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छोटे शहर की लड़की

तीन बैडरूम वाले इस फ्लैट में हम छ: लड़कियाँ बड़े मज़े से अपनी जिंदगी गुज़ार रहीं थीं कि अचानक अंजलि को एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में लम्बे समय के लिए लंदन जाना पड़ा। इत्तफाक ही था कि अंजलि की खाली जगह शीतल ने भर दी थी। शीतल उसी की कम्पनी में कुछ समय पहले ही नियुक्त हुई थी नियमानुसार कम्पनी की व्यवस्था में सीमित समय तक रहने के बाद उसे अपने रहने का प्रबन्ध स्वयं करना था, अंजलि ने ना जाने क्या सोचकर उसे मेरे पास भेज दिया था। उस दिन शनिवार था और घर में मस्ती हो रही थी। हम सबके बीच छुई-मुई सी बनी शीतल कहीं फिट नहीं बैठ रही थी। छोटे शहर की मानसिकता, उसके हाव-भाव से प्रकट हो रही थी, मैं उसे मना करती इससे पहले ही अविनाश ने खांस कर इशारा किया और मुझे उसे अपने साथ रहने की स्वीकृति देनी पड़ी।

अविनाश साथ वाली बिल्डिंग में रहने वाला एक भला लड़का है जो अक्सर हमारी मदद कर देता है, ए.सी. ठीक करवाना हो या पलम्बर को लाना हो सारे काम अविनाश के जिम्में छोड़ हम बेफिक्र होकर अपनी नौकरियों पर चले जाते थे। अविनाश मल्टीनेशनल कम्पनी में इंजिनियर था। डॉक्टर दम्पति का इकलौता बेटा था, माता-पिता लखनऊ में रहते थे और बड़ी विवाहित दीदी बंगलौर में किसी बड़ी आई.टी. कम्पनी में अच्छे पद पर कार्यरत थीं। हमारे घर की एक चाबी अक्सर उसके पास ही रहती थी।

माँ से तलाक़ के बाद पिता सदा के लिए विदेश में जा बसे थे। मैं वर्षों से अपनी माँ के साथ मुम्बई में रह रही थी कुछ वर्ष पहले हार्टअटैक से हुई माँ की आकस्मिक मौत ने मुझे बिल्कुल अकेला कर दिया था। कुछ समय तक मेरी जिंदगी में एक अजीब सा खालीपन छाया रहा लेकिन जीवन के इस अकेलेपन को दूर करने के लिए मैंने अपने फ्लैट में ज़रूरतमंद लड़कियों को रख लिया था। धीरे-धीरे मेरी जिंदगी बदलने लगी। बिना किसी रोक-टोक के लाइफ इंजाय करते हुए हम सब अलग सी बिंदास जिंदगी का स्वाद चखने लगे थे।

पहले ही दिन ठण्डे पानी के लिए फ्रिज़ खोलती शीतल को कतार में बिछी बीयर की बोतलें चौंका गईं थीं। पलंग के नीचे रखी वाईन और व्हिस्की की बोतलें देख हैरत से उसकी आँखें फट गईं थीं। मायानगरी के कुछ मायावी रहस्य धीरे-धीरे उसके सामने बेनक़ाब हो रहे थे। छोटे से शहर के मध्यवर्गीय परिवार से आयी शीतल के लिए जिंदगी का ये रूप बिल्कुल नया था। धीरे-धीरे उसे कई चीजें समझ में आने लगी थीं मसलन रात को अपने बॉस द्वारा दिए गए कॉफी अथवा डिनर के प्रस्ताव का क्या अंजाम हो सकता है। ऑफिस में साथ काम करने वाले पुरूषों का कहना कि शीतल बहुत अड़ियल है उसे कोई क्रैक नहीं कर सकता का क्या मतलब निकलता है। शीतल ऐसे हर प्रस्ताव को शालीनता से नज़रअंदाज़ कर देती है वो तो ये जानकर हैरान हो जाती है कि लालची निगाहों से घरते उसके सहकर्मी में से अधिकांश विवाहित और एक-दो बच्चों के पिता हैं। छोटे शहर की लड़की' कहकर पीठ पीछे मज़ाक उड़ाते अपने साथियों के व्यंग्य बाणों से वह बिल्कुल आहत नहीं होती। तथाकथित अल्ट्रामार्डन जमात से परे अपने आपको छोटे शहर की लड़की के रूप में पहचाना जाना उसे आत्मसंतुष्टि से भर देता था। अपने उसूलों पर चलकर वह अपने काम के प्रति बेहद ज़िम्मेदारी और मेहनत से जुटी रहती है। हमारे साथ रहते हुए भी शीतल ने अपने विचारों को नहीं छोड़ा था।

सप्ताह के अंत में हुड़दंग मचाती लड़के-लड़कियों की हमारी टोली में वो बैठी ज़रूर रहती थी लेकिन एक निश्चित दूरी, एक लक्ष्मण रेखा उसने अपने चारों और खींच रखी थी।जहाँ हम सब हार्डड्रिंक्स लेते वह कोल्डड्रिंक थामे रहती है। आरम्भ में उसके सामने जब कभी सुधीर-मेघना तो कभी अमित-सरभि कमरों में बंद हो जाते तो वह असहज हो उठती थी लेकिन धीरे-धीरे उसने इस तरफ ध्यान देना बंद कर दिया था। इन दिनों मैं इस बात से हैरान थी कि जो अविनाश हमारी मित्र मंडली में ज़्यादा बैठना पसंद नहीं करता था वो अब अक्सर शनिवार-इतवार को हमारे यहाँ धरना दिए रहता। अविनाश एक शरीफ लडका था, मतलब हमारी किसी भी ग़लत हरकत में वह शामिल नहीं होता था। पहले कभी-कभी आता था तो अपनी बड़ी दीदी की बोरिंग बातें करता था कि उसकी दीदी इतनी इंटेलीजेंट है अपनी मेहनत से कम्पनी में सीनियर पोस्ट पर काम कर रही हैं। बंगलौर से उसे हर सप्ताह फोन करती हैं। एक-दो बार तो वो हमारे यहाँ बैठा था और उसकी दीदी का फोन आ गया था। जी दीदी, जी दीदी, करता वह रिरियाता रहता था।अंजलि तो कहती भी थी ये किस बोरिंग को बुला लिया, पूरी शाम खराब कर दी। मैं खिलखिला उठती थी “यह मत भूलो कि यही बोरिंग हमारी हर तरह से मदद भी करता है।"

जब वही अविनाश हमारे घर अक्सर आने लगा तो उसका कारण समझते मुझे ज़रा भी देर नहीं लगी।शीतल भी केवल अविनाश से ही बात किया करती थी, बाकी हमारे फालतू फण्ड के मित्रों से वह दूर-दूर ही रहती थी। अविनाश शीतल से कहा करता था कि उसे देखकर उसे अपनी दीदी की याद आ जाती है, अविनाश की आँखों में शीतल के लिए प्रशंसा के भाव उससे छिपे नहीं थे। ना जाने क्यों मुझे लगता था कि शीतल भी अविनाश को पसंद करने लगी है। एक दिन मैंने मज़ाक में शीतल से कहा था, "तुम्हें नहीं लगता शीतल की अविनाश कुछ ज़्यादा ही ध्यान रखता है तुम्हारा?" अच्छा लड़का है ना!? पसंद है तुम्हें, दोस्ती के लिए .....!? हमारे घर के खुले वातावरण से परे शीतल ने अपने आपको एक खोल में समेट रखा था मेरे मज़ाक को उसने गंभीरता से लेते हुए कहा था।

"दीदी मैं यहाँ अपना कैरियर बनाने आयी हूँ और केवल उसी दिशा में मेहनत कर रही हूँ।"

बात उस दिन खत्म हो गई थी। मैं शीतल का डर समझ रही थी। आजकल शीतल मुझसे काफी बातें साझा करने लगी है, इधर अविनाश भी शीतल के पीछे दीवाना सा बना बैठा है लेकिन शीतल से अपने प्यार का इज़हार करने से डरता है कि कहीं स्पष्ट'ना' नहीं सुननी पडे। 'प्यार' के चक्कर में 'दोस्ती' से भी हाथ ना धो बैठे। मैं इन सभी बातों का मज़ा लेती रहती हूँ आज के इतने दौड़ते भागते समय में पुराने ज़माने की तर्ज पर चल रहा अविनाश का मूक प्रेम मुझे गुदगुदा जाता है। हालांकि शीतल की तरफ से कोई पहल या इशारा कभी नहीं हुआ।

ज़िंदगी अपने ढर्रे पर चल रही थी कि इस बार दस दिन की छुट्टियों में घर गई शीतल जब वापिस लौटी तो एक नयी शीतल ही नज़र आ रही थी जिसके चेहरे पर ढेरों गुलाब खिले हुए थे। मैंने उसे छेड़ा।

"क्या बात है? बदले-बदले से मेरे सरकार नज़र आते हैं ?"

उसने फुसफुसाते हुए बताया कि उसकी सगाई हो गई है।

"क्या!?" मुझे एकाएक विश्वास नहीं हआ।

"किससे?"

"भाभी का कज़न है अर्णव, इंजीनियर है। बंगलौर में काम कर रहा है, जल्दी ही मुम्बई शिफ्ट हो जायेगा।"

"ओहो तो यूँ कहो कि पूरा एक बरस हो गया हमारे साथ रहते हुए, तबसे हम सबको बेवकूफ बना रही थी और गुल कहीं और खिला रही थी?"

"क्या मतलब?" मेरी बात सुनकर वो हैरान हो गई थी।

मैं मुस्कराई, "मतलब साफ है, तेरा चक्कर तेरी भाभी के भाई के साथ चल रहा था और तू ने हमें हवा भी नहीं लगने दी।जब कभी तुझसे प्रेम या विवाह की बात की तूने निरीह सा मुँह बनाकर कहा कि अनु दी वो सब तय करने का हक मेरे परिवार का है। यहाँ सबके सामने शराफ़त का लबादा ओढ़े हमें गिल्टी फील कराने की कोशिश करती रही..."

वो रूआंसी हो उठी, " ये आप क्या कह रही है अनु दी?''

"अरे छोड़ यार, अनु दी की शरीफ़ बहन, तू तो हम सबकी बाप निकली।घर में ही लड़का फँसा लिया और विवाह भी उसे से कर रही है अभी सबको बताती हूँ।"

वह याचना भरे शब्दों में फुसफुसाई।

"प्लीज़, अनु दी, अभी नहीं..."

लेकिन मैं कहाँ रूकने वाली थी ड्राइंगरूम में बैठी मित्रमण्डली तक ये चटपटी खबर पेश कर ही दी। खबर सुनते ही सब ख़ुशी हो गये लेकिन अविनाश का मुँह उतर गया था। दस दिन बाद शीतल को देखकर आज वो बेहद खुश था लेकिन इस ख़बर ने उसकी सारी ख़ुशी पर पानी फेर दिया था। इस सबसे बेख़बर मैं शीतल की खिंचाई करने में लगी थी।

"हाँ तो मैडम कब से चल रहा है तुम्हारा ये चक्कर?" शीतल हकबकाई सी बोली, "मैंने अर्णव को पहली बार पिछले सप्ताह ही देखा था।"

मैंने अविश्वसनीय नज़रों से उसे देखा,

"जब रिश्ता तय ही हो गया है तो झूठ बोलने का क्या फ़ायदा? अच्छा ये बताओ तुम्हारे भैया का विवाह कब हुआ था?"

"भैया के विवाह को पाँच साल हो गए क्यों अनु दी भैया के विवाह से हमारे रिश्ते का क्या लेना-देना?"

मैं शरारत से मुस्कराई, "अरे भई भाई के विवाह में ही तो अर्णव से मुलाकात हुई होगी और फिर..... बढ़ते-बढ़ते बात विवाह तक पहुँच गई होगी।"

मित्र मण्डली ने समवेत स्वर में ठहाका लगाया, मेघना ने प्रशंसात्मक नज़रें मेरी ओर डालते हुए कहा,

"अनु तुम्हें तो सी.आई.डी. में होना चाहिए।"

वह फिर रूआंसी हो उठी,

"कैसी बात कर रही हैं आप, अर्णव भाभी के दूर के रिश्ते में भाई लगते हैं उस समय उनकी ट्रेनिंग चल रही थी इसीलिए वो विवाह में नहीं आए थे।"

अब तक चुपचाप बैठा अविनाश अचानक पूछ बैठा, "उसके बाद तो वह तुम्हारी भाभी से मिलने तुम्हारे घर आता रहा होगा।"

वह अपनी बात पर क़ायम थी,

"नहीं भैया-भाभी बंगलौर में ही रहते हैं। इसलिए वह उनसे वहीं मिले थे। हमारे घर कभी नहीं आये।"

मैं हैरान थी।

"मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है। दस दिन में तुमने उसे देख-समझ भी लिया और उम्र भर के लिए उसके साथ रहने को तैयार भी हो गई।"

"भाभी उन्हें जानती हैं, भैया ने उन्हें पसंद कर लिया था। मम्मी-पापा ने इसीलिए मुझे घर बुलाया था। मैंने उनसे बातचीत की तो मुझे वह खुले विचारों के सुलझे हुए व्यक्ति लगे। हमारा मानसिक स्तर भी एकसा लगा। विवाह तो करना ही था तो मना करने का कोई कारण नज़र नहीं आया।"

ना जाने क्यों मुझे लगा कि यह सब बातें कह कर वो अविनाश को अप्रत्यक्ष रूप से अपनी सफ़ाई दे रही है।

मेघना चहकी, "चलो छोड़ो ये कैसे... क्यों.. .कब... वाली बातें। हमारी शीतल की सगाई हो गई है, इसी बात पर पार्टी होगी। शीतल आज तुझे भी थोड़ी सी तो..... लेनी ही पडेगी।"लेकिन जैसा कि हम सबको पता ही था उसने केवल कोल्ड ड्रिंक से ही हमारा साथ दिया था।

शीतल के कहे अनुसार अगले ही महीने अर्णव ने अपनी कम्पनी की मुम्बई ब्रांच में तबादला करवा लिया था।शीतल ने हमें अर्णव से मिलवाया। अच्छा ख़ासा, लम्बा-चौड़ा, खिलंदड़े स्वभाव का अर्णव सबसे बहुत गर्मजोशी से मिला। अर्णव हर दृष्टि से मुझे शीतल से इक्कीस ही लगा। कहाँ ये छोटे शहर की छुई-मुई सी लड़की और कहाँ वह ठहाके लगाता अत्याधुनिक विचारधारा वाला हँसमुख युवक। जिंदगी में पहली बार मुझे अपने परिवार की कमी महसूस हुई थी। परिवार के नाम पर इकलौती माँ थी वो भी नहीं रही थी। काश मेरे भी कोई भाई-भाभी होते जो मेरी इतनी परवाह करते । मेरे लिए लडके का चनाव करते। तब शायद मैं यँ अकेलेपन के दंश को झेलती इस खोखली स्थिति में नहीं होती। परायों के बीच अपनी खुशियाँ ढूँढ़ने का ये तरीका नहीं अपनाती। ना जाने क्यों अचानक ही मुझे छोटे शहर की इस लडकी से ईर्ष्या हो आई थी लेकिन अगले ही पल मैं अपने विचारों पर शर्मिंदा हो गई थी। मस्तिष्क से ऐसे विचार झटककर मैंने खुले दिल से अर्णव की तारीफ करते हुए शीतल से कहा, "सच कहूँ शीतल तेरी भाभी का चुनाव बहुत अच्छा है। अर्णव खुले विचारों का सुलझा हुआ हँसमुख युवक है। कहाँ तू कोल्डड्रिंक के एक गिलास को घंटों तक लेकर बैठने वाली सुस्त लड़की और कहाँ वो पैग पर पैग चढ़ाने वाला मॉर्डन लड़का।या तो तू उसे सीधा कर देगी या वो तुझे अपने रंग में रंग देगा।"

"दीदी मैं अपने विचारों से कभी नहीं डिगूंगी।"

"ओह... तो मतलब विवाह के बाद उसे ही बदलना होगा। सोच ले शीतल, बहुत बड़ा चैलेंज रहेगा तेरे सामने । ऐसे, लड़कों पर लगाम नहीं लगाई जा सकती।"

वह मुस्कराई, "दीदी वो रोज़ ड्रिंक नहीं करता, खुले हुए विचारों का लड़का है। उसने मुझे पहले ही कह दिया था कि हम मल्टी नेशनल कम्पनियों में काम करते हैं, हमें अपने दिमाग खुले रखने चाहिए। तुम्हारा भी अपने काम के सिलसिले में देरसवेर घर आना लगा रहेगा। मुझे इन सब बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसने तो मुझसे ये भी पूछा था कि तुम्हारे अपने बॉस से कैसे सम्बन्ध हैं ? उसकी बात सुनकर पहले तो मैं अचकचा गई थी, बॉस से कैसे सम्बन्ध हैं का क्या मतलब है आपका?" तो वो ठहाका लगाते हुए बोला था, "मेरा मतलब है वो तुम्हारे काम से खुश तो हैं ना?" जब मैंने उसे बताया कि मेरे बॉस मेरे काम से बहुत खुश हैं और पिछले महीने ही मुझे 'बेस्ट वर्कर' का अवार्ड मिला है तो वह बहुत खुश हो गया था, "तब तो वो तुम्हें अच्छी रेटिंग देंगे तुम्हारा प्रमोशन भी हो सकता है। मैं तो यही चाहता हूँ। तुम सिफारिश करोगी तो मैं तुम्हारी कम्पनी जॉइन कर लूँगा।"

मेरे हाँ करते ही वो खुशी से उछल पड़ा था,

"वैरी गुड्ड, तुम जैसी ब्यूटी विद ब्रेन लड़की को पाकर मैं बहुत खुश हूँ, अब मुम्बई आ रहा हूँ, मज़ा आयेगा।"

मैं दिल से शीतल के लिए खुश थी।दुआ कर रही थी कि वह हमेशा सुखी रहे।

शीतल लाख बहाने बनाएँ आजकल अर्णव उसे लेकर मुम्बई घूम रहा है लेकिन शीतल भी अपनी लक्ष्मण रेखा के प्रति सजग है। देर रात तक अर्णव के साथ रुकने के प्रस्ताव को वो हमेशा सावधानी से नकारती रहती है। एक दिन मैंने उसे अपने नज़रिये से समझाने की कोशिश की थी,

"शीतल अब तुम्हारा विवाह होने वाला है फिर ये सब बहानेबाज़ी क्यों कर रही हो?" जवाब सुनकर मैं हैरान रह गई थी, वो कह रही थी, “विवाह होने वाला है दी, लेकिन अभी तक कोई तारीख तय नहीं हुई है, तय हो जायेगी तब भी विवाह से पहले... कुछ नहीं। मेरे फण्डे बिल्कुल क्लीयर हैं।"

"यार तू इस सदी की अजूबा लड़की है। इतनी भी क्या पाबंदी? यहाँ देख रही है ना, बिना विवाह के भी सब कुछ चल रहा है।"

वह गम्भीर हो गई थी, "चलने दीजिए दीदी सबकी अपनी-अपनी मर्जी है हम किसी पर अपने विचार थोप तो नहीं सकते पर अपनी जिंदगी तो अपने हिसाब से चला सकते हैं ना?"

मुझे पता है खुले विचारों के पक्षधर अर्णव और शीतल के बीच इन्हीं बातों को लेकर रूठा-रूठी चलती रहती है। इन सब बातों से परे एक दिन शीतल चहकती हुई घर आयी। आज उसका चेहरा खुशी से खिला हुआ था। उसका प्रमोशन जो हो गया था। "शीतल आज तो तुम्हें सब दोस्तों को पार्टी देनी ही होगी अर्णव को भी यहीं बुला लो।"

मेरी बात अनसुनी करती वो अपनी रौ में बोलती चली गई, "आज मैं अर्णव को उसी के घर जाकर सरप्राइज़ देना चाहती हूँ। ये वीडियो कैम भी साथ ले जा रही हूँ। मेरे प्रमोशन को लेकर वो बहुत चिंतित रहता है, जब मैं उसे ये गुड्ड न्यूज़ दूंगी तब उसके चेहरे के एक्साइटिंग रिएक्शन इस कैमरे में हमेशा के लिए कैद कर लूंगी आप सबको पार्टी बाद में दूंगी।" कुछ ही देर में बनसंवर कर निकली खिली-खिली सी वह हाथ हिलाती अर्णव से मिलने चली गई।

उसके जाते ही हम भी अपने तरीके से जश्न मनाने लगे। केवल अविनाश ही था जो गुमसुम सा बैठा था। मैं मुस्कराई,

"अविनाश बाबू ये देवदास का रूप अब त्याग दो और इस सच को स्वीकार कर लो कि जल्दी ही शीतल का विवाह होने जा रहा है ? तुम क्यों नहीं अपनी खुशी दूसरी जगह ढूँढ़ लेते।"

अविनाश ख़्वाबों की दुनिया से बाहर आ गया था।

"जानता हूँ वो ख़ुश है इसीलिए मैं भी ख़ुश हूँ लेकिन ना जाने क्यों अर्णव मुझे शीतल के लिए उपयुक्त नहीं लगता। खैर छोड़ो, अनु तुम बताओ। इतनी सरलसहज अपने विचारों पर अडिग रहने वाली लड़की आज के ज़माने में इतनी आसानी से मिल सकती है। वैसे तम मानो या ना मानो। कभी किन्हीं खास मौकों पर मैंने शीतल की आँखों में अपने लिए कुछ तो ऐसा देखा है... ये बात अलग है कि उसने अपने मन के भावों को दबाकर अपने घरवालों के सामने सरेंडर कर दिया.... वैसे अच्छा ही किया...।"

मैं अविनाश के मन का हाल समझ रही थी इसलिए उसके मन के उद्गारों पर अपनी विशेष टिप्पणी नहीं की। बोझिल हुए वातावरण को हल्का करने के उद्देश्य से मैंने म्यूज़िक ऑन कर दिया था। धीरे-धीरे सभी सुरूर में आ गये थे कि तभी अचानक शीतल आ गई। उससे भी ज़्यादा हैरानी की बात ये हुई कि हम लोगों की तरफ देखे बिना ही वो सीधी अपने कमरे में चली गई । मैं उसके पीछे-पीछे कमरे में चली आई,

"क्या हुआ शीतल तू इतनी जल्दी वापिस कैसे आ गई क्या अर्णव कहीं बिज़ी था।" मेरी बात सुनते ही शीतल मेरे गले लगकर फफक-फफककर रोने लगी। उधर ड्राइंगरूम में चल रहा म्यूज़िक बंद हो गया था। मामले की गंभीरता को समझते हुए मेघना उसके लिए गर्म-गर्म कॉफी बना लायी लेकिन शीतल ने उसे हाथ भी नहीं लगाया।" बिना किसी भूमिका के वो अपने साथ घटी घटना के बारे में बताती चली गई,

"मैंने सोचा था कि आज अचानक पहुँचकर अर्णव को चकित कर दूंगी और उसकी सारी खुशी इस वीडियो कैमरे में हमेशा के लिए कैद कर लूँगी। उसके घर पहुँची तब वह अपने लिए विहस्की का पैग बना रहा था। मुझे मुँह लटकाये देख वह हैरान रह गया, "क्या हुआ शीतल सब ठीक तो है ना यूँ अचानक बिना किसी ख़बर के मेरे घर में.... तुम्हारा मुँह उतरा हुआ क्यों है, रुको मैं अभी आता हूँ, थोड़ी देर में वो मेरे लिए काफी बनाकर ले आया। तब तक मैंने वीडियो कैमरा सही एंगल में फिट कर दिया था।" मैंने कहा, "तुम तो कह रहे थे कि तुम ड्रिंक नहीं करते कभी-कभी दोस्तों के बीच ज़बरदस्ती लेनी पड़ती है।"

वो मुस्कराया, "आज अकेले बैठा था तो यूँ ही, यार वन्स इन ए ब्लू मूड कोई बुराई नहीं है, तुम बताओ क्या बात है?"

मैंने चेहरे पर उदासी लाते हुए गम्भीर स्वर में कहा,

"अर्णव एक बुरी ख़बर है। मेरी जगह रचना का प्रमोशन हो गया है ?"

"क्या!?" अचरज़ और अविश्वास से मुझे देखता हुआ वह एक ही झटके में उठकर खड़ा हो गया, "तुम तो कह रही थीं कि बॉस से तुम्हारे सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं फिर उसने तुम्हारी जगह रचना को अच्छी रेटिंग कैसे दे दी, तुम्हीं बता रही थीं कि कई बार देर होने पर वो तुम्हें अपनी कार से घर छोड़ने भी आता था।"

"हाँ हमारा रूट एक ही है तो कभी-कभी रात को वो मुझे और रचना दोनों को ही घर छोड़ते हुए निकल जाते थे? लेकिन इससे प्रमोशन का क्या सम्बन्ध?"

वह भड़क उठा, "इतनी दूध की धुली मत बनो। मेरे साथ तुम्हारा विवाह होने वाला है फिर भी यहाँ रात को देर तक रुकने में तुम आनाकानी करती रहती हो लेकिन बॉस के साथ गुलछर्रे उड़ा कर देर रात घर जाती हो। क्या मैं समझता नहीं हूँ। इतना बेवकूफ भी नहीं हूँ जितना तुम मुझे समझती हो।"

मैं स्तब्ध रह गई थी, "ये क्या कह रहे हो अर्णव? तुम तो इसी फील्ड में हो तुम्हें तो पता है कि प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए देर-सवेर अक्सर होती रहती है। मैं कितनी मेहनत और लगन से अपना काम कर रही हूँ.....''

मेरी बात बीच में ही काटकर वह चिल्लाया, "मैंने सोचा था सुन्दर सूरत के साथ मुझे एक समझदार लड़की जीवन साथी के रूप में मिल रही है लेकिन मुझे तुम परले दरज़े की बौडम लग रही हो। सदियों पुरानी सोच वाली चरित्रवान, ज़ाहिल.... जिस पोस्ट पर हो उसी पर चिपकी रहोगी, तुम्हारी जैसी पागल लड़की का प्रमोशन भला होगा भी तो कैसे ? बिना कुछ दिए, कुछ पाने की आशा कैसे कर सकती हो?"

उसके शब्द मेरे कानों में पिघले सीसे की तरह उतरते चले गये थे। वो चिल्ला रहा था, "मुझे लगता है कि तुमसे विवाह के लिए हाँ कहकर मैंने बहुत बड़ी ग़लती कर दी है। तुम्हारी भाभी तो तुम्हारी तारीफ़ों के पुल बाँध रही थीं, ना जाने कैसे मैं अपनी दूर के रिश्ते की इस बहिन की बातों में आ गया।"

मैं अपमान और क्रोध से पागल हुई जा रही थी। उसकी बातें सुनकर मैंने अपने हाथ से सगाई की अंगूठी उतार कर मेज़ पर रख दी और चिल्लाई, “आज और इसी पल से मैं तुमसे अपना रिश्ता ख़त्म करती हूँ, मेरी तरफ से तुम आज़ाद हो अपने विचारों से मेल खाती किसी भी लड़की से विवाह के लिए... और मैं भी आज़ाद हूँ।"

वह कुटिलता से चीखा।

"इतना घमंड...? लड़की हो अपनी औक़ात में रहो। तुम्हारी इतनी बदनामी करूंगा कि कहीं किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं रहोगी। अब तो तुम्हारे घर वाले नाक भी रगड़ेंगे ना तब भी ये रिश्ता स्वीकार नहीं करूँगा।" कहते हुए उसने भी अपनी अंगुली से सगाई की अंगूठी निकाल कर फ़र्श पर फेंक दी। अपनी अंगूठी उठाते हुए मैं घृणा और अपमान से पागल हो उठी थी।

“छि: मुझे तुम्हारे जैसे तथाकथित खुलेविचारों के इंसान की सोच पर घिन्न आती है। इतना ज़हर भरा है तुम्हारे हँसते-खिलखिलाते चेहरे के भीतर... सच तो ये है कि मुझ जैसी बौडम-ज़ाहिल लड़की का प्रमोशन हो गया है और वो भी अपने उसूलों पर चलकर... अपनी मेहनत के दम पर। मैं तो तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहती थी इसीलिए मज़ाक कर रही थी लेकिन मेरे इस झूठ ने तुम्हारा असली चेहरा दिखाकर मुझे सुखद सरप्राइज़ दिया है। जीवन भर नर्क की सज़ा भोगने से बचा लिया। मैंने तो कम्पनी में तुम्हारी जॉब की भी बात कर ली थी, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था।"

मेरी बात सुनकर उसका मुँह फक्क हो गया था। मरी हुई आवाज़ में रिरियाया, "क्या कह रही हो शीतल?"

"सच कह रही हूँ।" मैंने झपटकर वीडियो कैमरा उठाया और उसके कमरे से बाहर निकल गई। पीछे से उसकी आवाज़ आ रही थी,

"शीतल सुनो तो मैं भी तो इतनी देर से मज़ाक ही कर रहा था...''

"मज़ाक?... मज़ाक... तो मेरे साथ हुआ है ना अनु दी" कहती वह हाँफ गई थी।अचानक ही वह बिस्तर पर लुढ़क गई। हम सब उसकी हालत देखकर हैरान रह गये थे। वो बेहोश हो गई थी। हम डर गये थे ऐसे में अविनाश आगे आया उसकी सहायता से शीतल को पास के अस्पताल ले जाया गया सुबह से उसने कुछ नहीं खाया था। उसका ब्लड प्रेशर बहुत कम हो गया था। तुरन्त इलाज़ शुरू हो गया ड्रिप चढ़ रही थी कुछ ही देर में उसे होश आ गया था। हम सबने चैन की सांस ली। इस बीच मैंने उसकी भाभी से बात कर संक्षेप में सारी बात समझा दी थी। रात की फ्लाइट से ही उसके भैया भाभी आ गये. अविनाश अपनी कार से उन्हें सीधे अस्पताल ले आया था। अर्णव की बेहूदी बातें और बहन की ऐसी हालत देखकर भैया क्रोधित हो उठे थे। इस बीच अविनाश और उनकी काफी बातचीत हुई। उनके खाने-पीने से लेकर उनके रात में सोने का इंतज़ाम भी अविनाश ने अपने कमरे में किया था। भाभी साये की तरह शीतल के साथ रहीं। उसकी हालत देखकर वे बहुत दुखी थीं। उन्होंने तो अपनी तरफ से शीतल के लिए एक अच्छा रिश्ता सुझाया था। किसी के चेहरे को देखकर उसकी अंदरूनी सोच का अंदाज़ा कैसे लगाया जा सकता है। दूसरे दिन शीतल को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी। उसके भैया भावुक हो रहे थे।

"दरअसल हमारी शीतल । सभी तरह के छल-प्रपंच से दूर, अपने उसूलों पर चलने वाली खुद्दार लड़की है, "सही कह रहे हैं भैया आप" अविनाश कह रहा था। भैया शीतल को देखकर मुझे अपनी स्मृति दीदी याद आ जाती हैं। बिल्कुल ऐसी ही हैं। वो बंगलौर में इन्फोसिस कम्पनी में एच.आर. हैं।" उसकी बात ध्यान से सुनती शीतल की भाभी बोल उठीं क्या नाम बताया आपने स्मृति... स्मृति दत्ता तो नहीं? अविनाश हैरान रह गया, "हाँ क्या आप उन्हें जानती हैं ?"

हाँ मैं भी तो इन्फोसिस में ही हूँ स्मृति मेरी घनिष्ठ मित्र है। चार साल से हम साथ ही काम कर रहे हैं, अक्सर कहती रहती है कि मेरा भाई मुम्बई में अच्छी जॉब कर रहा है, उसके लिए कोई सीधी सरल लड़की हो तो बताना! लेकिन तुम तो इतने समय से मुम्बई में हो, खुद ही चुनाव कर लिया होगा? वैसे इसमें कोई बुराई भी नहीं है।"

प्रश्नात्मक नज़रों से अविनाश को देखती उनकी नज़र का पीछा करती अनु ने पहली बार अविनाश को लड़कियों की तरह शर्माते हुए देखा था। इसके आगे की कहानी बेहद संक्षिप्त थी...।

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