Rahashymayi tapu - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

रहस्यमयी टापू--भाग (१८)

रहस्यमयी टापू....!!--भाग(१८)

घगअनंग जी के निवास स्थान पर सभी रात्रि को विश्राम करने लगें, तब घग अनंग जी बोले_____
मैं अब आप सब को शंखनाद के सभी रहस्यों से अवगत करवाता हूँ!!
जी,हम सब यही ज्ञात करना चाहते थे,आपका बहुत बहुत आभार रहेगा हम सब पर क्योंकि वनदेवी शाकंभरी की स्थिति बहुत ही दयनीय थी,जितने शीघ्र हमें शंखनाद के रहस्य ज्ञात होगें, उतने ही शीघ्रता से हम उनकी सहायता कर पाएंगे एवं हम जितने भी सदस्य हैं उनमें से सभी को शंखनाद ने कष्ट पहुँचाया हैं,अघोरनाथ जी बोले।।
जी,अब उस शंखनाद की मृत्यु निश्चित हैं, जो रहस्य मुझे ज्ञात हैं,मैं आपको बता देता हूँ और कुछ रहस्य आपको हमारा गुप्तचर उड़नछू बताएगा, तभी ज्ञात हो सकेगा कि उसे शंखनाद के किन किन रहस्यों के विषय में ज्ञात हैं,घगअनंग जी बोले।।
जी,कुछ तो मुझे भी ज्ञात हैं क्योंकि मै चित्रलेखा के निवास स्थान पर रह चुका हूँ, परन्तु आश्चर्य की बात है कि उसने मुझे कोई भी हानि नहीं पहुँचाई,मानिक चंद बोला।।
किन्तु, आप वहां रहकर क्या क्या ज्ञात कर पाएं, घगअनंग जी ने पूछा।।
यहीं कि चित्रलेखा के प्राण किसी बक्से मे गिरगिट के रूप में बंद हैं और वो बक्सा उसने तलघर मे कहीं छिपा रखा हैं और ये तो सबको ज्ञात हैं कि शंखनाद मानवों के हृदय से बना एक तरल पदार्थ बनाता हैं जिसे पीकर मृत्यु उसके निकट नहीं आती और सुंदर कन्याओं की त्वचा से बना एक प्रकार का पदार्थ बनाता हैं जो वो अपनी त्वचा पर लगाता हैं जिससे वो वृद्धावस्था मे नहीं पहुंच रहा हैं,मानिक चंद बोला।।
परन्तु ये अभी तक किसी को ज्ञात नहीं है कि शंखनाद के प्राणों को उसने किस स्थान और किसके भीतर सुरक्षित कर रखा हैं? घगअनंग जी बोले।।
ये तो सत्य हैं, परन्तु ज्ञात कैसे किया जाए? अघोरनाथ जी बोले।।
मै अभी अपने गुप्तचर उड़नछू को किसी सैनिक द्वारा बुलवाता हूँ, वो सच्चाई बता सकता हैं, अपने निवास स्थान मे विश्राम कर रहा होगा, घगअनंग जी बोले।।
और घगअनंग जी ने अपने एक सैनिक को भेजकर उड़नछू को बुलवा भेजा, उड़नछू बहुत ही गहरी निद्रा मे था और उसे अभी भी निद्रा ने घेर रखा था,घगअनंग जी के आदेश पर उसे विवशता वश आना पड़ा,उसनें सर्वप्रथम घगअनंग जी को प्रणाम किया और शीघ्र बुलवाने का कारण पूछा___
लगता हैं, उड़नछू,अभी निद्रा रानी ने तुम्हें घेर रखा हैं, घगअनंग जी ने पूछा।।
हां,महाराज! अभी मेरा विश्राम पूर्ण ही कहाँ हुआ हैं, इतने दिनों के उपरांत लौटा था कि कुछ क्षण विश्राम करूँगा, परन्तु आपने विश्राम ही कहाँ करने दिया,उड़नछू ने घगअनंग जी से कहा।।
इन सबके के लिए अब एक पल का भी बिलम्ब करना उचित नहीं हैं,उधर वनदेवी शाकंभरी संकट में हैं, कदाचित् तुम इन्हें शंखनाद के सभी रहस्य बता दो तो प्रातःकाल ही शाकंभरी की सहायता हेतु निकल पड़ेगे, घगअनंग जी ने उड़नछू से कहा।।
जी महाराज, शंखनाद बहुत ही धूर्त और पाखंडी हैं,ये तो मुझे भी ज्ञात हो चुका हैं कि वनदेवी शाकंभरी के जादुई पंखो को शंखनाद ने एक विशाल बरगद के वृक्ष के तने मे एक बक्से के भीतर छुपा रखा हैं और उस वृक्ष को जादुई बाधाओं द्वारा बांध रखा हैं,उस बांधा को तो कोई जादूगर ही तोड़ सकता हैं, उड़नछू बोला।।
थोड़ा बहुत जादू तो मुझे भी आता हैं, मैं भी कुछ दिन रहा था शंखनाद के साथ,तभी सीखा हैं लेकिन शंखनाद जितना श्रेष्ठ नहीं हूँ, राजकुमार सुवर्ण बोला।।
परन्तु उसने अपने प्राणों को किस स्थान और किसके अंदर छुपा रखा हैं, बकबक ने पूछा।।
तो सुनिए, जहाँ उसका निवास स्थान हैं, वहाँ एक जलाशय हैं, उस जलाशय के बीचोंबीच एक स्त्री की मूर्ति हैं और उस स्त्री के हाथों में एक पत्थर का उल्लू हैं उस उल्लू के भीतर ही शंखनाद के प्राण हैं, उड़नछू बोला।।
तो ये तो बहुत ही सरल हुआ,जो अच्छा तैराक होगा वो इस कार्य मे सफल होगा, राजकुमार विक्रम बोला।।
इतना भी सरल नहीं हैं, उस जलाशय में ना जाने कितने प्रकार की बाधाएं डाल रखीं हैं शंखनाद, जादू और तंत्र विद्या दोनों प्रयोग किया गया हैं इस कार्य में,उड़नछू बोला।।
तंत्र विद्या मे तो बाबा जैसा कोई नहीं और थोड़ा बहुत जादू तो मैं कर ही लूँगा परन्तु फिर भी शंखनाद से जीतने के लिए, इतनी शक्तियां और कहाँ से आएंगी,राजकुमार सुवर्ण बोला।।
एक उपाय और हैं,उड़नछू बोला।।
वो क्या? बकबक ने पूछा।।
वो ये कि जलाशय के निकट ही शंखनाद के माता पिता की समाधियां बनी हैं और शंखनाद कभी भी उन्हें नहीं छूता, क्योंकि शंखनाद के माता पिता बहुत ही सात्विक विचारों के थे,उन्हें शंखनाद के ये सब कार्य पसंद नहीं थे इसलिए,वो उन समाधियों को नहीं छू सकता और अगर कभी भूलवश छू लिया तो भस्म हो जाएगा, उड़नछू बोला।।
ये तो बहुत अच्छी बात बताई,अघोरनाथ जी बोले।।
हां,बस मुझे इतना ही ज्ञात है महाराज, अब मैं विश्राम करने जाऊँ और मैं सोच रहा था कि मैं भी इनके साथ चला ही जाता हूँ, मेरे इन सब के साथ जाने से इनका कार्य थोड़ा सरल हो जाएगा, उड़नछू बोला।।
हां..हां. क्यों नहीं, उड़नछू, तुमने तो मेरे मन की बात कह दी,घगअनंग जी बोले।।
तो फिर सब अब विश्राम करते हैं,कल बहुत मेहनत करनीं हैं,मानिक चंद बोला।।
और सब विश्राम करने लगें, प्रातःकाल पंक्षियों के कलरव से सब जाग उठे और स्नान ध्यान करके गंन्तव्य की ओर निकल पड़े।।
उड़नछू बोला, बाबा! क्या हम छोटे मार्ग से चलें जिससे हम शीघ्रता से शाकंभरी वनदेवी के पास पहुंच सकते हैं।।
जैसा तुम्हें उचित लगें, उड़नछू, हम सब को तो वहीं बड़ा मार्ग ज्ञात हैं जहां से हम आए थें।।
परन्तु उस मार्ग में दो बाधाएँ हैं, उड़नछू बोला।।
वो क्या हैं?बकबक ने पूछा।।
रास्ते में एक जादुई बोलने वाला वृक्ष मिलेगा जिसके आंखें भी हैं और मुंह भी और वो हमसे पूछेगा कि कहाँ जाना हैं? तो हम सब को एक साथ उत्तर देना हैं कि शाकंभरी के पास नहीं जाना और कहीं भी चले जाएंगें, उड़नछू बोला।।
ये कैसा उत्तर हुआ भला! नीलकमल ने पूछा।।
क्योंकि वो वृक्ष हम से कहेगा, नहीं तुम्हें तो शाकंभरी के पास ही जाना होगा और अपनी शाखा से एक एक पत्ते हम सब को देंगा जिसे हमें आगें मिलने वाली चुडै़ल को देने हैं, वो उन जादुई पत्तो का उपयोग अपना जादुई काढ़ा बनाने में करती है, जिससे वो खुश हो जाएगी और हमेँ आगे जाने देगीं, उड़न छू बोला।।
अच्छा तो ये बात हैं, बकबक बोला।।
और सब आगे बढ़ चलें,चलते चलते उन्हें वहीं चेहरे वाला वृक्ष मिला।।
उस पेड़ ने कहा,ठहरो!!
तब उड़नछू ने अभिनय करते हुए कहा,कौन..कौन हैं वहाँ?
मैं...मैं हूँ यहाँ.. उस वृक्ष ने उत्तर दिया।।
मैं कौन? उड़नछू ने पुनः पूछा।।
मै जादुई वृक्ष,कहाँ जा रहे हो तुम लोग,?उस वृक्ष ने पूछा।।
हम लोग शाकंभरी वनदेवी से मिलने नहीं जाना चाहते,सबने एक साथ उत्तर दिया।।
लेकिन तुम लोगों को जाना पड़ेगा,ये मेरी आज्ञा हैं और ये रहेंं, मेरी शाखाओं के पत्ते,उस मार्ग पर तुम्हें एक चुडै़ल मिलेगी, ये पत्ते उसी को दे देना,उस वृक्ष ने कहा।।
सबने एक एक पत्ता उठा लिया और जादुई वृक्ष को धन्यवाद देकर आगें बढ़ चले।।
आगे जाकर मार्ग में उन्हें वहीं चुड़ैल काढ़ा बनाते हुए दिखी।।
उसने भी पूछा, तुम सब कहाँ जा रहे हो।।
उड़नछू ने कहा,हम वनदेवी शाकंभरी के पास जा रहे हैं,हमें कृपया जाने दे।।
ठीक है जाओ,मैने कब रोका हैं, बस तुम लोग मुझे वो पत्ते देदो,जो तुम्हें जादुई वृक्ष ने दिए हैं।।
सबने अपने अपने पत्ते उस चुडै़ल को दे दिए,चुडै़ल बहुत प्रसन्न हुई और सबको जाने दिया।।
कुछ समय तक उस मार्ग पर चलने के पश्चात् वो सब शाकंभरी वनदेवी के समीप पहुंच गए, शाकंभरी ने जैसे ही बकबक को देखा अत्यधिक प्रसन्न हुई।।
अच्छा नहीं किया आपने,शाकंभरी, आप इतने कष्ट में थीं और मुझे सूचित भी नहीं किया, बकबक ने शाकंभरी से शिकायत करते हुए कहा।।
मेरे निकट कोई भी नहीं था जिससे मैं तुम तक सूचना पहुंचा कर सहायता मांग लेतीं, ये सब आए इन्होंने मेरी ब्यथा सुनी,तब मैने इन्हें सब बताया।।
तो ये लो उड़ने वाले घोड़े का ताबीज इसे इसी क्षण पहन लो और तुम कहो तो आज रात्रि मे ही शंखनाद पर आक्रमण कर देते हैं, बकबक ने कहा।।
परन्तु क्या रात्रि का समय आक्रमण के लिए उचित रहेगा? राजकुमार विक्रम ने पूछा।।
हां..हां क्यों नहीं, अघोरनाथ जी बोल।।
परन्तु, अभी आप लोग बहुत थक चुके हैं, कुछ क्षण विश्राम करें,अर्धरात्रि के समय हम ये कार्य प्रारम्भ करेगें, शाकंभरी वनदेवी बोली।।

क्रमशः__
सरोज वर्मा__