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उत्‍सुक सतसई - 1 - नरेन्‍द्र उत्‍सुक

उत्‍सुक सतसई 1

(काव्य संकलन)

नरेन्‍द्र उत्‍सुक

सम्‍पादकीय

नरेन्‍द्र उत्‍सुक जी के दोहों में सभी भाव समाहित हैं लेकिन अर्चना के दोहे अधिक प्रभावी हैं। नरेन्‍द्र उत्‍सुक जी द्वारा रचित हजारों दोहे उपलब्‍ध है लेकिन पाठकों के समक्ष मात्र लगभग सात सौ दोहे ही प्रस्‍तुत कर रहे हैं। जो आपके चित्‍त को भी प्रभावित करेंगे इन्‍हीं आशाओं के साथ सादर।

दिनांक.14-9-21

रामगोपाल भावुक

वेदराम प्रजापति ‘मनमस्‍त’

सम्‍पादक

समर्पण

परम पूज्‍य

परम हंस मस्‍तराम श्री गौरीशंकर बाबा के श्री चरणों में सादर।

नरेन्‍द्र उत्‍सुक

उत्‍सुक सतसई

सरस्‍वती मॉं बन्‍दना, ज्ञान ज्‍योति उर बार।

स्‍वीकारो मम प्रार्थना, करदो मॉं उद्धार ।।1।।

गौरी सुत, गणपति करूं, बिनती बारम्‍बार।

विधा, बुद्धि, उर में भरो, सुनलो शीघ्र पुकार।।2।। ।

जगदम्‍बा बिनती करूं, बार बार मनुहार।

कृपा दृष्टि अपनी करो, मैया लेओ निहार ।।3।।

गायत्री मॉं ज्ञान दो, सबको देओ विवेक।

रहें परस्‍पर प्रीत से, बटें न होयें अनेक।।4।।

मॉं सन्‍तोंषी याचना, उर में भरो शील।

करें आचरण शुद्ध हम, गहें न पथ अश्‍लील।।5।।

कृष्‍ण मुरारी, मन बसो, होये न कबहुं अनीत।

भाग्‍य भागवत से बने, गीता उर संगीत।।6।।

राम राम प्रात: करें, झुका बड़न को शीष।

घर-घर बालक पायें नित, पुरखन को आशीष।।7।।

गुरू बंदना नित करें, शिष्‍य झुकावें माथ।

गुरू-शिष्‍य, अदिश हों, धरती होये सनाथ ।।8।।

रामचरित मानस पढ़ें, घर-घर में नित लोग।

भरत राम से भ्रात हों, आवे यह संयोग।।9।।

करनी-कथनी एक सी, दोनों ही जन होवे।

मानव इस संसार के, मृत्‍यु न कबहुं संजोवें।।10।।

मर्यादा रघुवीर सी, उर गीता को ज्ञान।

उत्‍सुक होये प्रकाश तब, मानव बनें महान।।11।।

शिक्षा से झोली भरें, करें जगत उत्‍थान।

नहीं चाकरी हित पढ़ें, धरती के इन्‍सान।।12।।

राम नाम संकीर्तन, उर में करें प्रकाश।

राम-कृष्‍ण के नाम से, गूंज उठे आकाश।।13।।

नाम ज्ञान हो हृदय में, त्‍यागें हम बकवास।

गायें न फिल्‍मी गीत नित, करें न सत्‍यानाश।।14।।

सरल बनें, श्रद्धा करें, ज्ञान करे उर वास।

काम आयें पर हित सदा, व्‍यर्थ न जाये सांस।।15।।

मीरा सा मन होये जब, आवें कृष्‍ण मुरारि।

रहें न उर में छल कपट, कृपा करें त्रिपुरारी।16।।

सूरदास की भांति हो, तन्‍मय सारो गात।

अन्‍धकार घट जाये, सब उर में होये प्रकाश।।17।।

तुलसी सी सर्वत्र ही, शांति लखे संसार।

ज्ञान बढ़े अनुराग हो, होवे जगत उद्धार।।18।।

नारायण नर जगत के, रखें न उर में द्वेष।

10।। रहें परस्‍पर भ्रात सम, दूर होयें विद्वेष।।19।।

अंजनि पुत्र सहाय हों, कृपा करें श्रीराम।

ध्‍यान सदा उत्‍सुक करे, मुख पे सीताराम।।20।।

संकट मोचन नाम है, हनुमान बलवान।

उत्‍सुक ये करिये कृपा, करे राम को ध्‍यान।। 21।।

मर्यादा रघुनाथ हों, श्रद्धा मम बजरंग।

उत्‍सुक चादर पे चढ़े, राम नाम को रंग।। 22।।

रंग दे चोला शीघ्र ही, ऐसो लूं रंग रेज।

राम-राम जिव्हा कहे, मुख पे झलके तेज।।23।।

ध्‍यान नीर जमुना सहश, उर गंगा सम जान।

सरस्‍वती उर सुरत हों, प्रकटें राम सुजान।। 24।।

मन चंचलता त्‍याग दे, भजन मगन हनुमंत।

बिन प्रयास उत्‍सुक रहें, सदा हृदय भगवन्‍त।।25।।

रघुनंदन आराधना, हनुमन्‍त को ध्‍यान।

उत्‍सुक जपले नाम तू, निश्चित हो कल्‍याण।।26।।

राम नाम की लौ लगे, हृदय समायें राम।

उत्‍सुक निकसन लगेगो, मुख से सीताराम।। 27।।

नाम साधना करत ही, उर में होय प्रकाश।

दूर बिकार समस्‍त हों, निर्मल हो आकाश।।28।।

तुलसी सो उर होय मम, सूरा सौ हो ज्ञान।

राम-कृष्‍ण को रस चखे, यह उत्‍सुक अनजान।।29।।

काया कल्‍प कर दीजिये, होऊं न मैं बदरंग।

राम नाम को रंग चढ़े, हृदय होये बजरंग।।30।।

रामा कृपा से आओ मैं, तेरे द्वारे दौड़।

राम नाम रस हृदय में, दो बजरंग निचोड़।।31।।

कंठ गाये रघुनाथ गुण, करे ध्‍यान दिन रात।

राम राम जपता रहे, मिटे हृदय संताप।। 32।।

जग जननी हिय में बसो, करदो नष्‍ट बिकार।

उत्‍सुक अनुनय करत है, उपजें शुद्ध विचार।।33।।

गुरू को उत्‍सुक जान तू, वृहृमा विष्‍णु महेश।

ज्ञान जयोति गुढ़ देते हैं, पाप रहें नाहिं शेष।।34।।

नारायण संसार में, भ्रम छायो चहुं ओर।

माया में मन कैसो है, रहत नहीं इस ढोर।।35।।

सीता शक्ति उपासना, पूर्ण वृह्म है राम।

स्‍वीकारें उर प्रार्थना, सब की सीता राम।।36।।

राम नाम मुख से कढ़े, रहे न हृदय जुनून।

दो पाटन के मध्‍य पिस, नाज होये ज्‍यों चून।।37।।

शांति राख मन में सदा, क्‍यों करता है कोप।

उत्‍सुक उर में ही बसे, सुख, सम्‍मति, सन्‍तोष।।38।।

भेद भाव तजदें मनुज, सबको हृदय लगायें।

कोय एकता में सिमिट, गौरान्वित हो जायें।।39।।

नाम न बिसरे हृउय से, जब तक तन में सांस।

उत्‍सुक पर करिये कृपा राम, तिहारी आस।।40।।

सुमिरन कर तू राम को, समय न जाये बीत।

झंझट सारे त्‍याग दे, संभले तुरत अतीत।।41।।

भूत बखानत काहे को, का भविष्‍य को सोच।

राम नाम को आसरो, त्‍यागो उर संकोच।।42।।

कर्म करे, छल त्‍याग जो, सदा राम अनुकूल।

इतने राम उदार हैं, क्षमा करें वे भूल।। 43।।

राम राम रट बाबरे, कर अनगिन तू जाप।

राम बिराजें हृदय में उर उपजे नहिं पाप।। 44।।

दया दृष्टि मॉं सरस्‍वती, दयो बसंत बिखेर।

भई उमंग उत्‍पन्‍न उर, गद गद हृदय सुमेर।।45।।

हंस विराज मॉं लीजिये, सबको मुजरा आन।

प्रकृति झूम करती नमन, ज्ञान तुम्‍हारो ध्‍यान।।46।।

डाल डाल छाई घटा, पान पात पे रंग।

उपवन खिले सरोज हैं, छाओ बसंती रंग।।47।।

शस्‍य श्‍यामला लख मगन, जीव रहे हरवाये।

प्रीत समाये न उरन में, लेत हृदय लिपटाये।। 48।। ।

अंजलिबद्ध अंमोज उर, अवलंबन अवदान।

अवलंबिनी मॉं शारदे, अम्‍ल होये अम्‍लान।। 49।।

अच्‍छ, अछन, अक्षय, अक्षक, अक्षर अक्ष अकूत।

अभिनंदन मॉं शारदा, अनहित हों अवधूत।। 50।।

उत्‍सुक उत्‍कंठित उदधि, उपकृत उर उधार।

उरस सरस मॉं शारदा, लखे जगत उपकार।।51।।

निकल निराला की उठी, वाणी से चिंघार।

कवि कुल में नृसिंह थे, भरत रहें हुंकार।।52।।

अनाचार लख लेखनी, उगल उठी अंगार।

सूर्य कान्‍त के बज्र से, तब निकसे उद्गार।।53।।

छंद बंध सीमा तजी, कवि की अमर उड़ान।

उज्‍जवल शब्‍दावलि अमर, मिटती हृदय थकान।।54।।

कवि कुल में नक्षत्र थे, भाषा के थे संत।

महावीर गौतम हृदय, कविवर अनघ अनंत।।55।।

कंठ मर्म उर गर्जना, चहुं दिशि गूंजो घोष।

कविता से निर्झर बहो, तब कवि तेरो शेष।।56।।

महाशक्ति संघर्ष रत, महाप्राण ललकार।

झुका नहीं, टूटा नहीं, युग की करी गुहार।।57।।

उपकृम, उत्‍सुक समर्पित, गद गद लख उधान।

महाप्राण तुमको नमन, श्रद्धा सुमन प्रदान।।58।।

राम नाम की स्‍वाति हित, मन चातक अकुलाय।

दर्शन हित रघुनाथ के, व्‍याकुल रहो दिखाय।। 59।।

काली दुविधा दूर कर, विपदा सिगरी मेट।

उत्‍सुक को करदे अभय, गाये तिहारी भेंट।।60।।

श्रद्धा शक्ति अपार है, राख हृदय मजबूत।

दूर करें संकट सभी, श्रीराम के दूत।। 61।।

नाम जपे संसार में, अनहोनी टल जाये।

धैर्य राख उत्‍सुक तनिक, उर में मत अकुलाये।।62।।

जनमें एक हि राशि में, रावण और रघुनाथ।

चढ़ो शनीचर दाऊ पे, भई रावण की नाठ।। 63।।

अन्‍यायी की होत है, सदा जगत में हार।

जनम लयो श्रीराम ने, मैटो अत्‍याचार।।64।।

मत काहू से तू करे, मुख देखो व्‍यवहार।

कपट कटारी फेंक दे, राम नाम है सार।।65।।

मन मंदिर रघुनाथ को, खोल हृदय के द्वार।

आन विराजें राम जी, उत्‍सुक ले ओ पुकार।।66।।

क्षिप्रा में स्‍नान कर, पावन होये गात।

इच्‍छा पूरी कीजिये, उत्‍सुक शीष नवात।।67।।

चित्‍त करे चित्‍तन सदा, जिव्‍हा बोले राम।

बजरंगी की हो दया, सन्‍मुख सीताराम।। 68।।

मन मैं इच्‍छा एक है, करो पूर्ण बजरंग।

पूर्ण रूप से हृदय में, चढ़े राम को रंग।। 69।।

व्‍यर्थ समय को खोये मत, गमा न अपनी सांस।

देह मनुज की पाई है, काहे भरत उसांस।। 70।।

परम दयालू गणपती, मांगू देओ विवेक।

कृपावंत करिये कृपा, मिटे हृदय से द्वेष।।71।।

राधे मन में बस गई, अंखियन में नंदलाल।

उर वृन्‍दावन रासकर, कृपा करो गोपाल।।72।।

अर्जुन को गीता सुना, कृष्‍ण कियो उपकार।

मानव मात्र को देदिया, सुन्‍दर सद्व्‍यवहार।।73।।

भईं बाबरी गोपियां, ढूंढ रहीं गोपाल।

वृन्‍दावन में आन के, मोखन लूटो लाल।।74।।

संत भये तुलसी तभी, जपो राम को नाम।

सूरदास ने उर लखे, खेलत राधेश्‍याम।। 75।।

सांची कही कबीर ने, शंका दई मिटाय।

मैली चादर साफ कर, उर निर्मल हो जाये।।76।।

रस विभोर रसखन हो, गान लगे प्रभुनाम।

तन्‍मय हो निशि दिन जपें, उर में राधेश्‍याम।।77।।

कान्‍हां की सुन बांसुरी, मिटत हृदय के ताप।

राधे को जप बाबरे, कृष्‍ण आयेंगे आप।। 78।।

राम जपो, चिन्‍ता मिटे, निर्मल चादर होय।

एक पंथ दो काज हैं, उर में लेओ संजोय।।79।।

करत करत अभ्‍यास के उर आनंद समाय।

कर प्रयास हारे मती, राम दरश मिल जाय।। 80।।

राम दई, निर्मल हतीं, करदी मैली ओढ़।

राम नाम लीनो नहीं, मुख को लीनो मोड़।। 81।।

चुन चुन लाया शब्‍द मैं, पिरो बनाया हार।

ममतामयी मॉं शारदे, स्‍वीकारो उद्गार।।82।।

खड़ा भिखारी द्वार पर, दाता लेओ निहार।

गणपति बब्‍बा तुम करो, उत्‍सुक को उद्धार।।83।।

बार बार मुख आरसी, देखे से का होय।

सदविचार साबुन लगा, उर काहे ना धोय।। 84।।

तन पे व्‍यर्थ गुमान है, सांस रहे तक साथ।

सांस गई मांटी भई, कहा लगे गो हाथ।।85।।

कल कल हम करते रहें, पल को नहिं विश्‍वास।

ना जाने कब छोड़ के, चली जाये यह सांस।।86।।

मधुर बोल वाणी सदा, पीजा कड़़वे घूंट।

करें याद व्‍यवहार जग, सांस जायेगी छूट।।87।।

सम्‍मति उर में रख सदा, मानव सभी समान।

अल्‍ला ईश्‍वर एक हैं, विलगन हो इंसान।।88।।

मांगो नानक ने नहीं, जग में खालिस्‍तान।

त्‍याग करो गोविन्‍द ने, मांगो हिन्‍दुस्‍तान।।89।।

राम राम रटके भये, कितने मगन रहीम।

खून खराबा कर रहे, देखो नीम हकीम।।90।।

राम नाम उलटो जपो, भओ निशाचर संत।

बाल्‍मीक ऋषि बन गयो, कृपा करी भगवंत।।91।।

दया भीलनी पे करी, खाये झूठे बेर।

स्‍वयं झोंपड़ी पे गये, करी न प्रभु ने देर।।92।।

नाम जाप ही श्रेष्‍ठ है, रहे न मन में दोष।

दुविधा सारी दूर हों, हृदय पाये सन्‍तोष।।93।।

उत्‍सुक उर सों त्‍याग दे, तू मिथ्‍या अभिमान।

सांस गई, माटी भयो, तन पे व्‍यर्थ गुमान।। 94।।

तन सजाये इतरा रहा, कितना मद में चूर।

पिंजरा खाली होत ही, तुरत होत है धूर।।95।।

भ्रम में फंसकर हो गया, मन कितना मगरूर।

पांव न धरती पे रखे, कितनो चढ़ो शरूर।।96।।

उत्‍सुक माया में फंसो, मोह जगत जंजाल।

राम नाम जप मुक्‍त हो, तभी गलेगी दाल।। 97।।

मन में मानव जानता, मो समान कब और।

प्रतिस्‍पर्धा में फंसा, लगा रहा है दौड़।। 98।।

भेद भाव मत राख तू, मानव एक समान।

उत्‍सुक उपजे ज्ञान यह, समझो तभी सुजान।।99।।

जीत क्रोध को हो गये, साधू संत महान।

सकल त्‍याग दे कमना, करें राम को ध्‍यान।।100।।