Ek bund Ishq - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

एक बूंद इश्क - 13

१३.अनोखा मिलन


सात दिन बाद आखिर जन्माष्टमी का दिन आ ही गया। अपने कमरे में बैठा रुद्र अपनें हाथों में फोन लिएं बैठा था। पीले कुर्ते और सफेद चुड़ीदार में रुद्र काफ़ी हेंडसम लग रहा था। लेकिन उसके चेहरे पर असमंजस नज़र आ रही थी। वह अपने फोन पर अपर्णा का नंबर निकालकर बैठा था और इसी दुविधा में था कि अपर्णा को फ़ोन करें या ना करे? पीछले सात दिन से वह यहीं दुविधा में चल रहा था।
रुद्र फोन हाथों में थामें बैठा था उसी वक्त विक्रम ने आकर कहा, "तू यहां क्या कर रहा है? नीचे सब तेरा इंतज़ार कर रहे है।"
"आप चलो मैं आता हूं।" रुद्र ने कहा तो विक्रम चला गया। उसके जाने के बाद रुद्र ने अपना फ़ोन जेब में रखा और नीचे चला आया। नीचे सब अपने-अपने काम में व्यस्त थे। रुद्र अपनें दोस्तों के साथ घर से बाहर चला आया। जहां गार्डन में मटकी फोड़ने का इंतज़ाम करना था। रुद्र अपनें दोस्तों के साथ मिलकर उसकी तैयारी में लग गया। उसकी एक नज़र काम में और एक नज़र दरवाज़े पर थी। उसे अपर्णा के साथ-साथ दादाजी का भी बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार था।
कुछ देर बाद जब मटकी लग गई तभी दादाजी आएं। रुद्र ने उन्हें देखा तो दौड़कर उनके गले लग गया। दादाजी ने उसके बालों में हाथ घुमाते हुए कहा, "कैसे हो बेटा?"
"मैं बिल्कुल ठीक हूं। आप कैसे है दादाजी?" रुद्र ने बड़े ही प्यार से पूछा।
"मैं भी बिल्कुल ठीक हूं बेटा! अच्छा सुन विक्रम ने बोला आज़ कोई खास तौर पर मुझसे मिलने आ रहा है। कौन है वो?" दादाजी ने पूछा तो रूद्र तुरंत सब समझ गया। वो कुछ कहता इससे पहले घर के सभी लोग बाहर आ गए। सब ने दादाजी के पैर छूकर उनके आशीर्वाद लिए। जब विक्रम पैर छूकर आया तो रुद्र उसे साइड में लेकर आ गया और पूछने लगा, "आपने दादाजी को क्या बताया? अगर अपर्णा नहीं आई तो हम उन्हें क्या कहेंगे?"
"तुम्हारा दिल क्या कहता है? वो आएंगी या नहीं?" विक्रम ने रुद्र का हाथ पकड़कर उसके दिल पर रख दिया। अभी रुद्र का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। उसी वक्त उसकी नज़र नियति पर पड़ी। उसे देखते ही उसने अपनी आंखें बंद कर ली। रूद्र खुद उलझन में था कि अपर्णा आएगी या नहीं। उसी वक्त उसके कानों में विक्रम की आवाज़ पड़ी, "अरे अपर्णा आओ ना।"
रुद्र ने फटाक से अपनी आंखें खोली। उसकी नज़रों के सामने पीले रंग का घेरदार ड्रेस पहने अपर्णा खड़ी थी। बाहर चल रही हवाओं की वजह से उसके कानों के झुमके शोर कर रहे थे। जिसे सुनते ही रुद्र के दिल की धड़कन नोर्मल हो गई। अपर्णा अंदर आने में थोड़ी झिझक रही थी। तो नियति ने उसके पास जाकर कहा, "सब घर के और ऑफिस के ही लोग है। अंदर आ जाओ चलो।" नियति उसका हाथ पकड़कर उसे अंदर ले आई। वह उसे लेकर अंदर चली गई। बाकी सब भी अंदर चले गए। तान्या तो कब की दादाजी को लेकर अंदर आ चुकी थी।
रुद्र को कहीं खोया हुआ देखकर विक्रम ने उसके पास आकर कहा, "कहां खो गए जनाब? अब तो वो आ गई। चलो अंदर चलकर उसे दादाजी से मिलवा दो।"
विक्रम की बात सुनकर रूद्र जैसे नींद से जागा। वह विक्रम के साथ अंदर आ गया। दादाजी ने उसे देखा तो उसे इशारा करके अपने पास बुलाया। रुद्र जैसे ही दादाजी के पास आया वह पूछने लगें, "तो सीईओ रुद्र अग्निहोत्री! ये हमारे घर में नई लड़की कौन है? कहीं आपने हमसे पूछे बिना कोई कांड तो नहीं कर लिया ना?"
"नहीं दादाजी! ऐसा कुछ नहीं है। लेकिन आप चाहें तो हो ज़रूर सकता है।" रुद्र ने मुस्कुराकर कहा तो दादाजी भी मुस्कुराने लगा। उन्होंने अपर्णा को देखा तो अपर्णा उन्हें ही देख रही थी। रुद्र उसके पास गया और उसे दादाजी के पास ले आया और दादाजी से कहने लगा, "ये अपर्णा भारद्वाज है। हमारी कंपनी में नई आई है। इसके दादाजी का स्वभाव बिल्कुल आपके जैसा था। वो अब इस दुनिया में नहीं रहे तो मैं इसे आपसे मिलवाने ले आया।"
दादाजी भी अपर्णा के बारे में जानकर उसे अपलक नजरों से देखने लगे। दोनों एक-दूसरे को ऐसे देख रहे थे। जिससे पूरा परिवार सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर ये दोनों एक-दूसरे को ऐसे क्यूं देख रहे है? आखिर में जब रुद्र से इंतजार ना हुआ तो उसने अपर्णा से ही पूछ लिया, "तुम दादाजी को ऐसे क्यूं देख रहे हो?"
अपर्णा ने रुद्र के सवाल का जवाब ना देकर दादाजी से पूछा, "आपका नाम क्या है?"
"रामाकृष्णन विश्वनाथ अग्निहोत्री!" दादाजी ने कहा।
दादाजी का नाम सुनकर अपर्णा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। उसने खुशी से भरकर पूछा, "आप किसी मोहनदास हरिशंकर भारद्वाज को जानते है?"
मोहनदास हरिशंकर भारद्वाज नाम सुनते ही दादाजी की आंखों के सामने कुछ दृश्य किसी फिल्म की रील की तरह चलने लगे। उनकी आंखों में नमी और होंठों पर हल्की मुस्कान तैर गई। अब तो सभी लोग ये जानने के लिए उत्सुक थे कि अपर्णा और दादाजी के बीच आगे क्या बात होनेवाली है? सभी की उत्सुकता के बीच अपर्णा ने एक फोटो निकालकर दादाजी के हाथों में दी। जिसमें दादाजी और उनके साथ एक और बूढ़े दादा थे। जो शायद अपर्णा के दादाजी थे। उन्होंने एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखा हुआ था और दोनों के ही चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी। जिससे मालूम पड़ता था कि दोनों के बीच कोई तो रिश्ता है।
दादाजी ने वह फोटो देखी तो अपर्णा के सिर पर हाथ रखकर पूछा, "तुम मोहन की पोती हो?"
अपर्णा ने हां में सिर हिलाया और दादाजी ने तुरंत उसे अपने गले लगा लिया। उतनें में रणजीत जी ने आकर दादाजी से पूछा, "क्या ये मोहनदास भारद्वाज वहीं है जिसके बेटे के साथ आपकी बहुत सालों पहले लड़ाई हुई थी और उनकी वजह से आपको अपने बचपन के दोस्त को छोड़ना पड़ा था?"
"हां, ये उसी मोहनदास के बेटे अखिल की बेटी है। इसके जन्म के दो महिनों बाद ही मेरी इसके बेटे से लड़ाई हों गई थी। क्यूंकि इसका बाप और माँ दोनों ही इस बच्ची को अपनाने से इन्कार कर रहे थे। तब मैंने दोनों को समझाया तो उन्होंने मेरी बहुत बेइज्जती की। जो मेरे दोस्त मोहन से बर्दाश्त ना हुआ और उसने उस दिन से मुझसे बात करना छोड़ दिया। ताकि उसके परिवार की वजह से आगे चलकर मेरी कभी बेइज्जती ना हो।" दादाजी ने भरी आंखों से कहा।
"आप जब उस दिन चले गए। उसके बाद से दादाजी काफी दिनों तक आपके फोटो के आगे रोते और बातें करते रहे। मम्मी-पापा की लड़ाई तो कभी खत्म नहीं हुई। उन्होंने मुझे कभी नहीं अपनाया। लेकिन दादाजी मेरा बहुत ख्याल रखते थे। लेकिन वह भी कितने वक्त तक अपनी बूढ़ी हड्डियों को मजबूत बनाए रखते? एक दिन जब पापा और मम्मी ने घर में डिवोर्स की बात की उसी दिन उन्हें अटैक आ गया और वह हमें छोड़कर चले गए।" अपर्णा ने कहा उतने में उसकी आंखों से आंसु बहने लगे। दादाजी ने उसे गले लगा लिया और प्यार से उसके माथे पर अपना हाथ फेरते हुए उसे शांत करने लगे।
रूद्र ने ये सब देखा तो उसे भी काफ़ी दुःख हुआ। लेकिन साथ ही इतने सालों बाद दादाजी अपने दोस्त की पोती से मिल पाए। इस बात की उसे खुशी भी थी। पूरा परिवार और ऑफिस का स्टाफ सभी लोगों की आंखें दादाजी और अपर्णा की बातें सुनकर भर आईं थीं। किसी को कहा पता था कि सब पर गुस्सा करनेवाली और छोटी-छोटी बातों पर कितना कुछ बोलने वाली अपर्णा के दिल में इतना दर्द छिपा होगा।
कुछ देर बाद जब अपर्णा रोकर शांत हुई तो दादाजी ने कहा, "वैसे तुम्हारे पास ये फोटो कैसे आई? ये तो मैंने और मोहन ने बनारस में खिंचवाई थी। जो मोहन से कहीं खो गई थी।"
"जब दादाजी ने आपसे बात करना छोड़ दिया। तब उन्होंने बहुत मुश्किल से ये फोटो ढूंढी थी। जो चाची ने अनजाने में स्टोर रुम में भैया के खिलौनो के साथ रख दी थी। दादाजी इसी फोटो के साथ बातें किया करते थे। उनके जाने के बाद चाची ने ये फोटो संभालकर रखी थी। जब मैं बड़ी हुई तब उन्होंने मुझे एक सोने की चेन और ये फोटो दी थी और कहा था कि 'ये दादाजी के सब से ख़ास दोस्त मेरे लिए देकर गए थे।' तब से मैंने इस फोटो को संभालकर रखा है और उस चेन को भी हर वक़्त पहने रखती हूं।" अपर्णा ने अपने गले में पहनी हुई चेन दादाजी को बताई।
दादाजी ने फिर एक बार प्यार से अपर्णा के माथे पर अपना हाथ रख दिया। आज़ अपर्णा को ऐसा लग रहा था जैसे उसे अपनें दादाजी मिल गए। वो कहते है ना कि जब हम से हमारा सब छीन जाएं तब कोई ऐसा मिलता है। जो हमसे जो भी छिन गया उसकी सारी कमी पूरी कर देता है। रुद्र और दादाजी भी अपर्णा के लिए वैसी ही मायने रखते थे। जब अपर्णा के मम्मी-पापा उसके दादाजी सब उसका साथ छोड़कर चले गए। तब अपर्णा को रुद्र मिला जिसने अपर्णा को अपने दादाजी से मिलवाया और रुद्र के दादाजी में अपर्णा को अपने दादाजी मिल गए।


(क्रमशः)

_सुजल पटेल