That first and last karvachauth books and stories free download online pdf in Hindi

वो पहला व अंतिम करवाचौथ

सुनो यह मेरा पहला करवाचौथ है । तो बताओ क्या दिला रहे हो मुझे!"
"अरे यार हमने तो पूरा का पूरा अपने आप को तुम्हें सौंप दिया है और क्या चाहिए !"
"बातें खूब बनाते हो तुम फौजी!"
"तुम्हें क्या पता यही बातें और हंसी मजाक तो हमारे जीने का सहारा है उन वीरानों में। कभी दूर दूर तक रेत ही रेत तो कभी दूर दूर तक बर्फ ही बर्फ। ना आदमी ना आदमी की जात! तब यही खूबसूरत यादें तो जीने का सहारा बनती है वहां!"
"बताओ यादों के सहारे भी कोई जीता है । मुझे तो यकीन नहीं होता। "
"कभी अपनों से दूर नहीं रही ना इसलिए तुम्हें इन बातों का एहसास नहीं। देखना जब मैं दूर चला जाऊंगा। तब तुम्हें कैसे मेरी बातें याद आएंगी!"
"कहीं दूर वूर नहीं जा रहे आप। हमेशा मेरे साथ ही रहोगे। दिन ही कितने हुए हैं हमारी शादी को!"
" कौन अपनी मर्जी से दूर होना चाहता है ।यह तो नौकरी है जो करनी ही है।"
"छोड़ क्यों नहीं देते, फिर ऐसी नौकरी को , जो तुम्हें मुझसे और अपने माता-पिता से दूर करें।"
"अरे पगली सब यही सोच नौकरी छोड़ कर बैठ गए तो हमारे देश की सेवा कौन करेगा। बचपन से सपना रहा है मेरा कि मैं फौज में शामिल हूं और देश के प्रति अपना फर्ज निभाऊं!"

"मेरे और घर परिवार के लिए नहीं है ,कोई फर्ज आपका और अब तो एक नन्हा मेहमान आने वाला है।" सपना थोड़ा नाराज होते हुई बोली।
"हां है ना! तभी तो तैयार खड़ा हूं। चलो शॉपिंग के लिए चलते है और जो हमारी पत्नी साहिबा कहेंगी, उन्हें वही दिलवाएंगे।" जोगिंदर सिंह अपनी पत्नी के सामने सावधान की मुद्रा में खड़े होते हुए बोला।
उसे ऐसा करता देख सपना की हंसी छूट गई।
"सपना तुम सदा यूं ही हंसते रहना। चाहे मैं रहूं या ना रहूं और मेरे माता पिता का हमेशा ध्यान रखना।" देखो जी, उनका ध्यान में हमेशा रखूंगी और हमेशा यूं ही मुस्कुराती रहूंगी लेकिन आपने एक वादा करो कि मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाओगे।"
"हां वादा है मेरा, हमेशा तुम्हारी यादों में और सांसो में साथ रहूंगा।" जोगिंदर ने उसे गले लगाते हुए कहा।
"फिर वही गोल-गोल बातें! किसी भी बात का सीधा जवाब नहीं देती हो आप।" कह सपना हंस पड़ी।
करवा चौथ का एक सप्ताह ही बच था और जोगिंदर सिंह की छुट्टियां खत्म होने में 15 दिन कि जोगिंदर सिंह का ड्यूटी के लिए बुलावा आ गया।
"यह क्या बात हुई भला! अभी तो 15 दिन बचे थे फिर! जाना है तो व्रत के बाद ही जाना। "
"नहीं सपना मुझे कल ही निकलना होगा। जाना बहुत जरूरी है!"
"बताओ मैंने कितनी तैयारी की हुई थी। अब मैं किसके लिए सजूंगी। किस का मुंह देख व्रत खोलूंगी। "
"बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो रही हो। इस समस्या का समाधान तो मैं चुटकियों में कर देता हूं।" जोगिंदर सिंह हंसते हुए बोला।
"वह कैसे?" सपना हैरानी से उसकी ओर देखते हुए बोली

"देखो तैयार तो हो कर तुम मुझे आज ही दिखा दो। सच में मैं भी दुल्हन के रूप में तुम्हें एक बार फिर से सजी देखना चाहता हूं और व्रत वाले दिन जब चांद निकलेगा तो मैं वीडियो कॉल करूंगा। तुम मुझे देख कर अपना व्रत खोल लेना।"
अपने पति की बातें सुन सपना का दिल भर भर आ रहा था। वह अपने आंसुओं को रोक ना सकी और और रोने लगी।
"इसमें रोने की क्या बात है! फौजियों की पत्नियों को भी उनकी तरह ही मजबूत होना चाहिए और तुम्हारी इन बड़ी-बड़ी आंखों में तो मुझे आंसू बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते। वादा करो, आज के बाद कभी नहीं रोओगी और हमेशा मुस्कुराती रहोगी तुम।"
कहते हुए जोगिंदर ने उसे गले लगा लिया। दिल तो आज उसका भी भर आया था लेकिन चाह कर भी वह उसके सामने कमजोर नहीं पडना चाहता था।
"अच्छा अब जरा तैयार होकर तो दिखाओ।"
सपना मना ना कर सकी और कुछ ही देर बाद वह उन्हीं कपड़ों में जिन्हें जोगिंदर सिंह उसे करवा चौथ पर पहनने के लिए दिलवाकर लाया था, तैयार हो उसके सामने खड़ी थी। वह उसे अपलक देखता रह गया।
"ऐसे क्या देख रहे हो जी!"
"बस तुम्हें आंखों में भर लेना चाहता हूं। यादों के सहारे पता नहीं अब की बार कितने दिन काटने पड़े।"
सपना भावुक हो उसके गले लग गई। सारी रात दोनों ने आंखों में काट दी। एक दूसरे से बातें करते हुए। मानो एक-एक पल को दोनों जी लेना चाहते हो।
सुबह होते ही जोगिंदर सिंह ने जाने की तैयारी कर ली। अपने माता पिता के पैर छू उनसे आशीर्वाद लेकर, एक बार सपना की ओर इस तरह देखा मानो कह रहा हो मेरे बाद इन सब का ध्यान तुझे ही रखना है और फिर जल्दी से आगे बढ़ गया।
सभी दरवाजे पर खड़े बहुत देर तक उसे जाते हुए देखते रहे।

"बहू चांद निकल आया है। आ जा अर्घ दे दे।" उसकी सास की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी।
उसने सास से कहा "मां जी अभी वो वीडियो कॉल करेंगे। उन्हें देख फिर व्रत खोलूंगी।"
"ठीक है बहु। मैं भी तब तक इंतजार कर लेती हूं।"
एक घंटा हो गया लेकिन ना तो जोगिंदर सिंह की कॉल आई और सपना ने फोन किया तो फोन स्विच ऑफ जा रहा था।
समय ज्यादा होता देख उसकी सास ने कहा
"बहु हो सकता है वहां नेटवर्क ना हो। तू परेशान मत हो । जल चढ़ा व्रत पूरा कर।"
सपना का मन तो नहीं कर रहा था लेकिन सास की बात मान उसने जल चढ़ा दिया।
उसके बाद उसने अपनी सास से कहा "मांजी आपके लिए खाना परोस दूं।"
यह सुन उसकी सास बोली "नहीं बहू रहने दें। पता नहीं क्यों मन में इतनी बेचैनी हो रही है।"
तभी फोन की घंटी बज उठी। जोगिंदर की मां बोली "देखिए जी, कहीं अपने जोगिंदर का फोन तो नहीं।"
"नंबर तो उसका नहीं!" कहते हुए उन्होंने फोन उठाया और जैसे ही कान पर लगाया, सुनते ही उनके हाथ से फोन छूट गया।

"क्या हुआ पिताजी! क्या हुआ!" वह कुछ ना बोले। सपना ने जल्दी से फोन उठाया और खबर सुनते ही चुपचाप फोन रख दिया।
जोगिंदर की मां घबरा कर बोली "कोई कुछ बताएगा भी क्या हुआ! क्या खबर थी! सब ठीक है!"
" तेरा बेटा देश के लिए शहीद हो गया भागवंती!" यह खबर सुनते ही वह बेहोश हो गई।
अगले दिन शाम को जैसे ही जोगिंदर का शव तिरंगे में लिपटा घर आया, पूरा कस्बा उसके दर्शन के लिए उमड़ पड़ा चारों ओर उसके वीरता के जयकारे लग रहे थे। हर किसी की आंखें उसकी शहादत पर नम थी लेकिन सपना, सपना की आंख में एक आंसू नहीं। वह आंसू बहा अपने पति की शहादत का अपमान नहीं करना चाहती थी और ना ही उनसे कि अपने वादे को झूठला सकती थी।
वह अब शहीद की पत्नी थी। उसके कंधों पर उनकी शहादत का सम्मान बनाए रखने के साथ ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी‌ साथ ही उस प्रेम की निशानी की जो कुछ ही महीनों बाद दुनिया में आने वाला था।
उसने अपने दर्द व आंसुओ को सीने में छुपा अपने पति को अंतिम सलामी दी। सारा जनसमूह यह दृश्य देख भावुक हो गया लेकिन वह अपलक उनके चेहरे को देखे जा रही थी मानो अंतिम समय में उनकी छवि अपनी आंखों में भर लेना चाहती हो।