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खिचड़ी


खिचड़ी

आर 0 के 0 लाल


मम्मी ! तुम्हारे पापा के घर से इस बार खिचड़ी नहीं आई? सुमित ने अपनी मां पूनम से पूछा। पूनम आज सुबह से ही उदास थी उसने सोचा कि छोटे बच्चे सुमित को क्यों दुखी करे । उसने उसे कोई जवाब नहीं दिया । पूनम को पता था कि हर साल की तरह इस बार उसके मां के यहां से खिचड़ी नहीं आने वाली । कहने लगी, “माँ के बिना रीत रिवाज निभाने वाला कौन है वहाँ” ?

सुमित ने देखा कि थोड़ी देर बाद उसकी माँ पूनम अपनी शादी पर नानी द्वारा दिए गए संदूक को खोल कर उसमें रखे सामानों को बार-बार उलट पुलट रही थी। उसकी आंखो से अविरल अश्रु- धाराएँ बह रहीं थी। लगभग पाचीस साल पहले मिला वह लोहे का संदूक आज भी उतना ही मजबूत है । यह मजबूती उसके अपने मायके से मजबूत रिश्ते को वर्णित करता है। ससुराल में आने के बाद से यह संदूक ही उसे माँ का प्यार देता रहा है तो अनेक परेशानियों में ढाढस भी । उस पर बने लाल - पीले फूलों की चमक जरूर मंद पड़ गई थी फिर भी पूनम उसे आज भी जी- जान से बढ़ कर चाहती है। सदैव सन्दूक पर एक फ्रिल वाला कपड़े का कवरचढ़ाए रखती है ताकि वह गंदा न हो। किसी कारण जब भी पूनम का मन व्यग्र होता है तो वह उस सन्दूक को खोल कर बैठ जाती । उसमें रखी सामाग्री को देख कर उसे अपने बचपन की सारी बातें याद आ जाती और धीरे-धीरे उसका गम दूर हो जाता है ।

विदाई के समय माँ ने कहा था, “इस सन्दूक को संभाल कर ताला लगा कर रखना। इसमे तुम्हारी जरूरतों की सभी चीजें हैं”। उसे याद है कि उसकी माँ बहुत गरीब थी फिर भी उस बक्से में बहुत कुछ भर दिया था। उस समय न तो मोबाइल था और न व्हाट्स ऐपस । बाजार और यातायात भी सीमित थे। तभी तो माँ ने उस समय की सभी जरूरी वस्तुएं जैसे कुछ अंतर्देशीय पत्र, पोस्टकार्ड , कलम, कुछ डाक टिकट , तेल की शीशी, कंघी , पाउडर रख दिये थे । नहाने का साबुन और कपड़ा धोने वाला डिटर्जेंट पाउडर, देशी मेकअप के सामान के रूप में कुछ पैकेट्स में सुलेमानी मिट्टी , बालों के लिए शिकाकाई के फल से लेकर दादी के नुक्से वाली दवाइयां, जायफल, चूरन, अमृतधारा और चिल्लर सहित कुछ रूपये तक रखना नहीं भूली थी। इतना ही नहीं माँ ने अपने हाथों से सिले अंडरवियर के कपड़े और कुल दो साड़ियाँ भी दी थी । एक बनारसी साड़ी थी जो माँ को अपनी शादी में मिली थी । पूरे पाँच किलो की थी वह साड़ी। कितना संभाल कर रखा था जो आज भी नयी की तरह चमक रही है । हालांकि ससुराल में इन सभी सामानों की जरूरत पूनम को कभी नहीं पड़ी फिर भी यह खजाना वह सदैव संभाल कर रखती थी। अक्सर उन सामानों को निकाल कर फिर से रखने में उसे लगता जैसे उसकी माँ से उसका मिलन हो गया हो और वह उसके आंचल में बैठी हो ।

पूनम सन्दूक में रखे सामानों को देख देख कर रो रही थी। उसकी माँ बहुत दिनों से बीमार थी और कुछ दिन पहले ही वह सभी को छोड़कर इस दुनिया से चली गई थी। इसीलिए इस बार खिचड़ी के त्यौहार पर कोई समान नहीं आया था। सुमित उसकी हालत देख रहा था उससे रहा नहीं गया। उसे आज अपनी बहन उमा के ससुराल खिचड़ी लेकर जाना था मगर उसने मना कर दिया है कि ऐसे में कहीं नहीं जाएगा।

पूनम ने सुमित से कहा, “बेटा तुम मेरी चिंता छोड़ो। आज खिचड़ी का त्यौहार है अपनी बहन उमा के यहां चले जाओ वह इंतजार कर रही होगी। मैंने झोले में चावल, दाल, तिल, गुड़, सब्जियाँ, दही-चूड़ा, गुड़ और तिल से बनी मिठाईयां, मूंगफली, रेवड़ी और गजक आदि सब रख दिये हैं । हर बार तुम्हारे पापा ले कर जाते थे मगर आज उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं हैं इसलिए तुझे ही जाना पड़ेगा । फिर उसने सुमित को समझाया कि इसे ही खिचड़ी भेजना कहते हैं। वर्षों से यह रिवाज चला आ रहा है।

सुमित ने आश्चर्य व्यक्त किया, “लेकिन माँ! खिचड़ी तो चावल और दाल को मिलाकर बनाए गए भोजन को कहते हैं”।

सुमित ने इस प्रथा के बारे में ज्यादा जानना चाहा तो पूनम ने बताया कि इसे संक्रांति भी कहते हैं । पौष मास में अपने प्रदेश में ही नहीं वरन पूरे देश में यह त्यौहार किसी न किसी रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इसे कहीं मकर संक्रांति तो कहीं पोंगल कहा जाता है। आज का दिन बहुत शुभ और दान का दिन होता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। लोग बेटियों के घर गिफ्ट भेजते हैं। आज के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं और आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं। तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इलाहाबाद में हर साल इस दिन माघ मेले की शुरुआत होती है। गुजरात में मकर संक्रांति का त्योहार उत्तरायण के नाम से जाना जाता है और वहाँ इस दिन पतंगबाजी का बहुत महत्व होता है। हर कोई पतंग के माध्यम से ईश्वर को अपनी प्रार्थना भेजता है।

पूनम ने बताया कि उसकी माँ भी इस दिन की तैयारी कई महीनों पहले से किया करती थी। नया धान लेकर वह स्वयं मूसल से कूट कर चावल बनाती थी। कई दिनों की कुटाई के बाद कम से कम एक बोरी चावल तैयार करती थी । चावल के छोटे दानों को वह जांत में स्वयं पीसती थी और उसमें गुड़ और सोंठ मिलाकर ढूढ़ी बनाती थी। वह तिल के लड्डू, मूंगफली की पट्टी और लाई – चूड़ा सब कुछ स्वयं तैयार करती थी । इन सब को कुछ कपड़े और थोड़े रूपयों के साथ मेरे यहाँ भेज देती थी। मेरी माँ जौनपुर में रहती थी जहां कि मूली मशहूर है । एक जौनपुरी मूली का वजन एक से दो किलो तक होता है । तुम्हारी नानी तीन चार मूली के साथ गोभी, आलू और घर का बना देसी घी भी हर साल भेजती थी जिसे तुम लोग बड़े चाव से खाते थे। मगर आज जब वह इस दुनिया में नहीं है तो माँ के हाथों से बनी हुई इन चीजों का अब सदैव के लिए अभाव हो गया है। यह सुन कर सुमित ने कहा ठीक है मैं उमा दीदी के घर जाने की तैयारी करता हूं।

तभी अचानक सभी ने देखा कि पूनम की बेटी चाँदनी और उसके दमाद जी घर पहुँच गए हैं । उनके साथ ढेर सारा सामान भी था। आते ही चाँदनी बोली, “देखो माँ हम आपके लिए खिचड़ी ले कर आयें है”। पूनम ने पलट कर जवाब दिया, “ अरे उमा आज तुम क्यों यहां आ गई? अभी तो सुमित तुम्हारे यहां तुम्हारी खिचड़ी लेकर जाने वाला ही था। आज खिचड़ी तुम्हें अपनी ससुराल में ही मनानी थी”।

उमा ने कहा, “मां तुम तो हर बार मेरे यहाँ संक्रांति पर ढेर सारा समान भेजती हो। मुझे पता है कि हर साल नानी जी तुम्हें अपने हाथों से बनाए हुए सामान और खिचड़ी भेजती थी । नानी के न रहने पर अब वहां से कुछ नहीं आया होगा इसलिए हम तुम्हारे लिए सब कुछ लेकर आए हैं”। पूनम बिगड़ते हुये बोली कि ये कैसी उल्टी प्रथा तुम चलाना चाहती हो? माँ ही बेटी को आज के दिन दान स्वरूप सामान देती है न कि बेटियाँ अपने मायके को । वैसे भी हम बेटी का कैसे खा सकते हैं? हमसे जो बनेगा हम ही तुम्हें दान के रुप में देंगे । तुम्हारा नहीं ले सकते हैं।

उमा बोली, “मां, तुम कैसी बातें करती हो? अब वो पुराना जमाना चला गया। आज के समाज में अब बेटे -बेटी में कोई फर्क नहीं है, दोनों बराबर हैं । फिर यह तो खिचड़ी का पर्व है। खिचड़ी का मतलब ही होता है कई चीजों का मिलाप, ताकि

सब लोग समान रूप से मिल कर त्योहार मना सकें। क्या केवल बेटों को अधिकार है कि वह मातृ ऋण अथवा पित्र ऋण उतारने का काम करें । अब ऐसा नहीं होगा बेटियों को भी या हक मिलना ही चाहिए”।

यह सब बातें उमा के पिता भी सुन रहे थे। उनकी आंखों में आंसू आ गए । उन्होंने आगे बढ़ कर उमा को अपने गले लगा लिया और भरभराते स्वर में बोले , “बेटियों के बिना जीवन अधूरा होता है। पूनम आज जब तुम्हारी माँ इस दुनिया में नहीं है तो तुम्हारी बेटी तुम्हारी माँ बन कर आ गयी है। वह एक माँ के रूप में तुम्हारे पास खिचड़ी की गिफ्ट लेकर उपस्थित हुई है। आज के दिन सूर्य भी उत्तरायण होते हैं इसलिए अपनी बेटी द्वारा दिशा बदल कर वायना लाना शुभ ही होगा। तुम उसका दिल मत तोड़ो और उसके द्वारा लायी हुई खिचड़ी को सहर्ष स्वीकार करो”। फिर वे बोले, “तुम भी उदास मत हो। आज सब लोग मिलकर खिचड़ी का त्यौहार मनाएंगे, शाम को पतंग उड़ाएंगे और उसके माध्यम से अपने सारे बुजुर्गों को नमन करके उनका आशीर्वाद लेंगे”।

सभी ने इस भारतीय परंपरा का सही तरीके से आनंद उठाया । सुमित ने तो अपनी बहन को पूनम की माँ और अपनी नानी कह दिया जिस पर सभी हस पड़े।

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