Kalki - ek nyayoddha books and stories free download online pdf in Hindi

कल्कि - एक न्यायोद्धा

'कल्कि - एक न्यायोद्धा'

- विजेता मारु

यह एक काल्पनिक कृति है। नाम, वर्ण, व्यवसाय, स्थान, और घटनाएं या तो लेखक की कल्पना के उत्पाद हैं या काल्पनिक तरीके से उपयोग किए जाते हैं। वास्तविक व्यक्तियों, जीवित या मृत या वास्तविक घटनाओं से कोई समानता विशुद्ध रूप से संयोग है। इस कहानी का उदेश्य किसी भी धर्म, जाती, या फिर किसी संप्रदाय की भावनाओ के साथ किसी भी रूप से खिलवाड़ नहीं करती । धन्यवाद ।

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न्यायाधीश : यह अदालत केशव यादव को सेक्शन 171-D, सेक्शन 300, सेक्शन 307 के तहत रिश्वत, हत्या और हत्या करने के प्रयास के जुर्म में आजीवन कारावास और 30 लाख रुपये का जुरमाना भरने की सजा सुनाती है। अदालत की कार्यवाही समाप्त।

(न्यायाधीश ने अपना फैसला सुनाया, कोर्ट रूम में पूरी तरह से सन्नाटा छा गया था, इतनी शांति महसूस हो रही थी की बहार जो केशव के समर्थक और उनके चाहक जो की जज साहब के फैसले से नाराज़ थे उनके चीखने-चिल्लाने की और तोड़-फोड़ करने कि आवाज़ अंदर तक सुनाई दे रही थी।)

36 साल पहले

(गुजरात के द्वारका ज़िल्लेमे जन्माष्टमी के दिन ज़ोरो से बारिश हो रही थी... वासुनाथ यादव सरकारी दवाखाने के बहार तनाव भरी हालत में इधर-उधर घूम रहा था। इतने में दवाखाने की एक परिचारिका ख़ुशी से दौड़ती हुई वासुनाथ के पास आई और बोली.......)

बधाई हो वासुनाथजी आपके यहाँ बेटे का जन्म हुआ है।

(रातको 12 बजे वासुनाथ यादव की पत्नी देवीश्री यादव की कोख से ज़ोरो से रोता हुआ एक बच्चा जन्म लेता है।)

वासुनाथ : अरे वाह, बहोत ही बढ़िया खबर सुनाई है आपने। अब तो में ख़ुशी से पुरे द्वारका में पेड़े बाटूंगा।

(उतने में आसमान में ज़ोरो से बिजली कड़कने लगी, कभी सोचा न हो ऐसा भूकंप आया, दवाखाने से सभी लोग बहार निकल गए। देवीश्री और उसका बच्चा अंदर ही थे, वासुनाथ बहोत घबरा गया।)

वासुनाथ : हे भगवन, ये कैसी परीक्षा ले रहा है तू, अभी अभी तूने खुशिया दी और अभी के अभी ये खुशिया छीन लेना चाहता है तू मुझसे। ऐसा क्यों कर रहा है तू मेरे साथ। क्यों ? (आसमान में देखकर भगवन से शायद फ़रियाद करता हुआ वासुनाथ रो रहा था।)

(इतनेमे दवाखाने में से जोर से कुछ गिरने की आवाज़ आई, चारो तरफ एक धुँआ सा छा गया, बहोत भीड़ जमा हो गई, उतने में पीछे से कोई बोला ....)

लगता है अंदर की कोई दिवार गिरी है।

वासुनाथ : अरे कोई मेरी बीवी और बच्चे को बचाओ ..... मेरी मदद करो...... भगवन के लिए कोई मेरी मदद करो.... (वासुनाथ शरीर से इतना कमज़ोर था की खुद को ठीक से सम्हल भी नहीं पाता था। ज़ाहिर सी बात है वो अपनी बीवी और बच्चे को तो बचा ही नहीं सकता।)

(उतनी देर में वहां से बड़ी दाढ़ी और बड़ी जटा वाले एक साधू हाथ में कमंडल और करताल ले कर निकले।)

साधु : क्या हुआ बच्चा, एक मामूली भूकंप में तू इतना क्यों रो रहा है ? ये तो होगा ही, लोग पाप ही इतने करते है.... न जाने कब ये कल्कि इस धरती पर आएगा !

वासुनाथ : अरे बाबाजी, में ऐसे ही नहीं रो रहा हूँ, बहोत सालो बाद आज भगवान ने मेरी सुनी थी, पर क्या जाने मैंने ऐसी क्या गलती कर दी की भगवान ने ऐसा भूकंप और बारिश लाकर मेरी बीवी और अभी अभी जन्मे हुए बच्चे को इस दवाखाने के अंदर ही फंसा दिया। अभी 12 बजे मेरे यहाँ बेटे का जन्म हुआ और अभी ही ये भगवन मेरी खुशिया छीनने पे तुला हुआ है।

साधू : मुर्ख.... ये भगवान है, नाराज़ हो सकता है पर निर्दयी नहीं.... 12 बजे तेरे यहाँ बच्चे का जन्म हुआ, उसी वक्त भूकंप और ज़ोरो से बारिश आयी, और आज जन्माष्टमी है... ये एक संयोग है... बेटे...... तेरा बच्चा कोई आम बच्चा नहीं है...... वो बहोत ही बड़ी शक्ति का धारक लगता है......

वासुनाथ : आप कहना क्या चाहत........ (फिर से कुछ गिरने की आवाज़ आयी, वासुनाथ दौड़के दवाखाने के अंदर गया, थोड़ी ही देर में एक चमत्कार हुआ, वासुनाथ जो अपनी कमज़ोरी के चलते कुछ भी नहीं कर सकता था वो अपनी गोद में अपनी बेहोश बीवी और ऊपर माथे पे एक छोटी सी सर्जिकल ट्रे में अपने बच्चे को लेकर बहार निकल रहा था......)

साधू : हरी ॐ...... हरी ॐ....... आखिर मेरा लल्ला आ ही गया..... मेरा मदन गोपाल आ गया..... साक्षात् भगवन आ गए......

(वासुनाथ भीड़ के बिच आया, अपनी पत्नी को निचे जमीं पर सुलाया, कुछ लोगो ने उसकी मदद के लिए हाथ आगे किये और सर के ऊपर की ट्रे को निचे उतारा...... उधर हाज़िर परिचारिकाएँ बच्चे और माँ की सारवार उधर ही पलंग लगा के करने लगी....)

साधू : देखा बच्चा ? कुछ समज में आया ?

वासुनाथ : नहीं बाबाजी, आप ही बताओ।

साधू : तुझमे ये ताकत अचानक कहा से आ गयी ? कुछ मालुम पड़ा ? (वासुनाथ गहरी सोच में पड़ गया...) मैंने बोला था न की तेरा बच्चा कोई आम बच्चा नहीं है.... वो बहोत ही शक्ति धारी है......

वासुनाथ : हां बाबाजी में जब अंदर गया तब कुछ मायावी शक्तियां मेरे शरीर में महसूस हो रही थी... पता नहीं पर ऐसा लगा की एक बहोत बड़ा तेजस्वी गोला जोर से मेरे शरीर में घुसा और ऐसी शक्ति का संचार हुआ जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं की....... आपकी बात सही है बाबाजी..... ये कोई मामूली बच्चा नहीं है...

(वासुनाथ आगे कुछ बोले उससे पहले एक परिचारिका ने जोर से आवाज़ लगाई.....)

अरे वासुनाथ जी, देवीश्री जी को होश आ गया... जल्दी आओ....

(वासुनाथ दौड़ता हुआ उसके पास आता है....)

वासुनाथ : देवी, क्या हुआ था तुजे.... ज्यादातर महिलाए अक्सर प्रसूति के समय पर बेहोश होती है, ऐसा क्या हुआ की तुम सफल प्रसूति होने के बाद बेहोश हुई....

देवीश्री : पता नहीं जी, मुझे कुछ याद नहीं है... पर हाँ... कुछ ऐसा महसूस हो रहा था की कोई मेरे बच्चे के पास आया और उसे उठाके कही पे पटकना चाहता था..... पर तुरंत ही बच्चे ने अपना हाथ घुमाया और वो अनजान आदमी दूर तक लड़खड़ाते हुए जोर से गिर गया और मर गया..... ऐसा मुझे कुछ सपना आया या फिर हकीकत हुई कुछ याद नहीं है....

(देवीश्री बोलने से हिचकिचा रही थी....)

साधू : भगवान् ही है... बेटा... अब इस सृष्टि का कुछ होगा....... (वासुनाथ से) चिंता मत कर बेटे, तेरी आगे की ज़िंदगी बहोत अच्छी जाने वाली है। निश्चिन्त होकर घर जा और अपनी बीवी और बच्चे की सेवा कर।

वासुनाथ : बाबाजी.... आप ही ने पहचाना है इस बालक को, अब आप ही इसका कोई अच्छा सा नाम रख दीजिये..... बड़ी महेरबानी होगी आपकी......

बाबाजी : केशव। आज से केशव नाम होगा इस बच्चे का... अलख निरंजन।।

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ये वही केशव है जिसको न्यायाधीश ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई... पर ये कैसे हो सकता है.... 36 साल पहले तो उस साधू ने ऐसा कहा था की ये बच्चा मायावी शक्तियों से भरा है... वो बच्चा तो शायद भगवन का अवतार हो सकता है तो फिर भगवन को ये सजा क्यों ? ऐसे बहोत से सवाल आपके मन में दौड़ रहे होंगे। जानेंगे हम अगले प्रकरण में......

प्रकरण - १ समाप्त