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रहस्यमयी टापू--भाग (१७)

रहस्यमयी टापू--भाग(१७)

इसका तात्पर्य है कि शंखनाद ने सबके जीवन को हानि पहुंचाई हैं,अब हम सबके प्रतिशोध लेने का समय आ गया है, शंखनाद और चित्रलेखा ने बहुत पाप कर लिए,अब उनके जीवन से मुक्ति लेने का समय आ गया है, अघोरनाथ जी क्रोधित होकर बोले।।
हां, बाबा! इतना पाप करके,इतने लोगों की हत्या करके अब तक कैसे जीवित है वो,बकबक ने कहा।।,
हां..बकबक,मैं भी यही सोच रहा था,सुवर्ण बोला।।
परन्तु, क्या हो सकता हैं अब,किसी के मस्तिष्क मे कोई विचार या कोई उपाय हैं,हम केवल सात लोंग हैं और शंखनाद इतना शक्तिशाली, हम किस प्रकार उसे पराजित कर सकते हैं, उसके साथ चित्रलेखा और सूर्यदर्शन भी हैं,हमें तो ये भी अभी ज्ञात नहीं कि सच मे चित्रलेखा के प्राण उस गिरगिट में हैं जो उसने अपने उस घर में छिपा रखा हैं, मानिक चंद बहुत ही अधीर होकर बोला ।।
आप!सत्य कह रहे हैं,मानिक चंद! इस समस्या का कोई भी समाधान नहीं सूझ रहा हैं, सुवर्ण ने कहा।।
अब जो भी हो परन्तु अभी तो सूर्य अस्त हो चुका हैं और रात्रि होने वाली हैं, रात्रि भर के विश्राम के लिए कोई उचित स्थान खोजकर विश्राम करते हैं, प्रातःकाल उठकर विचार करेंगे कि आगें क्या करना हैं?राजकुमार विक्रम बोले।।
सब उचित स्थान खोजकर विश्राम करने लगे,आज अमावस्या की रात्रि थी इसलिए चन्द्र का प्रकाश मद्धम था,घना वन जहाँ केवल साँय साँय का स्वर ही सुनाई दे रहा था,यदाकदा किसी पंक्षी,झींगुर का स्वर सुनाई दे जाता और झरने के गिरते हुए जल का स्वर कुछ उच्च स्वर से गिर रहा था,रात्रि का दूसरा पहर ब्यतीत हो चुका था,बकबक पहरा दे रहा था।।
एकाएक उसे पत्तों की सरसराहट का स्वर सुनाई दिया, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कोई रेंग रहा हैं, बकबक को भय का अनुभव हुआ, परन्तु कुछ समय पश्चात वो स्वर सुनाई देना बंद हो गया,बकबक ने सोचा होगा कोई वनीय जीव और वो पुनः निश्चिंत होकर पहरा देने लगा।।
तभी बकबक को अपने पैरों पर किसी वस्तु का अनुभव हुआ, वो कुछ सोंच पाता उससे पहले ही वो वृक्ष से उल्टा लटक चुका था और अब उसने बचाओं... बचाओ... का स्वर लगाना शुरू किया, उसका स्वर सुनकर सभी जागे और बकबक को छुड़ाने का प्रयास करने लगे,परन्तु तब तक वो सब भी वृक्षों के तनों से बांधे जा चुके थे, अंधकार होने से कुछ ठीक से दिखाई नहीं पड़ रहा था,सब दुविधा मे थे कि ये सब क्या हो रहा हैं।।
तभी मानिक चंद क्रोधित होकर बोला__
मैंने कहा था ना बाबा ! कि शंखनाद अवश्य कुछ ऐसा करेगा कि हम सब विवश हो जाए और हमसे जीतने के लिए फिर उसने अपनी शक्तियां भेंजी हैं, जिससे हम अपने उद्देश्य मे सफल ना हो सकें, जिससे वो हमारी विवशता का लाभ उठाकर हमारी हत्या कर सकें।।
हो सकता हैं कि ये शंखनाद का नहीं ,किसी और का कार्य हो,अघोरनाथ जी बोले।।
एक संकट समाप्त नही होता कि दूसरा संकट आकर खड़ा हो जाता हैं, पता नहीं कौन सी अशुभ घड़ी थी जो मै इस द्वीप पर आया, मानिक चंद पुनः क्रोध से बोला।।
तभी एक प्रकाश सा हुआ और एक छोटा नर पिशाच प्रकट हुआ और सबके समक्ष आ खड़ा हुआ, जिसकी त्वचा लसलसी थी,जिसके कान का आकार बहुत बड़ा था ,नाक चपटी,हाथ पैर छोटे छोटे और पेट मटके के समान था,सबके समक्ष आकर उसने पूछा।।


आप सब अभी किसके विषय में कह रहें थे___
तुम हो कौन?ये पूछने वाले,मानिकचंद गुस्से से बोला।।
कृपया,आप बताएं, कहीं आप दृष्टि बंधक(जादूगर) शंखनाद के विषय मे वार्तालाप तो नहीं कर रहें थे।।
परन्तु तुम कैसे जानते हो?शंखनाद को,सुवर्ण ने पूछा॥
क्योंकि शंखनाद हमारा भी शत्रु हैं, उस नर पिशाच ने कहा।।
परन्तु ,पहले ये बताओं कि तुम हो कौन?राजकुमार विक्रम ने पूछा।।
मैं इस स्थान के नरपिशाचों का राजा घगअनंग हूँ, मैं तो केवल अपना कर्तव्य कर रहा था,अपनी प्रजा की रक्षा करना मेरा धर्म हैं और मै तो केवल अपना धर्म निभा रहा था,आप सब को मेरे कारण इतना कष्ट उठाना पड़ा,उसके लिए मैं आप सबका क्षमाप्रार्थी हूं, घगअनंग बोला।।
यद्पि आपका परिचय पूर्ण हो गया हो महाशय तो कृपया, मुझ बंधक पर भी अपनी कृपादृष्टि डालें, कब तक ऐसे उल्टा लटका कर रखेगें मुझे, बकबक बोला।।
बकबक की बात सुनकर सब हंसने लगे।।
क्षमा करें, मान्यवर,मै तो भूल ही गया लीजिए अभी आप मुक्त हुए जाते। है, राजा घगअनंग बोले।।
और घगअनंग ने अपनी ताली बजाई और बहुत सी नर पिशाच सेना उपस्थित हो गई, राजा घगअनंग ने आदेश दिया कि सभी को मुक्त कर दिया जाए और सभी सैनिकों ने राजा घगअनंग के आदेश का पालन किया।।
सबके मुक्त हो जाने पर राजा घगअनंग ने अघोरनाथ जी से कहा___
कहिए, महाशय मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं?
बस,इतनी सी कि अगर शंखनाद के विषय में अगर आपको कोई जानकारी हो तो हमें दीजिए, जिससे हम सब का प्रतिशोध सरल हो जाए,अघोरनाथ जी ने घगअनंग से कहा।।
जी,अवश्य, किन्तु पहले आप सब हमारें निवास स्थान चलकर कुछ स्वल्पाहार करें, आप सबका स्वागत करने मे मुझे अत्यंत खुश मिलेंगी,घनअनंग बोले।।
आप इतना आग्रह कर ही रहें तो चलिए, आपके निवास स्थान चलते हैं, अघोरनाथ जी बोले।।
ये सब देखकर मानिक चंद बोला।।
ये क्या बाबा, इन सब पर आपने विश्वास भी कर लिया, इन्होंने हमसे छल किया तो ,पुनः बंदी बना लिया तो,मानिक चंद मन मे संदेह लाते हुए बोला।।
सालों हो गए, मानवों को देखते हुए, कपटी और सज्जन मे अन्तर कर सकता हूँ, मानिक बेटा,ये केश सूर्य के प्रकाश में श्वेत नहीं हुए हैं,अघोर नाथ जी ने मानिक चंद से कहा।।
और अघोरनाथ जी सभी के साथ घगअनंग के निवास स्थान की ओर चल दिएअभी रात्रि बीती नहीं थीं,मार्ग बहुत ही अंधकारमय था,तभी बकबक ने अपना प्रकाश वाला पत्थर निकाला, जिससे मार्ग मे प्रकाश फैल गया, सभी घगअनंग के निवास स्थान पहुंचे।।
बहुत ही सुंदर स्थान था,विशाल विशाल वृक्षों के तनों में छोटे छोटे घर स्थित थे,जो प्रकाश से जगमगा रहें थें, उनकी छटा ही निराली थी,उनकी शोभा देखते ही बन रही थी,जो एक बार देखें मोहित हो जाए।।



सभी उस स्थान की निराली छटा देखकर मोहित हो उठे,बारी बारी से महिला नर पिशाचिनी आईं और सबका स्वागत किया, जो भी उनके पास खाने योग्य आहार था,उन्होंने उपस्थित किया, घगअनंग की प्रजा बहुत प्रसन्न थी,बहुत समय पश्चात उनके निवास स्थान पर अतिथि आएं थे,कुछ संगीत और नृत्य के भी कार्यक्रम भी किए गए, बहुत दिनों पश्चात् सारन्धा के मुख पर हंसी देखकर विक्रम भी प्रसन्न था।।
विक्रम बस सारन्धा को ही निहारे जा रहा था,उसकी दृष्टि केवल सारन्धा की ओर थी,उसकी ऐसी अवस्था देखकर, सुवर्ण ने विक्रम को छेड़ते हुए कहा___
और मित्र!आनंद आ रहा ना।।
और विक्रम ने हल्की हंसते हुए, दूसरी ओर मुख फेरते हुए सुवर्ण से कहा___
मित्र! आप भी,कैसी बातें कर रहें हैं?
हां...हांं..मित्र, ये प्रेम होता ही कुछ ऐसा हैं,आप कितना भी छुपाएं, सबको आपकी दृष्टि से ज्ञात हो ही जाता हैं, सुवर्ण ने विक्रम से कहा।।
सच,मित्र! मै सारन्धा से प्रेम करने लगा हूँ किन्तु उनकी ऐसी अवस्था देखकर अपने हृदय की बात कहना अच्छा नहीं लगा,विक्रम ने अपने हृदय की बात सुवर्ण को सुनाते हुए कहा।।
कोई बात नहीं मित्र! अभी राजकुमारी सारन्धा की मनोदशा स्थिर नहीं हैं, बहुत बड़ा आघात पहुंचा हैं उन्हें, समय रहतें, वो अवश्य ही आपके निश्छल प्रेम को समझने का प्रयास करेंगी, आप अकारण ही चिंतित ना हो,सुवर्ण ने विक्रम को सांत्वना देते हुए कहा।।
हांं,अवश्य ही ऐसा होगा, मुझे अपने प्रेम पर विश्वास हैं, विक्रम ने सुवर्ण से कहा।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___