Anokhi Dulhan - 39 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखी दुल्हन - (भविष्य) 39

" इतना बड़ा हो गया है फिर भी अक्ल नहीं है। यमदूत वही खड़ा था। उसके सामने कैसे कह सकता है कि, मेरा बॉयफ्रेंड है। पागल।" अपने कमरे के दरवाजे पर सर रख खड़ी जूही ने खुद से कहा।

" अक्ल है या नहीं मुझ में ? ऐसा कैसे कह सकता हूं मैं सबके सामने ? वैसे देखा जाए तो मैंने गलत कहा। मैं उसका बॉयफ्रेंड नहीं हूं, पति हूं। क्या मुझे बाहर जाकर अपने आप को सही करना चाहिए ? नहीं नहीं। यह काफी मुश्किल है।" अपने कमरे के दरवाजे पर सर रख खड़े वीर प्रताप ने खुद से कहा।

यमदूत शाम तक वहीं सोफे पर अकेला बैठा रहा। शाम को राज घर में आया।

" इतना अंधेरा क्यों है यहां ?" उसने घर के लाइट्स चलाएं।
" अरे टेनंट अंकल अकेले बैठकर क्या कर रहे हैं ?" उसने सोफे पर बैठे यमदूत से पूछा।

यमदूत ने राज को जवाब देना जरूरी नहीं समझा।

" हिम्मत इकट्ठा कर रहे हैं। ‌‌‌‌‌" अपने कमरे से बाहर आकर वीर प्रताप ने कहा।

" लेकिन वह भला क्यों अंकल ?" राज का सवाल तैयार था।

" मैं यकीन से बता सकता हूं कि यह यहां पर बैठ किसी लड़की के बारे में सोच रहा है। ‌" वीर प्रताप ने अपने हाथ फोल्ड करते हुए कहा।

" तुम्हें मेरे मामले में पडने की जरूरत नहीं है।" यमदूत ने आखिरकार जवाब दिया।

" अच्छा । तुम्हें तो बड़ा शौक है मुझसे लोगों को 50,000 दिलवाने का ? और वह क्या था जो तुम थोड़ी देर पहले यहां सोफे पर बैठ मेरी दुल्हन के साथ कर रहे थे ?" अब यह वीर प्रताप का मौका था। यमदूत से बदला लेने का।

" तो आखिरकार आपने उसे अपनी दुल्हन बना ही लिया अंकल ? सच बताइए आप तो उसे बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। कहीं आपसे कुछ ऐसी वैसी हरकत तो नहीं हो गई ?" राज ने वीर प्रताप का मजाक बनाते हुए पूछा।

" बदतमीज। मुझे लगता है कार्ड के बाद तुम्हारा घर भी छीन ना पड़ेगा ।" वीर प्रताप ने उसे धमकाया।

" जब बारी खुद पर आती है तब क्यों तुम्हें जलन होती है। बच्चे ने कोई गलत सवाल तो नहीं पूछा। जवाब दो। अभी कुछ देर पहले ऐसी वैसी हरकत की थी क्या ?" वीर प्रताप ने आंखें दिखा कर यमदूत को चुप करवाया।

" खैर जाने दीजिए। आप दोनों का कुछ नहीं होने वाला। एक की दुल्हन इस घर में रह रही है। और दूसरे की दुल्हन तो जाने ही दो। अगर उस लड़की से दोस्ती भी कर ले। तो भी लाख गुना अच्छी बात होगी।‌‌ वरना तो बैठे-बैठे सिर्फ उस पर्ची पर लिखे हुए नंबर के पास जो होंठ है ना उन्हें ही चुमते रहना पड़ेगा। समझ गए ना टेनेंट अंकल।" राज ने यमदूत को इशारा करते हुए कहा।

" लगता है तुम्हें जहन्नुम जाने का शौक चढ़ा है।" यमदूत ने राज को आंखें दिखाते हुए कहा।

" अंकल आप तो कुछ कहिए।" राज ने वीर प्रताप से मदद की दरख्वास्त की लेकिन वीर प्रताप यमदूत के मोबाइल में कुछ कर रहा था।

" यह तुम्हारे पास किसका फोन है ?" यमदूत ने पूछा।

" तुम्हारा।" यमदूत ने वीर प्रताप के हाथ में से फोन खींचने की कोशिश की। "रुको रुको घंटी बज रही है।"

जैसे ही फोन पर सामने से हेलो की आवाज सुनाई दी यमदूत ने तुरंत वीर प्रताप के हाथ में से फोन खींच कर फेंका। फोन नीचे गिरे उससे पहले यमदूत ने वक्त रोक दिया। उसने फोन लिया और तीन चार बार हेलो बोलने की कोशिश की। लेकिन उसे कोई भी प्रयास अच्छा नहीं लगा।

उसकी जद्दोजहद देख वीर प्रताप बीच में बोल पड़ा। " तीसरा वाला हेलो अच्छा था मैं उसे चुनुंगा।"

" तुम। तुम क्यों फ्रिज नहीं हुए ? मैंने तो वक्त रोका था।" यमदूत ने पूछा।

" कितनी बार बताना पड़ेगा मैं खुद एक शक्तिशाली पिशाच हूं।" वीर प्रताप ने चुटकी बजाकर वक्त को वापस शुरू कर दिया और यमदूत को फोन पर ध्यान देने का इशारा किया।

यमदूत ने हिम्मत जुटाकर आखिरकार फोन पर सनी से बात की।

" हेलो।" सनी।

" हेलो मैं बोल रहा हूं।" यमदूत।

" मैं कौन ? क्या तुम वही बोल रहे हो जिसका कोई नाम नहीं है ?" सनी ने अचंभे से पूछा।

" क्या मैं तुम्हें मिलकर अपना नाम बता सकता हूं ?" यमदूत।

" हां। जरूर मिलते हैं। इस बार अपने किसी दोस्त को साथ लेते हुए आना। मैं भी अपने दोस्त के साथ आऊंगी। मैं तुम्हें कैफे का एड्रेस मैसेज करती हूं।" इतना कह सनी ने फोन रख दिया।

यमदूत के चेहरे पर एक अनजानी मुस्कान फैल गई।


उस प्यारभरे झगड़े के बाद दो दिन तक जूही और वीर प्रताप का आमना सामना नहीं हुआ।

एक दिन शाम को अचानक दोनों एक ही वक्त किचन में पहुंचे। अब यह दूरी वीर प्रताप के लिए सहना मुश्किल हो रहा था। वीर प्रताप को अचानक सामने देख जूही डर गई। वीर प्रताप ने उसका डर भाप लिया।

" डर क्यों गई ? यह मैं हूं।" वीर प्रताप ने कहा।

" वह .....तुम.......अचानक आ गए ना।" जूही को समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दें। " मुझे प्यास लगी थी। तो मैं पानी लेने आई थी।" उसने हिचकीचाते हुए जवाब दिया। पानी लेकर वह जाने लगी।

" जूही।" वीर प्रताप ने आवाज लगाई।

" हां।" जूही वहीं रुक गई। " तुमने बुलाया ?"

" मैंने बुलाया ?" वीर प्रताप ने उसके सवाल पर सवाल पूछा।

" तुम ने अभी आवाज लगाई ना ? " जूही ने कहा।

" हां। वह....... उस दिन के बाद से काफी अजीब महसूस हो रहा है।" वीर प्रताप की आवाज में भी एक हिचकिचाहट थी।

" हां काफी अजीब लग रहा है।" जूही ने नजरें झुकाते हुए कहा।

" तो क्यों ना अब इस अजीब एहसास को कम किया जाए। क्या मैं नॉर्मली तुमसे पूछूं कि तुमने खाना खाया या नहीं ?" वीर प्रताप ने मुस्कुराते हुए कहा।

" तो मैं भी नॉर्मली ही कहूंगी। मैंने अब तक खाना नहीं खाया। तो क्यों ना हम हमारा पसंदीदा मटन खाने चले ?" जूही ने मुस्कुराते हुए कहा।

" तो चले।" वीर प्रताप।

" मैं अभी अपना कोट पहन के आती हूं। तुम भी तैयार हो जाओ।" जूही ने कहा और अपने कमरे में तैयार होने चली गई।

जूही के जाते ही वीर प्रताप ने अपने आसपास एक चक्कर लगाया। और झट से जादू से तैयार हो गया। " चलो चलें।" उसने जूही को आवाज लगाई।

वीर प्रताप ने अपने घर का दरवाजा खोला और जैसे ही जूही उस दरवाजे से बाहर आई। वह लोग क्यूबेक के शानदार होटल में थे।

" वाओ वापस केनेडा। मुझे लगता है अब मैं यहां की लोकल हो जाऊंगी।" इतना कह जूही वीर प्रताप को पीछे छोड़ आगे की तरफ चली गई।

जैसे ही जूही वीर प्रताप के आगे गई । वीर प्रताप के लिए समय धीमा हो गया।

" वेलकम टू क्यूबेक मैम।" एक वेटर ने जूही से कहा।

ब्लैक टर्टल नेक टी शर्ट, ब्लैक पेंसिल स्कर्ट और ग्रे स्वेटर। कंधे तक लंबे ब्राउन बाल। गले में एक चैन जिस में एक लॉकेट था। यकीनन इन कपड़ों में वह काफी मैच्योर लग रही थी।

" क्या बात कर रही हो ? जब मैं 28 साल की थी। मैं तो अकेली मार्केट भी नहीं गई थी और तुम अकेले कैनेडा चली गई।" जूही के फोन में से एक लड़की की आवाज आई।

" हां। मैं पहली बार अकेले कहीं घूमने आई हूं। वह भी इतनी दूर।" जूही ने अपने चेहरे पर आ रहे बाल कान के पीछे किए। " आज मैं अपना फेवरेट मटन खाऊंगी। चलो अब मुझे सताओ मत। आकर मिलती हूं। बाय।" इतना कह जूही ने फोन रख दिया।

वीर प्रताप सामने बैठ 28 साल की जूही को घूर रहा था।
" अभी भी उतनी ही ख़ूबसूरत हो। मुझे तुम पर पूरा भरोसा था कि तुम बड़ी होकर एक अच्छी इंसान बनोगी। तुमने मुझे गलत साबित नहीं किया। आज यहां इस तरह तुम्हारा भविष्य देख कर मैं समझ नहीं पा रहा हूं की मैं खुश हूं या उदास ? तुम्हारा इस तरह यहां बैठना सबूत है कि तुमने तलवार निकाल दी। आखिरकार मैंने अपनी हजार साल की जिंदगी खत्म कर ही दी।"

यह बात कहते कहते वीर प्रताप का दिल जोरों से धड़कने लगा। " क्या मैं सच में तुम्हारी दुनिया में नहीं हूं ? हमेशा से तुम्हारी यादों के लिए मिट चुका हूं ? मैं हमेशा से चाहता था कि तुम तलवार निकालने के बाद कभी अफसोस ना करो। मैं चाहता था कि तुम्हारी जहन से अपनी यादें मिटा दूं। पर आज तुम्हें मेरे बगैर यहां देख मुझे बहुत बुरा लग रहा है। पर अब मैं जानता हूं की मुझे क्या करना है। तुम्हारी इस खूबसूरत मुस्कान को सुरक्षित रखने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं। और मैं करूंगा, तुम्हारी खुशी के लिए मुझे अपना अनंत जीवन समाप्त करना होगा।"

भविष्य की जूही ने पीछे मुड़कर होटल की दरवाजेकी तरफ देखा। " प्रेसिडेंट यहां।"

बस यहीं पर वह मोड़ आया, जब उसके जादू के बावजूद जूही का भविष्य वीर प्रताप को दिखना बंद हो गया। जब उसने आंखें खोली उस में आंसू थे। उसके सामने अभी भी 17 साल की जूही थी। जिसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हूआ क्या ?