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तू मेरी जिंदगी हैं - भाग - 7

"तू मेरी ज़िन्दगी है" के पाठको का एक बार फिर स्वागत है।

तू मेरी ज़िन्दगी हैं
भाग - 7

विशाल अपने कमरे में बैठा है।शामहो चुकी है।पर उसने कमरे की बत्ती नहीं जलाई ।वो खुशी के बारे में ही सोच रहा था। उसे खुशी से पहली मुलाक़ात आज भी याद थी।वो खुशी की यादों में खो गया।खुशी बैंक में अपना अकाउंट खुलवाने अाई थी।पहली मुलाक़ात में ही दोनो में अच्छी दोस्ती हो गईं। मुलाकाते बढ़ने लगी ।

एक दिन विशाल ने पूछा - खुशी, मुझसे शादी करोगी?

अभी तो हम एक दूसरे को ठीक से जानते भी नहीं है....खुशी ने मुस्कुराकर जवाब दिया।

मेरे परिवार में और कोई नहीं हैं।तुम भी अकेली हो।हम दोनों ही अच्छी नौकरी कर रहे है।और क्या जानना है।...विशाल ने खुशी का हाथ पकड़ते हुए कहा।

पर हमे मिले ज्यादा समय भी नहीं हुआ।थोड़ा समय और साथ बिताते हैं...खुशी बोली।

कल मेरा बर्थडे है,कल की छुट्टी ले लो।कल लोंग ड्राइव पे चलते है।पूरा दिन बाहर बिताएंगे तो एक दूसरे कि और जान पाएंगे...विशाल ने नया प्रस्ताव रखा।

तुमने पहले क्यों नई बताया कि कल तुम्हारा बर्थडे है।मै कोशिश करती हूं कि कल की छुट्टी मिल जाए।

ओह कम ओंन खुशी..तुम कल आ रही हो।कोई बहाना नहीं चलेगा।

ओके बाबा,ठीक है ।कल मुझे घर से पिक कर लेना।

अगला दिन दोनो ने साथ बिताया।वो दिन उनकी ज़िंदगी का सबसे सुंदर दिन था।

क्या सोचा तुमने?शाम को डिनर करते हुए विशाल ने पूछा।

किस बारे में?

शादी के बारे में ....और क्या

अच्छा वो।मै तुम्हे सच सच बताती हूं,कॉलेज के दिनों में मेरी एक लड़के से अच्छी दोस्ती हो गई थी।हम एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे।पर तब हम दोनों ही अभी पढ रहे थे और हमारा फोकस हमारे केरियर पर ज्यादा था।बात कुछ आगे बढ़ती उस से पहले परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी की मै अचानक वो शहर छोड़कर आ गई।फिर उस से कभी मुलाक़ात नहीं हुई।पर मुझे आज भी उसका इंतजार है...खुशी ने खुलकर अपने दिल की बात बताई।

तुमने वापिस लखनऊ जाकर उस से मिलने की कोशिश नहीं की।

मै गई थी पर वो भी लखनऊ छोड़कर किसी दूसरे शहर जा चुका था।उसका कोई पता नहीं मिला।...खुशी ने गहरी सांस लेकर कहा।

तो क्या पूरी ज़िन्दगी उसका इंतज़ार करना है?
नहीं ,ऐसा भी नहीं है।

क्या तुम मुझे पसंद नहीं करती,?मुझमें कोई कमी है?मै भी तो तुम्हे बहुत पसंद करता हूं।

हां,मै जानती हूं।तुम मुझे बहुत प्यार करते हो।तुम बहुत अच्छे इंसान हो और पर मै उसे भूल नहीं पा रही।

तो फिर मै इनकार समझू।

नहीं,ऐसा भी नहीं है।तुम थोड़ी और कोशिश करो तो मै मान भी सकती हूं...खुशी ने शरारत से कहा।

फिर ठीक है, मै तुम्हारे लिए ये रिंग लाया हूं...विशाल ने जेब से रिंग का डिब्बा निकाला।अगर तुम पहनती हो तो ठीक है..नहीं तो मैं...
कहते हुए विशाल ने रेस्तरां में चारो ओर देखा और बोला....नहीं तो मै उस रेड ड्रेस वाली लड़की को प्रपोज कर दूंगा।विशाल ने एक अकेले बैठी लड़की की तरफ इशारा किया।

मैं तुम्हे पिटते हुए नहीं देख सकती।इस लिए तुम्हारा प्रपोजल ऐक्सेप्ट करती हूं...खुशी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।

विशाल ने झट से खुशी को रिंग पहना दी।
तभी बाहर किसी गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ अाई और विशाल यादों से बाहर आ गया।

खुशी तुम क्यों मुझे छोड़ गई।किसी की क्या दुश्मनी थी तुमसे?....कौन है वो जिसने तुम्हारी जान ली है?एक बार पता चल जाए कौन है वो बदमाश।मै उसके सारे खानदान को खत्म कर दूंगा।कौन है खुशी का कातिल?कौन........कौन

विशाल के दिमाग में ये सवाल हथौड़े की तरह बज रहे थे।

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कहानी अभी जारी है.......

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लेखक - मनीष सिडाना
m.sidana39@gmail.com

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