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अपना घर

उर्मी संयुक्त परिवार में हुई थी। परिवार में जेठ जेठानी, सास ससुर व पति सुकेश । कुछ ही दिनों में उर्मी को अच्छे से पता चल गया कि घर में उसकी सास के आगे किसी की नहीं चल सकती। यहां तक कि उसके ससुर भी उनके सामने चुप हो जाते थे।

एक दिन उर्मी की मम्मी व छोटा भाई उससे मिलने आए। उर्मी तो उन्हें देखकर बहुत खुश हुई। उसकी सास ने भी औपचारिकतावश उनका स्वागत किया । बातों ही बातों में उसकी सास ने उसकी मम्मी को कहा "समधन जी आते रहा करो अच्छा लगता है। वैसे हमारे यहां तो बेटी के यहां जाना तो दूर उसके घर का पानी भी नहीं पीते। लेकिन अपने अपने रिवाज है ।आप आओ हमें तो कोई एतराज नहीं।"
उनकी बातें सुन उर्मी व उसकी मम्मी का मुंह उतर गया। उन्हें आशा नहीं थी कि वह इस तरह की बातें भी कर सकती हैं। उर्मी ने कुछ कहना भी चाहा लेकिन उसकी मां ने इशारे से मना कर दिया और बिना कुछ खाए पिए चले गए।
उर्मी ने सुकेश से इस बारे में बात की तो वह बोला "तुम्हें तो पता है ना मम्मी की आदत। कहने दो । मम्मी का जब मन करें आए । उनकी बातों पर ध्यान ना दें।"
उर्मी की शादी को अभी महीना भर ही हुआ था कि उसकी सास की मां व भतीजा भतीजी फिर से आ गए।
जिन्हें देख उसकी सास फूले नहीं समा रही थी। उन्होंने दोनों बहुओं को उनकी आवभगत में लगा रखा था। उर्मी को यह सब बड़ा अजीब लग रहा था।
उसकी जेठानी ने कहा "देवरानी जी हैरान मत हो बल्कि कमरकस लो । यह इस घर का रिवाज है कि बहू के घर से कोई आए तो उन्हें ताने मार , पानी भी ना पीने दो। लेकिन सासू मां के मायके से हर महीने कोई ना कोई आएगा ही नहीं बल्कि तीन-चार दिन रुकेगा । "

उर्मी को एक ही घर में इस तरह का दोगला व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उसने मन ही मन सोच लिया था कि वह इस बारे में अपनी सास से जरूर बात करेगी। जब उसने सुकेश से बात की तो उसने कहा "छोड़ो उर्मी दो-चार दिन की ही तो बात है। तुम क्यों बुरी बनती हो। बिना मतलब में बखेड़ा खड़ा हो जाएगा।"
"नहीं सुकेश , मम्मी को उनकी गलती का एहसास होना चाहिए। " अपनी सास के मायके वालों के जाने के बाद उर्मी में अपनी सास से कहा "मम्मी जी एक ही घर में अलग-अलग नियम क्यों?"
" क्या मतलब ?" उसकी सास ने पूछा।
"मम्मी जी, मेरी मम्मी तो उस दिन मुझसे मिलने ही आई थी। तब आपने बातों ही बातों में उन्हें कैसे बेटी के घर ना आने के रिवाज सुना दिया और नानी जी तो....!"
उर्मी की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि उसकी सास गुस्से से आगबबूला होते हुए बोली "चुप कर बहू! यह मेरा घर है। मैं जिसे चाहूं बुलाऊं। जिसे चाहूं रखूं। तू होती कौन है, मुझसे सवाल जवाब करने वाली।"
" मम्मी जी, मैं भी तो इस घर में शादी करके आई हूं ।मेरा भी तो इस घर में कुछ ना कुछ अधिकार है।"
" कोई अधिकार नहीं है तेरा। यह घर मेरा है। मेरे पति ने खरीदा है। जब तक मेरा मन होगा तुम यहां रहोगे वरना!" " वरना!"
" अपना घर देखो!"

"यह क्या कह रही हो मम्मी आप। इतनी छोटी सी बात के लिए आपने इतनी बड़ी बात कह दी!" सुकेश बोला।
"ठीक कह रही हूं मैं। अगर इस घर में रहना है तो कह दे इससे मेरे तौर तरीकों से रहे। वरना चली जाए अपनी मां के घर। फिर खूब आराम से दोनों मां बेटी बातें करते रहना। तुम्हें कोई रोकने वाला नहीं होगा।"
"मम्मी आप बात को समझने की बजाय कहां से कहां ले गई। मकान को घर परिवार के सदस्य बनाते हैं और आपका यही व्यवहार रहा तो एक दिन आप इस घर में अकेले ही रह जाओगी।"
उसके बाद भी उन के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया बल्कि अब तो उन्होंने ज्यादा ही घर की धौंस जमानी शुरू कर दी। कुछ समय बाद ही उर्मी की नौकरी लग गई। रोज-रोज के क्लेश से तंग आकर उन दोनों ने अपना एक छोटा सा घर खरीद लिया। उनके जाने के 1 साल बाद ही जेठ जेठानी भी वहां से चले गए।
समझ के अभाव में आज उसके सास ससुर अपने उस मकान में अकेले रह रहे हैं।
कई बार हमारे बड़ों का अहम परिवार के बिखराव का कारण बन जाता है। इसलिए छोटों के साथ-साथ बड़े भी अगर थोड़ा सा झुककर चले तो परिवार बिखरने से बच सकता है।

सरोज ✍️✍️