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उजाले की ओर - संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण

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कई बार बहुत से लोग बहुत सुंदर लगते हैं ,आकर्षित करते हैं ,मित्रता भी हो जाती है किन्तु कुछ दिनों बाद ही उनकी बातों से मन उचाट होने लगता है |इसका कारण सोचना बहुत आवश्यक है |

जिनसे हम इतने अभिभूत हुए कि उन्हें अपना मित्र बना लिया ,जिनसे अपने व्यक्तिगत विचार व समस्याएँ साझा कीं ,उनसे ही मन उचाट क्यों होने लगा आख़िर !

मुझे अपनी दिवंगत नानी की कुछ बातें कई बार याद आने लगती हैं ,वो भी कभी जब कोई स्थिति ऐसी उत्पन्न हो जाए जो हमें असहज करने लगे ,उस समय!

वो कहती थीं ,

न गुड़ से मीठे बनो,न नीम से कड़वे !

सही तो कहती थीं ,अब लगता है | उस समय ध्यान कौन देता था ऐसी बातों पर !

मित्रों ! युवा वर्ग की बात नहीं कर रही हूँ ,जब कगार पर खड़ी उम्र में इस प्रकार की घटनाएँ हो सकती हैं जो मन को क्षुब्ध कर दें तो युवा वर्ग में स्वाभाविक है हो ही सकती हैं बल्कि होती रहती हैं ,मैं पूरे होशोहवास में यह बात बड़ी शिद्दत से कह रही हूँ कि प्रत्येक म्नुशय के जीवन में इस प्रकार की बातें होती ही रहती हैं |

क्म्यूटर सीखने का शौक मित्रों ने लगवाया ,जो मेरे बहुत काम आया ,इसमें कोई शक नहीं मेरे बहुत से काम इसके माध्यम से होने लगे और बड़ी आसानी से होने लगे|पहले मैं अपने टाइपिस्ट पर निर्भर करती थी |वो जितनी बार मेरा मैटर लेकर जाते ,उतनी ही बार वही गलतियाँ कर लाते | अब मैं अपने ऊपर निर्भर हो गई थी ,फटाफट काम हो जाता ,मेल के माध्यम से अपने लेख,कहानियाँ आदि पत्र -पत्रिकाओं में भेज देती | सच में ,शुरू शुरू में बड़ी आनंद की अनुभूति होती जब मैं अपना काम चुटकी बजाते ही कर लेती | मैंने अपने मित्रों को धन्यवाद दिया जिन्होने मुझसे कंप्यूटर खरीदवा दिया था ,बनता भी था भई !

किन्तु मित्रों ने यह तो नहीं कहा था कि किसी भी ऐप में एंट्री कर लो | लेकिन भाई ,नया नया शौक --एक नई दुनिया का विस्तार ,नए लोगों से परिचय और नई बातों को जानने समझने की जिज्ञासा जब हम जैसे वर्ग में हो सकती है तो युवा में होनी तो स्वाभाविक है | मैंने कई ऐसे ऐप में प्रवेश ले लिया जिनके बारे में मुझे कुछ आता-पता तो था नहीं --बस,उसमें अपनी तस्वीरें देखीं ।उनके ऊपर सुंदर सुंदर विचार पढ़े और फ़िदा हो गए जी |

ये समझ में नहीं आ रहा था कि मेरी तस्वीरें कहाँ मिलीं होंगी? मित्रों ने मेरे ज्ञान-चक्षु खोले और ज्ञान दिया कि पगलेट एफ़बी में तो हो,वहाँ से सब मिल जाता है | ओह ! यह बात थी ! तभी कहूँ कि भई मैं इतनी प्रसिद्ध कैसे और कबसे हो गई कि लगातार मित्रता की पंक्ति बढ़ती जा रही है और मैं स्वीकार करती जा रही हूँ | कुछ मित्र बड़े अच्छे लगे ,उन्होंने साहित्य पर बातें कीं ,कविताओं को पढ़ने की इच्छा ज़ाहिर की ,हम तो तैयार ही बैठे थे कि कोई हमारी कही हुई बातें भी सुन ले ,पढ़ ले ,ज़रा तारीफ़ भी कर दे तो हम फूले हुए और भी फूल जाएँ | हो भी यही रहा था ,बड़े अच्छे अच्छे कमेंट्स मिल रहे थे | दो मित्रों ने मेरी रचनाओं का अनुवाद करने की इच्छा ज़ाहिर की | अंधा क्या चाहे ,दो आँखें | उन्होंने सच में ही बड़े सुंदर अनुवाद किए | आनंद आ गया ,सराहना खूब मिली |

कुछ मित्रों ने साथ में चाय पीने की इच्छा ज़ाहिर की ,वहाँ तक भी ठीक ! हमें कई मित्र एफ़बी के माध्यम से ऐसे मिल जाते हैं कि वे एक विस्तार दे जाते हैं |मुझे उसके माध्यम से बहुत विद्वान मित्र मिले और मैं उनसे मिली,वो मेरे शहर में आए तो या मैं उनके शहर में गई तो--- ऐसे ही एक बड़ा भोले से चेहरे वाला छोटी उम्र के लड़के ने मुझे मित्रता के लिए रिक्वेस्ट भेजी | उसके मित्रों की सूची में कोई नहीं था लेकिन वह इतना छोटा था कि मुझे लगा बच्चा है ,राजस्थान से था और अभी अहमदाबाद में काम करने आया था | वो मैसेंजर पर रोज़ कुछ न कुछ भेजता |

कब मिलेंगे ?

अरे भई ! मिलकर क्या करेंगे ?कोई कॉमन टॉपिक तो हू बात करने का !

आप क्या खाती हैं ? क्या पीती हैं ? बार-बार यही सवाल !

कोई रेस्टौरेंट खोल लिया क्या ?

बताइए ,क्या खाती-पीती हैं ?

पीती पर कुछ ज़्यादा ही ज़ोर था | मैं जवाब न दूँ तो भी भाई बार-बार पूछ रहे हैं |

बेटा ! मैं रोटी-सब्ज़ी खाती हूँ ,पानी पीती हूँ ,शुद्ध शाकाहारी हूँ ---बच्चे ! मेरा पीछा छोड़ ,मुझे इस उम्र में कुछ नहीं पचता |अपने जैसी किसी बच्ची से मित्रता कर |

न जाने कैसे-कैसे उस बच्चे से पीछा छुड़ाया ,मित्रों की दनादन गालियाँ खाईं ,सारे एप्स पर जाना बंद किया जिन पर अपनी प्रशंसा देखने चुपचाप पहुँच जाती थी |

जब पता चला कि उस ऐप को खोलने पर भी चोरी पकड़ी जाती है तब अपने कान खींचे,तौबा की |खुद पर शर्म भी आई कि इतना तारीफ़ सुनने का लालच इस उम्र में तो भला कम उम्र के बच्चे कैसे अछूते रहेंगे ?

वैसे सभी मित्र ही तो हैं ---

शत्रु कोई नहीं -----

तो ध्यान रखिए ----ज़रूरी है !

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती