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ये उन दिनों की बात है - 41

"मैं बहुत परेशान हूँ, दिव्या | क्या कल हम मिल सकते हैं?
मैं तुम्हारा रामनिवास बाग में इंतज़ार करूँगा |
तुम्हारा सागर" |
बस इतना ही लिखा था उस चिट्ठी में |
कल मुझे प्रवेश पत्र भी लेने जाना था | अगले सप्ताह से बारहवीं की परीक्षाएँ शुरू होने वाली थी |

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दुसरे दिन मैं स्कूल से प्रवेश पत्र लेकर सीधे रामनिवास बाग पहुंची | सागर पहले से ही वहाँ था |
ये तुम्हारे हाथ में क्या है?
प्रवेश पत्र!!
अच्छा! एग्जाम डेट्स आ गई?
हाँ |
कबसे है?
अगले सप्ताह |
गुड! अच्छी तरह से स्टडी करना |
हम्म्म..........
सारे टॉपिक्स अच्छे से कवर कर लिए ना |
हम्म्म.........
टाइम मैनेजमेंट इम्पोर्टेन्ट होता है परीक्षा में | इस बात का विशेष ध्यान रखना और टाइम टेबल बना लेना उसके अकॉर्डिंग ही पढ़ाई करना |
हम्म्म.......
अच्छे नंबर्स से पास होओगी तो महारानी कॉलेज में एडमिशन हो जायेगा जो की बेस्ट कॉलेज है जयपुर का |
हम्म्म्म.........
ये ह्म्म्मम्म......हम्म्म्म..........क्या लगा रखा है | मेरी बात गौर से सुन भी रही हो या यूँ ही हवा में उड़ा रही हो, सागर ने थोड़ा तल्ख़ स्वर में कहा |
जी! सब अच्छे से सुन रही हूँ, जैसा आप कहोगे वैसा ही होगा, चेहरे पर हलकी सी मुस्कान लाते हुए मैंने कहा |

"देट्स लाइक ए गुड गर्ल"! जवाब में वो भी हल्का सा मुस्कुराया |
मेरे मन में उथल पुथल चल रही थी की सागर ने जिस कारण मुझे यहाँ बुलाया है वो अभी तक कहा क्यों नहीं |
थोड़ी देर तक दोनों ही चुप रहे |
"हम चुप है के दिल सुन रहे है धड़कनों को आहटों को सांसें रुक सी गई है" दूर कहीं ये गाना बज रहा था | शायद रेडियो पर | या तो कोई ट्रांज़िस्टर साथ में लेकर आया होगा या फिर किसी ठेले वाले के रेडियो पर बज रहा था |
मैं इसी कल्पना में खोयी हुई थी |
तुम कुछ खाओगी?
उहूँ........मैंने ना में सिर हिलाया |
एक-एक गिलास जूस हो जाए |
तुम रुको, मैं अभी लेकर आया |
जल्दी आना |
बस यूँ गया और यूँ आया |


थोड़ा सा नहीं, बहुत ज्यादा परेशान हूँ मैं |
प्लीज सागर बताओ ना! क्या परेशानी है? मैंने उसकी आँखों में देखकर कहा |
कितने दिन हो गए! तुम तबसे बाहर ही नहीं निकले | मैं रोज बालकनी में आ-आकर देखती हूँ पर जब तुम नहीं दिखे तो फिर मैंने तुम्हारे घर आने का सोचा | जबसे तुम उस बच्ची................
"पिंकी की माँ नहीं रही"!!
"पिंकी"?
वही बच्ची जिसे मैं घर लेकर आया हूँ |
क्या बात हो गयी सागर? मुझे साफ़ साफ़ बताओ |
फिर उसने मुझे सारा हाल कह सुनाया |
दादा-दादी पिंकी को साथ रखना नहीं चाहते | कहते हैं की उसे ऑफिशियली गोद लेना जरूरी है | उन्हें समझना चाहिए दिव्या, पिंकी अभी बहुत छोटी है | उसे अनाथ आश्रम कैसे छोड़ दूँ |

उसकी बातें सुनकर कुछ देर तक तो मैं खामोश रही | फिर कहा मैं जो कहूँगी क्या तुम वो मानोगे, बीच में मुझे टोकोगे तो नहीं |
"हाँ"!
"नहीं"! "पहले प्रॉमिस करो"!
"प्रॉमिस"! उसने मेरे हाथ पर हाथ रखकर कहा |
दादा-दादी जो कह रहे है वो बिलकुल सही है | तुम्हे पिंकी को.................
दिव्या!! मेरे इतना कहते ही सागर भड़क उठा |
तुम ऐसा कैसे कह सकती हो | मुझे लगा था तुम मेरा साथ दोगी पर तुम भी दादा दादी की तरह............
सागर, तुमने प्रॉमिस किया है मुझसे और अब तुम अपना प्रॉमिस तोड़ रहे हो |
प्रॉमिस की बात सुनते ही वो थोड़ा सा ठंडा हुआ |

मैं जानती हूँ की तुम बहुत ही भावुक हो पर दादा दादी की बात तो मानो कम से कम | उन्होंने दुनिया देखी है | वो हमसे बड़े है | उन्हें हर चीज का अनुभव है | यूँ ही उन्होंने अपने बाल धूप में सफ़ेद नहीं किये |

पिंकी के लिए भी उन्होंने कुछ सोचकर ही कहा होगा | अभी हम इतने बड़े नहीं हुए की अपने फैसले खुद ले सके और फिर उन्होंने पिंकी को गोद लेने की बात कही है | "है की नहीं"!!
हाँ!
तो फिर! उनके नजरिये से सोचने की कोशिश करो सागर, वो कभी भी हमारा बुरा नहीं चाहेंगे | तुमने जो कुछ भी पिंकी के घर देखा है वो तुम्हारे दिलोदिमाग से निकल नहीं पा रहा है | भावनात्मक होना अच्छी बात है पर इतना भी नहीं की सही गलत में फर्क ही ना करो | तुम देखना दादा दादी एकदम सही फैसला लेंगे | बस इतना ही कहना था मुझे | अब मैं अपना प्रॉमिस वापस लेती हूँ, तुम पर कोई भी दबाव नहीं डालूँगी |

आई एम सॉरी दिव्या! मैं चिल्लाया तुम पर! आई एम सो सॉरी! तुम ठीक कह रही हो दिव्या | मुझे समझना चाहिए था | मैंने अपनी बेवकूफी से दादा दादी के दिल को कितनी ठेस पहुंचाई |
बच्चे गलती करते ही है और बड़े माफ़ भी कर देते है | देखना वे तुमको प्यार से गले लगा लेंगे |
"हाँ...वो तो है" |
और तुम भूल गए क्या!
क्या?
"दोस्ती का एक ऊसूल होता है, मिस्टर"! "नो सॉरी"! "नो थैंक यू"!
मेरे इतना कहते ही सागर मुस्कुरा दिया |
"यू फ़िल्मी गर्ल"!!