Swarg Ka Dhwar books and stories free download online pdf in Hindi

स्वर्ग का द्वार


*स्वर्ग का द्वार:-*


सुबह का समय था। स्वर्ग के द्वार पर चार आदमी खड़े थे। स्वर्ग का द्वार बंद था। चारों इस इंतजार में थे कि स्वर्ग का द्वार खुले और वे स्वर्ग के भीतर प्रवेश कर सकें।

थोड़ी देर बाद द्वार का प्रहरी आया। उसने स्वर्ग का द्वार खोल दिया। द्वार खुलते ही सभी ने द्वार के भीतर जाना चाहा- लेकिन प्रहरी ने किसी को भीतर नहीं जाने दिया।

प्रहरी ने उन आदमियों से प्रश्र किया- *‘‘तुम लोग यहां क्यों खड़े हो?’’*

उन चारों आदमियों में से तीन ने उत्तर दिया- *‘‘हमने बहुत दान-पुण्य किए हैं। हम स्वर्ग में रहने के लिए आए हैं।’’*

चौथा आदमी मौन खड़ा था। प्रहरी ने उससे भी प्रश्न किया- *‘‘तुम यहां क्यों खड़े हो?’’*

उस आदमी ने कहा- *‘‘मैं सिर्फ स्वर्ग को झांक कर एक बार देखना चाहता था। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मैं स्वर्ग में रहने के काबिल नहीं हूँ क्योंकि मैंने कोई दान-पुण्य नहीं किया।’’*

प्रहरी ने चारों आदमियों की ओर ध्यान से देखा। फिर उसने पहले आदमी से प्रश्र किया- *‘‘तुम अपना परिचय दो और वह काम बताओ, जिससे तुम्हें स्वर्ग में स्थान मिलना चाहिए।’’*

वह आदमी बोला- *‘‘मैं एक राजा हूँ। मैंने तमाम देशों को जीता। मैंने अपनी प्रजा की भलाई के लिए बहुत से मंदिर, मस्जिद, नहर, सड़क, बाग-बगीचे आदि का निर्माण करवाया तथा ब्राह्मणों को दान दिए।’’*

प्रहरी ने प्रश्र किया- *‘‘दूसरे देशों पर अधिकार जमाने के लिए तुमने जो लड़ाइयां लड़ीं, उनमें तुम्हारा खून बहा कि तुम्हारे सैनिकों का? उन लड़ाइयों में तुम्हारे परिवार के लोग मरे कि दोनों ओर की प्रजा मरी?’’*

*‘‘दोनों ओर की प्रजा मरी।’’* उत्तर मिला।

*‘‘तुमने जो दान किए, प्रजा की भलाई के लिए सड़कें, कुएं, नहरें आदि बनवाई, वह तुमने अपनी मेहनत की कमाई से किया या जनता पर लगाए गए ‘कर’ से?’’*

इस प्रश्र पर राजा चुप हो गया। उससे कोई उत्तर न देते बना।

प्रहरी ने राजा से कहा- *‘‘लौट जाओ। यह स्वर्ग का द्वार तुम्हारे लिए नहीं खुल सकता।’’*

अब बारी आई दूसरे आदमी की। प्रहरी ने उससे भी अपने बारे में बताने को कहा।

दूसरे आदमी ने कहा- *‘‘मैं एक व्यापारी हूँ। मैंने व्यापार में अपार धन संग्रह किया। सारे तीर्थ घूमे। खूब दान किए।’’*

*‘‘तुमने जो दान किए, जो धन तुमने तीर्थों में जाने में लगाया, वह पाप की कमाई थी। इसलिए स्वर्ग का द्वार तुम्हारे लिए भी नहीं खुलेगा।’’* प्रहरी ने व्यापारी से कहा।

अब प्रहरी ने तीसरे आदमी से अपने बारे में बताने को कहा- *‘‘तुम भी अपना परिचय दो और वह काम भी बताओ जिससे तुम स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर सको।’’*

तीसरे आदमी ने अपने बारे में बताते हुए कहा- *‘‘मैं एक धर्म गुरु हूँ। मैंने लोगों को अच्छे-अच्छे उपदेश दिए। मैंने हमेशा दूसरों को ज्ञान की बातें बताई एवं अच्छे मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित किया।’’*

प्रहरी ने धर्मगुरु से कहा- *‘‘तुमने चंदे के पैसों से पूजा स्थलों का निर्माण करवाया। तुमने लोगों को ज्ञान और अच्छाई की बातें तो जरूर बताईं मगर तुम स्वयं उपदेशों के अनुरूप अपने आपको न बना सके। क्या तुमने स्वयं उन उपदेशों का पालन किया? स्वर्ग का द्वार तुम्हारे लिए भी नहीं खुलेगा।’’*

अब चौथे आदमी की बारी आई। प्रहरी ने उससे भी उसका परिचय पूछा।

उस आदमी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया- *‘‘मैं एक गरीब किसान हूँ। मैं जीवन भर अपने परिवार के भरण-पोषण हेतु स्वयं पैसों के अभाव में तरसता रहा। मैंने कोई दान-पुण्य नहीं किया। इसलिए मैं जानता हूँ कि स्वर्ग का द्वार मेरे लिए नहीं खुल सकता।’’*

प्रहरी ने कहा- *‘‘नहीं तुम भूल रहे हो। एक बार एक भूखे आदमी को तुमने स्वयं भूखे रह कर अपना पूरा खाना खिला दिया था, पक्षियों को दाना डाला और प्यासे लोगों के लिए पानी का इंतजाम किया था।’’*

*‘‘हां मुझे याद है- लेकिन वे काम तो कोई बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं थे। मुझे बस थोड़ा सा स्वर्ग में झांक लेने दीजिए।’’* किसान ने विनती की।

प्रहरी ने किसान से कहा- *‘‘नहीं तुम्हारे ये काम बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। आओ! स्वर्ग का द्वार तुम्हारे लिए ही खुला है।’’*

*अपनी मेहनत की कमाई से भलाई के कार्य करो, दूसरों का सुधार करने की अपेक्षा स्वयं का सुधार करो।*

Ashish Shah
9825219458