Chandra Prabha - Part (2) books and stories free download online pdf in Hindi

चन्द्र-प्रभा--भाग(२)

क्या हुआ? सूर्यप्रभा!आप मुझे देखकर सर्वप्रथम प्रसन्न हुई,इसके उपरांत अप्रसन्न हो उठीं, ऐसा क्या सोचा आप ने मेरे विषय में,भालचन्द्र ने सूर्यप्रभा से पूछा।।
कुछ नहीं राजकुमार,बस कुछ सोचकर मन में कुछ विचार आए, सूर्यप्रभा बोली।।
ऐसे भी क्या विचार आए,तनिक मुझे भी बताइए सूर्यप्रभा!भालचन्द्र ,सूर्यप्रभा से बोला।।
यही कि आप एक राजकुमार हैं और मैं एक मछुआरे की पुत्री हूं, मेरा आपसे वार्तालाप करना उचित नहीं है, सूर्यप्रभा बोली।।
परन्तु क्यो? सूर्यप्रभा! ऐसा क्यों सोच रही हैं आप, ऐसे विचार तो मेरे मन में कभी भी नहीं आए,भालचन्द्र बोला।।
मुझसे आपकी इतनी निकटता, उचित नहीं है,आप जो स्वप्न देख रहे हैं,वो कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता,सूर्यप्रभा बोली।।
कैसे पूर्ण नहीं हो सकता,आप मेरा साथ देंगी ना ! तो अवश्य पूर्ण होगा,भालचन्द्र बोला।।
परन्तु आपके पिता महाराज और माताश्री को ये कदापि स्वीकार नहीं होगा और मेरे लिए ऐसे विचार मन में लाना पूर्णतः मूर्खता होगी, इसलिए यही अच्छा होगा कि आप मुझसे मिलने का प्रयास ना करें, ब्यर्थ है ऐसा स्वप्न देखना,कोई लाभ नहीं है ऐसे निरर्थक वार्तालाप का और इतना कहकर सूर्यप्रभा उस स्थान से चली गई।।
सूर्यप्रभा के ऐसे शुष्क व्यवहार ने भालचन्द्र के हृदय को तोड़कर रख दिया,भालचन्द्र के निश्छल प्रेम का सूर्यप्रभा ने अपमान कर दिया था,उसके नयन अश्रु से भर गए थे परन्तु अश्रु लुढ़क कर बाहर ना सकें,भालचन्द्र का मन द्रवित हो आया।।
सूर्यप्रभा रोते हुए अपनी कुटिया के भीतर घुसी और जाकर अपने बिछावन पर लेट गई, उसके नयनों से अश्रुधारा निरन्तर बह रही थीं, उसके नयन रोते रोते रक्त से लाल हो गए थे,उसे बहुत कष्ट हो रहा था कि उसने ऐसा शुष्कता पूर्ण व्यवहार क्यों किया राजकुमार से,वो क्या सोच रहें होगें मेरे विषय में कि कितनी अशिष्ट हूँ मैं और आज भी मैं उनका नाम नहीं पूछ पाई,कितनी अविवेकी हूँ मैं,ये सोचते सोचते एकाएक वो हंस पड़ी और मन में सोचा, कदाचित् अब के राजकुमार मिलेगें तो अवश्य उनका नाम पूछूँगी, परन्तु अब मैं उनसें दृष्टि कैसे मिला पाऊँगी, मैने तो उनसे कितना कटु व्यवहार किया,कदापि राजकुमार कल फूलझर वन ना आए तो क्या करूँगी,कैसे उनसें क्षमा माँगूगीं और मैने क्षमा मांगी किन्तु उन्होंने क्षमा नहीं किया तो___
सूर्यप्रभा ये सब सोच ही रही थीं कि सुभागी ने एकाएक सूर्यप्रभा को पुकारा___
ओ...प्रभा...पुत्री प्रभा कहाँ हैं तू?आजा पुत्री!मै धान कूटते कूटते थक गई,तनिक मेरी सहायता कर दे।।
आती हूँ मां...आती हूँ, सूर्यप्रभा बोली।।
और मां बेटी दोनों धान कूटने मे लग गईं।।
रात्रि हुई,आकाश में तारे टिमटिमा रहेंं थे,वातायन(खिड़की)में लगा हुआ आवरण(परदा) वायु के झोंके से उड़ा जा रहा हैं,कक्ष की भित्ति पर लगी हुई सुन्दर मनमोहक चित्रकारी,पुष्पों से सुसज्जित बड़े बड़े फूलदान और राजकुमार भालचन्द्र अपने रेशमी बिछावन पर लेटे हुए बहुत दुखी प्रतीत हो रहे थे।।
भालचन्द्र का मन आज बहुत ही विक्षिप्त था,सूर्यप्रभा के कटु शब्दों ने आज उसके हृदय को बेध दिया था,परन्तु भालचन्द्र ने सोचा कि मैं ऐसे हार नहीं मानूँगा, मै एक दिन अवश्य ही सूर्यप्रभा का हृदय जीतकर रहूँगा,कदाचित् मेरा प्रेम सच्चा हैं तो सूर्यप्रभा को मेरा प्रेम स्वीकारना करना ही पड़ेगा और यही सोचते सोचते भालचन्द्र को निद्रा रानी ने घेर लिया।।
इधर सूर्यप्रभा का अन्तःमन भी आज दुःखी था,उसने आज राजकुमार को बहुत कष्ट पहुँचाया था,कितना कठिन होता हैं किसी को कटुवचन बोलना और उसी का पश्चाताप सूर्यप्रभा को हो रहा था,वो आज कैसे इतनी कठोर हो गई, क्योंकि वो इतना कटु तो किसी से भी नहीं बोलती, उसके मन में भावनाओं की बाढ़ सी बह चली थीं और कुछ समय पश्चात् भावनाओं की बाढ़ की गति मंद होती चली गई और सूर्यप्रभा स्वप्न नगरी में विचरण करने लगी।।
प्रातःकाल हुई, सूर्य की किरणों ने सारी धरती पर अपना डेरा डाल दिया,पंक्षियों की चहचहाहट ने वातावरण में मिठास घोल दी,कुमुदनियाॅ स्वच्छ जल में स्नान करती हुई प्रतीत हो रही हैं।
सूर्यप्रभा आज पुनः कलश लेकर झरने से जल भरने चल पड़ी, झरने के निकट पहुंचीं ही थी कि उसने अपनी दृष्टि चहुंओर दौड़ाई, परन्तु कोई भी दिखाई ना दिया, उसने उदास हो कर अपनी दृष्टि नीचे की और झरने पर जल भरने पत्थरों पर चढ़ गई,ऊपर पहाड़ों से बहते हुए झरनों का जल नीचे छोटे से बने कुण्ड में एकत्र होता था, जैसे ही सूर्यप्रभा ने अपने कलश को झरने पर जल भरने के लिए लगाया तो उसकी दृष्टि जलकुण्ड पर पड़ी, कुण्ड में एक जलीय सर्प को देखकर वो भयभीत हो उठीं और अपना संतुलन खो बैठी, कदाचित वो जल कुण्ड में गिर पड़ी,तभी उसे वहां किसी के हंसने का स्वर सुनाई दिया।।
उसने अपनी दृष्टि दौड़ाई तो एक विशाल वृक्ष की ओट से राजकुमार हंसते हुए निकल कर आए, प्रभा राजकुमार को देखकर कुछ लजा सी गई और बोली___
राजकुमार!आप, मुझे इस अवस्था में देखकर आपको अत्यधिक आनन्द आ रहा है,क्रोधित होकर जलकुण्ड से बाहर आते समय उसने अपना कलश उठाया और जाने लगी।।
तभी भालचन्द्र ने सूर्यप्रभा का हाथ पकड़ते हुए कहा__
रूठ गई प्रिए! ऐसे मत जाओ,क्यो बालकों की भांति हठ कर रही हो, मेरे प्रेम को स्वीकार लो,वचन देता हूं कभी भी मेरा प्रेम कम नहीं होगा।‌
आप यहां पुनः आ गए, प्रभा ने भालचन्द्र से पूछा।।
हां,आना पड़ा आप मेरा हृदय चुराकर कर लें गई और ऐसे कटु वचन बोलकर गई कि पुनः अपने प्रश्नों का उत्तर लेने आना पड़ा और आपका कलश भी तो लौटाना था जो आप कल भी ना ले जा पाईं, राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
लाइए! मेरा कलश और मेरा हाथ छोड़िए, मुझे जाने दीजिए, सूर्यप्रभा बोली।।
पहले ये बताओ कि कल फिर मिलोगी,तभी जाने दूंगा, नहीं तो घोड़े पर बैठाकर अपने राज्य ले जाऊंगा और पिताश्री से कहूंगा कि ये हैं सबसे बड़ी अपराधी,भालचन्द्र बोला।।
अपराधी!और मैं, ऐसा भी क्या अपराध किया है भला मैंने,बताने का कष्ट करेंगे, प्रभा ने भालचन्द्र से पूछा।।
हां.. हां अपराध नहीं देवी!महाअपराध किया है आपने,भालचन्द्र बोला।।
ऐसा कौन सा महाअपराध? सूर्यप्रभा ने पूछा।।
आपने मेरा हृदय चुराया है,भालचन्द्र बोला।।
इतना सुनकर प्रभा ने अपने दोनों कलश उठाएं और जाने लगी।।
अच्छा! जा तो रही हो,कल मिलोगी,भालचन्द्र ने पूछा।।
हां! परन्तु मैं किसी अपरिचित से नहीं मिलती,प्रभा जाते हुए बोली।।
मैं नीलगिरी राज्य का राजकुमार भालचन्द्र, राजकुमार ने उत्तर दिया।।
और इतना सुनकर प्रभा लजाते हुए भाग गई।।
अब चन्द्र और प्रभा हर दिन किसी वृक्ष की छांव तले मिलते,प्रेमभरी बातें करते, परन्तु एक दिन किसी मछुआरे ने दोनों को साथ में देख लिया और वैद्यनाथ से कह दिया।।
वैद्यनाथ को इस विषय मे ज्ञात हुआ तो उसने प्रभा से पूछा___
पुत्री प्रभा!जो मुझे अवगत हुआ हैं, क्या वो सत्य हैं , सत्य हैं तो क्या हमे उस राजकुमार के विषय मे कुछ बता सकती हो , तुम्हारे जीवन के विषय मे निर्णय लेने का अधिकार हमें भी मिलना चाहिए,क्योंकि हम तुम्हारे माता पिता हैं।।
जी!बाबा,वो नीलगिरी राज्य के राजकुमार भालचन्द्र हैं, प्रभा बोली।।
तो क्या हम उनसे वर्तालाप कर सकते हैं, वैद्यनाथ बोले।।
जी,बाबा! जब भी राजकुमार भालचन्द्र फूलझर वन आएंगे, मैं आप को सूचित करती हूँ।।
और एक दिन भालचन्द्र को प्रभा वैद्यनाथ से मिलवाने अपनी कुटिया में लाई।।
कुछ साधारण से वार्तालाप के उपरांत सुभागी बोली___
राजकुमार आपको एक बात और बतानी हैं, इसलिए हमने आपको बुलाया हैं।।
जी,आप निःसंकोच कह सकती हैं, यद्यपि आपको किसी प्रकार का कोई संदेह है, राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
जी,राजकुमार आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि प्रभा भी एक राजकुमारी हैं और वो हमारी पुत्री नहीं हैं,उसके माता पिता को एक जादूगरनी ने रहस्यमयी शीशमहल में बंदी बनाकर रखा हैं,सुभागी बोली।।
ये सुनकर प्रभा भी आश्चर्यचकित थी कि उसे ये ज्ञात ही नहीं था कि वो एक राजकुमारी है।।
परन्तु किसी ने भी उस रहस्यमयी शीशमहल से उन्हें छुड़ाने का प्रयत्न नहीं किया, राजकुमार भालचन्द्र ने सुभागी से पूछा।।
जी,किया था अमरेन्द्र नगर के राजा कुशालसिंह ने प्रयत्न किया था,परन्तु उस जादूगरनी ने उन्हें भी बंदी बना लिया, इसके उपरांत किसी ने कोई प्रयास नहीं किया, सुभागी बोली।।
परन्तु आप लोग प्रभा को किस प्रकार वहाँ से सुरक्षित बचा लाए,राजकुमार भालचन्द्र ने सुभागी से पूछा।।

क्रमशः__
सरोज वर्मा....

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