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भाग गई दलिद्दर


“भाग गई दलिद्दर”

आर0 के0 लाल


राधिका को वह दिन कभी नहीं भूलता जब वह दीपावली के बाद वाली एकादशी को अपने गांव के घर से अपनी सासू मां के साथ सूप बजाते हुए दलिद्दर खेदते हुए दक्षिण दिशा वाले तालाब पर पहुंची थी। उसे पूरा विश्वास था कि उत्तर भारत के तमाम इलाकों में मनाए जाने वाले इस परंपरा से उसके घर से दरिद्र भाग जाएगी और वहाँ लक्ष्मी जी का वास हो जाएगा। जैसा हमेशा होता रहा है, घर की महिलाएं सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उजाला होने से पहले ही अपने घर के सभी कोनों पर सूप बजाती हुई तथा मौन रहते हुए सूप को

तालाब के पास फेंकने पहुँच गयी। उस दिन राधिका भी यह सब बड़े जोश के साथ कर रही थी। जैसे ही राधिका तालाब पर पहुंची उसके कानों में किसी नवजात शिशु के हल्के- हल्के रोने की आवाज सुनाई पड़ी। पहले तो उसने इसे अपना वहम समझा मगर रोने की आवाज

लगातार आ रही थी । राधिका अपने को रोक नहीं पाई और उसके पास चली गई। अंधेरे में एक नवजात शिशु की गोरी काया चमक रही थी , उसके शरीर पर अच्छे कपड़े थे जिससे लगता था कि किसी अमीरज़ादी ने उसे नाजायज समझ कर अपने पाप-कर्मों की इतिश्री समझ लिया था। राधिका उसे देखती रह गई थी, बड़ी प्यारी थी उसकी छवि। उसकी सास ने बिना बोले इशारों में ही राधिका को निर्देश दिया कि वह इस चक्कर में मत पड़े और घर वापस चले । एक बार तो राधिका आगे बढ़ गई लेकिन पुनः उस शिशु की

सिसकती आवाज ने उसके पांव थमा दिए। जाड़े की ठंड में उस को छोड़कर जाने का उसका मन नहीं हुआ। वह इतनी निर्मोही नहीं थी अतः उसे घर उठा लाई।

घर पहुंच कर राधिका ने उस शिशु को लालटेन की रोशनी में देखा कि वह एक लड़की थी। उसने अपनी सासू मां को समझाया कि इसके मां बाप इससे को ढूंढ करके सौंप दिया जाएगा तब तक उसे यहीं रहने दें । घरवालों के विरोध के बावजूद उसने उस लड़की को नहीं छोड़ा। राधिका ने काफी दिनों तक उस शिशु के मां-बाप को ढूंढने का भरसक प्रयास किया लेकिन दूर-दूर तक किसी का पता नहीं चला कि किसने उस बच्ची को फेंका था इसलिए उसे घर में ही रखना राधिका की मजबूरी बन गयी थी ।

राधिका पहले ही अपनी गरीबी से परेशान थी जिससे उसके पूरे परिवार का जीवन बड़े कष्ट से गुजर रहा था। किसी तरह खेतों में काम करके गुजारा हो रहा था। घर में पैसों का बहुत अभाव था , दूध का तो सवाल ही नहीं होता। ऐसे में एक छोटी बच्ची को कैसे पाला जा सकता था। अभी कुछ दिन पहले ही बाढ़ में उसके घर के पीछे की दीवार भी गिर गई थी। सभी परिवार के लोग अपने भाग्य को कोसा करते थे और लक्ष्मी जी को मनाने के लिए अनेकों अनुष्ठान करते रहते थे जिनमें से एक सूप बजाकर दरिद्र भगाने का भी काम था।

दिन बीतते गए, उस लड़की का नाम चांदनी रखा गया। राधिका उसे काम के समय खेत पर ले जाती और उसे खेत के मेड़ पर ही लिटा देती। वह टुकर- टुकर इधर-उधर देखती पड़ी रहती। कभी रोती तो चिड़ियों की चहचहाट सुन कर स्वतः चुप हो जाती। धीरे- धीरे चाँदनी को प्रकृति से काफी लगाव हो गया। वह घंटों तालाब के किनारे बैठी रहती और पेड़ पौधों को निहारते हुये कुछ गुनगुनाती

रहती। न जाने कैसे चांदनी को पता चल गया था कि वह राधिका की अपनी औलाद नहीं है । वह उदास रहने लगी फिर भी वह राधिका को भगवान की तरह पूजती और उसके हर काम में सहायता करती। दोनों एक दूसरे पर जान छिड़कते थे।

चांदनी की आवाज बहुत मधुर थी साथ ही उसे गाने का बहुत शौक था। जब दूसरे किसान खेत पर अपना ट्रान्जिस्टर ले जाते और गाना बजाते तो चांदनी उसी तरह गाने का प्रयास करती। धीरे-धीरे उसे बहुत से गाने याद हो गए थे। वह गाना गाती तो लोग उसकी तारीफ करते। वह लड़की जो भी गाना सुन लेती थी वह उसे याद हो जाता था फिर वह उसी तरह गाने का प्रयास करती। हालांकि सुर – ताल की समझ उसे नहीं थी।

गांव में एक ही स्कूल था जिसमें सरकारी योजना के तहत “मिड डे मील” दिया जाता था। राधिका ने यह सोच कर स्कूल में उसका नाम लिखा दिया कि कम से कम उसे खाना तो मिल जाएगा। चाँदनी वैसे तो पढ़ाई में बहुत तेज थी मगर उसे पढ़ाई से ज्यादा संगीत से लगाव था। उसके मास्टरजी भी अक्सर उसे गाने को कहते क्योंकि वे चाँदनी के इस ईश्वरीय देन

पर मंत्रमुग्ध थे। मास्टर जी चाहते थे कि जब ईश्वर ने उसको इतना अच्छा गला दिया है तो उसे उसका फायदा उठाना चाहिए और हो सके तो संगीत को उसे अपना करियर बनाना चाहिए। उन्होंने चाँदनी की प्रतिभा उसे समझाई और उसे तराशने की सलाह दी। उसे बताया कि यदि रियाज़ करके गाना शुरू करे तो उसके घर की गरीबी भी दूर हो सकती है। इस प्रकार पाँच साल की चाँदनी को गाने की लगन लग गयी और वह स्कूल में होने वाले होने वाले सभी समारोहों में गाना सुनाने लगी । उसे ईनाम मिलता तो फूली नहीं समाती।

आसपास के कस्बों में भी उसके गाने की तारीफ होने लगी । जब कहीं कोई फंक्शन होता तो लोग चांदनी को आमंत्रित करते, और उसे पारिश्रमिक भी देते। इस प्रकार चांदनी अपनी पढ़ाई के साथ कुछ पैसे भी कमाने लगी।

उसके मास्टर जी चाहते थे कि उसे संगीत में शिक्षा मिल सके मगर यह व्यवस्था उसके गांव में उपलब्ध नहीं थी। एक दिन चांदनी एक समारोह में गाना गा रही थी तो वहां एक मशहूर संगीतकार भी आए हुए थे उन्होंने उसका गाना सुना तो बहुत प्रभावित हुये और उसके बारे में लोगों से पूछा। पास बैठे उसके मास्टर जी ने बताया कि वह उनके विद्यालय की एक निपुण बालिका है मगर उसे संगीत की शिक्षा देने वाला कोई नहीं है। उन संगीतकार महोदय ने उसे संगीत सिखाने की अपनी सहमति दे दी । अब सवाल था कि वह संगीतकार शहर में रहते थे और चांदनी छोटी बच्ची थी जो वहां जा नहीं सकती थी। मास्टर जी ने बताया कि अपना वेतन लेने और स्कूल के काम से हर महीने में दो दिन के लिए शहर जाते हैं, इसलिए चांदनी भी उनके साथ जा सकती है और संगीतकार महोदय से गाने की कला सीख सकती है। अब चांदनी हर महीने दो दिन संगीत की शिक्षा लेने लगी और पूरे महीने उसका अभ्यास करने लगी। इस प्रकार संगीत का अभ्यास करते करते उसके गानों में काफी निखार आ गया था । मगर अभी भी उसे कोई अच्छा मंच नहीं मिल रहा था जो उसे सही मुकाम तक पहुंचा सके।

एक दिन उसके गुरु ने उसे इंडियन आयडल जैसे कंपटीशन में हिस्सा लेने के लिए सलाह दी और आवश्यक जानकारियाँ दी कि इंडियन आयडल देश का सबसे टॉप और बेस्ट सिंगिंग टैलेंट शो है, और उसमें जाने का तरीका क्या है ।

कई शहरों में यह आयोजित किया जाता है । जहां ऑडिशन चला रहा हो वहां कंटेस्टेंट को एक रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरना होता है। टीवी देख कर पता कर सकते हैं कि निकट भविष्य में आयोजन कहाँ हो रहा है। इंडियन आयडल के एडवर्टाइजमेंट में आडिशन की लोकेशन दी रहती है। इसका फ्री रजिस्ट्रेशन होता है। उसके लिए कुछ अभिलेख जैसे आधार कार्ड, फोटो आदि मांगे जाते हैं। कुछ गाने रिकॉर्ड

करके देने पड़ते हैं। इस प्रकार कंटेस्टेंट को एंट्री - पास मिल जाता है। तुम्हें इसका ऑडिशन जरूर देना चाहिए।

यह सब सुनकर चांदनी के मन में नए विचार हिलोरे लेने लगे , स्टेज परफारमेंस करने की उसकी ख्वाहिश तीव्र हो गयी। उसके मन में आया कि जल्दी से जल्दी उसे इंडियन आयडल में जाना चाहिए। अगर उसमें उसका चयन हो गया तो वह अपना, अपने स्कूल और अपनी मां राधिका का नाम रोशन कर सकेगी और अपनी माँ के लिए कुछ कमाई भी कर लेगी। जब भी चाँदनी को घर के काम से समय मिलता वह अपने गुरु संगीतकार की सलाह से प्रतयोगिता में भाग लेने की तैयारी करने लगी । शीघ्र ही उसने मास्टर जी के मोबाइल में कई कई गाने रिकॉर्ड किए और इंडियन आयडल में अपना पंजीयन करा लिया। प्रबंधकों से निमंत्रण

प्राप्त होने पर उसका ऑडिशन हुआ और उसका चयन भी हो गया। सभी विजेताओं को पुरस्कृत किया गया और अगले पड़ाव में जाने का कार्ड भी दिया गया । यह सब पाकर स्टेज पर ही छोटी बच्ची चाँदनी रोने लगी । उसने आयोजकों और जजों को बताया कि किस प्रकार वह आज इस जगह तक पहुंच सकी है जिसमें उसकी माँ, मास्टर जी और उसके गुरु संगीतकार ने बिना किसी स्वार्थ के बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उनके वह चरण स्पर्श करती है और उनकी आजीवन आभारी रहेगी जिन्होंने उसे इस मुकाम तक पहुंचाया है। उसने ईश्वर को धन्यवाद भी दिया कि उसने ही यह सब कराया है। वह बहुत खुश थी । कई लोगों ने उसे आर्थिक मदद भी करने का वादा किया ।

आज राधिका को लगा कि सूप बजाकर दरिद्र भागने का सही फल उसे मिल गया है क्योंकि उसी दिन लक्ष्मी के रूप में उसे चांदनी मिली थी और आज उसके घर से दलिद्दर सही में भाग गयी है। राधिका बड़े गर्व से सभी को बताती है कि अब गाँव के गरीब बच्चे को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल सकता है।

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