकर बैठ गए| शैलेश गिरगिट की तरह रंग बदल उनके सामने सीधा साधा बनने का ढोंग करते हुए बोला " पापा आप समझाइए इसे! थोड़ा चुप रहना सीखें। हर बात पर उल्टा जवाब देती है। क्या यह ठीक है! इतने दिनों से आप भी मुझे देख रहे हो! क्या कुछ कमी नजर आई आपको मुझ में बताइए! फिर गीता क्यों हर बात का बतंगड़ बना घर की शांति भंग करने की कोशिश करती है। मैंने इसकी शिकायत करने के लिए नहीं बस समझाने के लिए आपको बुलाया है। " यह कह दोनों मां बेटा वहां से उठकर चले गए।

उनके जाने के बाद गीता के पापा उसे समझाते हुए बोले "यह मैं क्या सुन रहा हूं गीता! यह तो अच्छी बात नहीं है। क्या जरूरी है हर बात पर पलट कर जवाब देना। गृहस्ती बसाने के लिए लड़कियों को सौ बार चुप रहना पड़ता है। देखा नहीं तुमने अपनी मां को। फिर तुम!!"
"पापा मैंने भी अपनी गृहस्थी बचाने के लिए चुप्पी लगाकर और समझा कर सब तरह से देख लिया। मैं जितना चुप रही इन्होंने मुझे दबाने की कोशिश की। मैं भी इंसान हूं, कोई भेड़ बकरी नहीं! जो चुपचाप गलत बातों को भी सहती रहूं। पानी सर से ऊपर पहुंच गया था। इसलिए अब मैं चुप नहीं रह सकती| पापा मैं मां जितनी महान नहीं| मैं मां की प्रतिमूर्ति नहीं बनूंगी| मैं यह अधिकार किसी को नहीं दूंगी कि वह मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाए।"
"तो क्या समाज में तू हमारी बदनामी कराएगी। तुझे पता है ना समाज में ससुराल छोड़कर आई लड़कियों का कोई सम्मान नहीं!"
"ये मैंने कब कहा कि मैं यह घर छोड़कर जा रही हूं। मेरे कहने का मतलब बस इतना है कि मैं इन लोगों की गलत बात नहीं सहूंगी और पापा लड़कियों पर अत्याचार तभी बढते हैं। जब उनके घरवाले शादी कर उनसे मुंह मोड़ लेते हैं। मैंने अपनी बात रख दी। आगे आपकी इच्छा कि आप किस पर विश्वास करते हो। हां मां की तरह मैं भी अपना घर बसाकर दिखाऊंगी, लेकिन अपने आत्मसम्मान के साथ। यह वादा है मेरा आपसे।"

थोड़ी ही देर में शैलेश व उसकी मां अंदर आए। शैलेश ने कहा "पापाजी समझा दिया ना आपने इसे!"

"हां बेटा, अपनी बेटी को तो मैंने समझा दिया है लेकिन एक बात तुम्हें भी थोडे शब्दों में समझा रहा हूं कि इसे कभी अकेली मत समझना। इसका एक परिवार और है!" कह उन्होंने गीता के सिर पर हाथ रख दिया। मानो आज उन्हें खुद भी अपने किए पर पछतावा हो रहा हो। ।
सरोज ✍️