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फिर मैं क्यों नहीं

प्रिय डायरी

यह वर्ष भी धीरे धीरे अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच रहा है। मेरी प्यारी डायरी, तुम मेरी सबसे अच्छी सखी हो और मेरे जीवन सुख-दुख की साझीदार। फिर भी आज मैं तुम्हारे साथ इस वर्ष से जुड़े अपने जीवन के उन खास अनुभवों को साझा कर रही हूं, जिन्होंने मेरे जीवन में सकारात्मकता का संचार कर उसे एक नई दिशा दी।
वैसे यह तो तुम्हें भी पता है कि हम रोज दूसरों के नाम संदेश भेजते हैं। उनकी तारीफों में कसीदे पढ़ते हैं लेकिन कभी आईने में खुद को देख कर अपने लिए शायद ही तारीफ के दो शब्द भी कह पाते हो। कहना तो दूर जब कोई दूसरा हमारी तारीफ करता है तो हम उसे भी सहर्ष स्वीकार नहीं कर पाते।

क्यों! क्यों हम अपने को स्वयं ही महत्वहीन समझने लगते हैं।
मैं भी इससे कहां अलग थी। मैं भी तो इस समाज का हिस्सा हूं लेकिन इस वर्ष मैंने खुद को एक अलग रूप में देखा और अपनी खूबियों को पहचाना।


तुम्हें तो पता है, यह वर्ष चुनौतियों से भरा रहा। वैसे तो हर साल सभी के जीवन में कुछ ना कुछ उतार चढ़ाव आते हैं लेकिन इस वर्ष सभी के सामने एक समान चुनौतियां थी और सभी को उस से अपने अपने स्तर पर निपटना था।

प्रत्येक नववर्ष अपने साथ खुशियों की पोटली लेकर आता है।

हर नववर्ष की भांति वर्ष 2020 का भी हमने दिल खोलकर स्वागत किया। अभी स्वागत की खुमारी उतरी भी ना थी कि पूरे संसार को कोरोना रूपी महामारी ने जकड़ लिया।

बीमारी भी ऐसी लाइलाज , जिसके कारण सभी अपने घरों में सिमट कर रह गया।

लॉकडाउन के कारण काम धंधा ठप्प हो गया। जिसकी वजह से खाने पीने की समस्या उत्पन्न हुई और लोगों ने गांव की तरफ पलायन शुरु कर दिया।

उस समय सरकार व अनेक प्रबुद्ध लोगों ने पलायन रोकने के लिए ,अपने अपने स्तर पर राशन वितरण शुरू करवाया।

इसके लिए स्कूलों में सूखा राशन व तैयार भोजन बंटवाना शुरू किया गया।


इस भोजन व राशन वितरण में सरकारी स्कूलों में नियुक्त अध्यापकों को लगाया गया।

चूंकि मैं भी एक सरकारी प्राइमरी अध्यापिका हूं इसलिए मेरी भी भोजन वितरण में ड्यूटी लगी।

यह अप्रैल माह की बात है। उस समय यह महामारी बिल्कुल चरम पर थी।

राशन वितरण में अपना नाम देखकर, पहले तो मैं और मेरा परिवार बहुत ही परेशान हुए। टीवी पर रोज इस महामारी की भयावहता देख हम सब डरे हुए थे। साथ ही पशोपेश में थे कि क्या करें क्या नहीं!

लेकिन अपने साथ साथ जब गरीब व जरूरतमंद लोगों की समस्याएं देखती तो अपनी समस्या इसके आगे बहुत ही छोटी लगने लगती।

मन ही मन निश्चय कर लिया था कि डरकर जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना तो कायरता की निशानी होगी।

ऐसी चुनौतियां तो जीवन में पग-पग पर आएंगी और मैं उनसे हर बार तो मुंह नहीं मोड़ सकती।

मेरा एक भी भीरूता भरा निर्णय मेरे बच्चों को भी गलत संदेश देगा।

जब एक सिपाही खुशी-खुशी समर में कूद सकता है, डॉक्टर अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना रात दिन मरीजों की सेवा में तत्पर है , फिर मैं क्यों नहीं!


जब आज मुझे देशसेवा का यह अवसर मिला है तो मैं कैसे अपनी पीठ दिखा दूं!

उसके बाद मैंने राशन वितरण ड्यूटी तो की, साथ ही कंटेनमेंट जोन में सर्वे भी किया।

इस काम करते समय मेरे मन को जो आंतरिक खुशी मिली, उसको मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती।

इस कठिन समय में मन के भीतर जो नकारात्मक घर कर गई थी इस सामाजिक कार्य के दौरान लोगों से मिल उनका सहयोग कर वह एक सकारात्मक ऊर्जा में बदल गई।

जिंदगी को बहुत पास से देखने का अनुभव प्राप्त हुआ ।

किस तरह लोग अपना काम धंधा ठप हो जाने के बावजूद भी पूरी जीवटता से फिर उठ खडे हुए।
इसके साथ ही मुझे एक सीख भी मिली कि हम अपने जीवन में आने वाली छोटी-छोटी समस्याओं को देखकर अपनी किस्मत को कोसना शुरू कर देते हैं लेकिन इस दौरान जब दूसरों के जीवन की विकट परिस्थितियों को देखा तो उनके सामने अपनी दुख तकलीफ बहुत ही छोटी महसूस हुई।


और तब मन में यह दृढ़ संकल्प किया कि ऐसी आने वाली चुनौतियों से हार ना मानकर उनका डटकर मुकाबला करना ही जीवन की सार्थकता है।
और आज अपनी लेखनी को विराम देने से पहले, मैं वर्ष

2020 को शुक्रिया कहना चाहूंगी, मेरी इच्छाशक्ति को मजबूती के साथ, मुझे अपने जीवन में देशसेवा का यह छोटा सा सुअवसर प्रदान करने के लिए।
आज के लिए इतना ही

सरोज✍️