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अप्सराएं या परियां

अप्सराओं का बंदी



कुछ समय पहले की बात है. यह उत्तराखंड के एक गांव की बात है. उत्तराखंड के किसी गांव में एक बहुत कुशल संगीतकार रहता था. उसके संगीत और वादन की धूम दूर-दूर तक थी. एक बार वह संगीतकार गुम हो गया. घरवालों ने हिंदू धर्म के अनुसार उसकी सभी क्रियाएं संपन्न कर ली और उसे मृत मान लिया.


समय अपनी गति से चलता रहा. आखिर 30 - 40 साल बाद वह संगीतकार अचानक अपने घर पहुंच गया. तब तक उसके गांव में उसके साथ के अधिसंख्य लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे. अतः गांव में किसी ने उसे नहीं पहचाना. वह अपने घर पहुंचा तो उसे अपना घर थोड़ा बदला - बदला सा लगा. उसे घर के कुछ सदस्य अधिक तो कुछ कम दिखाई दिए. संगीतकार को घर के लोग भी नहीं पहचान पाए. आखिर उसने अपना परिचय दिया तो बड़ी मुश्किल से गांव के कुछ वृद्ध लोगों ने उसे पहचान लिया और उससे पूछा कि आज तक वह कहां था ? घर में तो सब उसे मृत मान चुके थे और उसकी सभी क्रियाएं हिंदू धर्म के अनुसार संपन्न कर ली गई थी.


यह देखकर संगीतकार भी आश्चर्यचकित रह गया. उसके हिसाब से तो वह एक आध दिन के पर्यटन के बाद ही अपने घर पहुंचा था. फिर संगीतकार ने अपनी कहानी सुनाई. उसने कहा अरे भाई मैं तो एक रात ही घर से बाहर रहा हूं. आप यह सब कैसी बातें कर रहे हैं? गांव वालों ने उससे उसकी राम कहानी पूछी तो उसने बताया कि कल शाम को जब मैं घर आ रहा था तो रास्ते में मुझे एक बहुत बड़ा पत्थर मिला. मुझे थकावट लग गई थी अतः मैं उस पत्थर पर बैठ कर सो गया. रात को जब मेरी नींद खुली तो कई सुंदर नारियां मेरे सामने नाच गा रही थी. मैं भी उनके साथ शामिल हो गया. उनके साथ गायन वादन करते करते सुबह हो गई. सुबह होते ही मैं सीधे घर आया.


सभी लोग समझ गए कि यह उत्तराखंड के जंगलों में घूमने वाली अप्सराओं के कब्जे में आ गया था. यह एक तरफ से टाइम ट्रेवल का भी उदाहरण था. उत्तराखंड में अप्सरायें अछरियों के रूप में जानी जाती हैं. यह बहुत सुंदर होती हैं और अपने इच्छित व्यक्ति को अपने साथ ले जाती हैं. इन्हें काफी खतरनाक भी माना जाता है. यह भूत प्रेत किस्म व श्रेणी की लेकिन उनसे उच्च कोटि की होती हैं. प्रस्तुत वाकया वास्तव में हुआ था और यह लोगों द्वारा सुनी हुई घटना पर आधारित है और मैंने सुनकर ही इसे यहां अपने शब्दों में प्रस्तुत किया है.


असल में यह एक अलौकिक घटना थी. यह टाइम ट्रेवल की भी घटना थी. अप्सराओं के सिर्फ एक दिन में ही 30 - 40 साल व्यतीत हो गए थे. अप्सरायें एक किस्म की आत्माएं होती हैं जो थोड़ी सात्विक और थोड़ी तामसिक प्रवृत्ति की होती है. इन्हें गढ़वाल क्षेत्र में अछरियों या परियों के नाम से पुकारा जाता है. कहा जाता है कि सबसे पहले अछरियां वह थी जो रावण ने अपनी पुत्रीयां भोले शंकर को अर्पित की थी. भोले शंकर को अर्पित रावण के पुत्रियां परियां या अप्सराएं बन गई थी. इसी के बाद जो सुंदर स्त्री बिना विवाह के मर जाती है, अकाल मृत्यु से अछरियां बन जाती है.
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