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बागी स्त्रियाँ - भाग इक्कीस

एक दिन उसने खुद नगमा को एक लड़के के साथ घूमते देख लिया। पूछने पर वह उससे ही बहस पर उतर आई।
--आप मेरी आजादी में दखल नहीं दे सकतीं।
'तुम मेरी जिम्मेदारी हो।कोई घटना हो गई तो मैं भी फंसूंगी।मेरी बदनामी होगी।'
--वैसे भी आप बहुत नेकनाम नहीं हैं ।अच्छी होतीं तो यूँ अकेली नहीं होतीं।
'अब तुम मेरे घर नहीं रह सकती।अपने अब्बू को फोन मिलाओ।उन्हें बता दूं।'
--उसकी जरूरत नहीं।मैंने उन्हें समझा दिया है।
वह अपना सामान लेकर चली गई।पता लगा कि किसी लड़के के साथ किराए के घर में रह रही है।
इधर गांव -कस्बों से बहुत -सी लड़कियाँ शहर में मकान लेकर रह रही हैं।कोई पढ़ने के बहाने, कोई छोटी- मोटी नौकरी के।ज्यादातर के साथ उनके ब्वॉयफ्रेंड हैं और बहुतेरी कई तरह के अन्य धंधे कर रही हैं।पुलिस छापे में अक्सर ऐसी लड़कियाँ पकड़ी जाती हैं ,फिर छूटकर वही सब कुछ नए सिरे से करने लगती हैं।मिली आज़ादी का वे खुलकर दुरूपयोग कर रही हैं।
अपूर्वा सोचती है कि क्या इसी आजादी के लिए हमारी पूर्वजाओं ने इतना संघर्ष किया था?क्या इसी आजादी के लिए इतना बलिदान दिया गया?क्या स्त्रियों को सिर्फ यौन -आजादी चाहिए थी? सिर्फ मनमाना पहनने,घूमने,बेलगाम हो जाने की छूट चाहिए थी।ये आज़ादी का कौन -सा रूप है?शिक्षा हासिल करने, अपना कैरियर बनाने,आत्मनिर्भर होने,अपनी अस्मिता,आत्मसम्मान के साथ जीने की अपेक्षा नई तरह की गुलामी की जंजीरों की दिशा की ओर ये लड़कियां क्यों बढ़ रही हैं? शहर का कोई पार्क,रेस्टोरेंट,मॉल,सूनसान स्थल ऐसा नहीं ,जहाँ प्रेमी जोड़े विराजमान न हों।प्रेम करने की आजादी सबको मिलनी चाहिए पर क्या ये सब प्रेम है?प्रेम की जगह देह क्रीड़ा!अब शारीरिक सम्बन्ध पहले होते हैं ,प्रेम का पता बात में चलता है।अब तो इन जोड़ों में अधेड़ पुरूष और कमसीन लड़कियाँ भी हैं।खाए -पीए -अघाए अधेड़ पुरूष तोहफे अच्छे देते हैं,इसलिए कम उम्र लड़कियाँ उनके साथ धूम- फिर रही हैं।हालांकि उनके भी हमउम्र प्रेमी होते हैं पर ज्यादातर खर्च कर पाने की स्थिति में नहीं होते।इसलिए कई बार उनकी सहमति से अधेड़ों,बूढ़ों की इस कमजोरी का फायदा उठाया जाता है कि उनको कमसीन सौंदर्य भाता है।कहाँ जा कर रूकेगा पतन का यह सिलसिला!
ऐसा नहीं कि सभी लड़कियाँ यही कर रही हों।बहुत -सी लड़कियां आजादी का सदुपयोग कर रही हैं ।वे अपनी शिक्षा, अपने मनपसंद कैरियर पर ध्यान दे रही हैं।पुरूषों वाले विविध क्षेत्रों में भी अच्छा काम कर रही हैं।ठीक है कि उनके भी अफेयर्स होते हैं ।वे प्रेम -विवाह भी करती हैं पर आत्मनिर्भरता भी हासिल करती हैं।अपने आत्मसम्मान को बचाए रखती हैं ।
पर उनकी संख्या ज्यादा नहीं है।
अपने शोषण के खिलाफ उठ खड़ा होना अच्छी बात है ,पर एक जाल से निकलकर दूसरे जाल में गिर पड़ना बुद्धिमानी नहीं ।खुद दूसरों के लिए जाल निर्मित करना तो मकड़ी हो जाना है जो अंततः अपने ही बनाए जाल में फंस जाती है।
अपूर्वा ने निर्णय ले लिया कि राखी को अपने घर नहीं रखेगी पर खुलकर कहने में उसे संकोच हो रहा था।पर उन्हें कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि अचानक उन्होंने खुद ही आना छोड़ दिया,शायद उन्हें लग गया था कि उससे बेजा लाभ वे नहीं उठा पाएंगे।
आखिरी बार जब दोनों आए थे तो फिर आपस में लड़ पड़े थे । उसने उन्हें डांट दिया था।राखी ने उससे अकेले में कहा कि शशांक का मूड इसलिए खराब है कि तीन महीने का किराया उसे देना है और उसका पेमेंट फंस गया है।उन्होंने सारे परिचितों से पहले ही बहुत -सा कर्ज लिया है,इसलिए उनसे नहीं मांग सकते।
अपूर्वा समझ गई कि वे प्रकारांतर से उससे पैसा मांग रहे हैं।वह सतर्क हो गई।उसने उनकी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया तो उन्हें समझ आ गया होगा।फिर वे नहीं आए।
वह भी क्या करती? नौकरी न होने से इस समय वह आर्थिक दबाव में है।अक्सर उसके घर और उसकी साज- सज्जा को देखकर लोग सोचते हैं कि वह काफी पैसे वाली है।ईश्वर ने उसका रूप रंग ,व्यक्तित्व भी ऐसा दिया है कि साधारण कपड़ों में भी वह भव्य और अमीर दिखती है।कोई यह नहीं सोचता कि वह पूरे जीवन परिश्रम करके बस यह छोटा -सा घर ही तो बना पाई है।तिनका- तिनका जोड़ा है तब यह घोंसला बना है।उस अकेली के लिए इतना कुछ लोगों को ज्यादा लगता है।सब जानते हैं कि इसका कोई वारिस नहीं है,इसलिए किसी तरह सब कुछ हथिया लें।किसी को उसके दुःख दर्द,अकेलेपन,परेशानियों की चिंता नहीं।वह किस तरह शारीरिक कष्ट के बावजूद घर का सारा काम खुद करती है।एक- एक पैसा बचाने के लिए पैदल चलती है।कम से कम में किस तरह काम चलाती है,यह वही जानती है।किसी को उसका संघर्ष और परिश्रम नहीं दिखता क्योंकि वह दिखाना ही नहीं चाहती।दयनीय दिखने से उसे सख्त नफ़रत है।वह जीवन भर स्वाभिमान से जी है,आगे भी जीना चाहती है।उम्र के इस पड़ाव पर भी वह ईर्ष्या की वस्तु है।सभी कहते हैं कि वह एज प्रूफ है। वह अक्सर यह कमेंट्स सुनती है कि क्या खूब मेंटेन किया है आपने खुद को और अपने घर को।
वह मन ही मन कहने वाले पर हँसती है।किसी को क्या पता कि वह इसलिए पार्लर नहीं जाती कि उतने में महीने भर की साग- सब्जी आ जाएगी।जेवर और महंगे कपड़े नहीं खरीदती। उसे कम से कम में अच्छी तरह रहना आता है।अपनी बचत की आदत के कारण साल भर से सिर पर आ पड़ी इस बेरोजगारी में भी उसने अभी तक किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया है।