Chandra Prabha - Part (4) books and stories free download online pdf in Hindi

चन्द्र-प्रभा--भाग(४)

पुरोहित विभूतिनाथ जी ने अपने पुत्र गौरीशंकर को मंदिर मे पूजा-अर्चना हेतु मंदिर मे पुरोहित के पद पर नियुक्त कर दिया एवं स्वयं राजा अपारशक्ति के महल में राजा के निकट रहने लगें।।
प्रतिदिन की भांति रानी जलकुंभी उस दिन भी स्नान करके अपनी दासियों के साथ मन्दिर पहुंची, नए पुरोहित को देखकर थोड़ा ठिठकीं और अपनी दासियों से पूछा ये व्यक्ति कौन हैं, तनिक इनसे पूछो।।
तभी सुभागी ने आगे जाकर उस नवयुवक से पूछा___
महाशय!आप कौन हैं एवं इस मन्दिर में क्या कर रहे हैं?
जी!मुझे इस मन्दिर मे नए पुरोहित के पद पर नियुक्त किया गया है एवं मैं पूर्व पुरोहित विभूतिनाथ जी का पुत्र हूँ,गौरीशंकर ने सुभागी से कहा।।
जब रानी जलकुंभी को ये ज्ञात हो गया कि ये तो नए पुरोहित हैं एवं अपरिचित भी नहीं हैं तो उन्होंने अपने मुँख पर डला हुआ चूनर का आवरण हटा दिया एवं निश्चिन्त होकर पूजा-अर्चना करने लगीं।।
गौरीशंकर ने ज्यों ही रानी जलकुम्भी का रूप एवं सौन्दर्य देखा तो अपनी सुधबुध खो बैठा, रानी जलकुम्भी पर एक ही दृष्टि में मोहित हो बैठा,ऐसा रूप एवं लावण्य उसने अपने जीवन मे किसी भी युवती का नहीं देखा था,जब तक जलकुम्भी उस मन्दिर मे पूजा अर्चना करती रही, तब तक गौरीशंकर, उन्हें निहारता रहा।।
महल आकर जलकुम्भी ने राजा अपारशक्ति से कहा___
आपने मन्दिर के लिए नए पुरोहित नियुक्त कर दिए और मुझे सूचित ही नहीं किया, मै तो कुछ समय के लिए नए पुरोहित जी को देखकर अचम्भित हो उठी।।
हां,प्रिऐ! भूलवश अवगत नहीं करा पाया,पूर्व पुरोहित जो कि उसके पिता हैं उन को किसी कार्यवश मैंने अपने साथ महल में रख लिया, इसलिए अबसे गौरीशंकर ही मंदिर मे रहेंगें, राजा अपारशक्ति ने अपनी रानी जलकुम्भी से कहा।।
ठीक है महाराज, आपको उचित लगा होगा तभी आपने ये निर्णय लिया, मैं तो केवल ऐसे ही पूछ रही थी,रानी जलकुम्भी बोली।।
कोई बात नहीं रानी,ये तो आपका अधिकार, कदाचित् आप भी तो इस राज्य की रानी हैं, राजा अपारशक्ति बोले।।
उधर गौरीशंकर का मन जलकुम्भी को देखकर व्याकुल हो उठा,उसकी दशा देखकर कोई भी कह सकता था कि उसे बहुत बड़ा कष्ट हैं या कि कोई बहुत बड़ी चिंता उसे खाए जा रही हैं, रानी प्रतिदिन मन्दिर आती और उन्हें देखकर गौरीशंकर का मन विह्वल हो उठता।।
परन्तु एक दिन गौरीशंकर ने साहस करके रानी जलकुम्भी का हाथ पकड़ लिया, रानी ने क्रोधित होकर कहा,इतना दुस्साहस! पाखंडी, तुम तो पुरोहित हो और ऐसा अशोभनीय कार्य, अपने पिता से कुछ तो अच्छी शिक्षा ली होती, तुम उनके नाम और वंश को कलंकित कर रहे हो।।
परन्तु रानी! मैं आपसे प्रेम करने लगा हूँ, गौरीशंकर बोला।।
प्रेम! ये प्रेम नहीं हैं वासना हैं, किसी ब्याहता स्त्री के विषय मे ऐसी बातें मन में भी लाना पाप है और इसकी सूचना मैं तुम्हारे पिता और राजा दोनों को दूँगी, रानी जलकुम्भी क्रोधित होकर बोली।।
परन्तु मैं आपको ये नहीं करने दूँगा, आप मेरा नाम कलंकित नहीं कर सकती,गौरीशंकर बोला।।
ये अवश्य होकर ही रहेगा, जलकुम्भी निर्भय होकर बोली।।
और जलकुम्भी ने जैसे ही अपने पग बढ़ाए,गौरी शंकर ने पुनः उनका हाथ पकड़ा और उनके चरणों पर गिरकर क्षमा माँगने लगा,जलकुम्भी को गौरीशंकर पर दया आ गई और उन्होंने उसे क्षमा कर दिया एवं बात राजा तक नहीं पहुँचेगीं,इसका वचन भी दे दिया।।
परन्तु रानी जलकुम्भी ये नहीं जानतीं थीं कि वे जिसे क्षमा कर रहीं हैं वो भविष्य मे उनके लिए कठिनाइयाँ खड़ी करने वाला है।।
रानी पूजा करने आती एवं गौरीशंकर उनसे सम्मान पूर्वक वार्तालाप करता,परन्तु उसके मन की विषैली गतिविधियों की रानी को भनक तक ना लग पाई,गौरीशंकर तो ऐन केन प्रकारेण रानी को प्राप्त करना चाहता था,वो वासना मे अंधा हो चुका था।।
तभी एक रोज पूर्व पुरोहित विभूतिनाथ अपने पुत्र गौरीशंकर से भेंट करने आए___
तब गौरीशंकर ने अपने पिता विभूतिनाथ से महल मे जाकर रहने का कारण पूछा, परन्तु विभूतिनाथ इस रहस्य को स्वयं तक सीमित रखना चाहते थे,लेकिन जब गौरीशंकर ने अपने पिता से बहुत आग्रह किया तब विवश होकर विभूतिनाथ ने ये रहस्य गौरीशंकर के समक्ष खोल दिया।।
विभूतिनाथ बोले राज्य पर बहुत बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है, एक जादूगरनी ने पुराने शीशमहल पर अधिकार कर लिया है एवं वो निर्दोष प्राणियों की रात्रि को अपने स्वार्थ के लिए बलि चढ़ाती है, जिससे राजा अपनी प्रजा के विषय मे अत्यधिक चिन्तित हैं एवं उस जादूगरनी को राज्य से बाहर निकालने का कोई उपाय सोच रहे हैं, इस कार्य में सहायता हेतु मैं ने उन्हें आश्वासन दिया है कि मैं उन्हें पूर्ण सहयोग दूँगा, इसलिए मुझे उनके महल मे रहना पड़ रहा है।।
अब तो गौरीशंकर को बहुत बड़ा रहस्य ज्ञात हो चुका था,उसने सोचा क्यों ना मैं उस जादूगरनी से मित्रता कर लूं, इससें मेरा कार्य सरल हो जाएगा, मैं शक्तियों के बिना रानी को प्राप्त नहीं कर सकता,किन्तु अगर मैं जादूगरनी का साथ दे दूँ तो वो सरलता से राजा अपारशक्ति की हत्या कर सकती हैं एवं मैं पुलस्थ राज्य का राजा बनकर रानी जलकुम्भी को प्राप्त कर सकता हूँ।।
गौरीशंकर के मस्तिष्क मे इतने कुविचार चल रहे थे एवं उसने निर्णय लिया कि वो अवश्य ही उस जादूगरनी से जाकर मिलेगा एवं राजा की सभी गतिविधियाँ उसे बता देगा, तब मैं अपनी बनाई हुई योजना मे सफल हो सकता हूँ।।
परन्तु पुरोहित विभूतिनाथ जो को ये अनुमान ही नहीं था कि उन्होंने राजा के रहस्य को बताकर कितनी बड़ी कठिनाई खड़ी कर दी है, उन्हें ये ज्ञात ही नहीं था कि जिस पुत्र को वे अच्छी शिक्षा देकर एक अच्छा व्यक्ति बनाना चाहते थे,वो कितना कुटिल ,अकृतज्ञ और दंभी निकलेगा, जो अपने ही राज्य के राजा का ही शत्रु हो जाएगा, जिन्होंने उन दोनों को शरण दी।।
अपनी योजना को सफल करने के लिए एक रात्रि गौरीशंकर उस जादूगरनी से मित्रता करने पुराने श्रापित शीशमहल जा पहुंचा, उसे भय भी लग रहा था किन्तु उसने अपने पग पीछे नहीं लिए और भय के साथ वो महल के भीतर पहुंच गया,महल मे घोर अंधेरा था,बस कुछ चमगादड़ों का स्वर सुनाई दे रहा था,गौरीशंकर को भय का अनुभव तो हो रहा था किन्तु अपनी योजना को सफल करने हेतु ये सब आवश्यक था।।
तभी एकाएक ना जाने कहाँ से वायु के वेग से कुछ लोहे की कड़ियाँ आईं और उन्होंने गौरीशंकर को बंदी बना लिया,गौरीशंकर ने बहुत ही भयभीत होकर पूछा___
कौन हैं?
तभी एक स्वर और उस श्रापित महल में गूँजा____
तुम उत्तर दो कि तुम कौन हो और यहाँ क्या करने आए हो?
मैं गौरीशंकर, इस राज्य के मन्दिर का पुरोहित हूँ, एवं मैं राजा से प्रतिशोध लेना चाहता हूँ,गौरीशंकर ने कहा।।
परन्तु,प्रतिशोध का क्या कारण हो सकता है, उस स्वर ने गौरीशंकर से पूछा ।।
मै रानी जलकुम्भी से प्रेम करने लगा हूँ, मैं उन्हें अपना बनाना चाहता हूँ किन्तु राजा के जीवित रहते यह सम्भव नहीं है,गौरीशंकर बोला।।
इसका तात्पर्य हैं कि तुम हमसे मित्रता करना चाहते, उस स्वर ने कहा।।
जी हांँ!,गौरीशंकर बोला।।
परन्तु तुम्हें ये सूचना किसने दी कि मैं इस श्रापित शीशमहल मे वास कर रही हूँ, उस स्वर ने पूछा।।
जी,मेरे पिता जी राजमहल मे राजा के समक्ष उनकी सहायता हेतु वहाँ वासकर रहे हैं, उन्होंने ही मुझे ये सूचना दी,गौरीशंकर बोला।।
इसका तात्पर्य हैं कि राजा अपारशक्ति को मेरी लालसा के विषय मे सब अवगत हो चुका है, उस स्वर ने कहा।।
जी,मैं इस कार्य में आपकी सहायता कर सकता हूँ,गौरीशंकर बोला।।
परन्तु ,किस प्रकार? उस स्वर ने पूछा।।
मैं राजमहल मे बिना किसी अवरोध के भीतर जा सकता हूँ और महत्वपूर्ण सूचनाएं आपको लाकर दे सकता हूँ और मुझे उसके बदले मे केवल रानी जलकुम्भी चाहिए।।
उस स्वर ने कहा__
परन्तु मैं तुम पर विश्वास कैसे करूं?
जब तक आपको मुझ पर विश्वास ना हो जाए तब आप मुझे अपना मुंख ना दिखाएं, गौरीशंकर बोला।।
हां,तो यही उचित रहेगा,उस स्वर ने कहा।।
जी, मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूं एवं मैं कल ही राजमहल जा कर, रहस्यों के विषय में ज्ञात करने का प्रयास करता हूं, गौरीशंकर बोला।।
ठीक है अब तुम जा सकते हो और इस श्रापित शीशमहल मे तभी प्रवेश करना जब तुम्हारे पास मेरे लिए कोई उचित सूचना हो,उस स्वर ने कहा।।
और गौरीशंकर उस श्रापित शीशमहल से अपनी घृणित योजना के साथ बाहर आ गया।।

क्रमशः__
सरोज वर्मा...