Nafrat se bandha hua pyaar - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 7

जैसे ही सबिता की एसयूवी साइट के सामने गेट पर रुकी, सबिता ने ध्रुव को अपना आखरी निर्देश सुनाते हुए कहा, "सभी सीनियर इंजीनियर्स और मैनेजर्स जिन्हे हमने रखा था उन सभी को मेन मीटिंग हॉल में इक्कठा करो। कल उनकी ट्रेनिंग शुरू है उससे पहले मुझे उन सब से बात करनी है।"

"यस, मैडम।" ध्रुव ने जवाब दिया।

बीस मिनट बाद, सबिता गुस्सा होने लगी जब उसने ध्यान दिया की बीस मिनट हो जाने के बाद भी ध्रुव ने अभी तक उसे कॉल नही किया है की सब मीटिंग के लिए तैयार हैं और वो अब आ सकती हैं मीटिंग शुरू करने के लिए। तभी ध्रुव सबिता के ऑफिस में पहुंचा। वोह कुछ उलझा हुआ परेशान सा लग रहा था।

"इतनी देर क्यों हुई?" सबिता ने बॉस के अंदाज़ में पूछा।

"मैडम, वोह सभी देव सिंघम के साथ हैं। उन सभी की सुबह से ही अपनी बाकी की टीम के साथ देव सिंघम मीटिंग ले रहें हैं। और उन्होंने कहा है की अगर हो सके तो आप भी उन्हे उस मीटिंग में ज्वाइन कर लें।"

"आई सी।" सबिता ने शांति से ही जवाब दिया।
ध्रुव चुप रहा उसने आगे कुछ नहीं कहा।

"जैसे ही उसकी मीटिंग खतम हो जाए मुझे आके बताना मुझे उससे अकेले में बात करनी है।"

"ठीक है, मैडम।"

सबिता को गुस्सा आने लगा था। वोह देव सिंघम अपने आप को क्या समझता है? बहुत कुछ सहा था सबिता ने जो वोह आज ऐसी थी। वोह ऐसे चुप नही बैठ सकती थी। उसको ये बिलकुल बर्दाश्त नहीं हो रहा था की कोई ऐरा गैरा आके उससे उसका कंट्रोल उसकी पावर उसका एहंकार को छीन ले जाए। देव सिंघम को उसके किए का जवाब जरूर मिलेगा और जल्द ही। देव सिंघम की मीटिंग दो घंटे और चलती रही उसके बाद ही उसने प्रजापति के इंजीनियर और मैनेजर्स को छोड़ा। सबिता एक ट्रांपोर्टेशन कंपनी से बात कर रही थी जब उसने फोन रखा तो उसे बाहर से कुछ आवाज़ें सुनाई पड़ी जिससे उसे पता चला की देव अपने ऑफिस में वापिस आ गया है।
तुरंत ही अपनी सीट से खड़ी हो गई और सिंघम के ऑफिस की तरफ चल पड़ी। उसने बस एक बार ही सिंघम के ऑफिस का दरवाज़ा खटखटाया और बिना उसका जवाब सुने तुरंत अंदर घुस गई।
सिंघम अभी भी सिर नीचे किए अपने हाथ में पकड़े डॉक्यूमेंट्स को पढ़ रहा था।
"मुझे लगा, जैसे ही तुम आ जाओगी, मीटिंग में मुझे ज्वाइन करोगी। क्या मेरा भेजा हुआ मैसेज तुम्हे मिला नही?" उसने यूहीं जवाब दिया।

सबिता कुर्सी पर बैठ गई और देव के बिखरे हुए बालों की तरफ देखने लगी। "आइंदा से कभी भी मेरी परमिशन के बिना मेरे आदमियों को अपने ऑडर्स मत देना।" उसने नरमी से धमकाते हुए कहा।

देव ने अपनी नज़रे ऊपर की और एकटक सबिता की ओर देखने लगा। "तुम्हारे आदमी?"

"हां। मेरे आदमी। प्रजापति के आदमी और वोह भी जो मैने हायर किए थे प्रजापति की तरफ से।"

देव अपनी पीठ को चेयर से टिका कर बैठ गया। "अब वो सिर्फ तुम्हारे ही आदमी नही है। खास कर के तब जब वो साइट पर काम कर रहें और हमारी कंपनी से सैलरी ले रहें हैं।" उसने आराम से जवाब दिया।
"प्रजापति हो या सिंघम दोनो ही यहां एक साथ काम करते हैं। और उन्हें जल्द से जल्द ट्रेनिंग की जरूरत है अगर हमे हमारा काम समय पर पूरा करना है तोह।"

सबिता की भौये सिकुड़ गई। वोह जानती थी आखिर सिंघम ठीक ही तो कह रहा था। उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा था। अब उसके पास कुछ कहने के लिए नही बचा था। आखिर बच्चों जैसी हरकत ही तो की थी उसने सिंघम के सामने।

"फाइन! मीटिंग किसलिए थी? और मुझे पहले से ही क्यों नही बताया गया?

"जैसा तुम पहले से ही जानती हो सेनानी की वजह से हमें बीते दिनों कितनी परेशानी झेलनी पड़ी है। वोह आए दिन हम पर हमला करते रहते है। में चाहता था की अपने सभी मैनेजमेंट स्टाफ को समय रहते अपनी और बाकी की सुरक्षा के लिए कुछ हिदायतें दे दूं ताकि कल जब उनकी ट्रेनिंग शुरू हो तो कोई दिक्कतें न आएं।"

"हम्मम!"

"मैने उन्हे ये भी कहा है की उनमें से कोई न कोई एक हर समय निगरानी में रहेगा ताकि कोई मुसीबत आए तो पहले ही पता चल सके। और जब भी शिफ्ट बदले तो सभी लोगों को अच्छे से चेक करने के बाद ही अंदर आने दे।"

"मैं भी जितना हो सके उतना यहां सब कुछ चैक करने के लिए रहूंगी।"

"गुड! मैं तुम्हे मेरा शेड्यूल भिजवा देता हूं। कभी कभी मुझे काम से बाहर शहर जाना पड़ सकता है उस वक्त मुझे यहां तुम्हारी जरूरत पड़ेगी। में तुम्हे पहले ही इनफॉर्म करवा दूंगा।"

"फाइन।" सबिता ने कहा

फिर देव ने आगे कुछ नहीं कहा वोह बस अब सबिता की तरफ चुपचाप देख रहा था। सबिता को उसकी नज़रे अपने ऊपर पड़ती हुई ऐसी लग रही थी जैसे वो उसे खुद अपने हाथों से छू रहा हो। जिससे सोच कर ही उसके बदन में अजीब सी सरसराहट पैदा होने लगी।

"व्हाट? सबिता ने देव को अपनी तरफ देखता पा कर पूछा।

देव जो एकटक सबिता की तरफ देख रहा था उसके टोकने से इधर उधर देखने लगा और फिर कहा, "बस सोच रहा था कि इन दो घंटों के भीतर आपने क्या क्या नुकसान किया होगा जब आपको लगा कि मैंने आपके आदमियों को आदेश देने के लिए मीटिंग कर रहा हूं।"

"मैंने ऐसा कुछ नही किया।" सबिता से बेफिक्री से कहा।
"में तुम्हारी तरह, बिना वजह जाने भड़कती नही हूं।"

"ओह प्लीज़!" देव ज़ोर से हस पड़ा।

"तो जो नुकसान तुमने मेरी प्रॉपर्टी का किया था वो बस यूंही ऐसे ही किया था।" देव को उसकी बात का बिलकुल भी यकीन नही हो रहा था।

"हां.!" सबिता ने कुर्सी पर ठीक से बैठते हुए कहा।
"में जानती थी वो तुम्हारी पर्सनल प्रॉपर्टी है ना की तुम्हारे लोगों की।" सबिता ने उसे घूरते हुए कहा।
"या तो तुम्हारी प्रॉपर्टी बर्बाद करती या तुम्हे जान से मार देती। तुम्हे मेरा शुक्र गुज़ार होना चाहिए की मैने प्रॉपर्टी बर्बाद करना चुना।" सबिता ने डेविल स्माइल देते हुए कहा।

"तुम्हारी धमकियां भी बहुत प्यारी है, प्रजापति।" देव ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
"मुझे लगता है तुम्हारी जिंदगी में जीने का कोई मकसत नही है। ये कितनी दुख की बात है ना की तुम अपना कितना वक्त मेरे बारे में सोचते हुए बर्बाद करती हो। तुम हर रात करती क्या हो? क्या बिस्तर पर लेटते वक्त बस तुम मुझे वापिस पाने के सपने देखती रहती हो? उसने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी हसीं ऐसी थी जैसे कोई बहुत गहरी बात कही हो।
"जिन भी लड़कियों को मैंने डेट किया है, मुझे लगता है, वोह भी मेरे बारे में इतना नही सोचती होंगी जितना की तुम सोचती हो। और क्या क्या सोचती हो तुम मेरे बारे में रात को?

सबिता उसकी बातों को सुन कर अंदर ही अंदर गुस्से से भर गई लेकिन बाहर से अपने आप को शांत दिखाने की कोशिश कर रही थी।
"मेरे मक्सत के बारे में तुम्हे चिंता करने की जरूरत नही है और ना ही इसकी की में रातों को किसके बारे में सोचती रहती हूं, सिंघम।" उसकी आंखे गुस्से से लाल हो गई लेकिन उसने अपने चेहरे पर मुस्कान बनाई रखी।
"तुम्हारा भाई कब वापिस आ रहा है इस प्रोजेक्ट को वापिस संभालने के लिए," उसने यूहीं पूछा। जैसा वोह जानती थी की ज्यादा देर तक अपने गुस्से को नही छुपा पाएगी इसलिए उसने बात पलटनी चाही।

"गुड। तुम्हे क्या मतलब इससे की वोह कब वापिस आ रहा है।" देव ने भुनभुनाते हुए कहा। "और अगर वापिस आ भी जाए तो भी वापिस इस प्रोजेक्ट को नही संभालेगा। तो उसके साथ काम करने या उसे लुभाने के सपने देखना बंद करदो। तुम पहले से ही जानती हो की उस कॉन्ट्रैक्ट में क्या लिखा है और तुम्हे किसके साथ काम करना है जब तक सब सैट अप पूरा नहीं हो जाता।" देव ने उसे घूरते हुए कहा।
"तुम्हे सिर्फ मेरे साथ काम करना पड़ेगा। " देव ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।
"अगर तुमसे ये सब हैंडल नही हो रहा है, तो किसी और को प्रजापति इस प्रोजेक्ट के लिए रख सकते हैं लेकिन उसे भी मेरे साथ ही काम करना होगा। समझी तुम?" उसने गुस्से से कहा।

सबिता अच्छे से महसूस कर सकती थी की इस वक्त देव कितना गुस्से में है। उसने अपना सिर झटका और कहा,
"फाइन। में कल सुबह जल्दी आ जाऊंगी ताकि ट्रेनिंग की देखरेख कर सकूं। अपना शेड्यूल ध्रुव को भिजवा देना।"

इसपर देव ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की ना ही कोई जवाब दिया। वोह बहुत ही ज्यादा गुस्से में लग रहा था ये जान कर वोह तुरंत उठ खड़ी हुई और जाने लगी। लेकिन जाते हुए भी सबिता, देव की गुस्से से लाल नज़रों का ताप महसूस कर रही थी अपने पीछे।
जब वो अपने ऑफिस में पहुंची, तो अपने हाथों को आपस में रगड़ने लगी क्योंकि जब भी देव उसके आसपास होता था तो सबिता के रोंगटे खड़े कर देता था।
भले ही वोह उससे नफरत करती थी लेकिन दोनो के बीच कुछ तो ऐसा था जो बढ़ता ही जा रहा था जब भी वो दोनो मिलते थे या बातचीत करते थे। ये सबिता भी समझ भी समझ नही पा रही थी आखिर क्यों वोह इतनी विचलित हो जाती थी उसके आसपास होने से। लेकिन इसका कोई हल नज़र नही आ रहा था, उसने बहुत कोशिश की इन सब एहसासों को नजरंदाज करने की। तभी उसे अपने ऑफिस में कुछ आवाज़ें आने लगी। ये आवाज़ें देव की थी वो अपने ऑफिस में किसी पर चिल्ला रहा था और उसकी आवाज़ सबिता अपने ऑफिस में अच्छे से सुन पा रही थी क्योंकि दोनो रूम एक साथ जुड़ा हुआ था। वोह अभी भी गुस्से में था और सबिता ये अच्छे से जानती थी की वोह क्यों गुस्सा है। देव सिंघम को लगता था सबिता अभी भी उसके जान से भी कीमती भाई अभय पर अपनी नज़र गड़ाए हुए है। आखिर सबिता ने ही उसे ऐसा सोचने पर मजबूर किया था। और उसे ऐसा यूहीं नही लगता था बल्कि इन बातों में कही ना कहीं सचाइ थी। एक समय था जब वो सच में अभय सिंघम से शादी करना चाहती थी लेकिन उसके पीछे कई वजह थे। और वो अपने प्लान में जीत भी जाति अगर देव सिंघम ने उसे रोका नहीं होता। उस रात की याद सबिता की आंखों में तस्वीर की तरह घूमने लगी और उन सब को ना याद करने की कोशिश करते हुए उसकी मुट्ठी भींच गई। हालांकि उस वक्त वो देव से हार गई थी, लेकिन फिर भी उस रात की बात याद आते ही उसे अजीब सी बेचैनी होने लगी थी। उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था। उसके दिलों दिमाग में बस उस रात की यादें छाई हुई थी। उसे समझ नही आ रहा था की ये उसका गुस्सा है या कुछ और जिसे वो समझ नही पा रही है।


























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