Chandra Prabha - Part (4) books and stories free download online pdf in Hindi

चन्द्र-प्रभा--भाग(८)

सोनमयी की सुन्दरता को देखकर सहस्त्रबाहु की आंखें चौंधिया गई,इतनी सुन्दर युवती उसने पहले कभी नहीं देखी थी, इतनी सौम्यता और साथ में इतनी निडरता, उसने पहली बार किसी युवती में देखी थी।।
क्षमा कीजिए,राजकुमार भालचन्द्र! मेरे कारण आप आहत हुए,भूलवश मैने आप पर खंजर से प्रहार किया,सोनमयी राजकुमार भालचन्द्र से बोली।।
कोई बात नहीं बहन!जैसे हमने आपको शत्रु समझ लिया,उसी प्रकार आपने भी हमें शत्रु समझ लिया,भालचन्द्र ने सोनमयी से कहा।।
आपने मुझे बहन कहा हैं तो इस बहन को भी अपना कर्तव्य निभाने दीजिए,पास ही मेरी झोपड़ी है, चलकर वहाँ विश्राम कीजिए और बाबा आपका उपचार भी कर देगें, सोनमयी बोली।।
किन्तु मित्र! इतना विश्वास आप किसी अपरिचित पर कैसे कर सकतें हैं,सहस्त्रबाहु बोला।।
उसी प्रकार मित्र! जिस प्रकार मैने आप पर विश्वास कर लिया, भालचन्द्र ने सहस्त्रबाहु से कहा।।
राजकुमार!आप तो बहुत ही समझदार लगते हैं, आपने कैसे कैसे नासमझ लोगों को अपना मित्र बना रखा है, सोनमयी बोली।।
मैं और नासमझ! तुम बड़ा समझदार समझती हो स्वयं को,सहस्त्रबाहु चिढ़कर बोला।।
मैं नासमझों से बात नहीं किया करती,चलिए राजकुमार, जितनी शीघ्रता से आपका उपचार हो जाए तो अच्छा, सोनमयी बोली।।
परन्तु, इतना समय नहीं है हमारे पास,हम किसी को खोजने आए है, भालचन्द्र बोला।।
परन्तु किसे ? राजकुमार! सोनमयी ने पूछा।।
राजकुमारी सूर्यप्रभा को,उनसे मेरा विवाह होने वाला था , ये सहस्त्रबाहु अपने पिता को खोजते हुए मुझे यहाँ मिल गए और इन्होंने मेरे प्राण भी बचाए,भालचन्द्र बोला।।
परन्तु राजकुमारी को कौन ले गया और इनके पिता को क्या हुआ, सोनमयी ने पूछा।।
और राजकुमार भालचन्द्र ने सारी कथा कह सुनाई,भालचन्द्र की बात सुनकर सोनमयी बोली___
राजकुमार! तब तो अवश्य आपको मेरी झोपड़ी में चलना चाहिए, हो सकता है मेरे बाबा,आपकी कोई सहायता कर पाएं।।
वे कैसे हमारी सहायता कर सकते हैं, सहस्त्रबाहु बोला।।
मैने तुमसे कोई बात नहीं की तो तुम क्यों राजकुमार और मेरे मध्य आ रहे हो? सोनमयी क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु से बोली।।
ये मेरा मित्र हैं और इसका भला सोचना मेरा कर्तव्य है और आप ना जाने इन्हें कहाँ ले जाएं, आप जैसी रूपवती युवती पर कैसे विश्वास कर लूँ,सहस्त्रबाहु बोला।।
तुम्हें नहीं लग रहा कि तुम अपनी सीमारेखा लाँघकर बात कर रहे हो,अपनी सीमारेखा में रहों,तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा, सोनमयी बोली।।
ए सुनो,मुझे आँखे मत दिखाओं, बहुत देंखी हैं मैने तुम्हारे जैसा क्रोध करने वाली युवतियाँ, अभी तुमने मेरा क्रोध नहीं देखा,सहस्त्रबाहु क्रोधित होकर बोला।।
अच्छा! बातें तो बहुत बड़ी बड़ी कर लेते हो,कभी जीवन में एक भी वीरता वाला कार्य किया है, सोनमयी ने सहस्त्रबाहु से पूछा।।
आप दोनों भी क्या बालकों की भांति झगड़ रहे हैं चलिए सोनमयी बहन,आपकी झोपड़ी ही चलते हैं,कदाचित् आपके बाबा से कुछ महत्वपूर्ण सूचना मिल जाए,भालचन्द्र बोले।।
और सब सोनमयी की झोपड़ी की ओर चल पड़े,वहाँ पहुँचकर देखा तो बहुत ही बूढ़े बाबा,जिनकी बढ़ी हुई दाढ़ी और सिर के बाल श्वेत हो चुके थे ,वे ध्यान लगाकर समाधि मे लीन थे।।
सब वहाँ पहुँचे और शांत होकर बैठ गए,कुछ समय पश्चात् बाबा अपनी समाधि से उठे और सबको देखकर चकित रह गए, तब सोनमयी ने सारी घटना बाबा को कह सुनाई।।
तो राजकुमारी सूर्यप्रभा जीवित है, वैद्यनाथ और सुभागी ने उसके प्राण बचा लिए थे,बाबा आश्चर्यचकित होकर बोले।।
किन्तु ये सब आपको कैसे ज्ञात हैं, भालचन्द्र ने पूछा।।
तभी झोपड़ी के बाहर भालचन्द्र के सैनिक गुप्तचर की सहायता से आ पहुँचे थे और साथ मे वैद्यनाथ जी भी थे,घोड़ों की टापों का स्वर सुनकर सब बाहर निकल कर आएं।।
और वैद्यनाथ ने जैसे ही बाबा को देखा तो उनके निकट आकर शीघ्रता से उनके चरण स्पर्श किए।।
तभी भालचन्द्र ने वैद्यनाथ जी से पूछा___
बाबा! आप सोनमयी के बाबा से परिचित हैं परन्तु कैसे?
ये ही तो पूर्व पुरोहित विभूतिनाथ हैं, जिन्होंने उस रात्रि अपनी तंत्र विद्या से राजकुमारी के प्राण बचाएं थे,वैद्यनाथ जी बोले।।
तब तो हम सही दिशा मे जा रहे हैं और इतना कहकर भालचन्द्र ने भी विभूतिनाथ के चरण स्पर्श किए।।
इसका तात्पर्य हैं कि उस रात्रि आप भी शीशमहल से भागने में सफल हो गए,वैद्यनाथ जी ने विभूतिनाथ जी से पूछा।।
हाँ,वैद्यनाथ !बहुत ही कठिनाइयों के पश्चात् मैं वहाँ से भाग पाया किन्तु अम्बालिका ने रानी जलकुम्भी को उस शीशमहल की वाटिका में बंदी बना रखा है, मैने कई पंक्षियों को वहाँ भेजने का प्रयास किया किन्तु वें जीवित ना लौट सकें,विभूतिनाथ जी बोले।।
और महाराज अपारशक्ति तो सुरक्षित हैं, वैद्यनाथ जी ने विभूतिनाथ जी से पूछा।।
वो तो आपके रहते ही महाराज को अम्बालिका ने काठ के पुतले मे परिवर्तित कर दिया था और सेनापति और सैनिक को पत्थर मे परिवर्तित कर दिया था ,इसके उपरान्त रानी बोली कि पुरोहित जी आप यहाँ से भागने का प्रयास करें अगर आप अम्बालिका के हाथों बच गए तो मुझे ये आशा रहेंगी कि आप मुझे और महाराज को यहाँ से सुरक्षित निकाल लेगें और मै रानी की बात मान कर वहाँ से भाग आया और रात्रि के अँधेरे में मुझे एक स्त्री मिली जिसकी दशा बहुत ही दयनीय थी उसकी गोद में एक बालिका थी,मैने उससे उसकी इस अवस्था का कारण पूछा।।
वो बोली,अम्बालिका ने मेरे पति को मार कर मुझे इस दशा में पहुँचाया हैं और वो स्त्री सुबह तक जीवित ना रह सकीं, तब मैने उसकी गोद की बालिका को आश्रय दिया, ये सोनमयी वही बालिका हैं, मैं इतने सालों से प्रयास करता रहा रानी और राजा को बचाने का किन्तु सफल ना हो सका और अब बूढ़ी हड्डियों में इतना साहस भी नहीं रह गया,कब से सोच रहा हूँ कि कोई तो यहाँ आए और मैं उसकी सहायता से रानी और राजा को मुक्त करवा सकूँ क्योंकि ये सब तो मेरी ही सन्तान का किया कराया था और जब तक इस पाप से मुक्त ना हो जाऊँ तब तक मेरी आत्मा को मृत्यु के बाद भी मोक्ष नहीं मिल सकेगा, विभूतिनाथ दुखी होकर बोले।।
ना! पुरोहित जी अपना मन दुःखी ना करें क्योकिं आपके पुत्र गौरीशंकर को तो इसका दण्ड मिल चुका है, स्वयं अम्बालिका ने ही उसकी हत्या कर दी थी।
परन्तु जो उसने इतना बड़ा विश्वासघात किया और रानी पर कुदृष्टि डाली,इसके लिए मुझे लज्जा आती हैं क्योंकि ऐसे संस्कार तो नहीं दिए थे मैने उसे,विभूतिनाथ जी बोले।।
मन को समझाएं पुरोहित जी,वो तो पुरानी बात हो चुकी,अब क्या करना है,वो सोचिए,वैद्यनाथ जी बोले।।
हाँ! बाबा,आपको तो उस महल के विषय में सबकुछ ज्ञात होगा, राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
हाँ,परन्तु, अब मैं अत्यंत बूढ़ा हो चुका हूँ, विभूतिनाथ जी बोले।।
परन्तु, हमें सबको सुरक्षित उस शीशमहल से बाहर लाना होगा,भालचन्द्र बोले।।
बाबा! सर्वप्रथम आप राजकुमार का उपचार करें,मैने भूलवश इन पर खंजर से प्रहार किया था,सोनमयी बोली।।
हाँ,ये अधिक आवश्यक हैं, सहस्त्रबाहु बोला।।
तब विभूतिनाथ जी उठे और उन्होंने कुछ जड़ी बूटियाँ और वृक्षों के पत्र लेकर एक लेप बनाया और राजकुमार भालचन्द्र की बाँह पर लगा दिया।।
और उस दिन रात्रि ने सबने वहीं विश्राम किया और आपस में परामर्श किया कि आगे क्या करना है?

और उधर सूर्यप्रभा अपने माता-पिता की दयनीय स्थिति देखकर अत्यधिक चिंतित थी,उसे लग रहा था कि वो अपने पूर्व वाले रूप में आकर अपनी मां से कहें कि देखो मां, मैं आपकी सूर्यप्रभा कितनी बड़ी हो गई,मां तुम इतने वर्षों के उपरांत मिली ,वो भी ऐसी अवस्था में कि मैं तुम्हें गले भी नहीं लगा सकती।।
वाटिका में अम्बालिका ने प्रवेश किया और बोली__
तुम्हें ज्ञात है रानी,वो पुरोहित अब भी जीवित है और मेरा सर्वनाश चाहता है,मेरे गुप्तचर सदैव उसके क्रियाकलापों पर दृष्टि रखते हैं,उस रात्रि बहुत बड़ी भूल हुई मुझसे जो वो यहां से जीवित भाग निकला,अब वो वहां जंगल में मेरे विरूद्ध षणयन्त्र रच रहा है और ये जो तेरी चहेती मैना है ना,इसका मंगेतर भी यहां शीघ्र पहुंचने वाला है,अब एक साथ सबका सर्वनाश करूंगी मैं।।
अरे,अम्बालिका! ईंश्वर से कुछ तो डर,इस राजकुमारी ने ऐसा क्या अपराध किया था जो तूने इसे एक मूक प्राणी में परिवर्तित कर दिया,रानी जलकुम्भी बोली।।
यद्यपि तुझे इसका अपराध भी बताऊंगी,तनिक समय तो आने दे,अम्बालिका बोली।।
तू ये सब करके क्या प्राप्त कर लेंगी,जलकुम्भी ने पूछा।।
साम्राज्य चाहिए मुझे, अधिकार चाहिए सब जीवों पर,वो सदैव मेरे दास बनकर रहें,ये चाहती हूं मैं,अम्बालिका बोली।।
ये तेरा स्वप्न कभी पूरा नहीं होगा,अम्बालिका बोली।।
तभी अम्बालिका रानी के गाल पर एक थप्पड़ मार कर बोली__
इतना !अशुभ मत बोल रानी।।
कोई ना कोई तो अवश्य आएगा,तेरा सर्वनाश करने,रानी जलकुम्भी ने कहा।।

क्रमशः__
सरोज वर्मा...