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मौत का खेल - भाग-1

जासूसी उपन्यास मौत का खेल
कुमार रहमान

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डिस्क्लेमरः उपन्यास ‘मौत का खेल’ के सभी पात्र, घटनाएं और स्थान झूठे हैं... और यह झूठ बोलने के लिए मैं शर्मिंदा नहीं हूं।

फार्म हाउस


दिसंबर महीने की आखिरी रात थी, यानी 31 दिसंबर की तारीख थी। आज गजब की सर्दी थी। कोहरा भी इस कदर था कि कुछ फिट की दूरी पर भी चीजें नजर नहीं आ रही थीं। 31 दिसंबर की रात हमेशा ही तीन तरह से गुजरती हैं। असहाय लोगों के लिए हर दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर जैसा ही होता है। मिडिल क्लास घर में टीवी देखते हुए नये साल का इंतजार करता है और उच्च वर्ग... 31 दिसंबर की शाम रंगीन बनाने के लिए वह पैसा पानी की तरह बहाते हैं। इसके लिए ज्यादातर लोग तो विदेश या किसी हिल स्टेशन का रुख करते हैं। राजधानी के फाइव स्टार होटल बुक होते हैं या फिर किसी फार्म हाउस पर महफिल सजाई जाती है।

राजधानी से तकरीबन 170 किलोमीटर दूर ऐसे ही एक फार्म हाउस पर 31 दिसंबर की नाइट के सेलिब्रेशन के लिए शहर भर के रईस और अहम हस्तियां जुटी थीं। इस फार्म हाउस का नाम ‘शरबतिया’ था। इस अजीब नाम के पीछे एक किस्सा बयान किया जाता है। कहते हैं कि इस फार्म हाउस के मौजूदा मालिक के दादा धनेश चंद्र ने एक फकीर को गर्मी की तपती दोपहरी में तुखबालंगा का शरबत पिलाया था। इस नवाजिश से फकीर इस कदर खुश हुआ था कि उसने उन्हें दिल खोलकर दुआएं दी थीं। मशहूर है कि इससे इस परिवार के दिन बदल गए और यह देखते-देखते ही देश के बड़े बिजनेसमैन बन गए।

हालांकि विरोधी एक अलग ही किस्सा सुनाते हैं। उनके मुताबिक इनके खानदान में कई पीढ़ी पहले एक शख्स की रखैल का नाम ‘शरबतिया’ था। वह जानी-मानी तवायफ थी। उसके पैसों से ही यह लोग अमीर होते चले गए। जो भी हो, लेकिन इस खानदान के लोग तभी से अपने नाम के साथ सरनेम ‘शरबतिया’ लगाने लगे।

शरबतिया हाउस एक पुराने तौर-तरीके की बड़ी सी कोठी थी। कोठी के मौजूदा मालिक राजेश शरबतिया ने कोठी की बनावट में कोई छेड़छाड़ नहीं की थी। उसने बस इसे अंदर से आधुनिक बनाने के लिए कुछ मामूली बदलाव किए थे, जिनमें ज्यादातर बदलाव सजावटी ही थे।

यह कोठी दो मंजिला थी। दोनों मंजिलों को मिलाकर इसमें 25 कमरे थे। नीचे की मंजिल पर एक बड़ा सा हाल था और 15 कमरे थे। हाल दो हिस्सों में बंटा हुआ था। एक हिस्से में पार्टी के लिए पूरा इंतजाम था और दूसरे हिस्से में डायनिंग टेबल लगी हुई थी। हाल की लंबाई-चौड़ाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि डायनिंग टेबल पर एक साथ 70 से ज्यादा लोग खाना खा सकते थे। दूसरा हिस्सा थोड़ा बड़ा था। इसमें 150 लोग एक साथ पार्टी कर सकते थे।

कोठी, फार्म हाउस के बीचो-बीच बनी हुई थी। मेन गेट से कोठी तक पहुंचने के लिए तकरीबन तीन किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था। फार्म हाउस के आधे हिस्से में खेती होती थी और आधा हिस्सा पेड़ों से भरा हुआ था। कभी यह पूरा इलाका ही जंगल था। बाद में पेड़ों को साफ करके आधे हिस्से में खेती कराई जाने लगी। यहां आर्गेनिक खेती होती थी। इनमें सब्जियां भी उगाई जाती थीं।

उधर, जंगल में तमाम तरह के शाकाहारी जानवर भी विशेष तौर पर पाले गए थे। जंगल के बीच एक झील भी थी, जिनमें आबी परिंदे (जलीय पक्षी) हर सर्दी में बड़ी तादाद में आते थे। चूंकि राजेश शरबतिया खुद शाकाहारी थे, इसलिए यहां शिकार नहीं होता था। पूरा फार्म हाउस ऊंची बाउंड्री से घिरा हुआ था, इसलिए कोई बाहरी भी अंदर नहीं आ सकता था।

शरबतिया हाउस में यूं तो पूरे साल छोटी-छोटी पार्टियां होती रहती थीं, लेकिन साल में दो बार बड़ी पार्टी होती थी। एक तो सावन में और दूसरी 31 दिसंबर की रात में। सावन में यहां पेड़ों पर बड़े-बड़े झूले पड़ते थे। 20-25 किस्म की पकौड़ियां बनाई जाती थीं। इस पार्टी में लोग जमकर बारिश में भीगते थे। डांस होता था। लोग जंगल की मिट्टी में लस्त-पस्त हो जाते थे। खूब रास-रंग होता था।
शरबतिया हाउस की पार्टी पूरी राजधानी में मशहूर थी। शहर की तमाम शख्सियतों की ख्वाहिश रहती थी कि कभी उन्हें भी शरबतिया हाउस की पार्टी में शामिल होने का मौका मिले। इसकी एक बड़ी वजह यहां परोसी जाने वाली तमाम तरह की महंगी शराब थीं। कुछ तो ऐसी थीं, जो पूरी राजधानी में सिर्फ शरबतिया हाउस में ही परोसी जाती थीं। इन महंगी शराब के जायके के लोग दीवाने थे।

आज की पार्टी में भी तमाम देशों की बेहतरीन शराब मौजूद थी। इनमें पुर्तगाल की मंहगी शराब भी शामिल थीं। कुछ तो इतनी महंगी थीं कि एक बोतल के पैसों में एक मिडिल क्लास नौजवान की शादी हो जाए। इनमें लकड़ी के पीपे में भर कर बीस साल तक जमीन में दफ्न कर कल्चर की गई शराब से लेकर लेक में कल्चर की गई शराब तक शामिल थीं।

शराब को लेकर यह मुहावरा गलत है, ‘नई बोतल में पुरानी शराब’, जबकि हकीकत यह है कि पुरानी यानी एज की हुई शराब ज्यादा मंहगी होती है। कई बार करोड़ रुपये में भी।

शरबतिया हाउस पर आज 31 दिसंबर की रात में होने वाली पार्टी में चुनिंदा लोग ही बुलाए गए थे। इनमें शहर के अमीरतरीन लोग ही नहीं थे, बल्कि कई बड़ी शख्सियतें भी शामिल थीं। सभी को रात आठ बजे तक पहुंचने का इनविटेशन दिया गया था। चूंकि सर्दी बहुत ज्यादा थी और कोहरा भी था तो ज्यादातर लोग रात साढ़े नौ बजे तक ही पहुंच सके थे।

ठीक रात दस बजे पार्टी शुरू हो गई। मेन गेट पर ताला लगा दिया गया। अब किसी को भी अंदर आने की इजाजत नहीं थी। हाल के एक हिस्से में कुछ लोग डांस कर रहे थे तो कुछ लोग आपस में गुफ्तुगू में मशगूल थे। सभी के हाथों में ग्लास था। शराब सर्व करने के लिए कोई वेटर नहीं था। हाल के एक हिस्से में ही बार था। वहां ‘साकी’ सभी को शराब सर्व कर रहा था।

महफिल में तमाम महिलाएं भी शामिल थीं। शरबतिया हाउस के बाहर इस वक्त तीन डिग्री टंप्रेचर था, लेकिन हाल के भीतर का तापमान तकरीबन 20 डिग्री सेल्सियस था। मर्द जहां अपने थ्री पीस में ही नजर आ रहे थे, वहीं महिलाओं ने अपने गर्म कोट उतार कर स्टैंड पर टांग दिए थे। वजह साफ थी। गर्म कोट उनके खूबसूरत कपड़ों को और नुमाइश करते जिस्म को ढक रहे थे, जो इन महिलाओं को एकदम पसंद नहीं था।

यूं तो पार्टी में एक से बढ़कर एक खूबसूरत महिलाएं और लड़कियां थीं, लेकिन महफिल की जान तो रायना ही थी। वह एक साइंटिस्ट की वाइफ थी। उम्र यही कोई 19-20 साल थी। साइंटिस्ट और उसकी उम्र में तकरीबन 40 साल का फर्क था। साइंटिस्ट डॉ. वरुण वीरानी ने उम्र के आखिरी हिस्से में शादी की थी। डॉ. वीरानी की उम्र 60 साल से ज्यादा थी, लेकिन उसकी पर्सनाल्टी बड़ी डैशिंग थी। वह इस उम्र में भी 30-32 साल का जवान मालूम होता था। पति-पत्नी में गजब की बॉन्डिंग थी। दोनों ही एक-दूसरे का बहुत ख्याल करते थे। आज भी रायना वरुण के साथ ही चिपकी घूम रही थी। कई बार वरुण ने उसे टोका तो वह डांस फ्लोर की तरफ चली गई। फ्लोर पर हर कोई उसके साथ डांस करने को बेकरार था।

रायना की खूबसूरती ही उसे हर दिल अजीज बनाती थी। मर्दों के बीच वह बॉर्बी डॉल के नाम से जानी जाती थी। तराशे हुए बदन के साथ ही उसके नयन-नक्श भी किसी रबर की गुड़िया से तराशे हुए थे। आंखे नीली थीं और निहायत ही बड़ी थीं। उसने इस वक्त काले रंग की साड़ी पहन रखी थी। इसमें वह बला की खूबसूरत नजर आ रही थी। तमाम मर्द रायना की इसी खूबसूरती की वजह से डॉ. वरुण से रश्क करते थे। कई तो यह मानते थे कि राजेश शरबतिया उसे बुलाते ही उसकी खूबसूरत बीवी की वजह से हैं।

रात के साढ़े दस बज चुके थे। महफिल शबाब पर थी। तभी माइक पर राजेश शरबतिया की आवाज गूंजी, “लेडीज एंड जेंटलमैन! मैं मिसेज वीरानी से दरख्वास्त करूंगा कि वह कोई नग़मा पेश करें।”

राजेश की आवाज सुनते ही डांस फ्लोर पर नाच रहे तमाम लोगों के पैर रुक गए। वह अब धीरे-धीरे नीचे उतर रहे थे। उनमें रायना भी थी।

राजेश शरबतिया ने उसे स्टेज पर रोकते हुए कहा, “आप वहीं रुकें!” राजेश ने आगे बढ़कर उसके हाथों में माइक पकड़ा दिया।

रायना ने डॉ. वरुण वीरानी की तरफ देखा। उसने इशारों में उसे गाने की इजाजत दे दी। तभी मंच पर पहुंचकर एक नौजवान ने इलेक्ट्रिक गिटार संभाल लिया। माहौल में गिटार की हल्की मधुर आवाज गूंजने लगी। गिटार बजाने वाला यह युवक अबीर था। नवदौलतिया था। वह देखते ही देखते अरबों का मालिक हो गया था। दरअसल उसने बिटक्वाइन में उस वक्त पैसे लगाए थे, जबकि वह लांच हुई थी। दस साल बाद ही उस पर पैसों की बरसात शुरू हो गई थी। उसके बाद उसने हीरों के एक्सपोर्ट का काम शुरू कर दिया था। पुराने रईस उसे कम ही पसंद करते थे, लेकिन वह राजेश शरबतिया का अजीज था। यही वजह थी कि शरबतिया हाउस की हर पार्टी में वह मौजूद होता था।

कुछ वक्फे बाद रायना की आवाज गिटार के सुरों के साथ जुगलबंदी करने लगी। वह अंग्रेजी गाना ‘माय हर्ट बीटिंग’ गा रही थी। कहा जाता है कि खूबसूरत लड़कियों की आवाज मधुर नहीं होती है। रायना इसका अपवाद थी। वह खुद जितनी खूबसूरत थी। उसकी आवाज भी उतनी ही अच्छी थी।

रायना की आवाज से महफिल मदहोश हो गई। अलबत्ता पार्टी में शामिल तमाम महिलाओं के दिल जले जा रहे थे। इसी बीच एक महिला ने पूरा पैग डॉ. वरुण वीरानी पर उंडेल दिया। ऐसा उसने जानबूझकर किया था, लेकिन उसने ठोकर लगने का बहाना बनाया था। इस हड़बड़ाहट में डॉ. वीरानी के हाथ का जाम भी उस महिला पर गिर पड़ा था। नतीजे में महिला डॉ. वीरानी पर नाराज हो गई थी। डॉ. वीरानी ने महिला को सॉरी कह दिया था, इसके बावजूद महिला उसे घूरते हुए चली गई। यह सब कुछ बहुत तेजी से हुआ था। बस करीब के कुछ लोग ही यह घटना देख पाए थे। महिला के जाने के बाद डॉ. वीरानी ने टिशू से अपने कपड़े साफ कर लिए थे।

उधर, कोठी से कुछ दूर जंगल में दो साये तेजी से बाउंड्री वाल पर चढ़े थे और फिर नीचे कूद गए। उनमें से एक के हाथ में रायफल थी। वह जंगल में कुछ दूर आगे बढ़े फिर रायफल वाले ने ट्रिगर दबा दिया। इसके साथ ही एक भारी चीज गिरने की आवाज कोहरे भरी रात में दबकर रह गई, जिस तरह से रायफल की आवाज माहौल में डूब गई थी।

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महिला ने डॉ. वरुण वीरानी पर शराब क्यों गिराई थी?
जंगल में किसे मार दिया गया था?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...