Mukteshwar awakening from poetry in the Corona period - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

कोरोना काल में कविता से अलख जगाते मुक्तेश्वर - 2

(1)
कोरोना काल में बाजार
घर घर हैं बीमार कोरोना की ऐसी रफ्तार,
बीच में अफवाहों का अजब गजब अवतार।
कोरोना महामारी है,नहीं है की होती तकरार,
एन मास्क सर्जिकल मास्क सबके सब बेकार।
आक्सीजन की अस्पतालों में खूब है मारम्मार,
आक्सीजन जरूरी है,सिलिंडर का हाहाकार। आक्सीमीटर,लेमुनाइजर का है बढा बाजार,
आपदा में अवसर ढूंढ हो रहा काला व्यापार।

धैर्य संयम दो गज की दूरी,मजबूरी नहीं जरूरी
कोरोना से क्यों है डरना वैक्सीन में सुरक्षा पूरी
नि:सहाय,बूढे बुजुर्गों को मदद की है दरकार,
युवाओं स्वयंसेवकों पर मानव रक्षा का भार।

हवा भी अब शत्रु बना,घर के अन्दर दीवार,
खारे पानी में जैसे प्यासा हवा बीच संसार।
प्लेग,हैजा,टीवी से लड़े हैं ना हिम्मत तू हार,
कोरोना भी जायेगा जनता के साथ सरकार।

आंसू छलकते आंखों से देख के लम्बी कतार,
दौड़ते परिजन विलख रहे भर्ती से भी इन्कार।
बेड की क्राइसिस बता इंसान का तिरस्कार,
रूपये की बोली लगती,गरीब पर अत्याचार।

कोरोना काल में कई किसिम के धंधे कारोबार,
कहीं ब्लैक में एम्बुलेंस,पैरवी से दाह-संस्कार।
कोरोना तू हारेगा जीतेगा हमारा दृढ व्यवहार,
कई युगों को देख चुका,देखेगा इक्कीस पार।

*मुक्तेश्वर इस संसार में भांति भांति के लोग,
अपनी जेबें भरी रहे चाहे मरे, चाहे बढ़े ये रोग।


(2)
हवा का झोंका ठहर गया
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हवा का झोंका ठहर गया है,
पत्ता पत्ता सिहर गया है।
चारों तरफ सब डरा डरा है,
तिनका तिनका बिखर गया है।
अपना पराया कोई नही,
पहचानने से मुकर गया है।

सांसों से आक्सीजन गायब,
सांस दर सांस उखर गया है।
कैसे बचेगा यहां कोई इंसां
प्रकृति ही जब बिगड़ गया है।
मिलता नहीं कहीं कोई नुस्खा,
दुआ दवा से झगड़ गया है।
हवा का झोंका ठहर गया है,
पत्ता पत्ता सिहर गया है।

हमें यकीं है जीना है सबको,
जीवन हमारा बहुत हंसी है,
विनाश पर ही निर्माण होगा,
हमारा साधन सुधर गया है।
हवा का झोंका ठहर गया है,
पत्ता पत्ता सिहर गया है।

दुख की घड़ी में धैर्य है रखना,
अफवाहों से बच के रहना।
समाधान तो होकर रहेगा ,
बच्चा बच्चा डाक्टर हो गया है।
हवा का झोंका ठहर गया है,
पत्ता पत्ता सिहर गया है।
विज्ञान ने क्या कुछ कर दिया,
विषाणु कितना विषधर हो गया है।

(3)
वोझिल दिन रोती रात
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फिर वही वोझिल दिन, फिर वही रोती रात,
उदासी के कफन ओढ़े लाशों की सौगात।
ना तुम मेरे ना मैं,कहां अभी रिश्तों की बात,
जीना गर है तो ,लगा ले आदत पर आपात।

आंसू सूखे,निष्ठुर हो गये सबके सब चुपचाप,
शिशु बिलखते,पत्नी रोती,असह्य ये आघात।
क्या बूढ़ा,क्या प्रौढ, युवाओं को दे रहे संताप,
कोविड संग ब्लैक फंगस को देना होगा मात।




(4)
सब ठीक ठाक है
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कोरोना का हाल क्या,
जनता बेहाल क्या,
अपनी जेब भरी रहे,
सब ठीक ठाक है।

अस्पताल खस्ताहाल क्या,
नर्सिंगहोम माला माल क्या,
दवा स्टाक गुप्त रहे,
सब ठीक ठाक है।

रेमडीसीविर हजार का,
मांगे दाम लाख का,
आक्सीजन बाजार गायब,
सिलिंडर गोलमाल क्या,
सब ठीक ठाक है।

पहली लहर माइल्ड क्या,
दूसरी लहर माडरेट क्या,
तीसरी लहर सीभीयर क्या,
बिना मास्क टहलेंगे,
सब ठीक ठाक है।

फ्रांट लाइन फाइटर क्या,
पुलिस और प्रशासन क्या,
रात दिन समझा रहे,
बिमारी छिपा के कहे,
सब ठीक ठाक है।

पक्ष विपक्ष उलझे तो क्या,
सियासत कुछ समझे क्या,
वैक्सीन पर हल्ला क्या,
कतारबद्ध मिल के खड़ा,
सब ठीक ठाक है।

(5)
कालिमा बिखर गयी रोशनी निखर गयी
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चांद अब निकल गया कालिमा बिखर गयी,
धुंध को चीरकर रोशनी निखर गयी।

चहकने लगी पक्षियाँ झूम उठी डालियां,
बागों में फूलों की खिल उठी पंखुरियां।
सूर्य की लालिमा बिखेर रही रश्मियां,
कोयल की कूक सुन मुग्ध हुई बस्तियां।
सिसकियां थम गयी,ओठों पे हंसी तिर गयी।
चांद अब निकल गया कालिमा बिखर गयी,
धुंध को चीरकर रोशनी निखर गयी।

गाने लगे भंवरे गीत, उड़ने लगी तितलियां,
घटा के साथ दौड़ दौड़, नृत्य करे बिजलियां।
नदियाँ हिलोर मारे ,कूदे फांदे मछलियां,
नाविकों की नावें चली पाल बांधे वल्लियां।


चारो ओर हर्ष शोर,नाच उठे मन का मोर,
संसार की विपदा टली,झूमती नर नारियां।
चांद अब निकल गया कालिमा बिखर गयी,
धुंध को चीरकर रोशनी निखर गयी।

(6)
चिराग फिर जलेगा
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घर-घर चिराग फिर से जलेगा,
कोना कोना रौशन होगा।
धैर्य का संबल साथ चलेगा,
हिम्मत की लाठी सहारा बनेगा।
डरना नहीं ,कभी रोना नहीं,
धरती पे जीव सलामत रहेगा।
है कुछ दिन का संकट ये तो टलेगा,
हौसला बुलंद रख जीवन जीतेगा।
घर-घर चिराग फिर से जलेगा।

(7)
सांसो पर खतरा
हर सांस सांस पर खतरा है,
हर आस आस पर पहरा है।
हवा का मुफ्त भंडार है,
हवा का अब व्यापार है।
हवा के वायुमंडल में हवा का कालाबाजार है।
हवा से ये संसार है,हवा ही ईश्वर पालनहार है।
हवा के बाग बागीचा के आंखों में अश्रुधार है।