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पुत्र शोक

उमा जानकी राम की तमिल मूल कहानी का अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा

केलिफोर्निया की चौड़ी-चौड़ी सड़कें, ऊँची-ऊँची इमारतें, चुभने वाली ठण्ड़ व यहां के लोग सभी बातें शामा शास्त्री को चकित कर रहीं थीं।

इण्डियां के तिरूची के एक कोने में रहने वाले को आज समय ने केलीफोर्नियां जैसी जगह लाकर खड़ा कर दिया।

उनके ठहरने के लिये जो वेस्टवुड अपार्टमेन्ट दिया था, उसके बाइर निकल कर उन्होंने देखा।

छोटे से तालाब में सुन्दर बतखें आवाजें निकालती हुई तैर रही थीं। शामा शास्त्री वहां पड़े बेंच पर बैठ गये।

उनके साथ आये और पांच शास्त्री (पड़ित) लोग खाना खाते ही सो गये। इसके अलावा प्लेन की यात्रा के कारण जेट लॅग की भी समस्या।

एयरपोर्ट पर उन लोगों को लेने आए तमिल संघ के अघ्यक्ष रघुपति ने यहां आकर इन लोगो को खाना खिला कर चले गये।

शामा शास्त्री जी से कुछ भी नहीं खाया गया।

केलीफोर्निया में उतरते ही एक अजीब तरह की घबराहट के कारण उनकी धडकन बढ़ गई।

तिरूची में शामा शास्त्री को सभी लोग जानते है। वे अपने इलाके के प्रसिद्ध व्यक्ति है। उनके कानों में कुण्डल, गले में रूद्राक्ष की माला व रेशमी धोती में वे किसी के सामने एक बार आ जाये तो उसे लोग अपना अहो भाग्य समझते। कहने का मतलब उनका रोबला व्यक्तित्व । इसके अलावा उनकी ओजस्व पूर्ण वाणी मे जादू था। वे जब पूजा में मन्त्रों को बोलना शुरू करते तो उनकी दिव्य व ओजस्वी वाणी से रोता बच्चा भी चुप हो जाता। जब वे रामायण व महाभरत की कथा सुनाते तो उनकी सभा के प्रंागण में इतनी भीड़ होती कि तिल रखने को भी जगह नहीं होती। वेद के मुश्किल से मुश्किल श्लोक का बहुत ही सरल ढंग से अर्थ समझाते कि लोग इनकी मुश्किल करते नहीं थकते।

शामा शास्त्री जी को बहुत मुश्किल, प्रसिद्धी व नाम मिला जिसके कारण वे ज्साद्धा ही सिर चढ़े हुए थे व अपनी गर्दन को गर्व से ऊँची कर फूले नहीं समाते थे।

उनकी पत्नी विजयम प्योर सिल्क की साड़ी व हीरे के भारी टाप्स पहने रहती। वे पति के साथ छाया बन कर चलने वाली स्त्री थी। पति के शब्द ही उसके लिये वेद वाक्य थे। पति की इच्छाओं के सिवाय और कोई उसकी अपनी इच्छायें नहीं थीं। इनके इकलौते लड़के हरिहरण को बहुत ही लाड-प्यार से उन्होंने पाला। वह पढ़ने में बहुत होषियार था। हरिहरण को आगे एम. एस. करने अमेरिका भेजा।

दो साल बिना परेक्षानी के ठीक-ठाक ही बीत गये।

एक बार जब छुट्टियों में वह यहां आने वाला था तब वे लोग उसके आगमन की बड़े उत्साह से प्रतीक्षा कर रहे थे, तब हरि अकेला न आकर एमिली को भी साथ लाया।

एक महिने पहले ही एक अच्छा दिन देख कर उसने एमिली से शादी कर ली ऐसा बाहर खड़ा होकर सिर झुका कर बोला।

‘‘ अन्दर आकर बाकी बातें करें। ’’ हरि ने कहा तो शास्त्री जी ने उसे अन्दर आने की अनुमति ही नहीं दी।

’’ बाहर चले जाओ। अब इस घर में तुम्हारे लिये कोई जगह नहीं है। ’’ हरि के बहुत अनुरोध करने पर भी उन्होंने घर के दरवाजे को बंद कर दिया।

हरिहरण फिर भी नहीं गया और खिड़की से बहुत देर तक अनुरोध करता रहा।

‘‘उसने जो किया वह गलत है। फिर भी वह हमारा लड़का है। चार गाली देकर या डांट कर दरवाजा खोल दो।’’ विजयम ने रोते हुए कितनी बार अनुरोध किया, पर शामा शास्त्री का वैराग्य न टूटा।

‘‘ दुनिया के लोगों को उपदेष देने वाला व वेद पारायण करने वाला हमारा परिवार है। मेरा बेटा, बिना किसी सम्बन्ध के, न जाति, न भाषा सबसे अलग होकर दूसरे देश की लड़की को लेकर आ ‘‘ मेरी बहू ’’ कहकर परिचय कराता है। इसके साथ ही सब कुछ खतम हो गया विजयम, इसके बाद भी तुमने लगातार कोशिश की तो तुम भी उनके साथ चली जाओ।’’

कुछ भी न कर सकने की स्थति में विजयम खड़ी रही।

उसके बाद भी हरि ने अप्पा के मन को बदलने के अनेकों प्रयत्न किये। एक लम्बा पत्र लिख कर भेजा।

सहारा विहीन एमिली को किन परिस्थितियों के कारण शादी करनी पड़ी विस्तार से लिखा।

एमिलि बहुत बहुत अच्छी लड़की है। आपके लिए उसके मन में बहुत श्रद्धा व सम्मान है। अप्पा हमें अलग मत करिये । आप व अम्मा हमारे लिये बहुत जरूरी हो। हम आपको छोड़ कर न रह पायेंगे। हरि ने बहुत दुखी मन से ये पत्र लिखा । पत्र पढ़ते हुए विजयम की आँखों से आंसूं लगातार बहे जा रहे थे। उसने शामा शास्त्री को पत्र दे दिया तो उन्होंने उसे लेकर टुकड़ं-टुकड़े कर फेंक दिया। उस घर में हरिहरण का फोन आये तो उसे काट दिया जाता। उसके द्वारा भेजे गये ई-मेल भी बेकार ही साबित हुए। फिर भी हरि समय-समय पर बधाईयों का कार्ड भेजता ही रहा।

किसी के जवाब न आने के कारण वह थोड़ा-थोड़ा कर सबको छोड़ने लगा। नए साल का बधाई कार्ड फिर भी जरूर भेज देता। अपने अम्मा के जन्म दिन को पत्र के साथ उन दोनों की फोटो भी भेज देता था। पता नहीं क्यों शामा शास्त्री उसे देखा-अनदेखा कर विजयम पर फेंक जाते।

विजयम अकेली बिना खाये, बिना सोये रहने के कारण दिन पर दिन उसका शरीर क्षीण होता गया। हरि को हमारे साथ रखने में क्या गलत है ! कितने लोग, दूसरी जाति के लोगों से शादी नहीं करते क्या ? उन्हें, अपने बेटे को क्यों ऐसा दण्ड़ देना चाहिये। शामा शास्त्री से बहस का कोई नतीजा न देख अपने आप से पूछने लगी। फिर अपने आप से बात करती रहती। ऐसा करते करते वह तीव्र डिप्रेशन में चली गई। भूख, नींद सबको भूल कर .....एक दिन संध्या-काल के समय मुख पर परम शान्ति लिये हुए भगवान के पास पहुँच गई।

बिल्कुल अकेले पड़ जाने से शामा शास्त्री टूट गये। घर का सूनापन उन्हें बहुत खलने लगा। कुछ भी करने का मन न होने के कारण वैसे ही वे आराम कुर्सी में लेटे रहते। एक दिन उन्हें उनके बाल सखा बालु शास्त्री के लड़के नारायणन ने ही उठा कर बैठाया।

विजयम के जाने के चार-पाँच महिने बाद ही बुलावा आयां। केलीफोर्निया लीवरमूर टेम्पिल में कुम्भाभिषक करने का निष्चय किया। उसके लिए तमिल संघ के अध्यक्ष ने शामा शास्त्री के साथ दूसरे पांच शास्त्रियों कुल छः जनों को अमेरिका आने का बुलावा दिया।

छः महिने के पहले ही हरिहरन ने अपने हाथों से सुन्दर अक्षरों में ‘हरि’ लिख कर सुन्दर सा बधाई का कार्ड भेजा था।

सन्दूक के नीचे जाने कब फेंके गये उन बधाई के कार्डों को सम्भाल कर पहले उन्होंने ले जाने के सामानों में उसे रखा।

एक नई तरह की फुर्ती से यात्रा के लिये तैयार हो गये। शामा शास्त्री, तमिल संघ के प्रधान रघुपति को हरिहरन के भेजे गये बधाई के कार्ड में जो टेलिफोन नम्बर था वह व पता दोनों को आते ही दे दिया। अपनी कहानी को भी संक्षेप में उन्हें बता दिया।

‘‘ आप बिलकुल भी फिकर मत करो। आपका लड़का सैनफंसिसको मे ही है। यहां से कार से जायेगे तो भी दो घण्टे ही लगेंगे। कल ही आपको लेकर जाऊँगा। आप तैयार रहना। ’’ रघुपति बडे़ उत्साह से बोल कर चले गये।

शामा शास्त्री की मनःस्थिती बड़ी अजीब हो रही थीं। उनके मन में रह रह कर विचार आ रहे थे। हरिहरण का कैसे सामना कर सकूंगा ! मुझे देख आश्चर्य चकित हो जायेगा क्या ? अम्मा के बारे में पूछेगा ? क्या जवाब दूंगा ! ऐसे वैसे अनगिनित प्रष्न मन में आकर असमजसता पैदा कर रहें थे।

‘‘मामा ’’ एक गंभीर आवाज सुनते ही पीछे मुड़े तो नारायणन बोला ‘‘ आइये मामा , बहुत ठण्ड़ हो गई है। अन्दर चले। ’’ उसने पास आकर एक स्वेटर हाथ में दिया।

उन्होंने आस-पास देखा तो चारों तरफ अंधेरा हो रहा था। कुछ सोचते हुए शामा शास्त्री ऐसे बैठ गये होगे ऐसा मेहसूस करते हुए नारायणन उनके साथ साथ चलना शुरू कर दिया।

हमेशा की तरह ही सबेरा हुआ पर शामा शास्त्री ने सब कुछ नया सा महसूस किया।

रघुपति के आने के आधे घण्टे पहले ही तैयार हो गये।

‘‘मैंने घर के फोन पर फोन किया। किसी ने उठाया नहीं। कोई बात नहीं फिर भी हम प्रत्यक्ष होकर आते है, चलिये। ’’ कह कर रघुपति ने शामा शास्त्री को कार में अपने पास बैठा लिया।

कांच के बाहर दिखाई देने वाले ऊँचे-ऊँवे बिल्डिगो की ओर इशारा करके उनके बारे में परिचय कराते रहें। पर शामा शास्त्री का ध्यान किसी दूसरी जगह होने के कारण वे सिर्फ सिर हिलाते रहे। रघुपति ने जैसे कहा था वैसे ही दो घण्टे में हरिहरण का घर आ गया।

घर के सामने जो बड़ा सा हरा-लॅान था उसे पार कर जाकर कॉलबेल को दबाया। दरवाजा खुला तो एमिली, वह लड़की ही बाहर आई।

इन लोगों को देख वह भौंचक्की रह गई।

जड़ जैसे खड़ी हुई उस लड़की से रघुपति ने अंग्रेजी में बात की। शामा शात्री को वे क्या बात कर रहे हैं कुछ भी समझ नहीं आया।

‘‘ अन्दर आईये ’’

शामा शात्री, रघुपति के साथ जाकर सोफे पर बैठ गये। बैठ तो गये पर उनकी आँखें हरिहरण को ढूंढ रही थी।

एमिली ने उन्हें देख हाथ जोड़े। दोंनो को चाय लाकर दी।

शामा शास्त्री का धैर्य जवाब देने लगा तो उन्होंने कहा।‘‘ रघुपति, हरिहरण कब आयेगा पूछो ना ?’’

रघुपति ने हां में सिर हिला कर एमिली से कुछ बोला तो वह बहुत देर तक अंग्रेजी में बोलती रही। रघुपति घबराये हुये से सुन रहें है शामा शास्त्री को ऐसा लगा।

‘‘रघुपति क्या कह रही है मुझे बताओ। ’’

‘‘ कैसे बोलूं समझ में नहीं आ रहा है ! ’’ रघुपति कहीं देखते हुए बोले व उनकी घबराहट और तेज हो गई।

‘‘ कोई बात नहीं तुम बोलो। ’’

‘‘शास्त्री जी आपका लड़का हरिहरण दो साल पहले एक विमान दुर्घटना का षिकार हो गया। उस भयंकर दुर्घटना में उसकी हड्डियां तक नहीं मिलीं। ’’ रघुपति ने बड़े दर्द के साथ रूक-रूक कर रोनी आवाज में मुष्किल से कह कर समाप्त किया।

ऐसी अविष्वनीय बात को सुन स्तब्ध हो बैठे रहे। शास्त्री जी ने सिर को इधर-उधर हिलाया। ‘‘ रघुपति ऐसा नहीं हो सकता ! इस पर मैं विश्वास नहीं कर सकता। ’’

‘‘छः महिने पहले भी मेरे बेटे ने मुझे बधाई का कार्ड भेजा था। ये कैसे सम्भव हो सकता है ? आप बताये ? ’’

‘‘मुझे माफ कर दो शास्त्री जी। यही सत्य है। आप जाने कितनी दूर रह रहे हो ऐसी बात को बता कर आपको परेशान कर आपकी पूरी बची जिंन्दगी को वेदनाओं में नहीं डालना चाहती थी एमिली। अतः उसने पक्का इरादा कर लिया। इसीलिये दो सालों से ‘ हरि ’ हस्ताक्षर करके आपको बधाई का कार्ड भेजती रही। ’’

‘‘ आपका बेटा जीवित हैं। जहां भी है वह सुरक्षित है। इसी भ्रम में रहें तो ठीक है। वह मर गया उसे बता कर आपको इस उम्र में दुखी करना ठीक नहीं यही सोच लिया उसने। परन्तु अब आपको पता चल गया। ये बोल कर दुखी हो रही है ये लड़की। ’’ रघुपति ने बड़े दुखी होकर बड़ी वेदना के साथ कहा।

शामा शास्त्री ने आश्चर्य चकित होकर आँखें फाड़ कर एमिली को देखा। उन्हें उससे बहुत सी बातें करने की इच्छा हुई। पर वे कुछ भी बात कर न सके। शामा शास्त्री के अन्दर से दुख का गुबार बड़ी तेजी फटा और वे रोने लगे। एमिली की भीगी हुई आँखें जैसे रोने का इन्तजार ही कर रही थी, उसने भी रोना शुरू कर दिया। रघुपति स्तब्ध होकर बैठे रहे।

रोने की तो कोई भाषा ही नहीं होती !

उमा जानकी राम की तमिल मूल कहानी का अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा

एस. भाग्यम शर्मा