Chandra Prabha - Part (3) books and stories free download online pdf in Hindi

चन्द्र-प्रभा--भाग(३)

सुभागी ने राजकुमार भालचन्द्र की बात सुनकर कहा कि ये बहुत लम्बी कहानी हैं राजकुमार! वो भयावह अमावस्या की रात्रि हम हम कैसे भूल सकते हैं, जिस रात्रि हम सूर्यप्रभा को उस दुष्ट जादूगरनी के हाथों से बचाकर लाए।।
तनिक विस्तार से पूरी घटना बताएं ,मैं ये ज्ञात करना चाहता हूँ कि क्या हुआ था,भालचन्द्र ने सुभागी से कहा।।
तो सुनिए राजकुमार मैं आपको सारी कहानी विस्तार से बताती हूँ, सुभागी ने भालचन्द्र से कहा और सुभागी ने कहानी कहना प्रारम्भ किया।।
बहुत समय पहले की बात हैं___
घने वनो से सुशोभित,देवनागरी नदी के तट पर,पहाड़ियों से घिरा हुआ, एक समृद्धिशाली राज्य हुआ करता था जिसका नाम था पुलस्थ राज्य,वहाँ एक राजा हुआ करते थे जिनका नाम था अपारशक्ति, वो बहुत दयालु हृदय के थे,वो अपने राज्य और नागरिकों को कभी भी कोई कष्ट नहीं होने देते थे।।
उनके महल का नाम शीशमहल था जो अंदर से शीशे का बना हुआ था,ये महल उनके पूर्वजों ने बनवाया था,कहते हैं कि एक बार अपारशक्ति वनों मे आखेट के लिए गए, भूलवश उन्होंने किसी गिद्ध के पूरे परिवार की हत्या कर दी परन्तु उनमें से एक गिद्ध मूर्छित अवस्था में उड़कर उस शीशमहल की मुंडेर पर जा बैठा एवं घायल अवस्था में ही राजा अपारशक्ति की प्रतीक्षा करता रहा, जब राजा अपारशक्ति शीशमहल पधारे तो उन्हें उसने श्राप दिया कि____
हे राजन! जिस प्रकार तूने मेरे परिवार की हत्या की हैं उसी प्रकार तेरी हर पीढ़ी से कोई ना कोई बिना कारणवश अवश्य मारा जाएगा,मै तेरे इस शीशमहल की मुंडेर पर खड़ा होकर तुझे ये श्राप देता हूँ, आज से ये शीशमहल नहीं श्रापित शीशमहल कहलाएगा।।
राजा अपारशक्ति ने उस गिद्ध से क्षमा मांगते हुए कहा____
हे गिद्ध राज मुझे क्षमा करें, ये अपराध मुझसे भूलवश हुआ,कृपया मेरा अपराध क्षमा करें एवं इस श्राप से निवारण का कोई उपाय बताएं, अन्यथा मैं इस अपराध बोध से स्वयं को कभी क्षमा नही कर पाऊँगा, आपको कष्ट पहुंचाने की मेरी कोई चेष्टा नहीं थी।।
अपारशक्ति की बात सुनकर गिद्ध को अपार पर दया आ गई एवं उसने कहा कि इसका एक ही उपाय हैं कि आप इस शीशमहल को इसी क्षण त्याग कर कहीं और शरण लें,अब ये एक श्रापित शीशमहल बन गया हैं,जब आपका नया महल बन जाए तो आप उसमें ही निवास करें और इतना कहकर गिद्ध ने प्राण त्याग दिए।।
राजा अपारशक्ति ने गिद्ध का विधिवत अंतिम संस्कार किया एवं शीघ्र ही उन्होंने नए महल का निर्माण करवाया जिसका नाम उन्होने स्वर्णमहल रखा ,जिसमे चारों ओर सोना ही सोना जड़ा हुआ था,उस महल के तलघर में सात छोटे छोटे जलाशय बनवाएं गए,अत्यधिक मनमोहक चित्रकारी से सुशोभित भित्तियां सब का मन मोह लेती थीं,उस महल की सुन्दरता देखते ही बनती थीं।।
अपारशक्ति की रानी का नाम था जलकुंभी, वो बहुत ही सुन्दर और विनम्र स्वभाव की थीं,इतनी मृदुभाषिणी की कोई उनके मुँह से एक बार कोई उनके बोल सुन लेता था तो मोहित हो जाता था,उनकी काम कमान सी भौंहे,काले नयन,गुलाबी कमल की पंखुड़ियों के समान होंठ,उभरा ललाट, घने काले केश,उनकी सुन्दर काया को देखकर एक बार को अप्सराएँ भी भ्रमित हो जाएं।
उस महल में रानी जलकुंभी के लिए अपने कक्ष से लेकर स्नानागार तक जाने के लिए एक सुरंग थी,रानी जलकुंभी उसी सुरंग द्वारा सातों जलाशयों से होती हुई,स्नानागार मे स्नान करती,उसके उपरांत उनकी दासियाँ वहीं पर उनके लिए पूजा की थाली की ब्यवस्था करतीं, उनका श्रृंगार करती,तब रानी उसी सुरंग द्वारा मंदिर में पूजा के लिए प्रस्थान करतीं,इस सब के मध्य केवल दासियाँ ही उनका मुँख देख पातीं या के मंदिर के पुरोहित, रानी पुनः उसी सुरंग द्वारा अपने कक्ष में आ जातीं।।
राजा के दरबार तक पहुंचने के लिए भी रानी के लिए कुछ ऐसे ही साधन उपलब्ध कराएं गए थे,रानी दरबार के ऊपर बने झरोखे मे आवरणों के पीछे होतीं,जिससे कोई भी उनका मुँख नहीं देख पाता, राजा अपारशक्ति अपनी रानी से अत्यधिक प्रेम करतें थे,उनका प्रेमविवाह हुआ था,उनकी एक पुत्री भी थी जिसका नाम उन्होंने सूर्यप्रभा रखा जो ये वहीं राजकुमारी सूर्यप्रभा हैं।।
मैं(सुभागी) रानी जलकुंभी की सौन्दर्य चतुरा थी,मैं उनका श्रृंगार किया करती थी,वो मुझे ही आदेश देती की मेरे केशों को तू ही संवारेगी एवं मैं उनके केशों को संवार कर उनका श्रृंगार करती,तरह तरह के पुष्पों को चुनकर उनके केशों को सजाने के लिए भांति भांति प्रकार की मालाएँ बनाती,वो मुझसे अत्यधिक प्रसन्न रहतीं थी,आए दिन मुझे कोई ना कोई उपहार देतीं रहतीं,मेरे पति(वैद्यनाथ) भी उसी महल मे दास थे,वें राजा की सेवा किया करते थे,राजा उन पर अत्यधिक विश्वास करते थे।
मेरे(सुभागी) विवाह को भी कई साल ब्यतीत हो चुके थे परन्तु कोई सन्तान ना हुई,मै राजकुमारी सूर्यप्रभा को भी कभी कभी सम्भाल लेती थी,रानी जलकुंभी भी ये देखकर प्रसन्न होतीं कि सूर्यप्रभा मेरे साथ प्रसन्न रहती हैं,बस ऐसे ही दिन ब्यतीत हो रहे थे कि राज्य में अचानक हत्याएं होने लगी,राजा अपारशक्ति घोर चिंता मे डूब गए, बहुत से गुप्तचर भेजे किन्तु कुछ भी ज्ञात ना हो सका,ना ही राजा को कोई कारण समझ आ रहा था,कुछ नागरिकों ने बताया कि हो ना हो वहाँ कोई मनुष्यों की बलि देकर तंत्र मंत्र कर रहा है।।
तभी राजा ने विचार बनाया कि वे स्वयं ही इसके कारणों को ज्ञात करने का प्रयास करेंगे।।
एक रात्रि राजा अपना वेष बदलकर राज्य का भ्रमण करने पहुंचे,उन्हें कुछ ज्ञात हुआ जिसे सुनकर वो आश्चर्यचकित हो गए, उनके श्रापित शीशमहल में किसी जादूगरनी ने डेरा डाल लिया था एवं वो इन सब हत्याओं का कारण थीं।।
परन्तु, अब राजा अपारशक्ति गहन विचार मे डूब गए कि किस प्रकार इस दुष्ट जादूगरनी से अपने राज्य के नागरिकों की रक्षा की जाए,क्या उपाय किया जाए कि ये जादूगरनी उनके राज्य को छोड़कर चली जाए,राजा अपारशक्ति के इस प्रकार चिंता करने से उनके स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ रहा था एवं ऐसा कोई ना था जिससे वे अपनी समस्या बांट सकते।।
तभी एक दिन राजा अपारशक्ति ने मन की शांति के लिए मंदिर जाने का विचार किया, प्रातःकाल वो स्नान करके मंदिर पहुंचे, पूजा अर्चना करने के उपरांत ज्यों हि लौटने को हुए तो पुजारी जी ने उनकी चिंता का कारण पूछा___
तब महाराज अपारशक्ति बोले___
पुरोहित जी! अगर आप मेरी समस्या का समाधान कर पाते तो अवश्य ही आपको अपनी चिंता का कारण बता देता, परन्तु आप इसका समाधान कैसे कर सकतें हैं ना आप कोई योद्धा हैं और ना ही कोई तांत्रिक।।
जी महाराज! मै आपको वहीं समझाने का प्रयास कर रहा था कि आप केवल मुझसे दस वर्षों से ही परिचित हैं किन्तु पुरोहित बनने से पहले मैं क्या था,ये आपको नहीं ज्ञात, मै पहले एक तांत्रिक हुआ करता था,तंत्र विद्या से लोगों का बुरा करके धन कमाया करता था,किन्तु एक दिन मेरी पत्नि की अकस्मात मृत्यु हो गई, वो मरते समय मुझसे ये वचन लेकर गई कि आज के बाद तुम लोगों के साथ केवल अच्छा ही करोगें, अपनी विद्या का प्रयोग अच्छे कार्यों मे करोगे, उस दिन मैने निर्णय किया कि अब से मैं कैवल अच्छे कार्य ही करूँगा एवं अपने पुत्र को भी अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित करूंगा एवं अब तो वैसे भी बुढ़ापा आ गया हैं भला और कितने दिन जिऊंगा, जब तक जीवित हूँ तो अच्छे कर्म ही कर लूं।।
पुरोहित जी की बात सुनकर राजा अपारशक्ति अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने ने अपनी चिंता का कारण पुरोहित जी को बताया।।
तब पुरोहित जी बोले,इसके लिए तो बहुत बड़ी पूजा करनी होगी, परन्तु इसके पहले उस जादूगरनी की शक्तियों के विषय मे ज्ञात करना होगा कि वो कितनी शक्तिशाली हैं और ये कार्य आप से अकेले नहीं होगा, मुझे भी आपके साथ सदैव रहना होगा।।
तब महाराज अपारशक्ति बोले,पुरोहित जी आपने ये कहकर मेरे मन का भार हल्का कर दिया।।
ऐसा ना कहें महाराज! आपके इस राज्य मे मै भी तो इतने वर्षों से रहा हूँ, मेरा भी कोई कर्तव्य बनता हैं आपके और इस राज्य के प्रति, पुरोहित जी बोले।।
पुरोहित जी आपका बहुत बहुत आभार अब से आप मेरे साथ ही महल में रहेंगे,क्योंकि यदि मुझे रात्रि मे राज्य का भ्रमण करना पड़ा तो मुझे आपके साथ की आवश्यकता होगी, महाराज अपारशक्ति ने पुरोहित जी से कहा।।
परन्तु महाराज! एक दुविधा खड़ी हो गई हैं, पुरोहित जी बोले।।
वो क्या?पुरोहित जी! महाराज अपारशक्ति ने पुरोहित जी से पूछा।।
वो ये महाराज कि अगर मैंने मन्दिर को छोड़ दिया तो यहाँ ईश्वर की सेवा कौन करेगा, पुरोहित जी बोले।।
हां! पुरोहित जी,ये समस्या तो खड़ी हो गई हैं, महाराज अपारशक्ति बोले।।
महाराज! हम कुछ दिनों के लिए किसी नए पुरोहित को मन्दिर मे रख देते हैं,ईश्वर की सेवा के लिए क्योंकि मंदिर को अकेले छोड़ना भी उचित नहीं है।,पुरोहित जी बोले।।
तो पुरोहित जी ,आपकी दृष्टि मे हो कोई गुणीं और निष्ठावान ,जो इस मंदिर की सेवा कर सकें,महाराज अपारशक्ति ने पूछा।।
अब ऐसा तो मेरी दृष्टि में कोई नहीं है, पुरोहित जी बोले।।
परन्तु, पुरोहित जी,अभी तो आपने कहा कि आपके पुत्र को आप अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे तो क्या आपका पुत्र मंदिर की सेवा करने योग्य नहीं है, अपारशक्ति ने पूछा।।
हां!महाराज ये तो मैं भूल ही गया, अवश्य मेरा पुत्र इस कार्य को पूरी निष्ठा के साथ निभाएगा,अगर आपकी अनुमति हो तो,पुरोहित विभूतिनाथ बोले।।
तो ये तय रहा,आप कल से मेरे साथ रहेंगे और आपका पुत्र यहाँ मंदिर मे रहेगा,वैसे आपके पुत्र का क्या नाम बताया आपने,अपार शक्ति ने पुरोहित विभूतिनाथ से पूछा।।
जी,मेरे पुत्र का नाम गौरीशंकर है,पुरोहित विभूतिनाथ बोले।।
तो आज ही आप गौरीशंकर को सूचित कीजिए कि वो कल से इस मंदिर का पुरोहित होगा और प्रातःकाल सूर्य निकलने से पहले ही इस मंदिर की सेवा मे लग जाए क्योंकि रानी भी पूजा के लिए यहाँ आतीं हैं और उनके आने के पहले ही गौरीशंकर यहाँ होना अनिवार्य है, अपारशक्ति बोले।।
अवश्य महाराज, पुरोहित विभूतिनाथ बोले।।
और इतना कहकर महाराज अपारशक्ति चले गए___

क्रमशः__
SV___