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उजाले की ओर - 26


उजाले की ओर

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आ.,स्नेही एवं प्रिय मित्रों

आप सबको प्रणव भारती का नमन

जीवन अनमोल है लेकिन हमारी कितनी ही क्रियाएँ बस गोलमगोल हैं |हम जानते हैं कि छोटा सा जीवन है,जैसे-जैसे उम्र के दौर गुज़रते रहते हैं हमें यह संवेदना बहुत गहराई से कचोटने लगती है कि हमारा जीवन कम होता जा रहा है |हमारे संगी-साथी शनै:शनै: साथ छोड़ने लगते हैं और सदा के लिए गुम हो जाते हैं |ऐसे समय में हममें कुछ समय का वैराग्य उत्पन्न होने लगता है किन्तु कुछ समय पश्चात वही ढ़ाक के तीन पात ! कभी-कभी हम जान-बूझकर सही-गलत का निर्णय नहीं ले पाते और कई बार अनजाने में ही सही ‘ट्रैक’ पर चलते-चलते हमारी गाड़ी के पहिए उल्टे ‘ट्रैक’ पर मुड़ जाते हैं |ऐसा नहीं है कि हर बार हमारी त्रुटि होती ही है ,कई बार परिस्थितिवश हम जो नहीं चाहते ,वह कार्य कर बैठते हैं जिसका परिणाम दुखद होता है |हम अपने समीप से समीप व प्रिय संबंध को भी कटु वचनों से नवाज़ने में कोई कोताही नहीं बरतते और जानने-समझने पर भी उसका अफ़सोस नहीं करते क्योंकि हम जान बूझकर ही सामने वाले को अपशब्दों से नवाजते हैं |

एक बार एक बच्चे ने अपने पिता से पूछा ;

“पिता जी! सही व गलत क्या है ?”

पिता को समझ में नहीं आया कि उस छोटे बच्चे को किस प्रकार समझाया जाए कि सही और गलत में क्या अंतर है? उन्होंने घूमकर बच्चे की माँ की ओर देखा जो धीमे-धीमे मुस्कुरा रही थीं |

“माँ ! आप ही बता दीजिए कि सही और गलत में क्या अंतर है?हमें कौनसा काम करना चाहिए और कौनसा काम नहीं करना चाहिए ?”बच्चे ने माँ से पूछा |

“तुम्हें क्रोध आता है न ?”माँ ने शांति से पूछा |

“क्रोध तो सबको आता है ,यह तो प्राकृतिक है | ” बच्चे के स्थान पर उसके पिता ने उत्तर दिया |

“बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप ,क्रोध सबको आता है ,यह प्राकृतिक है किन्तु क्रोध के साथ प्रेम,स्नेह ,दया,माया-ममता भी तो शरीर की संवेदनाएँ हैं,ये भी तो प्राकृतिक हैं|”

“तुम क्या कहना चाहती हो ,ऐसे यह छोटा बच्चा कैसे सही और गलत के भेद को समझ सकता है ?” बच्चे के पिता उलझ से गए थे |

“तुम्हें प्यार अच्छा लगता है या क्रोध ?”

“क्रोध किसको अच्छा लगता है ?सबको प्रेम ही अच्छा लगता है |आप जब मुझे डांटती है मुझे तब अच्छा नहीं लगता ,जब आप प्यार करती हैं तब मुझे अच्छा लगता है |”बच्चे ने मासूमियत से कहा |

“बस यही बात है ,ये समझना बहुत आसान है कि जो बात हमें अच्छी नहीं लगती,वह बात किसीको भी अच्छी नहीं लगती इसलिए हमें वही करना चाहिए जो हमें अच्छा लगता हो | क्योंकि दूसरे को भी वही अच्छा लगता है ,जो हमें अच्छा लगता है |”

“समझ गया,इसलिए हमें वही व्यवहार करना चाहिए जो हम चाहते हैं कि दूसरे हमसे करें लेकिन हम ऐसा करते नहीं हैं क्योंकि हम दूसरे की भावनाओं का मखौल उड़ाना चाहते हैं किन्तु हम चाहते हैं कि अन्य लोग हमसे अच्छी प्रकार बातें करें |”बच्चा समझदार था|

“तो सही यह है कि हमें दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए ?” बच्चे ने पुन: अपनी माँ के समक्ष मासूम प्रश्न परोस दिया |

“बिलकुल बेटा ! जो हमारे लिए सही है ,वही दूसरों के लिए भी सही है और जो हमारे लिए गलत और कटु है वह दूसरों के लिए भी|प्रत्येक मनुष्य में एकसी ही संवेदना होती इसलिए हमें अपने व्यवहार को तोलकर ही सबसे व्यवहार करना चाहिए |”

“तो हमें सबसे दया,माया,ममता,करुणा का व्यवहार करना चाहिए क्योंकि हम अपने लिए वैसा ही व्यवहार चाहते हैं |”बच्चे के मन में अपने प्रश्न की स्पष्टता हो रही थी |

कभी-कभी हम बड़ों को भी अपने व्यवहार के बारे में पता नहीं चलता ,हम जाने-अनजाने में दूसरों से ऐसा व्यवहार कर बैठते हैं जो हम नहीं चाहते कि हमसे किया जाय|ये बहुत छोटी-छोटी किन्तु महत्वपूर्ण बातें हैं जिनसे संबंध सुखद बने रह सकते हैं |कुछ बातों की स्पष्टता बालपन में ही होनी आवश्यक है जिससे बड़े होने पर हम सही और गलत को खोजने में न उलझें |ये ही संस्कार होते हैं जो बालपन से हमारे मस्तिष्क में पड़ जाते हैं और हमारे व्यक्तित्व को सुंदर बनाते हैं |

कल-कल बहता पानी बन जा

प्रेम-प्रीत के गीत गुनगुना

सबकी राम-कहानी बन जा -------

प्रेम व स्नेह के बोल सबको जीवन में रवानगी देते हैं और हमें छोटे से जीवन को सुंदर तरीके से बिताने का मार्ग प्रदर्शित करते हैं |

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती