Meri Bhairavi - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरी भैरवी - 3

3. रहस्यमयी जगह
----------------------------------------------------
उस तेजमय प्रकाश पूंज नें विराजनाथ को अपने अंदर समेट लिया और विराजनाथ उस प्रकाश के अंदर खींचता ही चला जा रहा था। विराजनाथ के नेत्र बंद होने के कारण वह कुछ भी देख नहीं पा रहा था ...क्योंकि तेजमय प्रकाश की रोशनी इतनी अधिक थी कि अगर कोई भी उसे खुले नेत्रों से देखने की कोशिस करता तो उसकी आंखें चकियाचौंध जायें।
वह तेजमय प्रकाश पूंज विराजनाथ को मानों कि अपनी गहरी में ले जा रहा हो और विराजनाथ जितनी गहराई में उसके अंदर खींचता तो उस प्रकाश की और रोशनी और अधिक तेज होती जा रही थी। कुछ देर के बाद विराजनाथ स्वयं को जमीन के ऊपर खड़ा पाता है।उसे लगता है कि उसके पांव अब जीमन के ऊपर आ गये हो और विराजनाथ धीरे -धीरे स्वयं के नेत्रों को भींचते हुये धीरे से खोलता है और अपने सामने के दृश्य को देखकर भौंचक्का सा रह जाता है।
एक ऐसा दिव्य वातावरण जो आलौकिक सौंदर्यं से भरा हुआ है। प्रकृति मानों उस जगह का श्रृंगार करके उसे बेहद ही अपूर्व सौंदर्यंमयी बना रही हो।उस जगह का वातावरण में मानों मौसम एक जैसा ही हो।ना सर्दी तो ना गर्मी,ना ही ऋतुओं का परिवर्तन..मानों सदैव बसंत ऋतु ही इस जगह पर विद्यमान रहती हो। नदी का जल बिल्कुल स्वच्छ और पारदर्शी था।खुली आँखों से देखने पर भी नदी की तलहटी को साफ-साफ से देखा जा सकता था।पशु -पक्षी व हिंसक जानवर भी आपस में प्रेम के साथ रहते थे।किसी का भी आपस में कोई बैर ही नहीं हो।दुर्लभ जड़ी -बूटियों की महक इतनी सुंगधित थी कि व्यक्ति स्वयं को उनकी महक को सुंघे बिना रह ही नहीं सकता और वातावरण में फैल रही आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह तो व्यक्ति के तन-मन को मोहित करने वाला था।
ऐसे मनोहर,मनमोहक व आलौकिक सौंदर्य को देखकर तो कोई भी व्यक्ति आश्चर्यचकित होये बिना रह ही नहीं सकता।
विराजनाथ की हालात इस समय ऐसी थी कि मानों वह स्वर्ग में आ गया हो। इस क्षेत्र की एक-एक वस्तु इस क्षेत्र के सौंदर्यं और भी अधिक निखार रही और उसे अत्यंत शोभावान बना रही थी।
विराजनाथ सोचने लगता है कि आखिर यह कौन सी जगह है और उस कुटिया के कक्ष की दूसरे तरफ तो एक अलग ही दुनिया है...एक अलग ही संसार है।
इतनी दिव्य व सौंदर्यं से युक्त जगह तो मैंने आज तक देखी ही नहीं। ये जगह तो स्वर्ग से अधिक सुन्दर है।इस जगह की विशेषता तो अपने आपमें ही अद्भुत है।यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा से तो व्यक्ति के शरीर की थकावट तो दूर करती है और साथ ही साथ उसकी आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करती है।
हो ना हो यह जगह कोई सिद्धभुमि होगी।किसी उच्चकोटि के तपस्वी की तपस्थली जरूर होगी।तभी तो इस जगह में इतनी अधिक आध्यात्मिक ऊर्जा है।पर ये है कौन सी जगह..इस जगह का नाम क्या है?ये सब विचार विराजनाथ के मन में आने लगे थे।
जहां तक मैंने सुना है और शास्त्रों व आध्यात्मिक ग्रंथों मों पढ़ा है उसमें ऐसी एक जगह का वर्णन तो जरूर किया है ..जिसे सिद्धाश्रम या ज्ञानगंज कहा जाता है।पर यह जगह तो सिद्धाश्रम की तरह तो दिख नहीं रही है और सिद्धाश्रम के बारें में जैसा वर्णन ग्रंथों में बताया है उस हिसाब से तो यह जगह सिद्धाश्रम नहीं लग रही है।
सिद्धाश्रम में तो अनेक उच्चकोटि के संन्यासी,योगी,सिद्ध,ऋषिादि साधनारत हैं..,पर यहां पे तो कोई भी नहीं दिख रहा है।
अब विराजनाथ को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि यह रहस्यमयी जगह है कौन...आखिर किसने इस जगह का निर्माण किया है और इस जगह पर इतनी अधिक आध्यात्मिक ऊर्जा कैसे स्थित है।विराजनाथ ये सब सोच ही रहा था कि उसे कहीं दूर से कोई आवाज सुनाई देती है।आवाज इतनी दूरी से आ रही थी कि उसको सही से सुनना संभव ही नहीं था कि आखिर शब्द बोले जा रहे हैं।उस आवाज में कुछ दिव्य मंत्रों का उच्चारण हो रहा था।परंतु अधिक दूरी होने के कारण विराजनाथ कुछ भी सही से नहीं सुन पा रहा था।
जिस दिशा से आवाज आ रही थी तो विराजनाथ उस दिशा की ओर देखता है परंतु विराजनाथ को एक तेजप्रकाश पुंज में चमक रही एक इनसानी परछाई दिखाई देती है।अधिक दूरी होने के कारण विराजनाथ उस परछाई को सही से नहीं देख पा रहा था कि वह परछाई वास्तव में है किसकी।
पर विराजनाथ इतना जरूर समझ गया था कि परछाई में जो व्यक्ति दिखाई दे रहा था उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा अत्याधिक है ...वह कोई साधरण व्यक्ति तो नहीं हो सकता है। हो ना हो संभव है कि यह व्यक्ति आध्यत्मिक स्तर के पांचवें स्तर का सिद्ध व्यक्ति है और इसने पांचवे स्तर को पूर्ण कर लिया है और अब यह आध्यात्मिक स्तर के छठे स्तर में प्रवेश कर चुका है और छठे स्तर के ग्यारहवें चरण में है।
पर यह दिव्य पुरूष आखिर कौन है? और मुझे इस जगह पर क्यों लाया गया है।क्या मेरा इसके साथ कोई पूर्वजन्म का संबंध जुड़ा है या यह मात्र संयोग है और इस जगह पर तो सूर्यास्त भी नहीं होता है। यहां तो दिन रात एक समान ही है।
खैर छोड़ो जब मैं इस जगह पर आ ही गया हूं तो क्यों ना मैं इस जगह पर प्रवाहित होने वाली आध्यात्मिक ऊर्जा में अपनी आध्यात्मिक साधना कर लूं और जिससे मेरी आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि हो जायेगी और भाग्य अच्छा रहा तो मैं इस आध्यात्मिक ऊर्जा की मदद से आध्यात्मिक स्तर के दूसरें स्तर को पार कर जाऊं।
यही सोचते ही विराजनाथ अपना आसन विछाकर उसके ऊपर बैठकर अपनी आध्यात्मिक साधना करने लगता है। कुछ ही देर में विराजनाथ को यह महसूस होता है कि उसकी आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होने लगती है और उसके पूरे शरीर में आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित होने लगती है और धीरे -धीरे उसकी ऊर्जा इतनी तीव्रता के साथ अधिक बढ़ने लगती है कि मानों कि अत्याधिक आध्यात्मिक ऊर्जा को अपने अंदर अवशोषित करने से मानों विराजनाथ का शरीर ही विस्फोट करके फट जायेगा और उसके शरीर के चिथड़े -चिथड़े हो जायेंगे।
आध्यात्मिक ऊर्जा के इतने अधिक प्रवाह को विराजनाथ सहन नहीं कर पाया और उसने अपनी आँखें खोल ली और अपने आसन को प्रणाम करके उठ खड़ा हो जाता है। विराजनाथ सोचने लगता है कि इस क्षेत्र में आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह इतना तीव्र और अधिक है कि मैं इसे अपनी वर्तमान की स्थिति के अनुसार अपने अंदर अवशोषित नहीं कर सकता और यदि मैंने इसे जबरदस्ती अवशोषित करने की कोशिस की तो संभव है कि मेरे शरीर इतनी अधिक ऊर्जा को सहन नहीं कर पायेगा और जिसके कारण मेरे शरीर इस ऊर्जा के अधिक प्रभाव से विस्फोट करके फट जायेगा।
मुझे कोई और रास्ता निकलना पडे़गा इसके लिए ..जिससे मैं इस आध्यात्मिक ऊर्जा में अपनी आध्यात्मिक साधना करके अपनी शक्तियों में और भी वृद्धि कर सकूं। यदि एक बार इस जगह से बाहर निकल गया तो फिर पुन: कभी मुझे ऐसा सुनहरा अवसर नहीं मिलेगा और फिर मुझे लम्बें समय तक अपने दूसरे आध्यात्मिक स्तर को पूर्ण करने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी।
परंतु ऐसा मैं क्या करूं कि जिससे मैं इस रहस्यमय जगह में प्रवाहित होने वाली इस दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा को अवशोषित कर सकूं और अपने आध्यात्मिक स्तर को पूर्ण कर मैं अगले स्तर पर प्रवेश कर सकूं।
विराजनाथ को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था और वह अपने ही इसी सोच-विचार की उलझनों में उलझा हुआ था कि तभी फिर से वह आवाज सुनाई देने लगे ...जिससे सुनकर विराजनाथ अपनी ख्यालों की नींद से बाहर आया और उसका ध्यान टूट कर उस आवाज की तरफ आकर्षित हो गया और विराजनाथ उस आवाज को सुनकर चौंकाना हो गया व ध्यान से उस आवाज को सुनने लगा। धीरे -धीरे अब वह और नजदीक से सुनाई देने लगी पर अभी तक उस व्यक्ति का पता नहीं चल पा रहा था कि आखिर ये कौन व्यक्ति बोल रहा है।
विराजनाथ थोड़ा ड़रते हुये कंपकंपाती आवाज मे पुछता है क...क...क..कौन हो आप...मेरे सामने आयें...
परंतु विराजनाथ के सवाल का कोई प्रत्युत्तर नहीं मिलता है ...वह व्यक्ति बस अपनी ही धुन में ही शब्दों का उच्चारण करता जा रहा था।वह उन श्ब्दों के उच्चारण मे मग्न था कि मानों उसके लिए विराजनाथ जैसे इस जगह पर हो ही नहीं ...
विराजनाथ थोड़ा आश्चर्यचकित था ....और वह पूरे ध्यान से उन शब्दों को सुनने की कोशिस करता है...हालांकि वह आवाज पहले की दूरी की तुलना थोड़ी नज़दीक से सुनाई दे रही थी। परंतु वह अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट सुनाई नहीं दे रही थी। बस कुछ शब्द अधूरे से सुनाई दे रहे थे।जिनसे यह जानना बेहद ही मुश्किल था कि आखिर वे शब्द है क्या और किस तरह के शब्द है।इसलिए विराजनाथ के मन में तीव्र जिज्ञासा अब जन्म लेेने लगी थी यह जानने के लिए कि आखिर ये शब्द है क्या और यह अदृश्य व्यक्ति कौन है ..और यह इन शब्दों का उच्चारण बार-बार क्यों कर रहा है वो भी ठीक उसी तरह से जिस तरह किसी मंत्र का जप या स्तुति का पाठ साधक या कोई भक्त अपने ईष्ट की प्रसन्नता के लिए करता रहता है।
और तो और यह जगह विचित्र व रहस्यमय तो है ,पर उसके साथ यह अदृश्य व्यक्ति भी बेहद रहस्यमयी है .,.जब पहले यह आवाज दूर से सुनाई दे रही थी तब यह रहस्यमयी व्यक्ति एक तेजपुंज प्रकाश के रूप में दिखाई दे रहा था और अब जब यह आवाज पहले की तुलना पास से आ रही है तो तब ना तो कोई तेजपुंज की छवि दिखाई दे रही है और ना ही कोई व्यक्ति ...सिर्फ और सिर्फ आवाज ही सुनाई दे रही है।
हालांकि आवाज पहले की तुलना से कुछ नजदीक से सुनाई दे रही थी ..पर फिर भी स्पष्ट रूप से सुनाई नहीं दे रही थी। आवाज इतनी धीमी से सुनाई दे रही थी कि वो सुनाई तो दे रही थी पर उसे सुनकर यह समझ पाना बेहद ही मुश्किल था कि आखिर उस आवाज में वह रहस्यमयी व्यक्ति आखिर क्या बोल रहा था ...और कौन से शब्दों का उच्चारण कर रहा था।
विराजनाथ ने बहुत कोशिस की उस व्यक्ति को देखने की और उस आवाज को स्पष्टरूप से सुनने के लिए ...परंतु वह नकाम ही रहा ।
उसने दूरदृष्टि सिद्धि और दूरश्रवण सिद्धि का भी प्रयोग किया था ...परंतु इस विचित्र जगह पर उच्चस्तरीय आध्यात्मिक ऊर्जा व्याप्त होने के कारण उसकी उन सिद्धि के प्रयोग का कोई असर नहीं हो रहा था...क्योंकि विराजनाथ की ऊर्जा और क्षमता होने के कारण केवल सीमित दायरे तक देखने व सुनने की क्षमता थी।
दिव्य दृष्टि और दूरश्रवण सिद्धि के तीन चरण होते है
⚫सामान्य स्तर
⚫मध्यम स्तर
⚫उच्च स्तर(सम्पूर्ण सिद्धि)
विराजनाथ के पास सामान्य स्तर की सिद्धि थी।सामान्य स्तर की दिव्य दृष्टि व दूरश्रवण सिद्धि कुछ सीमित दायरे तक ही देख और सुन सकते है।
और जब साधक की साधनात्मक क्षमता बढ़ती जाती है तो वैसे -वैसे दूरदृष्टि व दूरश्रवण की क्षमता मे भी वृद्धि होने लगती है।जब साधक साधना क्षेत्र की परमावस्था को प्राप्त करता है तो उसकी दिव्यदृष्टि और दूर श्रवण की सिद्धि पूर्णावस्था को प्राप्त कर लेता है जिसके प्रभाव से साधक एक ही जगह से एक क्षण में पूरे तीनों काल की घटनाओं को देख और सुन सकता है।
विराजनाथ की हर कोशिस नाकाम होती जा रही थी और उस रहसयमय जगह व उस रहस्यमय व्यक्ति के विषय में नहीं जान पा रहा था।
थक -हारकर परेशान होकर विराजनाथ अपने आसन पर फिर से दुबारा अपनी आध्यात्मिक साधना शुरू कर देता है और धीरे -धीरे रहस्यमयी जगह में प्रवाहित होने वाली आध्यात्मिक ऊर्जा को अवशोषित करने लगता है। एक स्तर तक आध्यात्मिक ऊर्जा को अवशोषित करने बाद विराजनाथ अपने अंदर बहुत से परिवर्तन को महसूस करता है...उसकी शारीरिक क्षमता में बहुत ज्यादा हिजाफा हो जाता है ..जिसके प्रभाव से विराजनाथ के चेहरे में हल्का -हल्का तेज और ओज दिखने लगा ।हालांकि आध्यात्मिक ऊर्जा को अवशोषित करने के बाद भी विराजनाथ के साधना स्तर में वृद्धि नहीं हुई पर विराजनाथ की सिद्धियों व क्षमताओं में वृद्धि जरूर हुई थी। जो कि एक साधक के लिए प्रसन्नता का पल होता है। परंतु विराजनाथ अपनी उपलब्धि से ज्यादा खुश नहीं था।
पर खैर क्या कर सकते है वो कहते है ना"""भाग्य में जो लिखा है और जितना मिलना लिखा होता है तो उतना ही मिलता है।उससे अधिक कभी किसी को कुछ नहीं मिलता है।"""""
रहस्यमयी जगह पर अभी तक विराजनाथ को ग्यारह दिन हो गये थे जो कि बाहरी दुनिया के मुकाबले दो घंटे का समय था।इन ग्यारह दिनों में विराजनाथ ने अपना पूरा समय आध्यात्मिक साधना में ही व्यतीत किया था और अपने साधना मण्ड़ल के चरणों को सुधारने व और बेहतर बनाने में लगा दिया था। जिससे वह शीघ्र से शीघ्र अगले साधना मण्ड़ल में प्रवेश पा सकें और अपने आपको और अधिक ताकतवर बना सके।
विराजनाथ जैसे ही अपने आसन से उठने वाला था कि तभी पुन: उसी अदृश्य रहस्यमयी व्यक्ति की आवाज सुनाई देने लगी।इस बार आवाज बिल्कुल स्पष्ट सुनाई दे रही थी...पर विराजनाथ समझ नहीं पा रहा था कि वह अदृश्य रहस्यमयी व्यक्ति आखिर क्या बोल रहा है।
कुछ- कुछ शब्द विराजनाथ को समझ आ रहे थे ..परंतु पूरे शब्दों को वह समझ नहीं पा रहा था। कुछ देर ध्यान से एकाग्रचित होकर विराजनाथ ने उन शब्दों को सुनने का प्रयास किया।
वह अदृश्य रहस्यमय व्यक्ति लगातार उन शब्दों को बहुत तेजी से बुदबुदाता जा रहा था।जिसके कारण विराजनाथ को उन शब्दों को समझने में असुविधा हो रही थी।
बस कुछ इन्ही शब्दों को विराजनाथ को सही से सुन सका था।
शायद कोई देवी की स्तुति या स्तोत्र होगा...परंतु आखिर यह व्यक्ति है कौन ....और इस रहस्यमय जगह पर इसके अलावा अन्य कोई व्यक्ति है ही नहीं...बहुत से सवाल विराजनाथ के मन में थे..पर उनका जबाव मात्र कुछ भी नहीं था।
तभी अचाक से उस रहस्यमयी अदृश्य परछाई की आवाज विराजनाथ के कानों में पड़ती है ...यदि तुम अपनी शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाना चाहते है तो तुम्हें पवित्र गुफा में समय के निशान वाले पत्थर को ढुंढना होगा ...तभी तुम समय की गति के साथ अपने आभ्यास को करके अपनी शारीरिक व आध्यात्मिक शक्तियों में अत्याधिक वृद्धि कर सकते है।
यह सुनकर विराजनाथ थोड़ा चिंतित सा हो जाता है और पुछता है ...हे! दिव्य पुरूष आप कौन हो और कृपया करके मुझे बतायें कि यह पवित्र गुफा मुझे कहां पर मिलेगी।
विराजनाथ की बात सुनकर वह रहस्यमयी अदृश्य परछाई कहती है।
बालक यह महत्वपूर्ण नहीं है कि मैं कौन हूं...महत्वपूर्ण यह है कि तुम्हें किस तरह से इस स्थान पर प्रवाहित हो रही आध्यात्मिक शक्तियों अपने अंदर अवशोषित करना है ...और उसके लिए तुम्हें समय के निशान वाले पत्थर को खोजना होगा और उसके सामने बैठकर आध्यात्मिक साधना करनी होगी और हाँ बालक यह पवित्र गुफा तुम्हें स्वयं ही ढुंढनी होगी।
मैं तुम्हें बता दूं कि यह जगह कोई मामूली जगह नहीं है...यह बहुत प्राचीन ऋषि केशव स्वामी की तपस्थली है ...इसे """ऋषि देवाश्रम"""कहते है और यहां पर ऋषि केशव की तपस्या की ही आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित है....जिसे अवशोषित करने के बाद कोई भी साधक अपनी शक्तियों में बहुत वृद्धि कर सकता है और साधक की आध्यात्मिक और शारीरिक ऊर्जा में बहुत विकास हो जाता । इसलिए तुम्हें अपनी पूर्ण क्षमता के साथ आभ्यास करना चाहिये।
रहस्यमय अदृश्य परछाई की बात सुनकर विराजनाथ विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर कहता है कि ...हे! दिव्यपुरूष ...महायोगी ...कृपया आप मुझे अपने दर्शन दें और मेरा मार्ग दर्शन करें।
विराजनाथ की प्रार्थना सुनकर विराजनाथ के सामने एक दिव्य तेज प्रकाश प्रस्फुटित होता है और उस में से एक दिव्य पुरूष प्रकट होता है।जिसके चारों ओर एक दिव्य तेज आलोकित हो रहा था ...और दिव्य तेज का प्रकाश इतना अधिक था कि उसे खुली आँखों से देखना सामान्य व मध्यम स्तर के साधकों के वश में था ही नहीं ...धीरे -धीरे उस दिव्य पुरूष नें अपने तेज को कम किया तो अब विराजनाथ के सामने लंबे सफेद बालों और लंबी दाड़ी -मूंछ वाला एक दिव्य व्यक्ति था।जिसकी कदी -कठ़ी किसी देव के समान थी...हृष्ट -पुष्ट और ओज -तोज से भरा हुआ शरीर ...मानों कि स्वयं देवता अवतार लेकर प्रकट हुआ हो!आध्यात्मिक आभा उच्चस्तरीय और चेहरे से ही प्रतीत हो रहा था कि उच्चस्चरीय शक्तियों का स्वामी हो।
आखिर किसकी थी यह परछाई और कौन था यह सिद्धयोगी ...जानने के लिए मेरे साथ जुडे रहे मेरे इस उपन्यास अर्थात """"मेरी भैरवी-रहस्मय तांत्रिक उपन्यास"" के साथ