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कम्मो डार्लिंग

कम्मो डार्लिंग

‘‘नीतेश !...’’

चिर-परिचित आवाज को सुनकर नीतेश के कदम जहां-के-तहां स्थिर हो गये। पीछे घूमकर देखा, तो आश्चर्य से आँखें खुली-की-खुली रह गयीं।

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो नीतेश!...? ...मुझे यहां देखकर हैरानी हो रही है...? ....अच्छा यह बताओ कि मुम्बई कब आए..?’’

प्रत्युत्तर में नीतेश कुछ न कहकर चुपचाप आगे बढ़ गया। वह भी उसके साथ चलते हुए बोली, ‘‘नीतेश! ...अर्से से दिल पर एक भारी बोझ लेकर जी रही थी, कई बार सोचा भी कि तुमसे मिलूं और मन की बात कहकर दिल का बोझ हल्का कर लूं, मगर कभी भी तुम्हारे सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पायी। लेकिन आज जब संयोग से हम मिल ही गये हैं, तो क्यों न तुमसे दिल की बात कह के मन हल्का कर लूं। ...नीतेश! मैं पास ही में रहती हूं, तुम्हें कोई ऐतराज न हो तो हम वहां थोड़ी देर बैठकर बात कर लें ?’’

पता नहीं क्यों, नीतेश उसके आग्रह को टाल नहीं पाया और उसके साथ चला गया। भले वह मन से हताश, निराश और टूटी हुई हो, लेकिन नीतेश का साथ पाकर उसको जो खुशी हो रही थी, उसे कोई भी महसूस कर सकता था। कुछ देर पहले निराशा की जो लकीरें उसके चेहरे पर दिखायी दे रही थीं, वो गायब हो चुकी थीं और उसका चेहरा किसी ताजे फूल की तरह खिला हुआ प्रतीत हो रहा था। वह बार-बार नीतेश को ऐसे देख रही थी, जैसे वह बहुत कुछ कहने के लिए उतावली हो रही हो, लेकिन नीतेश की खामोशी उसे कुछ न कह पाने के लिए मजबूर किये हुए थी।

चाॅल में बने छोटे-से घर के सामने आकर उसने अपनी चुप्पी को तोड़ते कहा, ‘‘मैं यहीं रहती हूं।’’ फिर उसने दरवाजे पर लटके ताले को खोला। दोनों अन्दर गये। उसने नीतेश को पीने के लिए पानी दिया। उसके बाद वह उसके लिए चाय बनाने लगी।

ड्राइंग रूम-कम-बेडरूम बने उस छोटे से कमरे की साफ-सफाई और साज-सज्जा को देखकर नीतेश का मन खुश हो गया। हर चीज करीने से रखी हुई थी। कुछ भी अस्त-व्यस्त नहीं था। कमरे में रखी एक-एक चीज को नीतेशे ध्यान से देखने लगा। उसी समय उसकी नजर कोने में रखी छोटी-सी मेज पर रखे फोटो फ्रेम पर जाकर अटक गयी, जिसमें नीतेश के साथ उसका फोटो जड़ा हुआ था। वो फोटो उसने अपनी शादी के एक महीने बाद कस्बे की नुमाइश में खिंचवाया था, वो भी अपनी माँ के कहने पर।

माँ ने उससे कहा था बेटा, ‘‘तेरी नयी-नयी शादी हुई है, जा, जाकर कमली को नुमाइश घुमा ला, और हाँ, नुमाइश में कमली के साथ एक फोटो जरूर खिंचवइयो। पुराने फोटो देखकर गुजरे समय की यादें ताजा हो जावे हंै।’’

माँ की बात याद आते ही माँ और बापू का चेहरा नीतेश की आँखों के सामने उभर आया। कितना प्यार करते थे माँ और बापू उसे। उसके कसे हुए बदन और रौबदार चेहरे को देखकर उसके बापू बहुत खुश होते थे और अक्सर उसकी माँ से कहा करते थे, ‘‘जानकी, मैं तो कुछ न बन सका। पोस्ट आॅफिस में मामूली-सा बाबू बनकर रह गया, मगर अपने नीतेश को खूब पढ़ाऊंगा-लिखाऊंगा और फौज का बड़ा अफसर बनाऊंगा।’’

बापू की बात पर माँ एकदम तुनक जाती और नीतेश को अपनी गोद में भरकर लाड़ जताते हुए कहती,‘‘न बाबा न, मैं अपने जिगर के टुकड़े को कौनऊ फौज-वौज मा नाय भेजूंगी। लय-दय कै भगवान् नै एक हयी तो बेटा दयो है, उसय भी अपनय से अलग कर दऊं। न बाबा न, मैं अपने लाडले को अपनेयी पास मा रखंूगी।’’

लेकिन विधि के विधान को कौन समझ पाया है। वो कब किसे हंसा दे और कब किसे रुला दे, कोई नहीं जानता।

नीतेश ने उस समय इण्टर की परीक्षा पास की थी, जब अचानक हृदय गति रुक जाने से उसके बापू की मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्योपरांत उसे आश्रित कोटे में उसके बापू की जगह नौकरी तो मिल गयी थी। लेकिन े नौकरी के लिए उसे गाजियाबाद भेज दिया गया।

वक्त का रन्दा समय की परतों को छील रहा था। एक तो उसके बापू की मृत्यु का दुःख, ऊपर से उससे दूऱ जाने का दुःख उसकी माँ को अन्दर-ही-अन्दर दीमक की तरह चाटने लगा और वह धीरे-धीरे बीमारी के बिस्तर पर लेटती चली गयीं।

माँ की बीमारी को लेकर नीतेश परेशान रहने लगा। कई बार उसने कोशिश भी की कि माँ को अपने साथ शहर ले जाकर किसी अच्छे डाॅक्टर से उनका इलाज करवाए। लेकिन वह गांव से हिलने के लिए टस-से-मस नहीं हुयीं। वो तो शुक्र हो पड़ोस के मोहन काका का, जिनका परिवार उसकी माँ की देखभाल कर लिया करता था। मोहन काका की लड़की कमली हमेशा माँ के पास बनी रहती थी और माँ की तीमारदारी करती थी।

हालांकि कमली कोई खास पढ़ी-लिखी नहीं थी। गांव के ही स्कूल से उसने सात-आठ जमातें पढ़ी थीं, पर देखने में वह जितनी सुन्दर और सुशील थी, उतनी ही समझदार भी थी। इससे भी बड़ी खूबी उसमें यह थी कि वह किसी से भी तुरंत घुल-मिल जाती थी। शायद इसीलिए वह उसकी माँ के मन को भा गयी, और उन्होंने मन-ही-मन उसे अपने घर की बहू बनाने की सोच ली। यह बात उसकी माँ ने उसे तब बतायी, जब वह उनसे मिलने गांव आया।

उन्होंने उससे कहा, ‘‘बेटा, कमली मुझे बहुत अच्छी लगती है। वह जितनी सीधी-सादी है, उतनी ही सुन्दर और सुशील भी है। तेरे पीछे वह जिस तरह मेरी देखभाल करती है, उतनी देखभाल तो मेरी अपनी बेटी होती, तो वह भी नहीं कर पाती। इसलिए मैंने सोच लिया है कि तेरा ब्याह मैं कमली से ही करुंगी, क्योंकि मेरी नजर में कमली से अच्छी लड़की और कोई भी नहीं हो सकती। मुझे पूरा यकीन है कि वह तेरी गृहस्थी को अच्छी तरह सम्हाल लेगी। इस बारे में मैंने कमली के पिता से भी बात कर ली है। वह भी तुम दोनों के ब्याह के लिए राजी हो गये हंै। इस तरह नीतेश और कमली की शादी हो गयी।

शादी के कुछ ही महीनों बाद अचानक नीतेश की माँ की तबियत बिगड़ गयी, काफी इलाज के बाद भी वह बच नहीं पायीं। माँ की मृत्योपरांत नीतेश कमली को अपने साथ गाजियाबाद ले गया।

अब नीतेश का अपना कहने के लिए कमली के सिवा कोई और न था, लिहाजा वह उसको लेकर सपने देखने लगा कि वह अपनी कमली के लिए ये करेगा, वो करेगा, लेकिन कुछ ही दिनों में उसके वो सारे सपने, सारे अरमान उसे टूटते से नजर आने लगे, क्योंकि गांव से शहर आने के बाद कमली, कमली नहीं रही। शहर की चकाचैंध ने उसकी आंखों को चैंधिया दिया। उसके रहन-सहन, खान-पान, बोल-चाल और उसके पहनने-ओढ़ने में एकदम बदलाव आ गया। उसे देखकर कोई भी नहीं कह सकता था, कि यह गांव की वही अल्हड़ और सीधी-सादी कमली है, जो कभी सजना-संवरना भी नहीं जानती थी।

कमली के अन्दर आये इस अप्रत्याशित परिवर्तन को देखकर नीतेश को हैरत तो होती, लेकिन वह कभी उसके साथ टोका-टाकी नहीं करता। वह यह सोचकर खामोश रहा कि खुद को शहर के माहौल में ढालना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन दुःख तो उसे तब हुआ जब, वह दूसरों की बराबरी करने लगी। पड़ोस की कोई औरत दो हजार की साड़ी खरीदती, तो कमली तीन हजार की साड़ी खरीदने की कोशिश करती। किसी के घर में सात हजार का फ्रीज आता, तो वह दस हजार वाला फ्रीज खरीदने की जिद करती। कोई दस हजार का सोफा खरीदता, तो वह बीस हजार के सोफे की डिमान्ड करती। इसी तरह उसकी ख्वाहिशों और फरमाइशों की फहरिस्त दिन-व-दिन लम्बी होती जा रही थी।

नीतेश ने कई बार उसे समझाने की कोशिश भी की और कहा कि दूसरों की बराबरी या सरीकत करना अच्छी बात नहीं है। हमें अपने दायरे में रहकर, अपनी हैसियत और आय के मुताबिक ही खर्च करना चाहिए। वैसे भी हम काॅलोनी वालों की बराबरी नहीं कर सकते, क्योंकि वो सब बड़े-बड़े अधिकारी हैं, और वह मामूली-सा क्लर्क ।

नीतेश की इसी बात पर वह एकदम बिफर जाती। कभी अपनी किस्मत को कोसती और कभी उसे ताने मारकर कहती, ‘‘जब मेरी जरूरतें पूरी करने की तुम्हारी औकात नहीं थी, तो क्यों की थी मुझसे शादी? ...अरे, और आदमियों को देखो, अपनी औरतों की खुशी के लिए क्या-क्या करते हैं, और एक तुम हो, जो बात-बात पर अपनी औकात का रोना, रोने बैठ जाते हो।’’

‘‘कमली! ....और आदमी अपनी औरतों के लिये क्या करते हैं, मुझे ये सब जानने की जरूरत नहीं है। मैं तो सिर्फ इतना जानता हूं कि मैं अपनी छोटी-सी तनख्वाह में तुम्हें इज्जत की रोटी तो खिला सकता हूं, लेकिन हजारों रुपयों की साड़ियां और लाखों के जेबर खरीद के नहीं दे सकता।’’

‘‘इसके अलावा तुम और कर भी क्या सकते हो?...क्योंकि तुम निहायत ही तंगदिल, घटिया और दकियानूसी इंसान हो और ऐसा इंसान बाते तो बना सकता है, मगर जिन्दगी में कुछ कर नहीं सकता।’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो कमली। वाकई मैं उन लोगों की तरह कुछ नहीं कर सकता, जो दूसरों को दिखाने के लिए लाखों का कर्ज लेकर अपने आपको गिरवीं रख लेते हैं। कमली! ऐसी खोखली और उधार की जिन्दगी जीने से क्या फायदा जो देखने में तो चट्टान की तरह मजबूत और ऊँची दिखायी देती है, लेकिन हकीकत में दीमक के ढेर की तरह अंदर से खोखली होती है।’’

‘‘इन सब बातों को करने से कोई फायदा नहीं है नीतेश। सीधे-सीधे ये कहो कि तुम्हारे अन्दर और लोगों की तरह पैसा कमाने और उनके जैसा बड़ा आदमी बनने की काबलियत ही नहीं है।’’

‘‘तुम कुछ भी कह लो कमली, पर तुम्हारी ये नुकीली और धारदार बातें मेरे हृदय को भेद नहीं पायेंगी। क्योंकि मैं औरों की बराबरी करने के लिए न तो अपने चरित्र को गिरवीं रख सकता हूं और न ही कर्ज की दलदल में धंसना चाहता हूं। मैं जो हूं, वही रहना चाहता हूं।’’

नीतेश के लाख समझाने के बाद भी कमली की समझ में कुछ नहीं आया। वह खुद की लालसाओं, इच्छाओं, आकांक्षाओं और सुख-सुविधाओं को पूरा करने की खातिर एक ऐसे भंवर जाल में जा फंसी, जिसकी नीतेश ने कल्पना भी नहीं की थी।

उस दिन नीतेश ड्यूटी से घर वापस आया, तो घर के दरवाजे पे ताला लटका हुआ था। उसने सोचा कि कमली किसी काम से कहीं चली गयी होगी, इसलिए वह बाहर खड़े होकर उसका इंतजार करने लगा। इस बीच उसने कई बार उसका फोन भी ट्राई किया लेकिन उसके फोन का स्वीच आॅफ था।

इंतजार की कश्ती में सवार नीतेश विचारों की लहरों में हिचकोले खा रहा था कि रात के करीब बारह बजे एक कार आकर नीतेश के दरवाजे के सामने रुकी। इससे पहले कि नीतेश कुछ समझ पाता कार का दरवाजा खटाक से खुला और उसमें से कमली नीचे उतरी। उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। कमली के लड़खड़ाते कदमों को देखकर कार में बैठा आकाश एकदम बोला,‘‘ कम्मो डार्लिंग, सम्हल के।’’

कमली ने सम्हलते हुए आकाश को हसरत भरी निगाहों से देखा और मुस्कुराने लगी। आकाश ने भी कमली को शोखियाना अंदाज में देखा और मुस्कुराते हुए बोला,‘‘ओ.के. कम्मो डार्लिंग बाय...।’’ कहकर उसने कार आगे बढ़ा दी। कमली उसे हसरत भरी निगाहों से तब तक देखती रही, जब तक कार उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गयी।

उस दृश्य को देखकर नीतेश अवाक रह गया और सोचने लगा कि कमली, गांव की अलहड़ कमली से कम्मो डार्लिंग भी बन गयी और उसे भनक तक नहीं लगी ? नीतेश का दिल टूट गया। नफरत हो गयी उसे कमली से। उसके जी में तो आया कि वह अपने हाथों से उसका गला घोंट दें, मगर उसकी माँ ने मरते समय उससे कहा था, ‘‘बेटा, कमली ने मेरी बहुत सेवा की है, इसलिए तू भी कमली को हमेशा खुश रखना। हालात चाहे जो भी हों, पर तू कमली के ऊपर न तो कभी हाथ उठाना और न ही उसे बुरा-भला कहना।’’ माँ के वो शब्द याद आते ही नीतेश ने अपने गुस्से को पी लिया।

कमली शराब के नशे में इस कदर डूबी हुई थी, कि उसे घर का ताला खोलना भी मुश्किल हो रहा था। नीतेश ने उससे चाबी छीनी और दरबाजा खोलकर अन्दर आ गया। नीतेश ने सोचा कि कमली को अपनी गलती पर शर्मिन्दगी जरूर महसूस होगी, और वह उससे माफी मांगेगी, लेकिन उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया और अन्दर आकर बिस्तर पर पसर गयी।

उसको लेकर नीतेश के मन में न जाने कैसे-कैसे विचार आवागमन कर रहे थे। सोफे पे बैठा वह खुद अपने आपसे से सवाल कर रहा था और खुद ही उनके जवाब दे रहा था। लेकिन कमली को कोई मतलब नहीं था। वह बिस्तर पर पड़ी न जाने कौन-सी दुनिया में विचरण कर रही थी।

करीब दो-तीन घंटों बाद जब कमली का नशा कम हुआ तो वह उठकर नीतेश के पास आयी और उससेे बोली,‘‘नीतेश! ....मुझसे यह नहीं पूछोगे कि मैं इतनी रात को कहां से आ रही हूं? ...मेरे साथ कार में कौन था और मैंने शराब क्यों पी है ?’’

‘‘पूछना तो चाहिए, लेकिन पूछने से कोई फायदा नहीं है, क्योंकि तुम्हें जो अच्छा लगा, तुमने वही किया। हाँ, बता सको तो इतना बता दो कि मेरे प्यार में ऐसी कौन-सी कमी रह गयी थी, जिसने तुम्हें कमली से कम्मो डार्लिंग बनने के लिए मजबूर कर दिया?’’

‘‘नीतेश! ...मैं तुम्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहती हूं, सब कुछ साफ-साफ बता देना चाहती हूं। नीतेश! मैं आकाश से प्यार करने लगी हूं।

‘‘प्यार...और...आकाश से...कौन है यह आकाश, और इससे तुम्हारी दोस्ती कब, कहां और कैसे हो गयी?’’

‘‘नीतेश! ये वही आकाश है, जिसके साड़ी इम्पोरियम से हम एक बार साड़ी खरीदने गए थे, तुम्हें याद होगा, मैंने गुलाबी रंग की साड़ी पसंद की थी, और तुमने उस साड़ी को मंहगा बताकर खरीदने से इनकार कर दिया था। तुम्हें यह भी याद होगा नीतेश कि उस समय आकाश ने तुमसे क्या कहा था?’’

‘‘यही कहा था कि साड़ी मंहगी बताकर भाभी जी का दिल मत तोड़ो। भाभी जी की खूबसूरती के सामने तीन हजार तो क्या बीस हजार की साड़ी भी सस्ती होगी। उसने यह भी कहा था कि काश! आपकी जगह मैं होता, तो इनकी खूबसूरती पर ऐसी दसियों साड़ियां न्यौछाबर कर देता।’’ नीतेश ने कहा।

‘‘लेकिन तुम फिर भी आकाश की बातों में नहीं आये। बस वहीं पर मुझे तुममें और आकाश में फर्क नजर आने लगा। मैंने सोचा कि एक तुम हो जिसे एक साड़ी महंगी लग रही है और एक आकाश है, जो मेरी खूबसूरती पर दसियों साड़ियां न्यौछाबर करने की बात कर रहा है। बस उसी समय आकाश ने मेरे दिल में जगह बना ली।’’

‘‘कमली तुम एक साड़ी के लिए इस हद तक गिर सकती हो, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है।’’

नीतेश! हर लड़की की तरह मेरे भी कुछ सपने और अरमान हैं। मैं भी ऐश-ओ-आराम की जिन्दगी जीना चाहती हूं। मेरा भी मन करता है कि मैं मंहगी-से-मंहगी साड़ी पहनू, मेरे पास भी कीमती गहनें हों, मेरा भी अरमान है कि हमारा आलीशान मकान हो, नौकर-चाकर हों। और मैं बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमूं...लेकिन मैं जानती थी कि मेरी यह तमन्ना तुम्हारे साथ रहकर कभी पूरी नहीं हो पाएगी।

उन्हीं दिनों एक दिन बाजार में आकाश से मेरी मुलाकात हो गयी। उसने अपने साथ काॅफी पीने का आग्रह किया।

उसके आग्रह में इतना प्यार और अपनापन था, कि मैं उसके आग्रह को टाल नहीं पायी और उसके साथ काॅफी पीने चली गयी।

काॅफी पीते समय उसने मुझसे कहा, ‘‘भाभी जी, उस दिन आप वो गुलाबी रंग की साड़ी नहीं खरीद पायीं जिसका अफसोस मुझे आज भी है। मेरा तो मन था कि वो साड़ी मैं आपको गिफ्ट कर दूं, लेकिन मैं यह सोचकर खामोश हो गया था कि कहीं आपके पति नाराज न हो जायें।’’

‘‘छोड़िए आकाश जी, इतना भावुक होने की जरुरत नहीं है। मेरे नसीब में वो साड़ी नहीं थी तो नहीं थी।

‘‘भाभी जी, अपने नसीब को मत कोसिए। आपका नसीब तो बहुत अच्छा है। अमीरी-गरीबी कोई चीज नहीं होती, बस इंसान के पास प्यार करने वाला दिल होना चाहिए। लोग तो अपनी पत्नी, की खुशी के लिए खुद को भी गिरवीं रख देते हैं। मेरा यकीन मानिए भाभी जी, काश! आप मेरी पत्नी होतीं तो आपके लिए एक साड़ी तो क्या दुनिया-जहान की खुशियाँ लाकर आपके कदमों में डाल देता। सचमुच आपकी हर ख्वाहिश, हर तमन्ना पूरी करता। पूजा करता मैं आपकी।’’

आकाश की आंखों में अपने लिए इतना प्यार देखकर मैं खुद को रोक नहीं पायी। मैंने कहा,‘‘आकाश, तुम सच कह रहे हो, वाकई अगर मैं तुम्हारी पत्नी होती तो तुम मुझसे इतना ही प्यार करते..?

‘‘भाभी जी, आप प्यार करने की बात कर रही हैं....मेरा यकीन मानिए, मैंने जिस दिन से आपको देखा है, उस दिन से मेरी आंखों से आपका चेहरा नहीं हटा है। एक बार आप मेरे दिल में उतर कर मेरे प्यार की गहराई को नापकर तो देखिए, आपको खुद पता चल जायेगा कि इस दिल में आपके लिए कितना प्यार है।’’

‘‘उसके बाद मैं आकाश की चाहत और उसके प्यार की गहराई में ऐसी डूबी, कि फिर उभर नहीं पायी।

तुम्हें यह जानकर आश्चर्य ही नहीं नीतेश, दुःख भी होगा कि मैं मन से ही नहीं तन से भी आकाश की हो चुकी हूं....और आज मैं तुम्हें पूरी तरह छोड़कर उसके पास चली गयी थी, उससे शादी करने के लिए। लेकिन आकाश नहीं चाहता था कि मैं तुम्हें अंधेरे में रखूं और तुम्हें हमारे प्यार के बारे में सब कुछ साफ-साफ बता दूं। मगर मैं तुम्हें कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, इसीलिए मुझे शराब का सहारा लेना पड़ा ताकि तुम्हारे सामने कुछ भी बोलने में मुझे परेशानी न हो।’’

‘‘तुम क्या समझ रही हो कमली, तुम्हें इस हाल में देखकर मुझे दुःख नहीं हो रहा है...? बहुत दुःख हो रहा है। लेकिन जब तुम्हें ही मेरी इज्जत और भावनाओं की परवाह नहीं रही, तो तुमसे कोई गिला-शिकवा करने से भी कोई फायदा नहीं है। मैं तो तुमसे ये भी नहीं कहूंगा कि तुमने मेरे साथ बेवफाई की है। ...हां, इतना जरूर कहूंगा कि आकाश जैसे पैसे वाले लोगों के पास जिन्दगी की सुख-सुविधाएं और ऐश-ओ-आराम तो मिल जायेगा लेकिन वो प्यार नहीं मिलेगा, जिसकी तुमने आकाश से उम्मीद की है। क्योंकि आकाश जैसे पैसे वाले लोग अपनी दौलत के बल पर तुम जैसी खूबसूरत और भावनाओं में बहने वाली औरतों को जिन्दगी के सुनहरे सपने दिखाकर उनके जिस्म से तो खेल सकते हैं, लेकिन उन्हें अपना नहीं बना सकते। ऐसे लोग तुम जैसी मासूम और बेवकूफ औरतों के जिस्म से तब तक खेलते हैं, जब तक उनका दिल नहीं भर जाता। उसके बाद वह उन्हें बासी फूलों की तरह मसल कर फेंक देते हैं।’’

‘‘नीतेश! आकाश उन लोगों में से नहीं है। वह मुझसे बेइन्तहा मोहब्बत करता है।’’

‘‘कमली! इस समय तुमसे कुछ भी कहना व्यर्थ होगा, क्योंकि इस समय तुम्हारे दिल-ओ-दिमाग पे आकाश और उसकी दौलत का नशा छाया हुआ है। लेकिन जिस दिन ये नशा उतर जायेगा, उस दिन खुद-व-खुद सच्चायी तुम्हारे सामने आ जायेगी। इसलिए आगे का कोई भी कदम उठाने से पहले अच्छी तरह सोच लो कमली, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें बाद में पछताना पड़े।’’

इतना कहकर नीतेश कमली के पास से उठ के दूसरे कमरे में आ गया। उसने सोचा कि कमली, इच्छाओं और आकांक्षाओं की भीड़ में कहीं भटक गयी है। उसे अपनी भूल का अहसास जरूर होगा और वह आकाश को अपने मन से निकाल कर, उसकी हो जायेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि अगले ही दिन जब नितेश अपनी ड्यूटी से वापस आया तो वह कमली को दुल्हन के रूप में देखकर चैंक गया। उसने कमली से कहा, ‘‘यह सब क्या है कमली, तुमने यह ड्रेस क्यों पहनी है...? तो कमली ने कहा नितेश, ‘‘मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी।’’

‘‘मेरा इंतजार....?’’

‘‘हाँ, वो क्या है कि आज मैं और आकाश शादी कर रहे हैं।’’

कमली के मुंह से उसकी शादी की बात सुनकर नीतेश को एकदम झटका लगा और वह सोचने लगा कि यह सब क्या हो रहा है..? और इससे पहले कि वह कमली से आगे कुछ कहता, आकाश ने कार का हाॅर्न बजा दिया, जिसे सुनकर कमली एकदम उठ खड़ी हुई और अपना ब्रीफकेस उठाकर बोली,‘‘मैं जा रही हूं नीतेश, हो सके तो मुझे माफ कर देना।’’ कहते हुए वह बाहर निकल गयी। नीतेश मूक दर्शक की तरह खड़ा चुपचाप उसे जाता हुआ देखता रह गया। वह चाहता तो कमली को रोक भी सकता था। आखिर वह उसकी पत्नी थी। पूरे समाज के सामने सभी रस्मो-रिवाज के साथ अग्नि को साक्षी मानकर वह दोनों विवाह बंधन में बंधे थे, फिर भी उसने उसे नहीं रोका, क्योंकि वह जानता था, कि जिस कमली ने अपनी शारीरिक अभिलाषाओं और सुख-सुविधाओं के लालच में आकर उसे ठुकरा दिया वह उसके रोकने से भी नहीं रुकेगी।

कमली की बेवफाई ने नितेश को इस कदर तोड़ दिया, कि उसे हर लड़की में धोखेबाज और बेवफा कमली नजर आने लगी। इसीलिए कमली के जाने के बाद उसने किसी भी लड़की को अपनी जिन्दगी में शामिल नहीं किया।

‘‘नीतेश! तुम बोर तो नहीं हुए ?’’

कमली ने अचानक आकर कहा तो नितेश की विचार शृंखला टूट गयी। भले ही वह अपने अतीत को समेट कर वर्तमान में आ गया हो, लेकिन उसे ऐसा महसूस हुआ, जैसे पंद्रह साल पहले वाली कमली उसके सामने आकर खड़ी हो गयी हो, जो जख्म अब भरने से लगे थे, वह फिर से हरे हो गये, जिसकी टीस को वह बर्दाश्त नहीं कर पाया और चुपचाप वहां से उठकर जाने के लिए खड़ा हो गया, तो कमली एकदम मायूस होकर बोली, ‘‘नीतेश! जो जख्म मैंने तुम्हें दिए हैं, मैं उनकी दवा तो नहीं बन सकती, लेकिन इतना जरूर है कि बेवफाई का जो जहर मैंने तुम्हारी जिन्दगी में घोला था, उसकी कड़बाहट से मेरा अस्तित्व भी कसैला हो चुका है।

तुमने ठीक ही कहा था नीतेश कि अमीरजादों के पास धन-दौलत और ऐश-ओ-आराम की चीजें तो होती हैं, लेकिन प्यार करने वाला सच्चा दिल नहीं होता। वह औरत को भोग तो सकते हैं, लेकिन उसे देवी समझकर पूज नहीं सकते। काश! उस समय मैं तुम्हारे मंतव्य को समझ पाती और अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं और भावनाओं को नियंत्रित कर पाती, तो आज आकाश जैसा धोखेबाज, चालबाज और मक्कार इंसान मेरा जीवन बर्बाद नहीं कर पाता। सचमुच वह मुझे बड़े-बड़े सपने दिखाकर मेरी जिन्दगी से खेलता रहा और जब उसका मन भर गया तो उसने मुझे नरक की उस दलदल में धकेलने की कोशिश की, जहां औरत, औरत न रहकर मर्दों का दिल बहलाने वाला एक खिलौना बनकर रह जाती हैं। लेकिन समय रहते मैं उसके इरादों को भांप गयी और उसके चंगुल से भाग निकली।

वहां से निकलने के बाद मैं यहां मुम्बई आ गयी। यहां आकर एक अनाथ आश्रम में गरीब और बेसहारा बच्चों की देखभाल करने लगी, क्योंकि इसके अलावा मैं और कुछ कर भी नहीं सकती थी। तुम्हारे पास तो मैं चाहकर भी नहीं आ सकती थी। आती भी तो किस मुंह से, आने के सारे हक और अधिकार तो मैं पहले ही खो चुकी थी।

मैं जीना नहीं चाहती थी नीतेश, पर यही सोचकर जिन्दा हूं कि कभी, कहीं, किसी मोड़ पर शायद तुमसे मुलाकात हो जाए, तो तुमसे माफी मांगकर मरूंगी। तुम इंसान नहीं हो नीतेश, इंसान के रूप में भगवान हो। तुम चाहते, तो मुझे आकाश के साथ जाने से रोक सकते थे। मेरे साथ मारपीट भी कर सकते थे, और मुझे बुरा-भला भी कह सकते थे, पर तुमने ऐसा कुछ भी नहीं किया, चुपचाप अपनी दुनिया को लुटता हुआ देखते रहे। सिर्फ-और-सिर्फ मेरी खुशी के लिए। उस समय तुमने खुद को कैसे सम्हाला होगा, कैसे रोका होगा अपने आपको..? इसका अहसास मुझे उस वक्त हुआ, जब आकाश ने मुझे धोखा दिया।

नीतेश! मैंने तुम्हारी हँसती-खेलती दुनिया को बरबाद कर दिया। तुम्हारी खुशियों को मातम में बदल दिया, इसका मुझे बेहद अफसोस है। हो सके तो मुझे माफ कर देना।’’

कहते-कहते कमली की आवाज लड़खड़ाने लगी। उसकी आंखें बंद होने लगीं। उसके हाथ-पांव ढीले होने लगे और वह जमीन पर गिरने ही वाली थी कि नीतेश ने उसे अपने हाथों में सम्हालते हुए बोला, ‘‘क्या हुआ कमली..?’’

वह लड़खड़ाती हुई आवाज में धीरे से बोली, ‘‘मैंने जहर पी लिया है।’’ जहर का नाम सुनते ही नीतेश घबरा गया और तुरंत उसको हाॅस्पिटल ले गया।

पूरे आठ घण्टों की मेहनत-मशक्कत के बाद डाॅक्टरों ने कमली को खतरे से बाहर बताया तो नीतेश ने राहत की सांस ली। इन आठ घंटों तक वह कमली के पास यूं ही बैठा रहा और सोचता रहा, कि जितनी गुनाहगार कमली है, उतना ही गुनाहगार वह खुद भी है। क्योंकि कमली तो दुनिया की भीड़ में भटक गयी थी, लेकिन उसने भी उसे रास्ता नहीं दिखाया। हो सकता है, अगर वह उस समय उसे आकाश के साथ जाने से रोक लेता तो शायद आज कमली आत्महत्या जैसे कृत्य को करने के कागार पर न पहुंचती।

एक हल्की-सी कराह के साथ कमली ने अपनी आँखें खोल दीं। उसके होश में आते ही नीतेश ने उससे कहा,‘‘अब कैसा महसूस कर रही हो...?’’

‘‘तुमने मुझे क्यों बचाया नितेश, मुझे मर जाने दिया होता।’’

‘‘पगली कहीं की, एक गलती के बाद दूसरी गलती। यह कहां की समझदारी है...? ...अरे अपने बारे में नहीं तो कम-से-कम मेरे बारे में तो सोचा होता।

नीतेश की बात पर कमली अवाक-सी आंखें फाड़कर उसे देखने लगी। उसे इस तरह अपनी तरफ देखते हुए नीतेश ने हां में गर्दन हिलाते हुए कहा, ‘‘हां कमली, तुमसे मिलने के बाद और तुम्हारी सच्चायी जानने के बाद तो मैंने भी जीने का मन बना लिया।’’

इतना सुनते ही कमली खुद को रोक नहीं पायी और एकदम नीतेश से लिपट कर सिसक पड़ी।

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