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बागी स्त्रियाँ - भाग तेईस

विवाह के बाद पवन ने मीता से मिलने की बहुत कोशिश की।कई बार उसके रास्ते को रोककर खड़ा हो गया।फोन पर आई लव यू कहा ।क्षमा मांगी।वह नहीं चाहता था कि वह आनन्द या उसके किसी अन्य मित्र से रिश्ता जोड़ ले।यह उसकी मर्दानगी को बर्दाश्त नहीं था पर दूसरी स्त्री की देह- गन्ध से सराबोर पवन को वह दुबारा स्वीकार करने को तैयार नहीं थी।वह उससे दूर तो हो गई पर क्या सच ही!
रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं अपनी इच्छा से आते हैं चले जाते हैं पर इंसानी मन पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं।
मीता रिश्ते बनाने में कभी खुद पहल नहीं करती और ना ही अपनी तरफ से तोड़ती है।बस जब रिश्तों में स्नेह- रस सूख जाता है तो वह उनसे एक दूरी बना लेती है।बांधकर खींचते रहने में उसका विश्वास नहीं है।वह जीवन -भर का साथ चाहती है टेम्परेरी रिश्ते नहीं।साथ ही यह भी जानती है कि उसमें किसी आदमी के भीतर के जानवर को झेलने की ताकत नहीं।सौंदर्य उसे अपनी ओर खींचता है ।पर सौंदर्य का दूसरा पक्ष उसकी कुरूपता भी होती है ।चाहें वह मन की हो आचरण की हो या विचार या सोच की।ज्यों ही उस कुरूपता से उसका सामना होता है,वह भाग खड़ी होती है।सुंदर से सुंदर स्त्री या पुरुष जब बोलते हैं।अपनी भावना या विचार व्यक्त करते हैं ।आचरण या व्यवहार करते हैं,तो उनका असल रूप सामने आ जाता है।
पवन कितना आकर्षक पुरूष है ,सुंदर,सौम्य भी।कितना प्रगतिशील !कितना अच्छा वक्ता!कितना सोशल!लोकप्रिय!पर उसने जाना है कि वह कितना स्वार्थी,कितना अभिमानी,खुदगर्ज़ , छोटी और घटिया सोच वाला है।वह सिगरेट शराब पीता है पर खास दोस्तों के साथ ताकि दुनिया न जान सके।वह किसी स्त्री के साथ सो सकता है,अपना नहीं सकता। वह प्रेम का नाम ले सकता है पर प्रेम नहीं कर सकता।वह ठेठ सामंती है पर सामंतवाद के खिलाफ़ बोलता है।वह ऊपर से आदर्शवादी है पर भीतर से घोर अय्याश और दुराचारी।दुहरे व्यक्तित्व और दुहरे चेहरे वाला।उसके सोच- विचार,आचरण- व्यवहार सबमें दुहरापन है।वह अपने -आप को प्रेम करता है।खुद पर मोहित रहता है।उसे दूसरों की प्रशंसा बर्दास्त नहीं।प्रतिशोध की भावना भी उसमें तीब्र है।अपने खिलाफ वह न सुन सकता है न सह सकता है।उसके इस भीतरी रूप को उसने देखा है।दुनिया उसके बाहरी रूप को देखकर उस पर मुग्ध हो जाती थी।वह भी हुई थी पर जल्द ही उसका भीतरी रूप भी उसे दिखने लगा और वह शॉक्ड हो गई।इसके बाद भी वह उससे दूर नहीं हो पा रही थी।यदि पवन ने उसे खुद से नोंचकर फेंका नहीं होता तो वह उससे चिपकी ही रह जाती।
आज भी जब वह उसे याद आता है तो उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं।हालाँकि फिर से उसके करीब होने की कल्पना भी उसे असहय लगती है।जबकि पवन उसके एक बुलावे पर भी आ सकता है।वह उससे एकाकार होने को लालायित रहता है।वह उसकी देह पर आसक्त है,पर वह फिर से किसी दलदल में नहीं उतरना चाहती। उसने जीवन का वह अध्याय बंद कर दिया है तो फिर नहीं खोलेगी।खोलेगी तो अपराध- बोध का शिकार हो जाएगी।पवन के पास तो अपना घर- परिवार,समाज- संसार है ।उसके पास तो कुछ नहीं।पवन को क्षणिक साथ चाहिए उसे उम्र -भर का।वैसे भी टूटे हुए रिश्ते जुड़कर भी अपने पुराने रूप में नहीं आ पाते,यह बात वह जानती है।
कितने-कितने वर्ष तो लगे हैं उसे भुलाने में।उसकी छवि उसके आंखों के रास्ते दिल में उतरी थी और उतरकर ऐसे फंस गई थी कि उसे निकालना मुश्किल था।दिल टुकड़े- टुकड़े हो सकता था।अब तो कोई दूसरी छवि ही उसकी छवि को उसकी जगह से हटा सकती थी पर छवि इतनी तेजस्वी हो कि पवन की छवि धुंधली पड़ जाए और एक दिन विलुप्त हो जाए।क्या कोई ऐसा है?क्या ईश्वर ने उसके लिए ऐसी छवि बनाई है,जो उसको अतीत की पीड़ा से उबार सके।वह उसे ढूँढेगी नहीं।पर सामने आने पर वापस भी नहीं करेगी।
उसका अपना एक अतीत रहा है और अब पवन भी उसका अतीत बन चुका है।पर अतीत के सहारे जीया तो नहीं जा सकता और अकेले जीना भी मुश्किल है तो फिर कोई आएगा।
वह द्रोपदी की तरह सिर्फ अर्जुन की होना चाहती थी पर नियति में और भी पुरूष थे।
अर्जुन हाँ, अर्जुन ही नाम था।उसके जीवन के पहले पुरूष का।उसके पहले प्यार का।पंद्रह की उम्र में जिसके साथ वह बांधी गई थी।और इस तरह बंध गई थी कि अपनी देह के साथ आत्मा तक लहूलुहान कर बैठी थी।अर्जुन सिर्फ नाम का अर्जुन था ।वह वीर नहीं इतना कायर निकला कि जीवन- युद्ध के मोर्चे पर उसे अकेली छोड़कर भाग निकला।वह अकेली लड़ती रही ...लड़ती ही रही और जब युद्ध समाप्त हुआ तो उसने देखा कि विजय -माला उसके गले में पड़ी है और वह किसी सुभद्रा के साथ अट्टहास करता हुआ खड़ा है। वह उस पर हँस रहा था ।इतनी जोर -जोर से हँस रहा था कि दिशाएं गूंज रही थीं।
वह सोच रही थी कि कोई इतना कैसे हँस सकता है?क्या राम या कृष्ण इस तरह हँसे थे कभी ?बुद्ध को भी इस तरह हँसते नहीं देखा।कोई भी अवतारी पुरूष या देवता इस तरह हँसते नहीं सुना गया।हाँ, रावण,कंस,राक्षस,अन्यायी अत्याचारी राजा जरूर अभिमान में भरकर इस तरह का अट्टहास करते थे।आज भी नायक को संकट में डालकर खलनायक इसी तरह हँसता है।अर्जुन भी उसके जीवन का नायक नहीं खलनायक साबित हुआ था।