naina ashk na ho - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

नैना अश्क ना हो... - भाग 16

प्रशांत ने बहुत ही ज्यादा भाग - दौड़ कर नव्या की ज्वाइनिंग की सारी
फॉर्मेलिटी पूरी करवा दी । शांतनु जी एक जगह बैठे सारा कुछ देख रहे
थे । प्रशांत ने उन्हे अपनी जगह से हिलने भी नहीं दिया । नव्या के साथ
सारी कागजी कार्यवाही पूरी करवाता रहा। शीघ्र ही सब कुछ पूरा हो
गया। नव्या को ज्वाइनिंग लेटर मिल गया ।
परसो सुबह से ही नव्या की ट्रेनिग शुरू थी। मिलिट्री ट्रेनिंग एकेडमी की
बजाय नव्या के लिए स्पेशल ट्रेनिंग की व्यवस्था यही दिल्ली मै ही करवाई
गई थी।
नव्या और प्रशांत अंदर चले गए थे, शांतनु जी लाउंज में बैठे - बैठे पुराने
खयालों में खो गए। शाश्वत के बचपन से लेकर कैप्टन बनने तक के साथ -
साथ उसके प्यार को पाने का अनुरोध , उनका पहले इनकार फिर मानना,
उसके बाद उसकी शादी और नव्या का बहू बन कर उनके घर में आना, सब
कुछ चलचित्र की भांति उनके मस्तिष्क में चलने लगा।
अभी वो खोए ही थे कि प्रशांत और नव्या अचानक आ गए । प्रशांत ने कहा,
" अंकल सारी कार्यवाही पूरी हो गई । ज्वाइनिंग लेटर मिल गया है। चलिए
घर चलें । "
शांतनु जी अपने खयालों में इतने ज्यादा गुम थे कि उन्हें प्रशांत में शाश्वत की
छवि नजर आ रही थी । वो चौंक गए की शाश्वत उन्हे अंकल क्यों कह रहा
है?
अपने उन्हीं खयालों में गुम शांतनु जी प्रशांत से बोले, " आज शितू गुस्सा है
क्या ? जो पापा को अंकल बोल रहा है ।"
प्रशांत और नव्या शांतनु जी की बात सुन कर चौंक गए कि वो ये क्या बोल
रहे है?
प्रशांत ने प्रश्न पूर्ण निगाहों से नव्या को देखा।
नव्या ने बुदबुदा कर धीरे से कहा, " पापा शाश्वत के बारे मे सोच रहे है;
तुममें उन्हे शाश्वत नजर आ रहा । उनको डिस्टर्ब करना ठीक नहीं ; जो
वो कहते है आप वही करिए ।"
प्रशांत शांतनु जी को पापा कहने में हिचक रहा था। पर कोशिश कर
हकलाते हुए बोला, जी.... जी.... पा.. पा.. पापा काम हो गया गया घर
चले!"
कहते हुए शांतनु जी हाथ पकड़ लिया और सहारा देकर उन्हे लेकर बाहर
की ओर निकल आया।
बाहर आकर शांतनु जी को आगे की सीट पर बैठाया । गाड़ी के पीछे का
डोर खोल कर नव्या को बैठने को बोला और खुद ड्राइविंग सीट पर जा
बैठ और गाड़ी घर की और लिए चला।
घर पर निर्मला जी और शाश्वत की मां उन सबका इंतजार कर रही थी।
वो सब घर आ गए ।
सभी के बैठते ही तुरंत रघु पानी ले कर आया और प्रशांत से पूछा, "सर
खाना लगा दूं ?
प्रशांत , शांतनु जी से पूछने को उद्धत हुआ की खाना लगवा दे, पर क्या
संबोधन दे ये नहीं समझ पा रहा था; अंकल बोले या पापा बोले!
सिर्फ इतना ही पूछा, " खाना लगवा दूं ! आप खाएंगे ?
जब वो बोले, " हां शीतू पर थोड़ा रुक के पहले मुझे एक कप अदरक वाली
चाय पिलवा दे तब खाना खाऊंगा। बहुत थक गया हूं ।"
शांतनु जी के मुंह से प्रशांत के लिए शीतु सुन कर निर्मला जी, शाश्वत की मां
सब के सब चिंतित हो उठे। पर किसी ने भी उनके इस भ्रम को नहीं तोड़ा ।
नव्या का इशारा पा प्रशांत उन्हे 'पापा' का संबोधन देने लगा।
शांतनु जी अपनी चेतना खो चुके थे। वो बार बार प्रशांत को शाश्वत पुकार
रहे थे। ये देख नव्या और उसकी मां परेशान थी। कुछ देर बाद उन्हे जल्दी
ही खाना खिला कर प्रशांत ने उन्हे आराम करने के लिए रूम में पहुंचा
दिया ।
शांतनु जी को उनके कमरे में छोड़ कर प्रशांत ने अपने फैमिली डॉक्टर,
डॉक्टर शाह को फोन किया और शांतनु जी की सारी बातें बताई । डॉक्टर
शाह ने आश्वासन दिया और कहा, "कि कभी - कभी जब कोई अपना
अचानक बिछड़ जाता है तो , इंसान किसी और में भी उसका प्रतिबिंब
देखता है। पर चिंता की कोई बात नहीं ; आप इंतजार करो उनको टोको
मत । कुछ समय बाद अपने आप ठीक हो जाना चाहिए । अगर नहीं ठीक
हो तो आप उन्हे मेरे पास ले आइएगा , मै देख लूंगा।" डॉक्टर शाह की
कही बात प्रशांत ने घर में सभी को बताई। उसकी बातो से सभी को थोड़ा
सुकून मिला।
दूसरे दिन सुबह जब लंबी नींद लेकर शांतनु जी उठे तो सभी को प्रतीक्षा थी
की वो प्रशांत को क्या कह कर बुलाते है? पर जब उन्होंने प्रशांत को प्रशांत
कह कर ही बुलाया तो सभी ने चैन कि सांस ली कि वो ठीक है ।
शांतनु जी ने प्रशांत को नाश्ते की टेबल पर नाश्ता करते हुए घर की व्यवस्था
करने को कहा।
प्रशांत ने कहा, हां अंकल मै आज बात करता हूं ; कोशिश करूंगा कि यही
आस - पास ही मिल जाए तो ज्यादा अच्छा हो ।
निर्मला जी ने विरोध करते हुए कहा, भाई साहब आपको कोई तकलीफ़
है जो यहां से जाने की इतनी जल्दी लगी है? इतना बड़ा घर है हम सभी
आराम से रह सकते है।"
शांतनु जी ने कहा, " अरे ! नहीं बहन जी हमें यहां कोई परेशानी थोड़े ना है
पर हम कब तक यहां रहेंगे ! आखिर हमें जाना तो है ही ।"
" प्रशांत बेटा तू जल्दी घर मत दूढ़ना । ये सभी चले जाएंगे तो तेरी मां फिर
से अकेली हो जाएगी ।" निर्मला जी ने हंसते हुए कहा।
"ओके मां ! ,अब मुझे देर हो रही है मै चलता हूं।" सभी से बाय कह प्रशांत
अपनी ड्यूटी पर चला गया।
अगले दिन सुबह नौ बजे से नव्या को पहले ऑफिस रिपोर्ट करना था फिर
उसके बाद उसके ट्रेनिंग की शुरुआत होनी थी। इस कारण प्रशांत ने रघु
से जल्दी खाना लगाने को बोल दिया। डिनर समाप्त कर नव्या से जल्दी
सोने को बोल प्रशांत भी सोने चला गया। पर निर्मला जी और शांतनु जी
सपत्नीक बैठ कर काफी देर तक बात करते रहे।
सुबह जल्दी उठ कर नहा धो कर नव्या पूजा कर तैयार हो गई। शांतनु जी
ने प्रशांत से कहा कि वो साथ लेकर नव्या को चले जाएंगे, पर प्रशांत ने
कहा, " अंकल आप आराम करिए घर पे मै तो अपनी ड्यूटी पर जा ही रहा
हूं , नव्या भाभी को छोड़ते हुए चला जाऊंगा और फिर वापसी में लेता भी
आऊंगा । आप वहां क्या करेंगे दिन भर? "
शांतनु जी ने अपनी सहमति दे दी।
मां - पापा और निर्मला आंटी का आशीर्वाद ले नव्या प्रशांत के साथ आपनी
नई जिंदगी की शुरुआत करने चली गई।
आर्मी की कठिन ट्रेनिंग से नव्या पहले दिन इतना ज्यादा थक गई की वहां से वापस आकर नहाने के बाद जो बिस्तर पर पड़ी तो फिर रात में डिनर के लिए
निर्मला जी बुलाने आई पर उसकी हिम्मत नहीं हुई की वो डिनर टेबल तक जा सके। उसे इतना थका देख निर्मला जी ने रघु को आवाज दे नव्या के खाने की प्लेट वहीं मंगवा ली और उसे अपने हाथों से खिलाने लगी। नींद से बोझिल नव्या की आंखे बार - बार बंद हो जा थी ; नव्या की बोझिल पलको को
खुलते बंद होते देख उसका अद्वितीय रूप निर्मला जी को सम्मोहित कर
रहा था। उसे अपने हाथों से खिलाते हुए वो सोच रही थी । काश ऐसी ही
रूपवान और गुणवान बहू उनकी होती। उनकी सोच क्या क्या आकर ले
रही थी ये वो जान कर मन ही मन मुस्कुरा उठी। काश ! उनकी ये खवाहिश
पूरी हो पाती।
धीरे - धीरे नव्या का शरीर अभ्यस्त हो गया कठिन ट्रेनिंग का । अब वो थकती
नहीं बल्कि इंजॉय करती थी इस ट्रेनिंग में।
छः महीने में नव्या की ट्रेनिग पूरी हो गई और वही ऑफिस में उसकी पोस्टिंग
भी हो गई। शांतनु जी की भी ट्रांसफर के बाद यही ज्वाइनिंग हो गई थी।
जब तक नव्या को आर्मी का बंगला अलॉट नहीं हो गया निर्मला जी ने उन
सब को जाने नहीं दिया । जो बंगला नव्या को अलॉट हुआ वो दूर था । प्रशांत
ने उसे अपने पास के बंगले में रहने वाले मित्र से बदल लिया । इस तरह नव्या
को पास वाला घर मिल गया । मां पापा के साथ नव्या वही शिफ्ट हो गई।
इस बीच में एक बार नवल जी और गायत्री जी साक्षी को साथ ले मिलने आए
थे। साक्षी की पढ़ाई बहुत अच्छी चल रही थी। अपनी कक्षा में उसे सर्वाधिक
अंक प्राप्त हुए थे। गायत्री जी उसकी पढ़ाई में बहुत मदद करती थी। उन्हे
साक्षी अपनी बेटी सामान ही प्रिय थी ।
वक्त बीतता रहा । साक्षी की स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गई । अब वो भी
दिल्ली ही रहने आ गई थी,और यही एडमिशन लेना चाहती थी। पर
अब नव्या का तबादला होना था। इस कारण वो दिल्ली यूनिवर्सिटी
में एडमिशन नहीं ले पा रही थी। एक समस्या ओर थी । नव्या ने अब जिद्द
कर ली थी पापा आप वीआरएस ले लें। मै अनजान जगह अकेले नहीं रह
पाऊंगी । नव्या का तबादला आगरा हो गया । पर शांतनु जी का तबादला
आगरा नहीं हो पा रहा था। समस्या ये थी कि वे वीआरएस ले तो ले पर
समय काटना मुश्किल हो जाएगा। अकेलापन सारा दिन घर रहने से और
भी सताएगा।
उनकी इस मुश्किल का हल भी प्रशांत ने निकाल लिया। अपने विभाग के
सबसे उच्च अधिकारी से बात कर मेडिकल ग्राउंड पर की शांतनु जी की
तबियत ठीक नहीं रहती । उनका ट्रांसफर भी नव्या के साथ ही आगरा
करवा दिया जाए । देश के लिए कुर्बान बेटे के पिता का निवेदन भला
कौन ठुकरा सकता था ! फल स्वरूप शांतनु जी का ट्रासफर भी आगरा
हो गया।
अगले भाग में पढ़े आगरा में नव्या की जीवन यात्रा कौन सा करवट लेती है।
🙏🙏🙏🙏🙏