Faith in Hindi Love Stories by Lalit Rathod books and stories PDF | आस्था

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आस्था

लंबा वक्त समय बिताने के बावजूद हम कभी एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल नहीं हुए। यही त्रासदी हैं की हमने कभी अपना जन्मदिन साथ नहीं मनाया। बीते दो सालों से जन्मदिन पर बधाई मैसेज का धन्यवाद अभी तक टाल रहा। अब शायद उसे भी धन्यवाद सुनने में दिलचस्पी ना हो। असल में किसी संबध के खत्म होने के बाद एक जन्मदिन की तारीख बची रह जाती है, जो समय से पहले याद होती है। और मुझे यह दिन अदालत में पेशी देने जैसा लगता है, जिसमें एक दिन पेशी देने के बाद हम फिर सालभर के लिए बाईजत बरी हो जाते हैं। दफ्तर में काम की व्यस्तता के बीच जन्मदिन पर बधाई देना याद था। सालों बाद एक दिन के लिए मैसेज करने के कई अर्थ थे। लेकिन उसे सच में बधाई देना चाहता था या बस औपचारिक? यह अभी तक तय नहीं हो सका। मैसेज भेजनें से पहले की बैचेनी पुरानी थी। धड़कने की गति तेज होने लगी। अपने सालों के बुजुर्ग हो चुके फैसलों को याद करने लगा, जो फिर एक बार मुझे सख्त बना सके और मैसेज करना सालभर के लिए टल जाए। लेकिन कोई फैसले रोकने नहीं पहुंचे। मैंने लंबा मैसेज लिखकर उसे भेज दिया। इंतजार करना नहीं पड़ा तुरंत उसने मैसेज देख लिया। शायद उसे लिखने की आहट सुनाई देती होगी? या फिर किसी निजी से बात करने में व्यस्त..! यह सोचने पर एक निराशा पास से गुजर गई, जिसे केवल महसूस कर सका। मैसेज पढ़कर जवाब में बहुत कुछ उसने कह दिया, जिसकी मुझे कतई उम्मीद नहीं थी। उसके अधिकतर शब्दों में अतीत में हुए गलतियों की माफ़ी थी। मैं तुम्हें फिर दुःखी करना नहीं चाहती..,मुझे अपनी गलतियों का एहसास हैं। यह पढ़ते हुए ना जाने क्यों ऐसा लगा मानो उसके शब्द भीतर मर चुके पेड़ को फिर पानी देकर जीवित करना चाहते हो। संवाद करना एक प्यासे पेड़ को पानी देने जैसा है। पानी पाते ही थोड़ी देर में उसकी जड़े फैलने लगी, और मुझ तक पहुंचने का प्रयास करने लगी। उस पेड़ को पानी देने के बाद एक अजीब ग्लानी महसूस हुई। उस वक्त भीतर की आवाज सुन सकता था की इस पेड़ को मुझे पानी नहीं देना चाहिए। अब यह फिर बढ़ने लगा है, लेकिन इसे जीवन में शामिल करने कोई जगह भी नहीं बची। अगर इसे रखना पड़ा तो जीवन का एक हिस्सा मुझसे नाराज हो जाएगा जिसमें एकांत जीवित है। इस वक्त अपने सपनों और मेहनत के बारे में सोच रहा, जो मेरे साथ जुड़े हुए है। उसके जवाब पढ़ने के बाद आंखों में टीस थी। शायद इस वक्त पेड़ को जगह देने का विचार कर रहा था। तभी अचानक बुजुर्ग फैसलों ने सब ख़त्म कर दिया। मैसेज में अलविदा कहकर बात ख़त्म किया। आज भी अलविदा शब्द पर उसने दुख व्यक्त किया। संवेदनाएं उसके प्रति बढ़ने लगी थी। मैंने सारा मैंसेज डीलिट किया। मानों जीवन से उस पेड़ को निकाल दिया जिसकी जड़े फिर एक जगह बनाने में लगी हुई थी। कुछ देर तक शांत रहा फिर भविष्य के फैसलों की शक्ल का व्यक्ति पास बैठा नजर आया। कुछ समय की बातचीत अतीत को वर्तमान में ले आई थी। लेकिन अतीत तो कब का मर चूका है। मुझे फिर सामान्य होने में देर नहीं लगी। काम की व्यस्तता में इस बार मुझे जन्मदिन याद नहीं रहा। आस्था.🍁