UJALE KI OR - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

उजाले की ओर - 28

उजाले की ओर

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स्नेहिल मित्रो

सस्नेह नमस्कार

दुनिया रंग-बिरंगी भाई ,दुनिया रंग-बिरंगी ! सच है न दुनिया रंग-बिरंगी तो है ही साथ ही एक गुब्बारे सी नहीं लगती ?जैसे अच्छा-ख़ासा मनुष्य अचानक ही चुप हो जाता है ,जैसे अचानक ही कोई तूफ़ान उभरकर कुछ ऐसा सामने आ जाता है कि पता ही नहीं चलता कब ,क्या हो रहा है ? फिर भी हम न जाने किस पशोपेश में रहते हैं,किस गुमान में रहते हैं,हमें लगता है कि हम अमर हैं और सदा ही दुनिया में बसने के लिए आए हैं|यहीं हम गलती कर जाते हैं और आँखें बंद करके अपने सामने आने वाली किसी भी चीज़ में इतने लिप्त हो जाते हैं कि जब हमारे जाने का समय आता है तब हमें अपने से जुड़ी हुई वस्तुएं छोड़ने में बहुत कष्ट होता है | यह सब चित्त, मन की अशांति के कारण होता रहता है |अत: हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि वास्तव में हमारा चित्त शांत क्यों नहीं है ?

जब हमें इसका आभास हो जाता है कि हमारा मन अशांत है,रोगी है,पीड़ित है तब हम उसका वास्तविक कारण खोजने का प्रयास करते हैं जो बहुत आवश्यक भी है किन्तु कभी यह कारण मिल पाता है और कभी हम इसे तलाशते व भटकते हुए रह जाते हैं |

वास्तव में आज हम सब अपने अहं को हर पल ओढ़े–बिछाए रहते हैं जिससे हम दूसरों से कुछ ऎसी अपेक्षाएं करते हैं जो पूरी नहीं हो पातीं |जब वे पूरी नहीं हो पातीं तब हमें और अधिक कष्ट होता है जो हमारे जीवन को और अधिक असहज बना देता है |

वास्तव में अपेक्षाओं का होना ही हमें सरल,सहज जीवन की ओर जाने में बाधक होता है |यह अहं तत्व बीमारियों की जड़ है जो हमें मानसिक रोगी बना देता है,मानसिक रोग से शारीरिक रोग होते हुए कहाँ देरी लगती है ? फिर होता है हमारी दुखद यात्रा का प्रारंभ, जीवन के अंत तक पहुँचते हुए भी हमें कहाँ देरी लगती है ?दुनिया का रंग-बिरंगा सुन्दर चित्र कब?कैसे? कहाँ ? अंत पर पहुंचा देता है ,कुछ पता ही नहीं चलता !!अहं व्यक्ति की संवेदनशीलता का ह्रास भी कर देता है,व्यक्ति केवल अपने लिए सोचता है.वह अधिक और अधिक स्वार्थी होता जाता है|इससे उसकी रिश्तों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है और वह सबसे अलग होता जाता है |एक समय ऐसा भी आता है कि वह बिलकुल एकाकी हो जाता है और इसी एकाकीपन को ढोते हुए वह इस दुनिया से कूच कर देता है|अत: जीवन को सही रूप से चलाने के लिए स्वयं को पहचानने की ,स्वयं को सीमाओं में रखने की आवश्यकता है जिससे हम सरल व सहज रूप से जीकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें|मनुष्य जन्म लेता है तो स्वाभाविक है उसकी मृत्यु भी सुनिश्चित है किन्तु उसका जन्म लेना उसके ,परिवार के ,समाज के और देश के लिए कितना सुखकारी व सफ़ल रहता है यह बहुत महत्वपूर्ण है |

जब व्यक्ति प्रेममय हो जाता है तब वह अपने अहंकार को भुला सकता है,अहं के भार से युक्त व्यक्ति प्रेम कर ही नहीं सकता ,प्रेम फ़ैलाने की तो दूर की बात है |उसे सरल होना होगा तब ही वह प्रेम की वास्तविकता को समझ सकता है अन्यथा तो जीवन में वह केवल शारीरिक आवश्यकता को ही प्रेम समझता रहेगा और इसी अहं में अपना पूर्ण जीवन व्यतीत कर देगा कि मैंने प्रेम किया किन्तु मुझे उअका प्रतिफल ही नहीं प्राप्त हुआ;

हमने प्रेम को

बंद कर दिया है

एक छोटी सी बोतल में

अहं की डाट लगा दी है
कैसे सुवासित होगा प्रेम

घुटकर दम तोड़ देगा

और हम ,रह जाएंगे

हाथ मलते -----------

आओ,नये इस वर्ष में

बदल लें ,प्रेम की परिभाषा

और अहं की डाट खोलकर

प्रसृत कर दें सुवास

सबके भीतर -----

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती