Prem ki bhavna - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेम की भावना (भाग-7)

भावना घर छोड़कर गयी तो गयी साथ मे तलाक़ के वो पेपर्स भी ले गयी जो मैंने उसे डराने धमकाने के लिए बनवाये थे। उस दिन जब उसका पहला पत्र आया था, और उसमे भावना ने तलाक के पेपर्स का उल्लेख किया तो मैं दंग रह गया..!
हां एक दो बार भावना ने फ़ोन पर जरूर उसने ये बात कही थी। पर वो हर बात में ही तलाक़ की धमकी देने वाली है ये तो कल्पना से भी परे था मेरे लिए।

मैंने आज निश्चय किया था ऑफिस का काम निपटा कर अपने साले साहब रवि को कॉल करूँगा। ऑफिस से फ्री होकर मैंने रवि को कॉल किया।

रवि के कॉल रिसीव करते ही मैं उससे बोला,"नमस्कार भाई साहब..! क्या हाल चाल...??" अब पत्नी का बड़ा भाई है तो थोड़ा सम्मान तो देना ही था..!!

रवि ने जवाब दिया,"ठीक हूँ कंवर साहब..आप सुनाइये!!" हमारे यहाँ छोटी बहन के पति को या तो जमाई साहब या कंवर साहब कहकर संबोधित किया जाता है। रवि मुझसे दोनो कहता था।
आखिर में भी उसकी छोटी बहन का पति हूँ..! छोटी क्यों..? मैं उसकी छोटी और बड़ी दोनो ही बहनों का पति हूँ अब तो..!

बहुत देर तक मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया ना मिलने पर रवि ने कॉल डिसकनेक्ट कर के फिर से कॉल बैक किया। मैंने कॉल रिसीव करते ही मुझे जाने क्या सूझा मैंने उससे,"थोड़ी देर बाद कॉल करता हूँ !!" कहकर फ़ोन रख दिया !!



आज पूरे एक सप्ताह बाद भावना का पत्र मिला मुझे..! जैसे ही ऑफिस पहुंचकर केबिन में गया डेस्क पर एनवलप रखा हुआ था!! मैं समझ गया ये भावना का लैटर है..!!!

लेकिन मुझे थोड़ी नाराज़गी थी भावना से इस लिए लैटर उठाकर चुपचाप ड्रावर में रख दिया..! लेकिन फिर मुझे लगा कि,"कहीं लैटर रख कर भूल गया तो...??" ड्रावर में लैटर रखने का विचार कैंसिल करते हुए मैंने उसे अपनी शर्ट की जेब मे ही रख लिया...!!!!

काम बहुत था..!!एक दो मीटिंग भी थी इस चक्कर मे मेरी भावना लैटर पढ़ना है, ये बात दिमाग से उतर गई.!!

थका मांदा से घर पहुंचा..!! आज तो इतनी जगह जाना हुआ, इतने लोगों से मिलना हुआ की पूरा बदन दर्द करने लगा !! मैं घर पहुंचते ही सीधे बाथरूम में घुसा..!
शर्ट निकाल कर पानी की बाल्टी में डाली, पसीने की इतनी भयंकर बदबू आ रही थी उसमें से..! नहाकर मैं आराम से बेड पर लेट गया..!!

रात को सुधा ने आवाज़ लगाई खाने के लिए..!! मैं खाने की टेबल पर पहुंचा !! मम्मी और सुधा दोनो बातें कर रही थी अगले महीने सुधा की गोद भराई करनी थी ।
मम्मी सुधा से कहने लगी,"एक काम करना सुधा, तुम वो लैटर या कार्ड जो भी है उसपर नाम लिख देना सबके..!!"

लैटर शब्द सुनते ही मेरा मुंह खुला का खुला और हाथ का निवाला हाथ मे ही रह गया..!! मैंने उस निवाले को थाली में ही रखा और थाली को हाथ जोड़कर उठ खड़ा हुआ।

मम्मी कहने लगी,"अरे खाना तो खा ले !!कहां जा रहा है..???"
मैं मम्मी से कहने लगा,"मम्मी वो सर को एक जरुरी डॉक्यूमेंट मेल करना था..! मैं भूल गया..!!अभी आता हूँ..!!"
मैं भाग कर रूम में आया और बाथरूम में घुसा । क्योंकि वो शर्ट मैंने पानी मे भिगो दी थी। मैंने शर्ट को पानी मे से निकाला और उसकी जेब मे लैटर देखने लगा ! लैटर हाथ तो आया लेकिन जिस हाल में आया वो बयाँ करना मुश्किल था!!
पता था मुझे अगर मैंने इस लैटर को खोलने की कोशिश की तो ये फट जाएगा क्योंकि पूरी तरह से गल चुका था !! रात थी तो धूप की भी कोई उम्मीद नही थी जो मैं उस लैटर को सुखा लेता..!!!

बहुत गुस्सा आया उस समय मुझे अपने आप पर..! "क्या बिगड़ जाता मेरा अगर मैं वो लैटर तभी पढ़ लेता तो..??? भावना पर नाराजगी थी इसलिए लैटर नही पढ़ रहा था..!! वहां कौनसा भावना मुझे देख रही थी जो मैं अपनी नाराजगी जता रहा था..!!"

फिर भी मैंने भगवान को हाथ जोड़ते हुए एक बार लैटर खोलने की कोशिश की..!! मेरी प्रार्थना सफल हुई..! इंवेलोप से लैटर तो सही सलामत निकल आया लेकिन उस लैटर में जो कुछ लिखा था वो मिट गया..!!!!!
कुछ धुंधला से दिखाई दे रहा था !! शायद एड्रेस था कहीं का..!! "लेकिन कहां का..?? कौन सी जगह है ये..??" जैसे अनेक सवाल दिमाग मैं घूमने लगे।

अपनी भावना का लैटर ना पढ़कर मैं बहुत बड़ी बेवकूफी तो कर ही चुका था इसलिए मैंने सोच लिया था कि, अब ये एड्रेस जहां का भी है..! मैं जाऊंगा वहां..!!"

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