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कोट - १५

कोट-१५

अभी-अभी दिन खुला है
स्नेहिल चिड़िया डालियों पर फुदक रही है।आसमान की नीलिमा मोहक लग रही है।
मैंने अपने दोस्त से कहा," मैंने सुबह सपने में भगवान श्री राम और श्रीकृष्ण देखे।" उसने कहा ऐसा कैसे हो सकता है,हो ही नहीं सकता है। पूजा-पाठ मैं करता हूँ और दिखायी तुम्हें देते हैं। तुम तो रोज मन्दिर भी नहीं जाते हो।
फिर मैंने कहा ईजा-बाज्यू( माता-पिता) भी दिखे थे। तो बोला हाँ मुझे भी दिखी ईजा।लगता है पितर नाराज/क्रोधित हैं। मैंने बोला नाराज क्यों होंगे! उन्हें दिखना भी अच्छा है।उसने बोला लोक मान्यता यही है।
उसने कहा चलो बैठो देखते हैं हमें हमारा "डीएसबी, नैनीताल" कितना याद है, तुम्हारा कोट बहुत याद आता है,थोड़ा ढीला, बहुत आकर्षक। उसने कहा फेसबुक पर कालेज की मैडम को मैंने लिखा," मैडम, आपका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था और आप बहुत सुन्दर थीं।" मैडम ने लिखा," पढ़ाई का भी कुछ याद है क्या?" मैंने पूछा तुमने क्या उत्तर दिया? वह बोला, बहुत देर तक सोचता रहा फिर लिखा," मैडम, गुरुत्वाकर्षण त्वरण( g का मान) निकालना, विद्युत,डायोड,स्पेक्ट्रोस्कोपी के प्रयोग, ध्वनि की गति निकालना,आप लोग जहाँ बैठते थे, उसके बायीं ओर भी कुछ प्रयोग करते थे। पैंतालीस साल से अधिक हो गये हैं इसलिए ठीक-ठीक याद नहीं आ रहा है।"
"g" गुरुत्वाकर्षण त्वरण का मान पृथ्वी की सतह से ऊपर और नीचे जाने में कम हो जाता है। जब कक्षा में यह पाठ पढ़ाया जा रहा था तो मैंने पूछा था," जब पृथ्वी पर एक तरफ से दूसरी ओर छेद कर दें तो दूसरी ओर g कितना रहेगा? मुझे डाँट पड़ी थी," तुम्हारा प्रश्न अप्रासंगिक है।" बाद में पता चला, यह क्लास जिन्होंने हमारी ली थी,उनकी किसी कारण से मृत्यु हो गयी थी। बहुत दुख हुआ, यह सुनकर।
निर्जीव वस्तुओं के बीच आकर्षण गणितीय सूत्रों से बँधे होते हैं लेकिन सजीव संसार में यह नियम लागू नहीं होता है। ए.एन. सिंह हाँल को जाते समय एक वृक्ष था जिसमें जब कौवा बोलता था तो परीक्षा में डर घर कर जाता था,उसकी कर्कश आवाज को सुनकर। आमतौर पर घरों के पास कौवा काँव-काँव करता है तो अतिथि आने की संभावना जतायी जाती है।
कुमाऊँ में कौवे की महत्ता उत्तरैणी के त्योहार( मकर संक्रांति) को होती है। त्योहार के दूसरे दिन सुबह विभिन्न पकवान जैसे घुघुत, बड़े आदि खाने के लिए उसे आमंत्रित किया जाता है और अपनी इच्छायें व्यक्त की जाती हैं। कौवे को पितरों से भी जोड़कर देखा जाता है,ऐसी मान्यता है। अपशकुन भी उसके माथे पर डाल दिये जाते हैं।
उस समय के स्मृति अवशेषों में लड़के,लड़कियां, स्थान, गुरुजन और वह झील जहाँ प्यार डूबकर निकलता है,हैं।
हम बी.एसी. में, समूह में क्लास कट कर, राजभवन ( गवर्नर हाउस) घूमने जाया करते थे,यह एक सीमित प्रक्रिया थी तब। प्राकृतिक सौन्दर्य का अवलोकन, कक्षा से बाहर आनन्द की अद्भुत खोज हुआ करती थी। यह भी वैज्ञानिक प्रयोग ही हुआ करता था जो सजीव उर्जा का संचार मन में करता था।
मेरे दोस्त ने एक उदासी भरी सांस ली। उसने कहा ," परीक्षा में उसकी सीट हाँल में थी,मेरी ए. एन. सिंह हाँल में। उस दिन कोई बात नहीं हुयी। बाद में पता लगा कि उसका पेपर छोड़ कर घर गमन हो चुका था।उस दिन मैं बहुत विचलित रहा और मल्लीताल कैपिटल सिनेमा हाँल में फिल्म देखने चला गया।फिल्म में भी मन नहीं लगा। अगली परीक्षा चार दिन बाद थी।"
मैंने उससे कहा," प्यार की उड़ान लम्बी होती है
और बहुत बार अधमरा कर देती है।"
उसने कहा," मेरी हँसी उड़ा रहा है क्या?" मैंने कहा नहीं, यथार्थ बोल रहा हूँ।
उसने कहा कुछ और कह मैंने कहा युद्ध पर है-
"कटते कटते कट जायेंगे
बँटते बँटते बँट जायेंगे,
हमारे प्यारे बंधु-बांधवो
महाभारत को मत दोहराओ।"
उसने कहा," कुछ स्नेह-प्यार पर सुना। मैं बोला-
"प्यार के आँसुओं में ढला
मेरा पुराना चित्र है सलोना,
प्यार के कदमों से बना
यह राह का कोना है सोना।

मिलने का बहाना है प्यारा
बिना नींद के सपना है पूरा,
बिना शब्दों के गुंजन है न्यारा
बिना चिट्ठी केआमंत्रण है सारा।"

* महेश रौतेला