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अपने घर का बेटा

लेखक मीनासुन्दर तमिल कहानी 

अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा

अम्मा सुबह से ही बहुत व्यस्त है क्योंकि करीब तीन साल बाद रवि आज आ रहा है।

रवि, मेरे साथ पढ़ा हुआ है। मेरा करीबी दोस्त है। ऐसा भी कह सकते है कि वह अम्मा का दूसरा बेटा है ऐसा कहना ज्यादा सही होगा । मुझसे ज्यादा अम्मा उसे पंसद करती थी। उसे क्या पंसद है, उसे क्या चाहिये पूछ-पूछ कर बनाती थी।

हमारे मोहल्ले में ही चार घर छोड़कर उसके मामा के मकान में रह कर रवि पढ़ता था। उसके मामा केन्द्रीय राजकीय नौकरी में थे। उनका जब दिल्ली तबादला हुआ तो रवि को उन्होंने हॉस्टल में भर्ती करवाया ओर दिल्ली चले गये।

हॉस्टल में रहकर पढ़ रहें रवि की वहाँ का खाना ठीक न होने के कारण तबियत खराब हो गई। मैं उसे अपने घर लेकर आया । एक हफ्ते हमारे घर रहा। अम्मा ने उसकी अच्छी तरह से देखभाल की । उसकी तबियत ठीक हो गई। हमसे वह अच्छी तरह से हिलमिल गया।

उस दिन के बाद वह हॉस्टल नहीं गया। हमारे साथ ही रहने लगा। हम दोनों घर से ही कॉलेज साथ जाने आने लगे। पढ़ने व हॉस्टल के खर्चे के लिए उसके मामा जो रूपये भेजते उसे वह अम्मा को दे देता।

हम दोनों की पढ़ाई खत्म हुई। एक साल के अन्दर ही रवि को उसके मामा ने किसी बडे आदमी की सिफारिश करवा कर उसे एक बड़ी कम्पनी में अच्छी नौकरी लगवा दी।

आज वह आ रहा है। रवि के आने की सोच कर अम्मा खुशी से पागल हो रही थीं। उसे क्या-क्या पंसद है सोच-सोच कर दावत की तैयारी कर रही थी।

मैं रवि को लेकर आने के लिए हवाई अड्डे (एरोड्रम) जोन के लिए तैयार होने लगा।

अम्मा मुझसे बोली ‘‘रवि बेटा, अब अच्छी नौकरी में है। उससे कहकर तुम्हारे लिए कोई नौकरी का प्रबन्ध करने को कहो। अपने पास रहा बच्चा है उससे कहेगे तो जरूर मानेगा।

‘‘अम्मा मुझसे ज्यादा वह आपको अधिक पसंद करता था। आपकी बात को वह नहीं टालेगा। मैं उससे निवेदन कंरू उससे ज्यादा तो अम्मा आप अधिकार से उससे कह सकती है।’’ मेरे ऐसा कहते ही अम्मा के चेहरे पर गर्व व खुशी दोनों दिखाई दी।

मैं हवाई अड्डे से उसे लेकर आ गया। आते ही रवि ने अम्मा के पैर छुए।

‘‘अय्यों ! क्या कर रहे हो ?’’ कुछ गलत हो गया हो ऐसा अम्मा घबराई।

‘‘क्यों अम्मा ये आपके द्वारा पोषित शरीर है। मैं आपका बेटा हूँ। आज मैं ऐसा हूँ तो ये आपकी मेहनत के कारण ही है.... आप ही ने तो मुझे सम्भाला।’’ रवि के ऐसे कहते ही आनन्द के कारण अम्मा की आँखो से आँसू भरने लगे। अम्मा का मन खुशी से प्रफुलित हो गया।

मामा को तो देखने अभी मैं गया ही नहीं अब जाऊंगा। आप ही पहले हो। मेरे लिए ये ही मेरी अम्मा का घर है।’’ रवि बोला।

अम्मा के लिए साड़ी व एक सोने की जंजीर लेकर आया था। उसके बाद मुझे सन्दूक में से कुछ निकालकर देगा ऐसा मैंने व अम्मा ने सोचा पर हमें निराशा ही हाथ लगी।

उसकी बातों मे दूसरो को वश मे करने की शक्ति व पैसों वालो का अह भी था। उसके अन्दर आते ही विदेशी सेन्ट की महक से पूरा घर भर गया। उसके कपड़े भी नये तरीके के आधुनिक थे। उसके जूते ऐसे चकम रहें थे कि आप अपना चेहरा भी उसमें देख लो।

‘‘मेरी कम्पनी बहुत बड़ी है। पूरे ऑफिस में ए.सी... व मेरा एक अलग कमरा........ मेरे लिये तीन अलग से सहायक ........... उसमें भी दो लड़कियां हें एक महिने में पद्रह दिन मैं हवाई यात्रा करता हूँ। गाड़ी, बगंला, नौकर आदि सब कुछ दिया है।’’ रवि अपने बारे में व अपने रहने की जगह व वातावरण के बारे में ही बताता रहा। वहीं-वहीं बाते करता रहा।

अम्मा ने उसके पसंद का खाना बनाया था। उसे खाकर थोड़ा आराम कर शाम को रवाना हो गया। रवि को छोड़कर मैं घर आया। आते ही अम्मा ने पूछा ‘‘जेकन, तुम्हारे नौकरी के बारे में उससे पूछा?’’

‘‘नहीं अम्मा।’’ ‘‘क्यों ? उससे बहुत देर तक बात कर रहें थे ना, फिर पूछ सकते थे।’’

‘‘पूछ सकता था, पर मालूम नहीं क्यों पूछ न सका। पर अम्मा तुमने क्यों नहीं पूछा ?’’

‘‘तुम से क्यों नहीं पूछा गया, उसी कारण मुझसे भी न पूछा गया।’’ कह कर अम्मा रसोई में चली |

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कहानी लेखिका एस.भाग्यम शर्मा 

B-41, Sethi Colony, Jaipur-302004

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