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बागी स्त्रियाँ - भाग बाइस

कोई एक दुःख है कोई अभाव... कोई व्यथा ,जो बचपन से ही मीता के मन को मथती रही है।इस अभाव ,दुःख और व्यथा से बचने के लिए वह जिंदगी भर भागती रही है.... भागती ही रही है।कहीं चैन न मिला।किसी से वह उस दुःख के बारे में न कह सकी है।कोई उस अभाव को न भर सका है।कोई उस व्यथा को कम नहैं कर सका है।किसी को पता भी तो नहीं है उस दुःख का,उस अभाव का, उस व्यथा का।वह खुद भी तो नहीं जानती है।कभी वह उसे प्रेम का अभाव मानती है तो कभी अपनेपन की कमी ।कभी खुद को न समझे जाने की व्यथा समझती है। काफी हद तक यह सच भी है। अपनों की भीड़ के बावजूद कोई उसका अपना नहीं।कोई उससे सच्चा प्यार नहीं करता।कदम- कदम पर प्यार करने के दावेदारों के बावजूद उसे कहीं चैन नहीं मिलता।जब भी वह किसी का प्रेम देखती है..युगल का आपसी अपनापन देखती है .उनमें सच्ची चाहत देखती है, वह रो पड़ती है दुःख से भर जाती है ।फिर वही व्यथा उसके हृदय को मथने लगती है।
अपूर्वा ने भी एक दिन उसे यही सब बताया था।उसके जीवन में भी कई पुरूष आए पर उसे कोई भी सच्चा प्यार नहीं करता था ।उसने बहुत -सी स्त्रियों से बात की और सबने अपने जीवन में सच्चे प्रेम का अभाव बताया।जिन्होंने पति और परिवार के साथ गुजार लिया ,वो भी फिल्मों और धारावाहिकों में सच्चा प्रेम देख आँसू बहाती हैं ।'जिंदगी में उसी की कमी रह गई।
'क्या सभी स्त्रियों का यही दर्द है?
उसकी माँ ने भी एक बार कहा था कि सच्चा प्यार उसे रुलाता है।
उसने पूछा था--पर माँ पिताजी तो तुम्हें बहुत प्यार करते थे ।हर समय तुम्हें ही पुकारते रहते थे।एक दिन भी तुम्हारे बिना नहीं रह पाते थे,फिर तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?
"वह प्यार नहीं सिर्फ उनकी जरूरत थी।उन्हें मेरी आदत पड़ गयी थी।प्यार वहाँ होता है,जहां कोई मजबूरी न हो।सच्चा प्यार किसी को मजबूर नहीं करता।तुम्हारे पिताजी मेरी देह को चाहते थे मुझे नहीं।मैं एक दिन भी उनके कमरे में नहीं सोती थी तो खाना- खर्चा देना बंद कर देते थे।उन्हें यह भी परवाह नहीं रहती थी कि उनके बच्चे क्या खाएंगे?ये सौदेबाजी थी प्यार नहीं।"
--पिताजी गाँव के थे,इसलिए प्रेम की मानसिकता नहीं समझ पाते होंगे।पर तुम तो उन्हें प्यार करती थी न।
"सच कहूँ तो नहीं,जो पति पत्नी की मजबूरी का फायदा उठाता है वह उसके हृदय में जगह नहीं बना सकता।"
--फिर तुमने सारा जीवन उनके साथ कैसे गुजार लिया माँ?
"जैसे सारी औरतें गुजरती हैं।तुम क्या समझती हो कि हर पति पत्नी में सच्चा प्यार होता है !नहीं,बस समझौता होता है ।विवाह संस्था में भी औरत अपनी देह के बदले सुरक्षा संरक्षण और पोषण का अधिकार पाती है।वह देह देने से एक दिन भी इंकार करके तो देखे।उससे सारे अधिकार छीन लिए जाएंगे। वह पुरूष को आजीवन सुख देने वाली बंधुआ मज़दून है।उसमें सेवा ,समर्पण,उत्सर्ग के गुण होने चाहिए साथ ही देह -सुख और संतान -सुख देने की काबिलियत भी। उसकी भावना,उसकी इच्छा,उसके सपने पति के लिए कोई मायने नहीं रखते।तुम्हीं बताओ ऐसे पति से कौन स्त्री सच्चा प्यार करेगी!पर विडम्बना यह है कि उसे समाज में यह दिखाना पड़ता है कि वह पति को सच्चा प्यार करती है।वह उसके लिए तमाम तीज -व्रत करती है।सुहाग -चिह्नों को धारण करती है।सात जन्मों तक उसका साथ मांगती है पर सच तो यह है कि वह इस जन्म में भी उसके करीब होकर भी उससे मीलों दूर होती है।"
--क्या हर पति पत्नी की यही कहानी है?
"नहीं,पर ज्यादातर की यही कहानी है।सच्चा प्यार करने वाली भी होते हैं पर नसीब से मिलते हैं।"
मीता की माँ उससे सहेलियों की तरह बात करती थी।उसने अपने जीवन के लगभग सभी स्वेत- स्याह का उससे साझा किया था।वह अपनी माँ को बहुत प्यार करती थी।यही कारण है कि माँ की मौत ने उसे तोड़ दिया था।पर माँ मरकर भी नहीं मरी थी।वह जैसे उसी में समा गई थी।
मीता को उन पुरूषों से सख्त नफ़रत है जो स्त्री को सिर्फ देह समझते हैं।जो मित्रता में भी देह- सुख पाने की कामना रखते हैं ।जो उसी स्त्री की सहायता करते हैं ,जो उसे अपनी देह सौंप दे।वे प्रेम के बदले भी देह चाहते हैं।देह से ऊपर उनकी सोच जाती ही नहीं ।स्त्री उसी से प्रेम कर सकती है जो उसके मन समझे।उसके आत्मसम्मान की कद्र करे।उसकी कमियों और खूबियों के साथ उसे अपनाए।उसे सम्पूर्णता में प्यार करे।पर पुरूष को स्त्री के मन से क्या लेना- देना है!बहुत मजबूरी में वह मन की बात करता है।यूं कहें कि जब तन आसानी से नहीं मिलता तब मन की बात करता है।प्रेमिका से मन की बात कर भी ले पर पत्नी या हासिल हो चुकी स्त्री से तो कदापि नहीं करता।जिसकी देह एक बार उसे मिल गई ,वह उसके लिए सेक्स- सुख देने वाली एक जिंस बनकर रह जाती है।
मीता ऐसी जिंस बनकर नहीं जी सकती।यही कारण है कि वह अकेली रह गई है और तब तक अकेली रहना चाहती है,जब तक उसके जीवन में सच्चा प्यार नहीं आता।