Mout Ka Khel - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

मौत का खेल - भाग-24

अहम सुराग


सोहराब और सलीम पर पीछे की कार से किए गए दोनों ही फायर बेकार साबित हुए थे। दोनों गाड़ियों के बीच की दूरी पचास मीटर से ज्यादा थी। फायरिंग के बाद सोहराब ने घोस्ट की स्पीड को बढ़ा दिया। इसके साथ ही सोहराब ने माउजर और सलीम ने अपनी पिस्टल निकाल ली और पीछे की तरफ फायर कर दिया। दोनों का ही निशाना अचूक था। नतीजे में पीछे वाली कार के दोनों अगले टायर तेज आवाज के साथ ब्लास्ट हो गए। इसके साथ ही पीछे वाली कार का संतुलन बुरी तरह से बिगड़ गया और वह कई बार पल्टी खाने के बाद एक चट्टान से टकरा कर रुक गई।

रिवाल्वर की गोली आम तौर पर पचास मीटर तक ही टार्गेट कर सकती है। माउजर पिस्टल की गोली की रेंज डेढ़ से दो सौ मीटर तक हो सकती है। रिवाल्वर और पिस्टल में भी बड़ा फर्क होता है। रिवॉल्वर में एक घूमने वाला सिलिंडर होता है। इसमें ही गोलियां डाली जाती हैं। इनमें छह से आठ गोलियां होती हैं। एक गोली चलाने पर सिलिंडर अपने आप ही घूम जाता है और दूसरी गोली बैरल के सामने आ जाती है। पिस्टल में गोलियों से भरी हुई मैगज़ीन लगाई जाती हैं। यह प्रति लोड ज्यादा गोलियां फायर कर सकती है। पिस्टल की मैग्जीन में आम तौर पर 18 गोलियां होती हैं। जिस माउजर का इस्तेमाल सोहराब करता था, उसकी मैग्जीन में तीस गोलियां लगती थीं।

इस वक्त घोस्ट की स्पीड सौ के आसपास थी। वह जल्द से जल्द लाश मिलने वाली जगह पर पहुंचना चाहता था। कुछ दूर जाने के बाद उन्हें ऊंचे ऊंचे पेड़ नजर आने लगे। मिनट भर में वह जंगल के करीब पहुंच गए। सोहराब ने कार रोक दी। दोनों ही घोस्ट से नीचे उतर आए। सोहराब ने सलीम के हाथ से मोबाइल ले लिया और लोकेशन देखने लगा। उस पर लैटिट्यूड और लांगिट्यूड लाइंस दी हुई थीं। उसने जेब से एक खास तरह का कंपास निकाला और उसमें लैटिट्यूड और लांगिट्यूड लाइंस के नंबर डाल दिए। उसे उस जगह तक ले जाने के लिए कंपास पर तीर से इशारा मिलने लगा। वह उस तीर के बताए रास्ते पर आगे बढ़ने लगे।

यह काफी घना जंगल था। यहां चिड़ियों, कीड़े मकोड़े और सांपों की एक पूरी दुनिया आबाद थी। जंगल में घुसते ही झींगरों की चिरचिराहट सुनाई देने लगी थी। कदमों की धमक से वह खामोश हो जाते। उसके बाद फिर उनकी आवाज आने लगती थी। उनकी आवाज सन्नाटे का एहसास करा रही थी। सोहराब और सलीम थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि एक उल्लू सलीम के सर पर पंजे मारता हुआ निकल गया। सलीम उसकी इस हरकत पर थोड़ा हड़बड़ा गया था। अभी उल्लू वाली घटना पर सोहराब हंस ही रहा था कि उस के बूट के करीब से एक सांप गुजर गया। इंस्पेक्टर सोहराब ने उसे जाने दिया। वह बेवजह किसी की जान लेने का कायल नहीं था।

इंस्पेक्टर सोहराब और सलीम उस जगह पर पहुंच गए, जिसकी लोकेशन सोहराब को मिली थी। सोहराब बहुत बारीकी से उस जगह का मुआयना कर रहा था। एक जगर पर उसे जली हुई घास नजर आई। उसने मोबाइल से उस जगह की कई तस्वीरें उतार लीं। उसने सलीम को दिखाते हुए कहा, “लाश का चेहरा यहीं पर तेजाब डाल कर जलाया गया था।”

सोहराब ने मैग्नीफाइंग ग्लास निकाल लिया और उस जगह को काफी बारीकी से देखने लगा। इसके बाद हाथों पर दस्ताना पहन लिया। उसने तेजाब से जली हुई घास को हाथों से मसल कर सूंघा। उसमें उसे अजीब सी गंध मिली। इसके बाद उसने घास के कुछ टुकड़े नोच कर एक थैली में रख लिए।

इस बीच सार्जेंट सलीम आस पास का जायजा लेने लगा। उसे एक जगह पर कुछ राख नजर आई। वह जमीन पर बैठ कर उस राख को ध्यान से देख रहा था। उसने जमीन से पेड़ की एक सूखी डाल उठाई और राख को कुरेदने लगा। राख के बीच से सिगरेट का एक बड मिला। उसने बड को राख से अलग कर लिया और उसे प्लास्टिक की थैली में पैक कर दिया। इस के बाद राख का सैंपल भी एक थैली में रख लिया। सलीम ने मोबाइल से राख की कुछ तस्वीरें उतारीं और उठ खड़ा हुआ।

वह वापस सोहराब के पास पहुंचा तो वह अभी भी आसपास की चीजों का जायजा लेते हुए मिला। इंस्पेक्टर सोहराब ने आसपास के तमाम पेड़ तक खंगाल डाले। उसके बाद उसने सलीम से पूछा, “कोई खास सुराग हाथ लगा?”

सलीम ने उसे बड्स वाली थैली दिखाते हुए कहा, “पास में एक जगह पर राख पड़ी हुई है। उस राख में सिगरेट की यह बड मिली है।”

सोहराब ने पन्नी को हाथ में ले कर बड को देखते हुए कहा, “तुम ने बहुत अहम सुराग खोज निकाला है। इस बड्स में मुजरिम का थूक लगा होगा। उस से हम उसका डीएनए हासिल कर सकते हैं।”

“लेकिन यह जला क्यों नहीं?” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“सिगरेट के बड्स आसानी से नहीं जलते है।” सोहराब ने कहा और सलीम के साथ उस जगह की तरफ चल दिया जहां राख मिली थी।

सोहराब ने राख को देखते हुए कहा, “यहां निश्चित तौर पर डॉ. वीरानी के कपड़े जलाए गए होंगे। मुजरिम ने कपड़ों में आग लगाने के बाद यहां खड़े होकर सिगरेट पी होगी। फिर बड्स को आग में फेंक दिया होगा। उसने सोचा होगा कि यह जल जाएगा। यहीं उससे चूक हो गई।”

सोहराब और सलीम वापस लौट पड़े। तभी एक लोमड़ी अचानक उनके सामने आ गई। वह उन्हें देख कर पलट कर भागने लगी। कुछ देर बाद वह रुक कर फिर उनकी तरफ देखने लगी। ऐसा उसने कई बार किया। उसके बाद वह नजरों से ओझल हो गई।

“अब तुम ड्राइविंग सीट संभालो।” इंस्पेक्टर सोहराब ने सलीम को घोस्ट की चाबी देते हुए कहा।

सलीम ने घोस्ट का गेट खोला और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। सोहराब दूसरा गेट खोल कर बगल की सीट पर बैठ गया। इसके बाद कार आगे बढ़ गई। कार की रफ्तार काफी तेज थी। सड़क पर दूर दूर तक कोई गाड़ी नजर नहीं आ रही थी। कुछ देर बाद वह उस जगह पहुंच गए जहां उन्होंने कार के टायर ब्लास्ट किए थे। सोहराब यह देख कर चौंक पड़ा की एक्सीडेंट वाली जगह पर कार मौजूद नहीं थी।

“कार रोको!” सोहराब ने सलीम से कहा और फिर कार को बैक गेयर में लेकर उस जगह पर चलने को कहा जहां एक्सीडेंट हुआ था।

सलीम ने कार रोक दी और उसे बैक गेयर में डाल दिया। कुछ देर बाद उसने कार रोक दी। सोहराब कार से नीचे उतर आया। सलीम ने भी कार का इंजन बंद किया और नीचे उतर आया। दोनों उस चट्टान की तरफ बढ़ गए, जहां कार टकरा कर रुक गई थी। वहां कार एक्सीडेंट का कोई निशान तक मौजूद नहीं था। सोहराब को पथरीली जमीन पर खून के निशान नजर आ गए। उसे बड़ी सफाई से पोंछ दिया गया था, लेकिन खून की महक से कुछ चीटियां वहां जमा हो गई थीं।

दोनों फिर कार में आ कर बैठ गए और कार चल दी। कुछ देर में वह शहर में दाखिल हो रहे थे। सलीम ने विंड स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए पूछा, “कहां चलना है?”

“महकमे की लैब चलते हैं।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

कुछ देर बाद उनकी कार खुफिया विभाग के बड़े से गेट के सामने रुक गई। दोनों कार से उतर आए। उन्होंने आंखों की रेटिना को वेरिफाई कराया। बायोमेट्रिक मशीन पर उंगली रखते ही ऑटोमेटिक गेट खुल गया। दोनों कार में बैठ गए और कार आगे बढ़ गई। उन्होंने घास, राख और सिगरेट के बड का पाउच लैब में जमा कर दिया। सोहराब ने डॉ. वीरानी के कपड़े से मिले बुरादे को भी लैब में दे दिया।

दोनों ने वाशबेसिन में हाथ साफ किए और फिर वापस आकर कार में बैठ गए। कार कुछ दूर अंदर गई और फिर फव्वारे का चक्कर काटते हुए वापस चल दी। सोहराब ने डैश बोर्ड पर चिपके एक रिमोट का बटन दबाया और गेट खुल गया। इसके बाद कार बाहर आ गई। खुफिया विभाग में जाने के लिए तो वेरिफिकेशन की जरूरत पड़ती थी। वापसी में इस की जरूरत नहीं थी, इसलिए गेट रिमोट से भी खुल जाता था।

“अब हुजूर कहां जाना पसंद करेंगे?” सलीम ने बहुत मुहब्बत के साथ पूछा।

“बहुत थक गया हूं। शेक्सपियर कैफे चलते हैं। वहां तुम्हें शानदार कॉफी पिलाते हैं।”

“मुझे ब्लैक कॉफी पसंद नहीं है।” सलीम ने मुंह बनाते हुए कहा।

“जो तुम्हें पसंद हो वह पी लेना।”

कुछ देर बाद उनकी कार शेक्सपियर कैफे में दाखिल हो रही थी। घोस्ट को पार्क करने के बाद वह लॉन को पार करते हुए डायनिंग हाल में दाखिल हो गए। कैफे में ज्यादा भीड़ नहीं थी। शेक्सपियर कैफे राजधानी का सबसे शानदार कैफे था। इसके डायनिंग हाल में एक साथ सौ से ज्यादा लोग बैठ सकते थे। यहां 70 तरह की कॉफी मिलती थी।

सोहराब ने हमेशा की तरह कोने की एक मेज चुनी और दोनों आमने-सामने बैठ गए। कुछ देर में वेटर आर्डर लेने आ गया। सोहराब ने कहा, “दो मोका चीनो। साथ में फ्रेंच टोस्ट।”

मोका चीनो एक खास तरह की कॉफी होती है। कप्पुेच्ची नो कॉफी में कोकोआ पाउडर मिला कर इसे तैयार करते हैं। इस कॉफी में गार्निर्शिंग के लिए क्रीम का इस्तेमाल किया जाता है।

“ब्लैक कॉफी छोड़ दी क्या आपने?” सलीम ने हंसते हुए कहा।

“सोचा आज तुम्हारा टेस्ट लिया जाए।” सोहराब ने कहा।

उनकी टेबल के बगल की मेज पर एक आदमी अकेला बैठा हुआ था। कुछ देर बाद एक दूसरा आदमी आ गया। उसने बैठते हुए कहा, “ऐसी कौन सी इमरजेंसी थी अचानक यहां बुला लिया?”

“सदर अस्पताल वाली घटना के बाद से मेरा आदमी गायब है। लड़की को ट्रेनिंग के लिए सिंगापुर भेज दिया है।”

सदर अस्पताल का नाम सुनते ही इंस्पेक्टर सोहराब चौंक पड़ा।
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सिगरेट की बड से क्या सुराग मिला?
क्या सोहराब ने कातिल को पहचान लिया था?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...