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कोट - १

कोट-१
अच्छी-खासी ठंड है। मैं पैतालीस साल बाद उस मकान में हूँ जहाँ अपने विद्यार्थी जीवन में रहता था। अलमारी खोलता हूँ तो उसमें टका मेरा कोट पड़ा है। कुछ बेतरतीब सी लिखी कविताओं की एक कापी भी है। मैं कोट को निकालता हूँ।वह मुझे जादुई एहसास देता है। मैं उसे पहन लेता हूँ और अतीत के साये में घूमने लगता हूँ। कोट कहीं-कहीं पर हल्का सा फट चुका है। लेकिन उसके साथ एहसास जीवन्त लग रहे हैं। इतने में मेरा हाथ कोट की जेब में जाता है और एक कागज का पन्ना हाथ में आता है। मैं कागज को पढ़ने लगता हूँ।
" हम एक साल से एक-दूसरे से परिचित हैं। लेकिन मन की बात एक दूसरे से कह नहीं पाये हैं।---।"
कोट से हल्की सी गंध आ रही है लेकिन अतीत उसमें डूबा उछाल मार रहा है। उसको पहन कर बड़े शीशे के सामने भाषण देना। "हम मिलकर दुनिया बदल देंगे।" लेकिन तब पता नहीं था दुनिया जड़ भी होती है, चेतना उसमें कभी-कभी आती है। जवानी का जोश अद्भुत होता है। अधिकांश संघर्ष जवानी में ही किये जाते हैं। कोट की जेबों में छेद हो चुके हैं। मैं उन्हीं जेबों में हाथ डाल कर उससे अक्सर बात किया करता था। मैं कोट पहनकर कमरे से बाहर निकलता हूँ। गुनगुनी धूप, आशा भरी लगती है। मन करता है, इस कोट को पहन कर नैनीताल का भ्रमण किया जाय। टिफिन टाँप को धीरे-धीरे चलता हूँ। अकेला हूँ। तब तीन दोस्तों के साथ गया था। उनसे सभी आत्मीय बातें साझा करता था।
टिफिन टाँप पहुँचने पर एक पत्थर पर लेट जाता हूँ। आँख लग जाती है। सपना आता है।
एक राजा है। उसे एक सुन्दर सपना आता है।जैसे ही सपना पूरा होने को होता, एक उल्लू उसे लेकर दूर पेड़ पर चला जाता।राजा को ऐसा लगता जैसे राजा परीक्षित के साथ हुआ था।तक्षत सांप के डसने से पहले ही परीक्षित की आत्मा उनके शरीर से अलग हो जाती है और तक्षत केवल शरीर को विषमय करता है और मृत्यु का कारण बनता है।राजा परेशान हो जाता है।दस साल योंही बीत जाते हैं।राजा के समझ में कुछ नहीं आता है। एक दिन राजा अपनी दुविधा सभासदों को बताता है। सभी सभासद कहते हैं," महाराज, आप उस पेड़ को कटवा दीजिए।" राजा पेड़ कटवा देता है। फिर वह पक्षी दूसरे पेड़ों पर बैठता जाता है।राजा पेड़ कटवाता जाता है।और उसका राज्य वृक्ष विहीन होने लगता है।एक दिन एक साधु राजा के दरबार में आता है और कहता है," राजन, ऐसे ही वृक्ष कटते रहे तो आपकी मृत्यु पर, आपके शव को जलाने के लिये भी लकड़ी नहीं मिलेगी और अकाल पूरे राज्य को निगल जायेगा।" राजा सोच में डूब जाता है और पूरे राज्य में वृक्ष लगाने का आदेश दे देता है।
आँख खुली तो मेरे पीठ पर कुछ हलचल सी हुयी। मैंने अपनी दायीं ओर देखा तो एक साँप मेरे नीचे घुसा हुआ था। मैं एकाएक उछल कर दूर हुआ और साँप पत्थर के नीचे चला गया। लगभग छियालीस साल पहले भी इसी कोट को पहने था मैं।पाषाण देवी मन्दिर के पास पत्थर पर हम दो दोस्त आँख मूँद कर लेटे धूप सेंक रहे थे और साँप मेरे नीचे घुस गया था।
कोट को पहनकर मैं लगभग पूरा नैनीताल घूमा। मालरोड, नैनी झील,स्नोव्यू, डीएसबी, हनुमानगढ़ी,नैनादेवी मन्दिर। लग रहा था प्यार क्षण,दो क्षण होता है लेकिन उसकी उम्र बहुत लम्बी होती है। यह मानसिक आयु होती है,चपल, दुनिया से बेखबर।
मल्लीताल घूमते समय मेरा हाथ अचानक कोट की अन्दर वाली जेब में चला जाता है। वहाँ से एक पत्र निकलता है। उसमें लिखा ," वह तुमसे बहुत प्यार करती है। --।" मैं कोट को खोलकर हाथ में लटका देता हूँ।.....
...क्रमशः

* महेश रौतेला