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प्यार है तो है


Chapter 1


"जय, मुझे एक शानो शौकत वाली भरपूर ज़िन्दगी जीनी हैं। तुम समझ रहे हो, कि मैं क्या कहना चाहती हूँ? बड़ा आलीशान बंगला हो, सारी सुविधाओं के साथ, दो तीन शानदार गाड़ियां, ड्राइवर, नोकर-चाकर और फॉरन हॉलीडेज़। वाह, फिरतो क्या कहने! हैं न?"


मैं मुस्कुराता रहा और मेरी आँखें उस पर टिकी रही,

जब वह परियों से पंख लिए अपने सपनो की दुनियां में उड़ रही थी। जब वह अपनी कल्पनाओं के बारे में गाए जा रही थी, तो बहुत प्यारी लग रही थी। हमारे एम.बी.ए का आखरी दिन था और हम हमारे कॉलेज के कंपाउंड में एक पेड़ के नीचे घास पर बैठे हुए थे। उसके लटकते झुमकों को छोड़कर, वह किसी भी तरह से लड़की नहीं लग रही थी। मुड़ी हुई जीन्स में से उसके मोज़े और कैनवास के जूते नज़र आ रहे थे। उसने चेक्स वाली कमीज़ पहन रखी थी, जिसके बाजुएं उपर तक मुड़ी हुई थी। स्कार्फ आगे गले में गांठ बांध कर रखा था। घुंघराले काले बाल ऊपर जुड़े में अव्यवस्थित बंधे हुए थे। उसकी उड़ती हुई लटें मुझे बड़ा लुभाती थी। भूरी चमकीली आँखें और उसके बाएं गाल पर एक छोटा सा तिल... जिसे एक दिन मैं चूमना चाहता हूँ। वह पूरी तरह से टॉमबॉय थी, लेकिन मैं उसे बेइंतेहा प्यार करता था। मैंने एक गहरी सांस ली और सोचा, न जाने मैं उसे अपने दिल का हाल कब बता पाऊंगा??


मैं उसे खामोशी से निहार रहा था, जब उसने मेरी बांह पर थप्पड़ मारा और ज़ोर से बोली,

"मिस्टर जय राजन, तुम मेरी बात नहीं सुन रहे हो!"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा,

"सुकुमारी शिखा सानवी, मैंने आपकी सारी बातें सुनी। लेकिन मैं कुछ सोच रहा था।"

"क्या?"

"मैडम, तुम्हारे सपने कुछ ज़्यादा ही रजवाड़ी नहीं हैं? तुम्हे लगता है कि यह एक जीवन में तुम आकाश को छू: पाओगी?"


हम दोनों मध्यम वर्गीय परिवारों से थे और हम दोनों के भाई-बहन नहीं थे। मैं उसे ग्रेजुएशन के दिनों से जानता था और हम साथ में एम.बी.ए करने चले आए। उसके लिए मैं सिर्फ एक अच्छा दोस्त रहा। लेकिन मेरे लिए, वह उससे कहीं ज़्यादा थी। मैं हमारे परिचित के छह महीने के भीतर ही उसे दिल से चाहने लगा था। मैं उसे बहुत प्यार करता था। मुझे हमेशा से पता था कि उसकी बहुत बड़ी आकांक्षाएं हैं, यही वजह थी कि मैं उसके सामने प्रस्ताव रखने से पहले कुछ हासिल करना चाहता था।


मेरा मज़ाक उसे अच्छा नहीं लगा और मैंने इस प्रक्रिया में एक और थप्पड़ खाया।

"जय, I'm serious okay! देखो मेरे लक्ष्य तक पहुँचने के केवल दो तरीके हैं।"

"और वो क्या है?"

"या तो मैं कड़ी मेहनत करके खुद ही यह सब कुछ हासिल करू, या फिर....."

मैंने एक भौं उठाई।

"या फिर क्या?"

"या फिर, मैं एक ऐसे बंदे से शादी करूँगी, जिसके पास पहले से ये सब कुछ हो। Simple!"

उसकी बातों ने मुझे परेशान कर दिया। वह मेरी भावनाओं से पूरी तरह से अंजान थी और उत्सुकता के साथ बोले जा रही थी।

"हाँ, यही सही रहेगा! मैं बस यही करूँगी। किसी ऐसे व्यक्ति को खोज निकालूंगी जो चांदी के चम्मच के साथ पैदा हुआ हो।"


मेरे पास वक़्त था। कम से कम दो साल। हम दोनों ने प्रतिष्ठित कम्पनियों में कैंपस रोजगार प्राप्त किया था और नोकरी पर लगने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। अब बस मेहनत करके पैसा जोड़ने की बात थी। मैंने कुछ बचत भी कर रखी थी, जिसे मैं समझदारी से निवेश करने की योजना बना रहा था।


गहरी साँस लेते हुए, मैंने उसे धीरे से पूछा,

"शिखा, क्या पैसा तुम्हारे लिए इतना महत्वपूर्ण है?

मेरा मतलब है, एक साधारण जीवन भी अच्छा और काफी संतोषजनक हो सकता है।"

उसने अपना हेयरबैंड निकाला और सिर हिलाते हुए दुबारा जुड़ा बनाया। उसे यह करने की बहुत आदत थी। उसके लंबे बाल थे, लेकिन मैंने उसे कभी भी खुले या चोटी बांधे हुए नहीं देखे थे।

"जय मैं तुमसे सहमत हूँ भी और नहीँ भी। अगर मेरे पास सबसे अच्छा पाने का विकल्प है, तो समझौता क्यों करूँ?"

उसने मेरे पैर को थपथपाया, मुझे अपनी हथेली दिखाई और घोषणा की,

"देखो, पहले मुझे कोशिश करने दो। अगर कोई करोड़पति बकरा नहीं मिला, तो फिर तुम तो हो ही। मेरा अंतिम उपाय, मेरे हर मसले का हल, हेना?"

इतना कहते हुए, वह ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। यह सुनकर मुझे बुरा लगा, मानो किसीने दिल में ख़ंजर उतार दिया हो। लेकिन पिछली कई बार की तरह, मैं इस ग़म को पी गया और एक मुस्कान के पीछे अपने टूटे हुए दिल को छिपा लिया।


Chapter 2


ज़िन्दगी आगे बढ़ी। हम दोनों व्यस्त हो गए, प्रत्येक ने अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं पर ध्यान केंद्रित कर लिया। शिखा के लिए उसका करियर था और एक ऐसे आदमी को ढूंढना जो बहुत पैसे वाला हो। मेरा लक्ष्य था, ज़्यादा से ज़्यादा पैसे कमाना और मेरी जान, मेरी शिखा को हासिल करना। हम नियमित रूप से, फोन कॉल, मेसेजिज़ और कॉलेज के पूर्व छात्रों के व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से संपर्क में बने रहे। कई बार हम एक कॉमन फ्रेंड की पार्टी में मिलते थे। और अन्य बार मैं उसे आमंत्रित करता, और हम शाम को कॉफ़ी पर बातचीत करते। मैं दृढ़ता से मानता हूं की, "अगर किसी की दृष्टि से ओझल हो जाओ तो मन से भी बाहर हो सकते हो", और मैं निश्चित रूप से नहीं चाहता था कि हमारे साथ ऐसा कुछ हो। इसलिए मैंने उसके साथ संपर्क बनाए रखने की पूरी कोशिश की।


इन सब के बावजूद, उसने मुझे केवल एक अच्छे दोस्त के रूप में ही देखा। जब भी हम मिलते, अपने अलावा, हम बाकी हर चीज़ के बारे में बात करते थे। मैं अपने बारेमें क्या कहता? मैं अभी भी संघर्ष कर रहा था। डींगे मारने जैसी मेरी कोई तरक्की नही हुई थी। दो छोरों को पूरा करना एक बड़ी ज़िम्मेदारी है और मैं उसके बाद ही कुछ बचत कर पाता था, जो उसके सपनों को पूरा करने के लिए काफी नहीं था।


उसे एक बंगला चाहिए था, मैं अपनी माँ के साथ एक बी.एच.के फ्लैट में रहता था। वह दो से तीन कार चाहती थी और मैं अपने टू व्हीलर से काम चला रहा था। उसे ड्राइवर और नौकरों के फ़ौज की कामना थी, हमारे पास केवल एक पार्ट टाइम नौकरानी थी। इस जीवनकाल में मेरे लिए विदेशी छुट्टियां असंभव लग रही थीं। मैं मुश्किल से एक नजदीकी हिल स्टेशन पर जा सकता था।


डेढ़ साल बाद, एक शाम हम एक कॉफी शॉप में मिले। वह अलग लग रही थी। हैरानी की बात है, बिल्कुल भारतीय और शलवार कमीज़ में बहुत सुंदर। लहराता हुआ दुपट्टा, काजल, बिंदी और पहली बार खुले बाल। जब वह अंदर आई, तो मैं खड़ा हुआ और उसे देखता रह गया, मानो जैसे मेरी नज़र सिर्फ उसी पर ठहर गई हो। उसने पास आकर मेरी बांह थपथपाई।

"जय अपना मुंह बंद करो, मुझे पता है कि मैं अलग लग रही हूं।"

मैं मुस्कुराया और हम बैठ गए।

"न सिर्फ अलग शिखा, तुम खूबसूरत लग रही हो।"

वह शर्मा गई, जो उसके बोल्ड और आत्मविश्वासी स्वभाव से बिल्कुल विपरीत था।

"Thank you very much."


हमने हमेशा की तरह अमेरिकन लाटे ऑर्डर किया और उसने बात करना शुरू किया।

"मैं USA जा रही हूं।"

मुझे निराशा हुई और एक धक्का सा लगा। मैं उसे देखता रहा और उसने मुझे सूचित किया,

"मेरे एन.आर.आई चाचा यात्रा के लिए भुगतान कर रहे हैं और उन्होंने मुझे मेरे चचेरे भाई की शादी के लिए आमंत्रित किया है।"

मुझे नहीं पता था कि मैं अपनी सांस रोके हुए था, लेकिन फिर मुझे राहत महसूस हुई। मैंने अनुमान लगा लिया कि वह हमेशा के लिए जा रही है।

मैं मुस्कुराया और उसके लिए खुश हुआ।

"Wow! यह तो बहुत अच्छी बात है। तुम कितने समय के लिए जा रही हो?"

"तक़रीबन एक महीने के लिए।"


लेकिन उसके रहने की अवधि बढ़ गई और वह तीन महीने के लिए वहीं रही। मैं उसे बहुत मिस करता था। कभी कबार मैं उसे मेसेज कर लिया करता था और एक बार मैंने उसे फोन करने की हिम्मत की। मैं बस उसकी हँसी भरी आवाज़ सुनना चाहता था।

"Hi."

"हेलो जय। So nice of you to call."

"केसी हो?"

"बहुत खुश! बेइंतेहा। मुझे बहुत मज़ा आ रहा है। मानो स्वर्ग में बैठी हूँ। मुझे वापस आने का मन ही नहीं हो रहा है। ऐसा लगता है, यहीं रह जाऊँ, हमेशा के लिए।"

"ऐसा मत करना, वरना मेरा क्या होगा?"

मैंने मज़ाक किया और सोचा कि शायद उसे बुरा लगेगा, लेकिन वह हँस पड़ी और कहा,

"हा हा!! तुम इतने शरीफ नहीं हो मिस्टर। मुझे यकीन है कि मैं कई अन्य लड़कियों में से सिर्फ एक हूं।"

मैं उसे कैसे बताता कि मेरे लिए एकमात्र वही है?


वापस आने के बाद, वह कुछ ज़्यादा ही व्यस्त हो गई और हम मुश्किल से मिल पाते थे। मुझे लगा कि यह उसकी नौकरी की वजह से है, शायद उसका काम बढ़ गया होगा। एक दिन उसने मुझे फोन किया और कहा,

"जय, क्या हम आज शाम को मिल सकते है? मैं तुम्हारे घर आना चाहती हूँ।"

मैं बहुत खुश हुआ। वह पहली बार घर आ रही थी।

"हमारे साथ ही डिनर करना।"

"नहीं जय, मैं जल्दी में हूँ। मैं थोड़ी देर रुकूँगी, फिर मुझे जाना होगा।"


"तुम कितनी प्यारी लड़की हो शिखा। जय ने मुझे तुम्हारे बारे में बहुत कुछ बताया है। ”

मेरी माँ पूरी तरह से प्रभावित थी और उसकी प्रशंसा कर रही थी।

"शुक्रिया आंटी। वास्तव में मैं आपको और जय को अपनी शादी के लिए आमंत्रित करने आई हूं। अगले महीने है।"

मैं दंग रह गया। मानो किसी ने पैरों तले ज़मीन खिसकादी हो। जैसे ही मैंने उसकी बात सुनी, दिल मे दर्द का एक तूफान सा उठा। वह आगे बोल रही थी कि कौन, क्या, कहाँ और कब, फिर भी, मैं पूरी तरह से उनकी बातचीत से बाहर हो चुका था। मैंने यह जानने के बाद कोई बात नहीं सुनी कि वह किसी और से शादी कर रही है। एक गांठ ने मेरा गला दबा दिया और मैंने अपने सभी दुःख, हार और हताशा को निगलने का प्रयास किया। किसी ने नहीं सुना, लेकिन मेरे दिल के हजार टुकड़े हो गए।

मैं कहाँ से हिम्मत जुटा पाता, की मुस्कुराऊँ और उसे मुबारकबाद दूँ? आइस-क्रीम लाने के बहाने से मैं अंदर चला गया।


एक झटके में दो साल उड़ गए। बेशक मेरी आर्थिक स्थिति पहले से बहेतर थी, लेकिन अभी भी उसकी बड़ी बड़ी आकांक्षाओं को पूरा कर सके वैसी नहीं थी। मैंने एक मिनी पेप टॉक के साथ अपने टूटे हुए दिल को समझाया।

"जय सिर्फ इसलिए कि तुम उससे प्यार करते हो, यह उसे तुम्हें प्यार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। और अगर तुम वास्तव में उसे चाहते हो, तो केवल उसकी खुशी के लिए प्रार्थना करो, जहां कहीं भी और जिस किसी के साथ भी हो, बस खुश रहे। वह तुम्हारे लिए नहीं बनी थी जय। "


मैं आइस-क्रीम लेकर दुबारा हॉल में गया, जहां शिखा खुशी से अपनी शादी की तैयारियों के बारे में माँ को बता रही थी। माँ ने मेरी तरफ देखा और समझ गई। लेकिन शुक्र है कि उसने अपने शब्दों और भावों को नियंत्रण में रखा।


जब मैं शिखा को दरवाज़े तक छोड़ने गया, तो वह बोली,

"अब तुम्हे पता चला कि मेरे चाचा ने हमें यू.एस.ए क्यों बुलाया था? वह मेरे चचेरे भाई का सबसे अच्छा दोस्त है, एक प्लास्टिक सर्जन। शौर्य मेरे चचेरे भाई की शादी में आया था और फॉरन हमारी दोस्ती हो गई। वह नहीं चाहता था कि मैं वापस आऊं और कहा एक महीने के भीतर शादी कर लेते हैं। ”

मैंने अपनी जेबों में हाथ डाला और एक नकली मुस्कान अपने चेहरे पर बनाई रखी। मैं खुश होने का

मुखौटा छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता था। बादमे मेरे पास रोने के लिए बहुत वक्त होगा। एक जीवनकाल। बस उस समय मुझे अपने आप पर नियंत्रण रखना था।


मैं सर हिलाता रहा जब वह उत्सुकता से बोले जा रही थी। उसने शर्माते हुए कहा,

"वह मेरा दीवाना हो गया है। मैं बहुत खुश हूँ जय।

आखिरकार मेरे सारे सपने सच हो रहे हैं।"

मुश्किल से मैं कुछ कहने की हिम्मत जुटा पाया,

"Wonderful. I'm really happy for you Shikha."

"सिर्फ हैप्पी से काम नहीं चलेगा मिस्टर, शादी में आना पड़ेगा।"

"बेशक। मुझे देखना है कि मेरा विजेता प्रतिद्वंद्वी कौन है।"

उसने इस बात को मज़ाक के रूप में लिया और हंस पड़ी।

"हाँ यकीनन। मैंने उसे तुम्हारे बारे में बहुत कुछ बताया है और मैं वास्तव में चाहती हूँ कि तुम दोनों मिलो।

यह एक आश्चर्य था।

"जय, शौर्य एक बहुत व्यस्त आदमी है। क्या तुम विश्वास करोगे, वह शादी से तीन दिन पहले ही आ रहा है और फिर हम अगले दिन तुरंत चले जाएंगे! मैं चाहती थी के हम तीनों कहीं मीले।

"It's alright. मैं उससे शादी के दिन मिलूँगा।"

"हाँ। तुम्हें पता है, वह मुझे हमारे हनीमून के लिए पेरिस ले जा रहा है।"


वह केवल अपनी खुशियों को आवाज़ दे रही थी, मेरे टूटे हुए दिल से पूरी तरह से अंजान, लेकिन उसकी बातें मुझे और भी छोटा महसूस करवा रही थीं, मानो जैसे मैं कुछ नहीं हूँ।


जब मैं वापस अंदर गया, तो माँ अपने आँसू पोंछ रही थी। वह उठ खड़ी हुई और मैं चुपचाप जा कर, उनके गले लग गया। मुझे उनकी ममता की जरूरत थी और शायद कुछ सहानुभूति की भी। मैं पूरी तरह से बिखर चुका था और मेरे जीवन में कुछ भी सुधारने की सभी उम्मीदें खत्म हो गई थीं। मेरी कड़ी मेहनत की समय सीमा यहीं तक थी और अब मैं केवल एक टूटे हुए दिल और खाली हाथों के साथ रह गया था। उसके सपने बहुत बड़े थे, मेरी पहुंच से बाहर।


मेरे आंसुओं ने माँ के कंधे को भीगो दिया, उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और मुझे सांत्वना दी।

"जय, अगर तुम उससे इतना प्यार करते हो, तो तुमने उसे कभी कुछ कह क्यो नहीं?"


एक पराजित, गहरी आह लेते हुए में सोफे पर जाकर बैठ गया और अपना सर अपने हाथों में छिपा लिया।

"शिखा जीवन में सारे ऐशो-आराम और सुख सुविधाएं चाहती है। सोचा था कि पहले कुछ बन

जाऊं फिर उसे बताऊंगा। लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरी एक्सपायरी डेट इतनी निकट थी।"


हमारे घर पर नज़र घूमाते हुए, अपनी बात को साबित करने के लिए मैंने दोनो हाथ फैलाए।

"अपने घरको देखो माँ, मेरे पास क्या है उसे देने के लिए?"

माँ मेरे पास आकर बैठ गईं।

"लेकिन जय तुम उससे प्यार करते हो और जिस तरह से वह बात कर रही थी, मुझे नहीं लगता कि उसे तुम्हारी भावनाओं का ज़रा सा भी अंदाज़ा है।

तुम्हे उसे कम से कम एक बार बता देना चाहिए था।"

माँ से असहमत होते हुए, मैंने अपना सिर हिलाया।

"नहीं माँ, यह बेकार होता। उसके लक्ष्य शुरू से ही बहुत स्पष्ट थे। वह हमेशा सबसे अच्छा चाहती थी। और वह मैं नहीं हूँ।"

माँ ने हठ किया, "जय, तब तो तुम एक औरत को बिल्कुल भी नहीं समझते हो। शायद उसे आज एहसास नहीं है, लेकिन एक लड़की के जीवन में प्यार सबसे महत्वपूर्ण चीज़ होती है।"

"शायद।"


Chapter 3


अगर मुझे लगता था कि उसकी शादी का निमंत्रण पत्र भव्य था, तो वास्तविक शादी का रिसेप्शन मेरी सोच की क्षमता से परे था। एक विशाल खेल के मैदान में फैला हुआ, चारों ओर रँगीन सजावट, शानदार रोशनी से रोशन और लाइव ऑर्केस्ट्रा की धुन हवा में गूंज रही थी। ड्रोन कैमरे ऊपर मंडरा रहे थे।


हमारे ज़्यादातर दोस्त साथ आए थे। फिर भी मैंने बहाना देते हुए कहा कि मुझे देर हो जाएगी। मैं काफी निजी व्यक्ति हूं, और कभी भी किसी के साथ शिखा के लिये अपने प्यार की चर्चा नहीं की थी। जब से वह हमें आमंत्रित करने के लिए घर आई थी, मैं अपने आपे में नहीं था। उसकी शादी से पहले मेरा दिल एक हज़ार मोत मर चुका था। यहां तक ​​कि मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं कैसे खुद को घसीट कर उसकी शादी में लाने में कामयाब रहा। माँ मेरा साथ नहीं आई, उसने कहा,

"जय, तुम्हारा दिल बोहोत बड़ा हैं। अगर मैं तुम दोनों को फिर से एक साथ देखूंगी, तो शायद मैं अपने आंसुओं को रोक नहीं पाऊंगी। तुम अकेले हो आओ।"


मैंने कभी भी शिखा जितनी खूबसूरत दुल्हन नहीं देखी थी। वह एक देवी की तरह सजी हुई थी। मुझे यकीन है कि उसने जो आभूषण पहेन रखे थे, वह मेरे वार्षिक वेतन के बराबर थे। शौर्य रूपवान और प्रभावशाली था। वह अपने व्यक्तित्व और वस्त्र से अमीर दिख रहा था। मैं, पृथ्वी का एक मामूली सा आदमी, क्यों मुझे आकाश के सबसे चमकते हुए सितारे से प्यार हो गया?


मैं अपने दोस्तों के साथ घूमता रहा, स्टेज पर जाने के लिए मेरे पैर ही नही उठ रहे थे। मेरा दिल मेरे मुँह तक आगया था। आज आखिरी बार मैं उसे देखूंगा और फिर वह हमेशा के लिए चली जाएगी। भावनाओं ने मेरा गला भारी कर दिया, और मैं रोने की कगार पर था।

"अरे जय, चलो जा कर शिखा को विश करे, कुछ तस्वीरें क्लिक करते हैं और फिर डिनर करने जाएं। विभिन्न प्रकार के व्यंजन है, और मुझे बड़े ज़ोरों की भूख लगी है।"

महेश, हमारे ग्रुप का फूडी, उत्सुकता से बोला।

"तुम सब चलो, मैं अपना ड्रिंक खत्म करके आता हूँ।"


मैं जाकर भीड़ में खो गया और इंतेज़ार करने लगा कि कब मेरे सभी मित्रों शिखा से मिलकर खाना खाने जाएं, ताकि मैं उसे अकेले मिल सकु। दूर से मुझे नज़र आ रहा था कि शिखा अपने नए पति को हमारे सारे दोस्तों का परिचय दे रही थी। सब हँस रहे थे और नए विवाहित जोड़े को बधाइयां दे रहे थे। मैंने शिखा को भीड़ में अपनी आँखें घुमाते हुए देखा, जैसे किसी को खोज रही हो। हमारे दोस्तों ने आखिरकार मंच से नीचे कदम रखा और मैं धीरे-धीरे अपने उपहार और फूलों के गुलदस्ते के साथ स्टेज की ओर चला। मैंने शिखा के लिए एक सोने का ब्रेसलेट खरीदा था, जिस पर उसका नाम लिखा हुआ था।


स्टेज तक चलु, उन चंद सेकण्ड्स में मैंने अपने आपको समेटने की कोशिश की और हिम्मत जुटाई, ताकी मैं करीब से उसे किसी दूसरे आदमी के साथ देख सकू। शिखा तक पहुँचते पहुँचते, दुःख और निराशाने मुझे पुरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लिया था। टूटे हुए दिल के बावजूद मेने खुश होने का मुखौटा पहना और उसके करीब गया।

"Finally you are here! मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी जय।"

वह आगे आई, और आश्चर्यचकित करते हुए मुझे गले लगा लिया। उस दिन, पहली बार मैंने उसके स्नेह और गर्मजोशी को महसूस किया, और वह स्वर्गीय था। मैंने पल भर के लिए आंखें बंद करली, उस एहसास को मैं अपने अंदर समाए रखना चाहता था। मुझे महसूस हुआ कि शौर्य हमे देख रहा है। शिखा ने अपने आप को मुझसे अलग किया और शौर्य से मेरा परिचय करवाया।

"शौर्य, यही है जय, जय राजन, मेरा सबसे अच्छा दोस्त।"

हमने हाथ मिलाया और मैंने शौर्य को गुलदस्ता दिया।

"बधाई! तुम बेहद भाग्यशाली हो।"

"Thank you. जय, actually तुम्हे परिचय की ज़रूरत नहीं है। शिखा तुम्हारे बारे में इतनी बातें करती रहती है कि अब मुझे तुमसे थोड़ी जलन होने लगी है।"

मैं अपनी मुस्कुराहट को रोक नहीं पाया और टिप्पणी की।

"और मैं सोच रहा हूं कि हरयाली में कौन खड़ा है। निश्चित रूप से वो मैं नहीं हूँ।"

"स्मार्ट! शिखा मुझे तुम्हारा दोस्त पसंद आया।"


"शौर्य ...।"

किसी ने आवाज़ लगाई और शौर्य उसे जवाब देने के लिए हमसे दो कदम दूर हटा। शिखा को ब्रेसलेट देते हुए मेने अपनी नज़र नीचे करली। मेरी आँखों मे आंसू आगए थे और मैं नहीं चाहता था के वो उन्हें देखे। जैसे ही उसने बॉक्स खोला, तो खुशी से बोल पड़ी,

"ओह माई गॉड! जय, ये तो बोहोत ख़ूबसू...."

"I'm sorry."

मैने मुँह फेर लिया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।

उसने मेरे आंसू देखे और छटपटा गई। मैंने मुस्कुराने की कोशिश की, पर न कर सका।


उसने जल्दी से शौर्य की ओर देखा और घबरा गई।

वह हमारी ओर पीठ करके किसी से बात करने में व्यस्त था। शिखा मेरी ओर मुड़ी और उसे एक नया एहसास हुआ। मैं अपनी भावनाएं नही छिपा सका, और सात सालों में पहली बार, उसे मेरे दिल का हाल पता चला। वो भी इस तरह!


उसकी आवाज़ मुश्किल से सुनने योग्य थी। बहुत धीरे से उसने मुझसे पूछा,

"जय !!! कभी कुछ कहा क्यों नहीं? क्यों जय?"

मैंने अपने लहजे को बेहद कम रखा, केवल उसके कानों के लिए।

"मैं अब भी कुछ नहीं कहता, लेकिन मेरे आँसू ने मुझे धोखा दे दिया।"

"लेकिन क्यों जय? सात साल ...!!!"

"It's okay शिखा। मुझे केवल तुम्हारी खुशी चाहिए, भले ही वह मेरे साथ न हो।"

उसने शौर्य पर नज़र डाली और मुझसे फिर पूछा,

"तुमने पहले कुछ क्यों नहीं कहा?"

"मैं क्या कह सकता था? मैं तुम्हारे स्तर तक आने की कोशिश कर रहा था। लगता है, मेरी महेनत कम पड़ गई।"


"सॉरी दोस्तों, लेकिन वह बात जरूरी थी।"

शौर्य वापस आया और शिखा की कमर पर हाथ रखा। शिखा और मैंने, अपने भावों पर नियंत्रण पाने की कोशिश की। शौर्य ने हमारी तस्वीर लेने के लिए कैमरामैन का ध्यान आकर्षित किया। जब मैं शिखा के बगल में खड़ा हुआ, उसकी और माँ की बातें मेरे कानों में गूंजने लगी।

क्या मुझे उसे पहले बता देना चाहिए था? यदि हाँ, तो क्या आज भाग्य मेरे पक्ष में होता?


Chapter 4


"माँ प्लीज़! आखिरी बार, मुझे शादी नहीं करनी हैं। ठीक है? इसलिए प्लीज़ पूछना बंद करो। "

मैं मुड़ कर अंदर जाने लगा, लेकिन माँ ने मेरी बाहों को मजबूती से पकड़े रखा और मुझे अपनी तरफ देखने पर मजबूर किया।

"जय, तुम कब तक उसके ग़म में रोते रहोगे? अब तो दो साल हो गए हैं। वह अपने जीवन में खुश है। बहुत हो चुका, अब समय आ गया ही कि तुम भी अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ो।"

मैं चिढ़ गया।

"मैं आगे बढ़ चुका हूँ माँ!"

"Really? From being an executive assistant to being the vice president? एक बी.एच.के फ्लैट से इस तीन बी.एच.के अपार्टमेंट को तुम आगे बढ़ना कहते हो? तुम अच्छी तरह जानते हो जय, कि मैं इन पैसों की प्रगति के बारे में बात नहीं कर रही हूँ।"


शिखा के जाने के बाद मैंने खुद को काम में जोंक दिया। मैं एक ज़िम्मेदार व्यक्ति हूं और देखभाल करने के लिए एक बूढ़ी माँ भी है। जीवन ने मुझे जो भी चुनौतियां दीं, मैं कभी बुरी आदतों की तरफ नहीं जुका। में माँ की परवरिश को शर्मिंदा नहीं कर सकता था। तो भगवान ने भी हम पर कृपा की और उनके आशीर्वाद से हम उज्जवल दिन देखने लगे। लेकिन शिखा के बिना सबकुछ बेमानी लगता था। फिर भी मैं संतुष्ट था कि कम से कम मैं बुढ़ापे में माँ को एक अच्छा जीवन देने में सक्षम रहा।


इन सबके बावजूद, मैं वो नही कर सकता था जो माँ चाहती थी। मैं शिखा से प्यार करता हूँ, साथ हो या ना हो। प्यार है...तो है!!

"माँ तुम जानती हो मैं शिखा से प्यार करता हूँ और हमेशा करता रहूँगा, भले ही वह मेरे साथ न हो।"

मैं निकलने लगा, लेकिन दुबारा मुड़ते हुए कहा,

"एक और बात माँ। मैं अपने जीवन में किसी भी लकड़ी को नहीं लाना चाहता, जिसके साथ मैं इंसाफ न कर सकूँ। प्लीज़, आपको अच्छा लगे या बुरा, लेकिन आपको मेरी ज़िंदगी के इस पहलू को स्वीकार करना पड़ेगा।"


* * * * * *


छह महीने बाद, एक शाम, माँ पड़ोस में अपने नियमित सत्संग में गई थीं, और मैं अपनी बालकनी में आराम कुर्सी पर बैठा हुआ था, हाथ मेरी छाती पर थे और आँखें बंद थीं। मैं उस पल को याद कर रहा था जब शिखा ने अपनी शादी के दिन मुझे अपनी बाहों में लिया था। पिछले ढाई वर्षों में, मैंने उस पल को अनगिनत बार जिया है। और हर बार उस पलने मुझे सुकून और पछतावा दोनों महसूस करवाए। मैं कभी नहीं भूल सकता, किस तरह उसने मुझे बेहद दर्द भरी आवाज़ में पूछा था,

"जय!!! कभी कुछ कहा क्यों नहीं? क्यों जय?"


लगता है कि मेरे मरने तक मुझे इस बात का अफसोस रहेगा। यदि केवल एक बार मैंने उसे पहले बता दिया होता...। एक अकेला आंसू मेरी आँख से बच निकला और जैसे ही मैं उसे पोंछ रहा था, तभी घंटी बजी। मैं दरवाज़ा खोलने के लिए उठ खड़ा हुआ, मैं उलझन में था कि माँ अपने नियमित समय से पहले वापस कैसे आ गई।


दरवाज़ा खोलते ही मैं दंग रह गया। शिखा!!

हमारे बीच से गुज़रने वाले कुछ हैरान मौन सेकंड्‌स में मैंने देखा, कि वह दुबली हो गई थी। कोई श्रृंगार नहीं, न मंगलसूत्र, न सिंदूर और उसके चेहरे पर एक उदासी थी। थोड़ी सी थकी हुई भी लग रही थी। मुझे उसकी आँखों में ढेर सारे सवाल और शिकायतें नज़र आ रहे थे।

"क्या यहीं बात करें, या फिर मैं अंदर आ सकती हूँ?"


मैंने माफी मांगी और एक तरफ हो गया ताकि वह अंदर आ सके। अंदर आते ही वह मुझसे मुखातिब हुई। मैं अभी भी चकित था, लेकिन उससे पूछने में कामयाब रहा,

"तूमको मेरा पता कैसे मिला?"

"हम एक डिजिटल दुनिया में रहते हैं जय। तुम्हें लगता है कि यह बहुत मुश्किल काम था?"

बेवकूफी भरा सवाल! मैंने बस अपना सिर हिलाया और उसे बैठने को कहा। उसके पास बैठते हुए, मैंने पूछा,

"केसी हो?"

उसने धीरे से जवाब दिया,

"मैं ठीक हूँ।"

"तुम इंडिया कब आई?"

"कुछ समय पहले।"

"शौर्य कैसा है?"

पिछले वर्षों में हमारे बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी। जिस तरह से हम अलग हुए थे, भविष्य में किसी किस्म के व्यहवार की कोई गुंजाईश नहीं बची थी।


अपनी आँखों को इधर-उधर घुमाते हुए वह मुस्कुराई और बोली,

"जय, तुमने अच्छी प्रगति की है। बधाई हो।"

मैं केवल मुस्कुराता रहा और चुप रहा। उसने शौर्य के बारे में मेरे सवाल को दरकिनारा कर दिया था। मैंने प्रार्थना की कि उसकी दुनिया में सब ठीक हो। उसके हाव-भाव ने मुझे चिंतित कर दिया और मुझे जानना था कि आखिर उसके साथ क्या हो रहा था।

"शिखा, सब ठीक है न?"

उसने अपनी हथेलियों को आपस में दबाते हुए मुझे घबरा कर देखा, और लंबी सांस लेते हुए कहा,

"जय, मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ।"


मैंने हामीं भरी और उसने धीरे-धीरे कहना शुरू किया,

"बड़ा आलीशान बंगला, सारी सुविधाओं के साथ, तीन शानदार गाड़ियां, ड्राइवर, नोकर-चाकर, फॉरन हॉलीडेज़ और संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने के बावजूद, दुनिया की सारी दौलत एक साथ मुझे वह खुशी नहीं दे सके जो मैं अभी अनुभव कर रही हूं, इस वक्त, यहां, तुम्हारे साथ।"


उसने अपने होंठ गीले किए और चुप हो गई। वो अब शांत थी और मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। मैं पूरी तरह से हैरान रह गया और समझमें नहीं आ रहा था कि इन सब बातों का, मैं क्या मतलब निकालू।

"शिखा! तुम क्या कह रही हो? मैं .... मुझे नहीं लगता कि मैं कुछ भी समझ पा रहा हूँ।"

उसने सोफे पर हमारे बीच अपना हाथ रखा, और तभी मैंने देखा कि उसने मेरा दिया हुआ ब्रेसलेट पहना था। उसने धीरे से कहा,

"तुम्हारा चहेरा और मेरी शादी पर हुई हमारी बातचीत को मैं कभी भूल नहीं पाई। हर पल, हर वख्त तुम मुझे याद आते थे। उन सब बातों ने मुझे उदास और परेशान कर रखा था।"

मैंने चुप्पी बनाए रखी ताकि वह आगे बोल सके।


"शौर्य मेरे साथ अच्छा बर्ताव करता था, लेकिन वह हमेशा इतना व्यस्त रहता था, कि ज़्यादातर समय मैं अकेली होती थी, यहां तक ​​कि रातों के दौरान भी। उसके ऑन-कॉल और सर्जरी उसे घर से दूर रखते थे। ऐसा लग रहा था कि हमारे घर की सारी शानो शौकत मुझ पर व्यंग्य कर रही हो। जैसे के मेरे अकेलेपन पर हंस रही हो।"

मैंने अपनी सांस रोक रखी थी, दिमागने काम करना बंद कर दिया था। शिखा की बातें और उसकी मौजूदगी ने मुझे उलजन में डाल दिया था। ये हो क्या रहा था?

"शौर्य था से तुम्हारा क्या मतलब है शिखा? वास्तव में क्या हो रहा है? क्या तुम उसके साथ खुश नहीं हो?"


उसने एक गहरी आह भरी, मानो सूचना के अगले टुकड़े को बाहर निकालने का साहस जुटा रही हो।

"शौर्य को बुरा लगा और हमारे बीच थोड़ी बहस भी हुई, लेकिन वह आखिरकार सहमत हो गया और अब हम तलाकशुदा हैं।"

"What?!? You can't be serious!"

मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैंने उसे सही सुना था।

"हाँ जय। अब तक मैं तुम्हारे पास आने के लिए हिम्मत जुटा रही थी।"

क्या मैं सपना देख रहा था? मुझे कोई भी अनुमान नहीं लगाना था। मुझे कोई अपेक्षा या आकांक्षा नहीं बांधनी थी। मैं सारी बातें साफ साफ उसी से सुनना चाहता था।


वो खड़ी हुई और मेरे सामने आकर नीचे ज़मीन पर अपने घुटनों पर बैठ गई।

"शिखा ...!"

मैं अपनी खुद की आवाज़ नहीं पहचान पा रहा था। उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया।

"याद है, मेरी शादी में तुमने शौर्य से कहा था, मैं सोच रहा हूं कि हरयाली में कौन खड़ा है। जय, आज हरयाली खुद तुम्हारे पास चल कर आई है। मैं तुम्हारे साथ एक साधारण और सम्पूर्ण संतोषजनक ज़िन्दगी जीना चाहती हूँ।"


मैं अपने आपे में रहा ही नहीं। मैं अभी भी आश्चर्यचकित था। हैरानी ने मुझे अपनी गिरफ्त में जकड़ रखा था।

"शिखा ...!"

"जय, किसी की अनुपस्थिति में उसकी ज़्यादा याद आती है। मैंने ज़िन्दगी में कभी तुम्हें इतना याद नहीं किया, जितना मैंने इन ढाई सालों में किया है। मुझे माफ करदो जय।"

भावनाओं ने उसे जकड़ लिया और उसकी आँखों में आँसू चमकने लगे।

"जय, क्या अब्भी तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार है? क्या तुम मुझे अपनी ज़िन्दगी में जगह दोगे? प्लीज़ जय!"


मैंने अपने आंसू छुपाने की ज़हमत नहीं उठाई और उन्हें अपने गालों पर बहने दिये। मैंने शिखा के आँसू पोंछे, उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लिया और प्यार से कहा,

"तुम्हें मेरे कुछ नियम और शर्तें माननी पड़ेगी।"

वह डर गई लेकिन उसने दृढ़ता से कहा,

"कुछ भी जय, जो तुम कहो।"

मैं मुस्कुराया और आगे बैठते हुए उसके बालोंमें से क्लिप निकालदी। उसके चमकदार काले बाल उसके खूबसूरत चेहरे के आसपास लहराने लगे।

"पहली शर्त, हमेशा अपने बालों को खुला रखना। मुझे वह ऐसे ही पसंद है।"

उसने राहत की सांस ली और कहा,

"जी सर। आपका हुकुम सर आंखों पर। और कुछ?"

मैंने उसकी मदद की, और हम दोनों खड़े हो गए। जैसे ही मैंने उसे अपनी बाहों में लिया, ऐसा लगा जैसे मैं पहली बार सांस ले रहा हूँ। मानो जैसे मुझे कोई गदगद घुटन से बाहर निकाला गया हो। फिर मैंने कुछ ऐसा किया जो मैंने केवल अपने सपनों में किया था। मैंने उसके बाएं गाल पर जो तिल है, उसे चूमा और अपने सर को उसके सर के साथ छू:ते हुए कहा,

"मुझे वैसे ही प्यार करना, जैसे मैं तुमसे करता हूँ।"

"ज़िन्दगी भर जय! मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।"

उसकी उज्ज्वल मुस्कान ने न सिर्फ मुझे, बल्कि कमरे को और मेरे पूरे जीवन को रोशन कर दिया। फिर उसने अपने हाथों को मेरे गले में डाला और मुझे में खो गई।


***********एक नईशुरुआत************


शमीम मर्चंट, मुंबई

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